विज्ञान रिपोर्टिंग व विज्ञान लेखन|विज्ञान रिपोर्टिंग| Science Reporting & Science Writing
विज्ञान रिपोर्टिंग व विज्ञान लेखन
विज्ञान रिपोर्टिंग व विज्ञान लेखन
- भारत में विज्ञान समाचारों की रिपोर्टिंग की विधिवत् शुरुआत वर्ष 1940 में शुरू हुई. दिनों दिन विज्ञान का विस्तार जीवन विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, संचार, इलेक्ट्रॉनिकी,अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा आदि क्षेत्रों के माध्यम से हो रहा है। इसकी जानकारी आम आदमी को मीडिया के माध्यम से होती है। मसलन पत्रकार इन क्षेत्रों की खबरों, समाचारों और जानकारियों को आलेखबद्ध करके उसे या तो अखबार / मैगजीन में प्रकाशित करता है, या फिर उसे टीवी / रेडियो चैनल से प्रसारित कर आम जनमानस तक पहुंचाता है। दरअसल, विकास के परिप्रेक्ष्य में देश की जनता यह जानना चाहती है कि आखिर हमारे द्वारा टैक्स के रूप में दिए गए पैसों का प्रयोग देश की सरकार किस प्रकार कर रही है और हमारे वैज्ञानिक विकास में उसका कितना योगदान हो रहा है।
विज्ञान रिपोर्टिंग:
- विज्ञान के क्षेत्र में प्रत्येक गतिविधि की जानकारी एकत्र कर उस पर रिपोर्ट तैयार करना या रिपोर्ट पर आधारित समाचार कथा तैयार करना विज्ञान रिपोर्टिंग के अंतर्गत आता है। हां एक खास बात और कि विज्ञान रिपोर्टिंग में उन पांच ककारों (क्या, कहां, कौन, कब, कैसे) की आवश्यकता नहीं होती है जिनकी सामान्य रिपोर्टिंग में मदद ली जाती है।
- किसी भी तरह की पत्रकारिता के लिए स्रोतों की जरूरत होती है। विज्ञान रिपोर्टिंग के लिए प्रारंभिक सूचना का स्रोत पत्र-पत्रिकाएं ही होती हैं। अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाएं साइंटिफिक अमेरिकन, साइंस, नेचर, वर्ल्ड साइंटिस्ट, लैसेंट, न्यूसाइंटिस्ट, डिस्कवर आदि अनेक विज्ञान पत्रिकाएं काफी उपयोगी हैं। साइंटिफिक अमेरिकन का भारत संस्करण भी 'विज्ञान' के नाम से निकलने लगा।
- वैज्ञानिक सूचनाओं का दूसरा स्रोत संगोष्ठी, व्याख्यान या पत्रकार सम्मेलन हो सकता है। इसमें विज्ञान से जुड़ी सूचनाओं की जानकारी के अलावा अन्य जरूरी सूचनाएं भी मुहैया कराई जाती हैं। इसके अलावा सेमिनार किट या सेमिनार बैग में संगोष्ठी से जुड़ी सारी सामग्री मौजूद रहती है जिसके आधार पर रिपोर्ट तैयार करने में मदद मिलती है। प्रेस वार्ता में भी विशेषज्ञों से प्रश्न पूछकर उस पर रिपोर्ट बनाई जा सकती है। इसके अलावा वैज्ञानिकों से बातचीत पर आधारित समाचार भी बनेंगे।
- विज्ञान सूचनाओं का तीसरा और महत्वपूर्ण साधन है वैज्ञानिक संस्थानों का भ्रमण करना। यहां पर शोधकर्ता अपना शोध कार्य कर रहे होते हैं। विज्ञान पत्रकार का दायित्व है कि वह इन लोगों से बातचीत कर खबर बना सकता है। कभी-कभी गोपनीयता की वजह से पत्रकारों को कोई भी जानकारी नहीं मिल पाती, लेकिन सरलता और सहजता से वैज्ञानिक सारी जानकारियां पत्रकार से शेयर कर लेता है। इसके अलावा विज्ञान पत्रकार को वैज्ञानिक क्षेत्र से निकलने वाली नियमित निविदाएं, सूचनाएं, प्रेस विज्ञप्तियों और क्रय आदेशों तथा विज्ञापन आदि की जानकारी लेते रहना चाहिए। इससे भी कई खबरें निकलकर सामने आ सकती हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक संस्थानों ओर सरकारी विज्ञान विषयक विभागों की वार्षिक रिपोर्ट, प्रचार सामाग्री, पोस्टर, फोल्डर, चार्ट, पुस्तिका, विवरणिका के अलावा रेडियो और दूरदर्शन के विज्ञान कार्यक्रमों से भी महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लग सकते हैं, जिससे आगे चलकर काफी प्रभावी विज्ञान रिपोर्टिंग तैयार हो सकती है।
- उदाहरण: अमेरिका में एक विज्ञान पत्रकार ने सेना द्वारा जारी की गई दो निविदाएं पढ़ीं। उसने कुछ दिन बाद एक और निविदा पढ़ी जो पहली दोनों निविदाओं से संपर्क खाती थी। पहली दो निविदाएं दो ऐसी गैसों के लिए थीं जिनके मिलने पर विस्फोट हो सकता था। और तीसरी निविदा ऐसे आवरण की थी जो विस्फोट को रोकने में सहायक थी। पत्रकार ने तीनों निविदाओं को मिलाकर एक जोरदार रिपोर्ट तैयार की जिसने पूरे विश्व समुदाय को चकित कर दिया। इसी प्रकार पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की जानकारी उसके द्वारा खरीद किए जाने वाले आर्डर से पता चली। दरअसल पाक सरकार ने एक मिश्रधातु और एक फ्रीक्वेन्सी कन्वर्टर की खरीद के लिए आर्डर दिया था। इसी से उसकी मंशा लीक हो गई।
- लखनऊ में आईटीआरसी (औद्धोगिक विष विज्ञान अनुसंधान केन्द्रर) में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ वैज्ञानिकों ने एक दूसरे से पूछा कि क्या वे कुंभ में जाना चाहते हैं। विज्ञान पत्रकार का माथा उनका कि वे कुंभ में इलाहाबाद क्यों जाना चाहते हैं। बाद में पता चला कि आईटीआरसी के वैज्ञानिकों का दल कुंभ में हवा और पानी में गंदगी की जांच कर रहा है। साथ ही खाद्य पदार्थों में प्रदूषण की जांच के लिए वैज्ञानिक अपनी परीक्षण किट सहित मेला स्थल पर मौजूद हैं। हिन्दुस्तान के विज्ञान पत्रकार सुबोध कुमार ने यह खबर निकाली जो स्कूप साबित हुई।
विज्ञान रिपोर्टिंग की कठिनाइयां और समाधान-
विज्ञान की रिपोर्टिंग में कई प्रकार की दिक्कतें सामने आ सकती है।, लेकिन विज्ञान पत्रकार को रिपोर्टिंग के वक्त धैर्य रखना होगा और निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना होगा.
i. विज्ञान पत्रकार किसी भी रिपोर्ट को भ्रामक तथ्यों के आधार पर न प्रकाशित करे। वर्ना उसे आगे रिपोर्टिंग में अपना सूत्र खो देना पड़ेगा और उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।
ii. विज्ञान पत्रकार की गलती से वैज्ञानिक के कामकाज पर असर पड़ेगा और वह अपना कार्य उन्मुक्त ढंग से नहीं कर पाएगा।
iii. जल्दबाजी के चक्कर में अधकचरी विज्ञान रिपोर्ट को प्रकाशित करना, लोगों को बेवकूफ बनाने जैसा होगा और ऐसे अपराध की सजा बहुत कड़ी होती है।
iv. वैज्ञानिकों के दावों के प्रति विज्ञान पत्रकार को सचेत रहना होगा और जब तक वह उन्हें पुख्ता न कर ले तब तक अपनी रिपोर्ट में न छापे।
v. देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों से प्राप्त रिपोर्ट को बिना किसी अनुमति के प्रकाशित कर देना पत्रकार को सेंसरशिप के दायरे में खड़ा कर सकता है। ऐसे में बिना नीतिगत पॉलिसी का अवलोकन किए खबर छापने से बचना होगा।
vi. विज्ञान पत्रकारों को जागरूक होकर वैज्ञानिक संस्थानों के प्रमुखों से वार्ता कर खबर पर पकड़ बनानी चाहिए। कभी-कभी उन्हें अपेक्षित सूचना नहीं मिल पाती लिहाजा संस्थानों के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से समन्वय करना अपेक्षित होगा।
vii. अंग्रेजी में जो वैज्ञानिक सूचनाएं दी जाती है उनके अनुवाद में दिक्कतें आती हैं, लिहाजा लोगों तक समय से सूचना नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में जब तक विज्ञान का साहित्य भरपूर मात्रा में हिन्दी में नहीं उपलब्ध होगा तब तक दिक्कतें होना स्वाभाविक है।
Post a Comment