स्वतंत्रता के बाद विज्ञान लेखन (Science writing after independence)
स्वतंत्रता के बाद विज्ञान लेखन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, राजकमल प्रकाशन, राजपाल एंड संस, आत्माराम एंड संस, तक्षशिला प्रकाशन, हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, हिन्दी समिति उप्र, देहाती पुस्तक भंडार, किताब महल, सस्ता साहित्य मंडल, सर्वोदय प्रकाशन, ग्रामोदय प्रकाशन आदि ने इस दिशा में उल्लेखनीय पहल की है।
1948 में इलाहाबाद से साइंस की कहानी और प्रारंभिक आकलन, आकाश से झांकी: लेखक देवनाथ उपाध्याय तथा 1949 में इलाहाबाद से ही गृह नक्षत्र, इसी वर्ष लखनऊ से प्रायोगिक रसायन तथा 1959 में नई दिल्ली से आविष्कार कथा प्रकाशित की है। 1948 में देहाती पुस्तक भंडार ने लोकोपयोगी विज्ञान और तकनीकी पर पुस्तकें शुरू कीं और रेडियो सर्विसिंग पुस्तक भी छापी।
सीएसआईआर की हिन्दी वैज्ञानिक प्रकाशन निदेशिका के अनुसार वर्ष 1966 तक विविध - विज्ञान विषयों पर 2,256 पुस्तकें छप चुकी थीं। इसके अलावा प्रांतीय स्तरों पर ग्रंथ अकादमियों ने काफी विज्ञान साहित्य रचा। 1960 में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग की स्थापना की गई, जिसने कई प्रामाणिक शब्दावलियां प्रकाशित कीं। 1966 से 1980 के बीच विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर 2,870 किताबें लिखीं गई, तथा 474 किताबों का अनुवाद कराया गया। ऐसे में कुल 3,344 पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। 1966 से पहले प्रकाशित किताबों को जोड़कर कुल 5,600 किताबों को छापा गया।
विज्ञान की पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन:
आजादी के बाद देश में कई एक हिन्दी पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया। 1934 में प्रो फूलदेव सहाय वर्मा ने 'गंगा' नामक पत्रिका में विज्ञान का पूरा अंक निकाला। 1948 में लखनऊ से प्राकृतिक जीवन पत्रिका निकली तो इसी साल पटना से ‘आयुर्वेद' पत्रिका भी सामने आई होमियोपैथिक संदेश 1948 में दिल्ली से छपी। 1948 में आईसीएआर ने खेती पत्रिका आरंभ की। मध्यप्रदेश में कृषि विभाग ने 1948 में किसानी समाचार, 1950 में लखनऊ से कृषि और पशुपालन, 1952 में विस्तार निदेशालय दिल्ली से उन्नत कृषि, फार्म सूचना, गोसंवर्द्धन आदि पत्रिकाएं निकलीं।
1952 में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद ने विज्ञान प्रगति का ऐतिहासिक प्रकाशन शुरू किया। 1964 में इसका कायाकल्प करके इसे लोक विज्ञान पत्रिका बना दिया गया। 1960 में विज्ञान समिति उदयपुर ने डॉ। के.एल. कोठारी के संपादकत्व में 'लोक विज्ञान' मासिक पत्रिका निकाली। इसके बाद 1961 में दो विज्ञान पत्रिकाएं निकाली गई जिसमें 'विज्ञान लोक ' के संपादक शंकर मेहरा (आगरा) बने और विज्ञान जगत जिसके संपादक आरडी विद्यार्थी (इलाहाबाद) ) रहे। दोनों में खूब सारी विज्ञान सामग्री छपती थी। 'विज्ञान लोक' का प्रकाशन 15 साल तक चला। वर्ष 1964 में सूरज कुमार पापा के संपादन में जयपुर से 'वैज्ञानिक बालक' पत्रिका निकाली। 1969 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने विज्ञान साहित्य परिषद का गठन किया और वैज्ञानिक' नामक पत्रिका निकाली।
1971 में राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम ने नई दिल्ली से आविष्कार' पत्रिका निकाली जिसके संपादक बदीउद्दीन खां थे।1975 में नैनीताल से 'विज्ञान डाइजेस्ट' का मासिक प्रकाशन आरंभ किया। 1979 में यूपी के महोबा से विज्ञान परिषद द्वारा 'ज्ञान-विज्ञान' मासिक पत्रिका का प्रकाशन मनोज के संपादकत्व में आरंभ हो सका। 1978 में इलाहाबाद से कुमार पटैरिया विज्ञान भारती त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
1979 में भारतीय विज्ञान संस्थान ने 'विज्ञान परिचय' नामक त्रैमासिकी आरंभ की।1981 में विज्ञानपुरी त्रैमासिक, ग्रामशिल्प त्रैमासिक और जूनियर साइंस डाइजेस्ट मासिक पत्रिका निकाली गई. विज्ञानपुरी के संपादक मनोज पटैरिया बने और इस पत्रिका ने विज्ञान के क्षेत्र में फैली गड़बड़ियों पर भी कलम चलाई. कई विधाओं में विज्ञान सामग्री यह पत्रिका परोसती थी। ग्राम शिल्प के संपादक देवेन्द्रनाथ भटनागर बने। इसे राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम द्वारा निकाला गया। 1982 में बैरकपुर पं बंगाल से 'विज्ञानदूत' पत्रिका शुरू की गई.इस मासिक पत्रिका के संपादक डॉ गोविंद प्रसाद यादव थे।
1983 में डॉ ओमप्रकाश शर्मा ने 'विज्ञान प्रवाह' नामक मासिक पत्रिका आरंभ की, इसके संपादक लीलाधर काला थे। 1985 में यह पत्रिका बंद भी हो गई. 1985 में डीएसटी के सहयोग से भोपाल की संस्था एकलव्य ने 'चकमक' नामक पत्रिका निकाली। इसमें बच्चों के लिए काफी सामग्री छापी गई. 1986 में प्रेमचंद्र श्रीवास्तव के संपादकत्व में 'विज्ञान वीथिका द्वैमासिक पत्रिका इलाहाबाद से निकाली गई. 1986 मुंबई ही बाल विज्ञान पत्रिका ‘साइफन’ निकाली गई. 1985 में ब्रिटिश दूतावास के सहयोग से ब्रिटिश वैज्ञानिक एवं आर्थिक समीक्षा' पत्रिका निकाली गई. आईआईटी दिल्ली ने 1987 में अर्द्धवार्षिक पत्रिका 'जिज्ञासा' आरंभ की। इसके संपादक प्रो. वंश बहादुर त्रिपाठी है। बंगलौर से 'स्पेस इंडिया' का प्रकाशन भी इसी साल शुरू किया गया। 1988 में 'विज्ञान गंगा का प्रकाशन भगवान दास पटैरिया के सौजन्य से हुआ। इसे केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद ने निकाला। 1988 में ही वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग ने 'विज्ञान गरिमा सिंधु' का प्रकाशन किया। इसके संपादक प्रेमानंद चंदोला हैं। इस तरह समय-समय पर हिन्दी में विज्ञान पत्रिकाएं प्रकाशित होती रहीं और अब भी निकल रही हैं जिससे लोगों को विज्ञान की सूचनाएं और जानकारियां बराबर मिल रही हैं।
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