भारत में ऋतुएं |भारत में मानसून का महत्व | Seasons in India Details in Hindi
भारत में ऋतुएं (Seasons in India Details in Hindi)
भारत में ऋतुएं (Seasons in India Details in Hindi)
मानूसन चक्र के
आधार पर भारत में एक वर्ष को चार ऋतुओं- ऊष्ण शुष्क, ऊष्ण आर्द्र, शीत शुष्क, तथा शीत आर्द्र में विभाजित किया जा सकता है-
1. ऊष्ण शुष्क ऋतु (ग्रीष्म ऋतु) –
- इस ऋतु को ग्रीष्म ऋतु भी कहा जा सकता है और भारत में इसकी अवधि मार्च से जून तक होती है। मार्च के पश्चात सूर्य की लंबवत किरणों की स्थिति उत्तर की ओर खिसकने लगती है और जून के महीने में सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत होता है। सूर्य की लंबवत किरणों के उत्तर की ओर खिसकाव के साथ इस ऋतु का प्रारंभ होता हैं और पूरे देश में तापमान में वृद्धि होने लगती है।
- दक्षिणी भारत में सर्वोच्च तापमान अप्रैल के महीने में तथा उत्तरी मैदान में मई और जून में महसूस किए जाते हैं। उत्तर भारत में तापमान बढ़ने से इस क्षेत्र में से एक विस्तृत न्यून वायु दाब क्षेत्र की उत्पत्ति होती है। इस समय मौसम गर्म तथा शुष्क बना रहता है तथा देश के उत्तरी-पश्चिमी भागों में तापमान अत्यधिक ऊंचा हो जाता है। राजस्थान के अत्यधिक तप्त क्षेत्रों से लू नामक गर्म पवनें चलती हैं तथा ये पवनें गंगा के मैदान में अग्रसर होती जाती हैं और इस क्षेत्र में भी तापमान में तेजी से वृद्धि होती है। लू का प्रभाव कई बार गंगा के मैदान के लगभग पूर्वी भाग तक महसूस किया जाता है। गंगा के मैदान में तापमान में वृद्धि के कारण जो न्यून वायुदाब का क्षेत्र देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित होता है, वह पूर्व की ओर फैलने लगता है और संपूर्ण मैदानी क्षेत्र इसके अंतर्गत आ जाता है।
2. ऊष्ण आर्द्र ऋतु (वर्षा ऋतु)–
- भारत में इस ऋतु को वर्षा ऋतु भी कहा जाता है। इस ऋतु की अवधि जून से सितंबर होती है। मई महीने में भारत में तापमान बढ़ने के कारण अंत: ऊष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र उत्तर की ओर खिसकने लगता है और इस प्रकार उत्तर भारत में बनने वाले न्यून वायु दाब क्षेत्र की उत्पत्ति के साथ ही दक्षिणी पश्चिमी मानसून आरंभ हो जाता है।
- दक्षिणी पश्चिमी मानसून सबसे पहले दक्षिण भारत में सक्रिय होता है और धीरे-धीरे उत्तर की ओर अग्रसर होता है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आगमन की सामान्य तिथियां अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 20 मई, कोंकण तट पर 3 जून, कोलकाता में 15 जून तथा दिल्ली में 29 जून हैं। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है अंतः ऊष्णकटिबंधीय अभिसरण का उत्तर की ओर अग्रसर होना जैट स्ट्रीम के उत्तर की ओर खिसकने की प्रक्रिया से भी संबद्ध है। उत्तर भारत में न्यून वायुदाब तभी विकसित हो पाता है, जब उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जैट स्ट्रीम भारत से उत्तर की ओर चला जाए। अतः दक्षिणी पश्चिमी मानसून के उत्तरी भारत तक पहुंचने के लिए इस जैट स्ट्रीम का भारत से परे जाना नितांत आवश्यक होता है।
- दक्षिणी-पश्चिमी मानसून भारत में दो शाखाओं के रूप में प्रवेश करता है। इनमें से एक शाखा को अरब सागर की शाखा तथा दूसरी को बंगाल की खाड़ी की शाखा कहा जाता है। देश के अधिकांश भागों में वर्षा दक्षिणी पश्चिमी मानसून में ही होती है। केवल तीन ऐसे क्षेत्र हैं, जहां इस मानसून से वर्षा नहीं हो पाती। इनमें से दो प्रमुख क्षेत्र तमिलनाडु तथा राजस्थान तथा गुजरात का मरुस्थलीय भाग है। दक्षिणी पश्चिमी मानसून की अरब सागर की शाखा पश्चिमी घाट के अवरोध के कारण पश्चिमी तटीय मैदान में तीव्र वर्षा करती है परंतु तमिलनाडु क्षेत्र पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र होने के कारण शुष्क ही रह जाता है। भार के मस्स्थनीय क्षेत्र में वर्षा अति कम होने का कारण इस क्षेत्र में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनो के मार्ग में किसी अवरोध का न होना है।
- यद्यपि अरावली पर्वत इसी क्षेत्र में स्थित है परंतु इस पर्वत श्रेणी की दिशा पवनों की दिशा के समांतर है और इसलिए यह पर्वत पवनों के मार्ग में कोई बाधा उपस्थित नहीं करता। इसलिए यह क्षेत्र अम्ब सागर से आने वाली मानसून पवनों के मार्ग में होते हुए भी शुष्क रह जाता है। मानसून की बंगाल की खाड़ी से आने वाली शाखा देश के उत्तरी पूर्वी भाग में काफी मात्रा में वर्षा करती है और इसका एक भाग पश्चिम की ओर मुड़कर हिमालय के साथ-साथ गंगा के मैदान में पश्चिम की ओर अग्रसर होता है तथा पूरे उत्तरी मैदान में वर्षा करता है। परंतु देश के पश्चिमी भाग (राजस्थान) तक पहुंचते-पहुंचते वायु अपनी अधिकांश नमी खो चुकी होती है। इसलिए मानसून की इस शाखा से राजस्थान क्षेत्र में कोई विशेष वर्षा नहीं हो पानी। पवनों में नमी की बढ़ती हुई कमी के कारण ही देश के सुदूर उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित लद्दाख क्षेत्र में भी जलवायु शुष्क रहती है। लद्दाख क्षेत्र दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की ऋतु में शुष्क रहने वाला देश का तीसरा क्षेत्र है। उत्तर भारत के मैदान में भी वर्षा की मात्रा पश्चिम तथा दक्षिण की ओर घटती जाती हैं।
3. शीत शुष्क ऋतु (शरद ऋतु)
- इस ऋतु को सामान्यतया शरद ऋतु भी कहा जा सकता है क्योंकि इस समय देश के किसी भी भाग में (ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों को छोड़कर) तापमान अधिक नीचे नहीं होते। यह ऋतु मध्य सितंबर में मध्य दिसंबर तक होती है और इस अवधि में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पीछे हट रहा होता है। इसलिए इसे पीछे हटते मानसून की ऋतु भी कहा जा सकता है। मध्य सितंबर के पश्चात उत्तर भारत में तापमान घटने लगता है और यहां वायुदाव में वृद्धि होने लगती है। इस समय सूर्य की लंबवत किरणों की स्थिति दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा की और स्थानांतरित हो रही होती है। उत्तर भारत में बढ़ते वायुदाब के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पीछे हटने लगता है। दक्षिणी-पश्चिमी मातृसन सबसे पहले उत्तर भारत से पीछे हटता है और जैसे-जैसे इस मानसून की उत्तरी सीमा दक्षिण की ओर खिसकती है, इससे उत्तर के भाग में उत्तरी-पूर्वी मानसून सक्रिय होने लगता है। अंत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पूरे देश से पीछे हट जाता है और उत्तरी-पूर्वी मानसून इसका स्थान ले लेता है। इस प्रकार पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलने लगती हैं। इस अवधि में मौसम शुष्क रहता है।
4. शीत आर्द्र ऋतु (शीत ऋतु)–
- शीत आर्द्र ऋतु को भारत में शीत ऋतु भी कहा जाता है और इसकी अवधि दिसंबर से फरवरी तक होती है। शरद ऋतु से चले आ रहे शुष्क मौसम का अंत दिसंबर तथा जनवरी में पश्चिमी विक्षोभों के आगमन के साथ होता है। ये पश्चिमी विक्षोभ पछुआ पवनों की पेटी में विकसित होने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात होते हैं तथा इनसे भारत के उत्तरी भागों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में हिमपात होता है। इसी अवधि में तमिलनाडु में भी वर्षा होती है, जो उत्तरी-पूर्वी मानसून के द्वारा होती है। इस वर्षा का कारण उत्तरी पूर्वी मानसून की वह पवने हैं जो बंगाल की खाड़ी से आते हुए कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। इस प्रकार ग्रीष्मकाल में शुष्क रहने बाले भारत के तीन क्षेत्रों में से दो (देश का उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र तथा तमिलनाडु) भागों में शीतकाल में वर्षा होती है। परंतु तीसरा क्षेत्र (राजस्थान तथा गुजरात के शुष्क भाग) इस समय भी शुष्क ही रहता है। इस क्षेत्र के शुष्क रहने का कारण यह है कि न तो इस क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ ही पहुंचते हैं और न ही यहां से गुजरने वाली उत्तरी पूर्वी मानसून पवनों में आर्द्रता होती है।
- उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में अधिकांश वर्षण मानसून का परिणाम है। साथ ही देश में अधिकांश वर्षण भगतलीय परिस्थितियों का परिणाम है, अर्थात यह पर्वतकृत वर्षण के रूप में प्राप्त होता है। संवहनीय वर्षा का देश के कुल वर्पण में योगदान बहुत कम है। इसी प्रकार शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का देश के वर्षण में योगदान भी काफी कम है और इस प्रकार का वर्षण केवल उत्तर भारत में शीतकाल में होता है।
- देश में मानसून के व्यवहार में भी काफी असमानता देखी जाती है और ये विषमताएं काफी हद तक बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भाग में विकसित होने वाले ऊष्णकटिबंधीय चक्रवातों के परिणामस्वरूप होती हैं। ये चक्रवात अथवा अवदाब इस क्षेत्र में चलने वाली पवनों के प्रभाव के अंतर्गत गंगा के मैदान में उत्तर पश्चिम की ओर अग्रसर होते हैं तथा इनका प्रभाव लगभग पूरे मध्य तथा उत्तर भारत पर पड़ता है। इनमें से कुछ अवदाब काफी प्रचंड चक्रवातों का स्वरूप ले लेते हैं और भारी वर्षा करते हैं. विशेषतया तटीय क्षेत्रों में इन अवदाबों की संख्या तथा इनकी तीव्रता किसी वर्ष विशेष में उत्तर तथा मध्य भारत में वर्षा की मात्रा में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वर्षा ऋतु में वर्षा का रुक-रुक कर होना भी इन्हीं अवदाबों से संबंद्ध है। आम तौर पर दो अवदाबों के बीच की अवधि में वर्षा कम होती है। इस प्रकार वर्षा ऋतु में बीच-बीच में शुष्क मौसम भी आता रहता है।
भारत में मानसून का महत्व
- मानसून पूरे भारत के लिए वर्षा का मुख्य स्रोत है। चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए यहां वर्षा का अत्यधिक महत्व है। देश के विभिन्न भागों में सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के बावजूद भी देश के काफी बड़े क्षेत्र में कृषि आज भी वर्षा पर निर्भर है। इसलिए भारत का कृषि वर्ष मानसून के साथ घनिष्टता से जुड़ा है। देश में वर्षा की मात्रा में एक सीमित विचलन भी बाढ़ तथा सूखे जैसी समस्याओं को जन्म देता है। बाढ़ तथा सूखे की परिस्थितियां देश की अर्थव्यवस्था के न केवल प्राथमिक बल्कि द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों को भी प्रभावित करती हैं।
- यद्यपि वर्षा में अनियमितता का प्रभाव मुख्यतः कृषि उत्पादन पर पड़ता है परंतु चूंकि यह आर्थिक क्रिया अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति कराती है इसलिए मौसम संबंधी परिस्थितियों का प्रभाव औद्योगिक उत्पादन पर भी पड़ता है। इस प्रकार मानसून का प्रभाव न केवल खाद्यान्न की आपूर्ति पर बल्कि औद्योगिक उत्पादन पर भी पड़ता है। इसके अतिरिक्त देश में एक बड़ी जनसंख्या अपने जीवनयापन के लिए कृषि पर निर्भर है तथा इस बड़ी जनसंख्या की क्रय शक्ति कृषि की सफलता पर निर्भर करती है। इस बड़ी जनसंख्या की क्रय शक्ति में हास से औद्योगिक उत्पादों की मांग में भी कमी आती है। यही कारण है कि देश में केवल किसान वर्ग ही नहीं बल्कि सभी लोग दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आगमन का उत्सुकतापूर्वक इंतजार करते हैं। मानसून के देश की अर्थव्यवस्था में अत्यधिक महत्व के कारण से इसे देश का वास्तविक वित्तमंत्री' कहा जाता है।
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