समाचार लेखन के चरण |आमुख (इंट्रो या लीड) और आमुख के प्रकार |Steps of News Writing
समाचार लेखन के चरण , आमुख (इंट्रो या लीड) और आमुख के प्रकार
समाचार लेखन के चरण Steps of News Writing
1 तथ्यों का संकलन
- समाचार लेखन का प्रथम चरण है तथ्यों का संकलन। तथ्य संकलन में संवाददाता को नूतनता, विलक्षणता, लोकरुचि, सत्यता और संतुलन, परिवर्तनशीलता, रहस्यपूर्णता, सुरुचिपूर्णता, मानवीय भावोद्रेक आदि का सदैव ध्यान रखना चाहिए। इस संबंध में विभिन्न लेखकों ने अनेक प्रकार के स्रोतों का उल्लेख किया है। प्रवीण दीक्षित ने अपनी पुस्तक 'जनमाध्यम और पत्रकारिता' में 82 स्रोतों की चर्चा की है। डॉ. नंदकिशोर त्रिखा ने इन्हें तीन वर्गो - प्रत्याशित, अप्रत्याशित और पूर्वानुमानित में बांटा है। डॉ. अर्जुन तिवारी ने क्रमशः प्रत्याशित, अप्रत्याशित, पूर्वानुमानित, समाचार समितियों, प्रेस रिलीज, साक्षात्कार, पत्रकार सम्मेलन, अनुवर्तन नामक स्रोतों का उल्लेख किया है। लेकिन इन सभी स्रोतों का नियामक या सूत्रधार संवाददाता है जो लगातार समाचारों की टोह में, उनकी तलाश में रहता है। श्री राजेंद्र के शब्दों में इनका (स्रोतों) का सम्यक् और सफल दोहन वही संवाददाता कर सकता है जो मानव-स्वभाव को समझने में सक्षम हो और दूसरों के प्रति व्यवहारकुशलता का परिचय दे सके। समाचारों के स्रोतों का पूरा पूरा लाभ उठाना अपने में ही एक संपूर्ण कला है और प्रेस रिपोर्टिंग का उतना ही महत्त्वपूर्ण पहलू है जितना कि समाचार लेखन या प्रेषण।' (संवाद और संवाददाता, पृ० 33 ) यहां विस्तारपूर्वक स्रोतों पर चर्चा अपेक्षित है-
क. प्रत्याशित स्रोत:
- ये वे स्रोत होते हैं जहां से समाचार मिलना अनिवार्य है। इनमें पुलिस स्टेशन, अस्पताल, नगरपालिका, शमशान, संसद, विधानसभा, विविध समितियों की बैठकें आदि को लिया जा सकता है।
ख. पूर्वानुमानित स्रोत:
- ये वे स्रोत होते हैं जिन पर दृष्टि रखने से समाचार मिलने की संभावना होती हैं। अधिकतर ये स्रोत पूर्व प्रकाशित समाचार के संदर्भ में प्राप्त नवीन जानकारी अर्थात् फॉलोअप के रूप में होते हैं। रेलवे स्टेशन, रैली, प्रदर्शन, गंदी बस्तियाँ आदि भी पूर्वानुमानित स्रोत में आते हैं।
ग. अप्रत्याशित स्रोत:
- ये वे स्रोत हैं जिनका न तो संवाददाता को प्रत्याशा होती है और न अनुमान। जैसे दुर्घटना या अकस्मात किसी घटना का घट जाना। ऐसे स्रोत के संबंध में संवाददाता को सदा सतर्क और दूरदृष्टि से युक्त रहना चाहिए।
घ. समाचार समितियां:
- इन्हें आढ़तियों के रूप में जाना जाता है। इन समितियों से भी तथ्यों की जानकारी मिल सकती है। ये तथ्य संकलन, प्रेषण और वितरण का काम करती हैं। इनमें भाषा, वार्ता, रायटर आदि को लिया जा सकता है।
ङ. प्रेस विज्ञप्तियां:
- यह सरल और स्पष्ट लिखित सूचना होती है जिसे सरकारी, गैर सरकारी कार्यालय, संस्थान अपनी उपलब्धियों, निर्णयों, नीतियों आदि की सूचना देने हेतु जनमाध्यमों को प्रेषित करते हैं जो समाचार का स्रोत बनती हैं। इनके अतिरिक्त साक्षात्कार, पत्रकार सम्मेलन, जनसामान्य तथा अन्य जनमाध्यम (रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट आदि) भी तथ्यों के स्रोत हो सकते हैं। अतः संवाददाता को इन पर अपनी पैनी दृष्टि रखनी चाहिए ताकि समाचार लेखन नित नवीन और पूर्ण बन सके।
2. कथा की काया की योजना बनाना एवं लिखना
- एल० के० डिकर ने सूचना, उद्देश्य, प्रक्रिया, (विधि) घटना की पृष्ठभूमि एवं प्रबंध और पारस्परिक संचार समाचार की पूर्णता के लिए आवश्यक माने हैं। इस दृष्टि से समाचार को सुबोध और सुग्राह्य बनाने के लिए कथा-काया की प्रस्तुति में यह कोशिश की जाती है कि प्रथम अनुच्छेद में घटना की जानकारी हो जाए और उसके बाद घटना के उद्देश्य, उसकी प्रक्रिया, में पृष्ठभूमि, प्रतिक्रिया तथा समाचार का पारस्परिक संबंध स्पष्ट किया जाए। (उद्धृत, डॉ. अर्जुन तिवारी, आधुनिक पत्रकारिता, पृ० - 49 )
3. समाचार का शीर्षक
- यह प्रत्येक रचना में होता है और प्रत्येक समाचार, संपादकीय, फीचर आदि में भी। किसी भी समाचार, संपादकीय, फीचर आदि को पढ़ने से पहले पाठक शीर्षक ही पढ़ता है और उससे रूबरू होता अतः शीर्षक की उपयोगिता से इनकार नहीं किया जा सकता। यह एक प्रकार से समाचार का झरोखा या प्रवेश द्वार है। इसके महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अर्जुन तिवारी लिखते हैं कि ‘समाचार के शीर्षक बड़े मुखर होते हैं। वे पाठक को पुकारते हैं। बार-बार यहीं दोहरातें हैं - मैं महत्त्वपूर्ण हूं, मैं आकर्षक हूं। ये आंखों को विश्राम देते हैं, ये पत्र के विज्ञापन जैसे होते हैं जो पाठक को पत्र खरीदने हेतु प्रेरित करते हैं।' (आधुनिक पत्रकारिता, पृ० 51) डॉ. हरिमोहन के शब्दों में समाचार का शीर्षक समाचार का प्राण होता है। इसमें समाचार सार, घटना परिणाम तथा स्थिति का संकेत निहित होता है। इसलिए समाचार का शीर्षक लिखना एक बुद्धिसम्मत और अभ्यासजन्य कला है। यह शाब्दिक पुकार है जो पाठक को अपनी ओर खींचती है। इसका उद्देश्य ही होता है - पाठक को तुरंत आर्किर्षत करना, शीघ्रता से संक्षेप में समाचार के मूल भाव को बताना, रुचि के अनुसार समाचार ढूँढ़ने में पाठक की सहायता करना, उसे लोकप्रिय बनाना, उसकी विश्वसनीयता बढ़ाना, पृष्ठ-सज्जा को आकर्षक बनाना आदि । ' (डॉ. हरिमोहन, समाचार, फीचर लेखन एवं संपादन कला, पृ०-81-82)
- शीर्षक संक्षिप्त, सार्थक, रोचक, आकर्षक, सरल, संप्रेषणीय तथा स्पष्ट हो। उसमें 'विशेषण' या ‘अभिमत’ नहीं होना चाहिए और न ही शीर्षक की रचना भूतकाल में की जाए। उसके दोहरे अर्थ न निकलते हों। शीर्षक में अकर्मक क्रिया का यथासंभव कम प्रयोग होना चाहिए और सुविख्यात व्यक्ति के ‘नाम’ या ‘उपनाम का प्रयोग किया जाना चाहिए। शीर्षक और आमुख में संबंध होना चाहिए। प्राय: पहले पृष्ठ पर पूरा समाचार देना संभव नहीं होता, ऐसी स्थिति में समाचार अन्य पृष्ठों पर ले जाया जाता है। अतः समाचार के शेषांश का शीर्षक इस प्रकार से बनाया जाए कि पाठक उसे सरलता से पहचान सके। इस दृष्टि से मूल शीर्षक के किसी शब्द विशेष को शेषांश के शीर्षक में देना उचित रहता है। यहां इस संबंध में एक उदाहरण प्रस्तुत है- 'बजट सत्र में अहम में विधेयकों पर बनी रहेगी रार। यह शीर्षक पहले पृष्ठ पर दिया गया है और इसका शेषांश शीर्षक पृष्ठ चार पर इस प्रकार दिया गया है- 'बजट सत्र स्पष्ट है कि यहां पाठक को समाचार ढूंढ़ने और पढ़ने में आसानी रहेगी।
4 सूत्रोल्लेख
शीर्षक के उपरांत समाचार के स्रोत का उल्लेख भी करना चाहिए। यह स्रोत समाचार समिति या न्यूज ब्यूरो हो सकता है। विशेष प्रतिनिधि अथवा व्यक्तिगत संवाददाता आदि के रूप में हो सकता है। जैसे
बजट सत्र में अहम विधेयकों पर बनी रहेगी रार
नेशनल ब्यूरो, नई दिल्ली
जेटली की जासूसी में दो गिरफ्तार
एजेंसी, नई दिल्ली
गरीबों के निवाले से अमीरों की बनेगी शराब भास्कर न्यूज | रांची
- रेडियो और टेलीविजन में समय-सीमा का बंधन होता है इसलिए इन माध्यमों में सूत्रोल्लेख आवश्यक नहीं है। इनमें संवाददाता से सीधा विवरण प्रस्तुत करवाया जाता है जो अधिक विश्वसनीय होता है। टेलीविजन में जीवंत प्रसारण सहायक होता है। कभी-कभी आवश्यकता पड़ने पर कैप्सन के रूप में समाचार के साथ चलने वाली लिखित पट्टी में इसका उल्लेख होता है।
आमुख (इंट्रो या लीड )और आमुख के प्रकार
- समाचार का प्रथम अनुच्छेद 'आमुख' कहलाता है। उर्दू में इसे 'मुखड़ा' कहा जाता है और अंग्रेजी में इसे इंट्रो या लीड की संज्ञा दी गई है। इसे समाचार की भूमिका और आत्मा भी माना जा सकता है। यह 'समाचार का प्राण अथवा अंतिम निष्कर्ष का प्रकाश है।' (श्री प्रेमनाथ चतुर्वेदी, समाचार संपादन, पृ० 54 ) डॉ. अर्जुन तिवारी इसे 'समाचार - दुर्ग का प्रवेश द्वार' मानते हैं। (आधुनिक पत्रकारिता, पृ० 49) नंदकिशोर त्रिखा के अनुसार 'समाचार में प्रस्तुत माल का परिचय यदि प्रदर्शन कक्ष (शो विंडो) की तरह पहले पैरा में करा दिया जाए और वह पाठक को अच्छा लगे तो यह माल निश्चय ही बिककर रहेगा। इस परिचय को ही अंग्रेज़ी में संक्षेप में 'इंट्रो' (इंट्रोडक्शन) कहते हैं।' (समाचार संकलन और लेखन, पृ० 48) समाचार के तीन पक्षों - शीर्षक, आमुख और शेष भाग में आमुख का विशिष्ट महत्त्व है। सबसे पहले एडविन एल० शूमैन ने आमुख द्वारा समाचार को आकर्षक बनाने की ओर ध्यान दिया। (आधुनिक पत्रकारिता, पृ० 49 )
एक अच्छे आमुख इंट्रो या लीड में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए
क. आमुख में समाचार के छह ककारों का परिचय होना चाहिए लेकिन यह आवश्यक नियम नहीं है। मूलतः किसी समाचार के तीन प्रश्नों -"क्या, कहाँ, कब' का उत्तर अवश्य आमुख में होना चाहिए। अन्य प्रश्नों कौन, क्यों तथा कैसे का उत्तर आवश्यकतानुसार अन्य अनुच्छेदों में दिया जा सकता है।
ख. आमुख सरल, सारपूर्ण, संक्षिप्त, व्यवस्थित, प्रभावी, आकर्षक, रोचक यथार्थपरक, समाचार का पूर्वाभास देने वाला, समाचार की मूल चेतना को व्यक्त करने वाला और समाचार कमजोर इवेन्स के के अनुरूप होना चाहिए तभी वह पाठक समाचार पढ़ने हेतु उत्सुक होगा। आमुख एक अच्छे समाचार को पाठक की दृष्टि से दूर ले जाता है। हैरल्ड अनुसार यदि 'इंट्रो' को समझने के लिए उसे (समाचार) पढ़ने की ज़रूरत पड़े तो उसे असफल ‘इंट्रो’ कहा जाना चाहिए। (उद्धृत, नंदकिशोर त्रिखा, समाचार संकलन और लेखन, पृ०-48)
ग. एक अच्छा आमुख प्रायः तीस शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए। इस संबंध में नंदकिशोर त्रिखा लिखते हैं कि 'इसकी लंबाई पैंतीस शब्दों में हो तो सर्वोत्तम, लेकिन पैंतालीस शब्दों से अधिक कदापि नहीं होनी चाहिए।' (समाचार संकलन और लेखन, पृ० 50-51)
घ. आमुख में अनावश्यक संदर्भों व सूत्रों को नहीं शामिल करना चाहिए बल्कि मुख्य तथ्य के आधार पर सीधे कथन से इसे प्रभावी ढंग से लिखना ठीक रहता है। घटना को उसके आरंभ से बताने का प्रयास भी नहीं होना चाहिए और न किंतु, परंतु, लेकिन आदि. शब्दों से आमुख शुरू करना चाहिए। अनावश्यक संदर्भों और सूत्रों का उल्लेख आमुख को अनाकर्षक बना देता है। अतः यदि 'समाचार ठोस हो तो 'इंट्रो' में सूत्र नहीं समाचार दिया जाना चाहिए किंतु समाचार में केवल मत या संभावना प्रकट की गई हो तो सूत्रों से ही समाचार आरंभ करना चाहिए। व्यापार, खेल तथा व्यावसायिक क्षेत्रों के समाचारों में भी उनके सूत्रों का महत्त्व होता है।' (समाचार संकलन और लेखन, पृ० 51)
ङ. आमुख में यह प्रयास रहना चाहिए कि एक ही विचार, पहलू या घटना उसमें रहे। यही नहीं उसमें व्यक्तियों को केंद्र में रखना चाहिए न कि अमूर्त अवधारणाओं और वस्तुओं को। आमुख में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है कि 'उसमें क्या कहा गया' है या ‘क्या घटित हुआ है।
च. आमुख लेखन के लिए समाचार को इंगित करने वाले संकेत शब्द को ढूंढना चाहिए क्योंकि हैरल्ड इवेंस का मानना है कि 'यह संकेत शब्द आपके 'इंट्रो' की आत्मा है। इसी को ‘इंट्रो’ का आधार बनाया जाना चाहिए।' (समाचार संकलन और लेखन, पृ० 53)
छ. जब कभी भी प्रस्तावों और वक्तव्यों का आमुख लिखना हो तो उसमें यह देखना उचित होगा कि कौन सी बात उसमें स्पष्ट और ठोसपूर्ण ढंग से कही गई है या किस पहलू पर अधिक बल दिया गया है उसका ही आमुख बनाया जाएगा।
ज. प्रसिद्ध पत्रकार रंगास्वामी पार्थसारथी ने एक अच्छे आमुख में इन चार विशेषताओं का होना आवश्यक माना है (1) वह पाठक को तुरंत पकड़े, (2) वह कुछ न कुछ अवश्य कहे, (3) यह कार्य वह तुरंत करे और (4) यह कार्य ईमानदारी से करे । (बेसिक जर्नलिज्म, पृ० 110)
(इंट्रो या लीड) आमुख' के प्रकार
- ‘आमुख' के भेदों पर अनेक लेखकों ने विचार किया है। विभिन्न पत्रकारों और आलोचकों (प्रवीण दीक्षित, श्री एम० वी० कामथ, डॉ. अर्जुन तिवारी आदि) ने ‘आमुख' के निम्नलिखित भेद स्वीकार किए हैं - (1) सारांश आमुख, (2) विस्तृत आमुख, (3) दुर्घटना आमुख, (4) धर्मयुद्ध आमुख, (5) आश्चर्यकारक आमुख, (6)। कारतूस आमुख, (7) 'आप' और 'मैं' आमुख (8) निलंबित अभिरुचि आमुख, (9) व्याख्यात्मक आमुख, (10) सामान्य रूप आमुख, (11) प्रश्न आमुख, (12) उद्धरण आमुख, (13) आश्रित वाक्यांश आमुख, (14) संज्ञा वाक्यांश आमुख, (15) तब और अब आमुख, (16) अत्र-तत्र आमुख, (17) आलंकारिक या रंगीन आमुख, (18) उपाख्यान आमुख, (19) सूक्ति आमुख, (20) आज आमुख, (21) विचित्र आमुख, (22) संवादीय आमुख (23) विवरणात्मक आमुख, (24) असंबद्ध आमुख (25) पंच आमुख ( द्रष्टव्य, एम० वी० कामथ, प्रोफेशनल जर्नलिज्म, पृ० 99-103,
जनमाध्यम और पत्रकारिता, भाग-2, पृ० 171-179) श्री प्रेमनाथ चतुर्वेदी ने आमुख के दो प्रमुख भेद किए हैं
i. भावनात्मक आमुख
ii. तथ्यात्मक आमुख
- उनके अनुसार भावनात्मक आमुख में पाठक की संवेदनाओं को स्पर्श किया जाता है। इसमें घटनाचक्र और विचारप्रधान समाचारों का दोहन कर निष्कर्ष निकालने अथवा उसके लिए प्रेरणा देने की चेष्टा की जाती है। इसके विपरीत तथ्यात्मक आमुख में घटनाचक्र को बिना लाग लपेट के महत्त्व दिया जाता है। इसमें घटना का यथातथ्य विवरण होता है। किसी-किसी तथ्यात्मक आमुख को भी भावना का पुट देकर अधिक रोचक और प्रभावशाली बनाया जा सकता है। (प्रेमनाथ चतुर्वेदी, समाचार - संपादन, पृ०-55) यथा
भावनात्मक आमुख
नई दिल्ली, 3 नवंबर। मर्माहित देश ने भरे हुए दिल और छलकती आँखों से अपनी प्रिय नेता को अलविदा कहा। करोड़ों लोगों की लाड़ली श्रीमती गाँधी के पार्थिव शरीर को जब राजीव जी ने अग्नि को समर्पित किया तो एक क्षण को जैसे सब कुछ थम गया और चारों और स्तब्धता छा गई. लेकिन अगले ही क्षण लाखों आँखें छलक उठीं और जब तक सूरज चाँद रहेगा, इन्दिरा तेरा नाम रहेगा - जैसे नारों से आकाश गूंज उठा। इन छलकती आँखों में मासूम आँखें भी थीं तो जवान आँखें भी थीं और लगभग पूरी शताब्दी का उतार-चढ़ाव देख चुकी वृद्ध आँखें भी। नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली, 4 नवंबर, 84
तथ्यात्मक आमुख
नई दिल्ली, 31 अक्टूबर । प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी की आज सुबह 9:40 पर उनके निवास स्थान पर ही गोलियाँ मारकर हत्या कर दी गई उन पर गोलियाँ उनकी रक्षा के लिए तैनात सुरक्षा गार्डों ने ही चलाई. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनके 16 गोलियों से छलनी शरीर ने प्राण त्याग दिए। हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, 1 नवंबर 1984
(सभी उदाहरण संजीव भानावत, समाचार लेखन के सिद्धांत और तकनीक, पृ० 36-38 से साभार उद्धृत)
यहां आमुख के कुछ प्रकारों का विवेचन प्रस्तुत हैं -
1. संक्षिप्त आमुख :
- इस प्रकार के आमुख में समाचार का संक्षिप्त रूप, कम-से-कम शब्दों में एक-दो वाक्यों में प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरणार्थ - “गोवा में अब शराब और तंबाकू उत्पादन की कोई यूनिट नहीं लग सकेगी। राज्य सरकार ने इस तरह के निर्देश जारी किए हैं। '
2. विस्तृत आमुख:
- इस प्रकार के आमुख में किसी घटना से संबंधित सभी प्रमुख तथ्यों को शामिल किया जाता है। यह जरूरी नहीं है कि एक ही अनुच्छेद में सभी तथ्यों को शामिल किया जाए। जैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अगस्तावेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे के दौरान कथित दलाली और रिश्वत का मसला ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के सामने उठाया। उन्होंने यह पता लगाने के लिए ब्रिटेन से सहयोग करने को कहा कि क्या इसमें वाकई कहीं कोई गड़बड़ हुई है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने जांच में भारत को पूरा सहयोग देने का भरोसा दिया।'
- (सभी उदाहरण 'दैनिक भास्कर', 20 फरवरी 2013 से साभार उद्धृत) 3. आलंकारिक आमुख: इस प्रकार के आमुख में काव्यमय आलंकारिक शैली का प्रयोग के होता है।
4. सूक्ति आमुख:
- इस प्रकार के आमुख में सार्वभौम सत्य की प्रस्तुति की जाती है।
5. पंच आमुख :
- इसमें रिपोर्ट को क्रमवत् प्रस्तुत किया जाता है। यथा ‘ब्लेड रनर' के नाम से मशहूर विकलांग धावक ऑस्कर पिस्टोरियस ने अपनी नकली टांगें फिट की और अपने बैडरूम से निकलते हुए बाथरूम तक पहुंचे, जहां उन्होंने छिपने का प्रयास कर रही अपनी प्रेमिका पर गन से चार गोलियां दाग दीं। इस प्रकार उन्होंने प्रेमिका रीवा स्टीनकैंप की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। अभियोजन पक्ष के वकील गैरी नेल ने इस मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि पिस्टोरियस ने अपनी प्रेमिका रीवा स्टीनकैंप को गोली मारी। स्टीनकैंप को तीन राउंड गोलियां लगने से मौत हो गई। वे लॉ ग्रेजुएट और मॉडल थीं। नेल जब अदालत को इस मामले की जानकारी दे रहे थे, तो अदालत में मौजूद पिस्टोरियस लगातार सुबकते रहे। ('दैनिक भास्कर', 20 फरवरी 2013 से साभार उद्धृत)
6. आश्चर्यजनक आमुख:
- इसमें आश्चर्यजनक तथ्यों को विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग कर प्रस्तुत किया जाता है।
7. दुर्घटना आमुख:
- इस प्रकार के आमुख में विवरण दिया जाता है और प्रभावित व्यक्तियों का नामोल्लेख होता है। यथा नई दिल्ली (व० सं०)। आनंद पर्वत इलाके में डीटीसी की एसी लो-फ्लोर बस की चपेट में आने से एक महिला की मौत हो गई, जबकि उसका बेटा मामूली रूप से घायल हो गया। महिला की पहचान 40 वर्षीय लवली के रूप में हुई है। पुलिस ने बस को जब्त कर लिया है। आरोपी चालक को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ की जा रही है। (हिंदुस्तान, 13 जनवरी, 2013 से साभार उद्धृत
8. कारतूस आमुख:
- यह अत्यंत छोटा वाक्य होता है और समाचार को सरलता से सीधे व्यक्त कर देता है। यह आमुख अपने आप में समाचार को स्पष्ट अभिव्यक्त कर देता है। उदाहरणार्थ
नई दिल्ली, 31 अक्तूबर । प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी नहीं रही।
9. उद्धरण आमुख:
- मंत्रियों के भाषण, साक्षात्कार आदि में व्यक्त विचारों के समाचारों में इस प्रकार के आमुख बनाए जाते हैं। उदाहरणार्थ ॥
- नई दिल्ली, 20 अक्टूबर। पत्रकारिता और लोकतंत्र का चोली-दामन का साथ है। किसी भी देश की स्वाधीनता व स्वावलंबन की भावना का विकास करना, उनकी रक्षा करना स्वाधीनचेता पत्रकार का दायित्व है। प्रसिद्ध पत्रकार श्री अक्षयकुमार जैन ने आज यह सलाह राजस्थान विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्रों को दी। (दैनिक हिन्दुस्तान, 21 अक्टूबर, 83)
10. प्रश्न आमुख:
- इस प्रकार आमुख में कोई प्रश्न उठाकर उसका उत्तर दिया जाता है जिससे समाचार रुचिकर और कौतूहलहलवर्धक बन जाता है।
- यथा नई दिल्ली, 9 मार्च (भाषा)। क्या दूरदर्शन केवल दून स्कूल और सेंट स्टीफेंस स्कूल की तहजीब दिखाने का ही माध्यम रह गया है? लोकसभा में आज कांग्रेस के आरिफ मुहम्मद खान ने टी०वी० सीरियल 'सुबह' के संदर्भ में यह सवाल पूछकर सरकार को आड़े हाथों लिया। पक्ष-विपक्ष के अनेक सदस्यों ने भी उनका साथ दिया। नवभारत टाइम्स, जयपुर, 10 मार्च, 87
(सभी उदाहरण डॉ. संजीव भानावत, समाचार लेखन के सिद्धांत और तकनीक, पृ० 36-38 से साभार उद्धृत)
समाचार की शेष रचना
- ‘आमुख’ की रचना करने के बाद समाचार के शेष भाग को लिखा जाता है। इसे प्रायः समाचार कथा का शरीर कहा जाता है। इसमें क्रमबद्ध रूप से घटना तथ्यों का समायोजन होता है। इसकी रचना 'आमुख' के विस्तार के रूप में इस ढंग से की जानी चाहिए कि क्रमशः उतार-चढ़ाव के साथ और नए तथ्य उसमें संजोए गए हों, शेष समाचार तत्त्वों को खोला गया हो ताकि पाठक उसे आद्योपांत पढ़े और पढ़कर उसे संतोष मिले।' (डॉ. हरिमोहन, समाचार, फीचर लेखन और संपादन कला, पू० 69) ऐसा नहीं लगना चाहिए कि समाचार में आमुख की पुनरावृत्ति हो रही है।
- यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि यह विस्तार समय और स्थान दोनों पर आधारित होता है। अतः जैसा विषय हो और जैसी आवश्यकता हो, वैसा ही समाचार - विस्तार देना चाहिए। समाचार की शेष रचना एक या एकाधिक अनुच्छेदों में की जा सकती है लेकिन विविधता और प्रभावोत्पादकता की दृष्टि से अनुच्छेदों का आकार यथासंभव छोटा होना चाहिए। इसका लाभ यह है कि इससे एक तो समाचार की पठनीयता और सोद्देश्यता बढ़ती है, उसकी रोचकता, और तारतम्यता में वृद्धि होती है वहीं दूसरी ओर आसानी से काट-छांट की जा सकती है और अशुद्धियाँ होने पर पुनः ‘कम्पोज' किया जा सकता है। यह प्रयास करना चाहिए कि प्रायः एक अनुच्छेद में एक ही विचार या दृष्टिकोण की प्रस्तुति हो । यदि एक विचार को किसी एक अनुच्छेद में प्रस्तुत करना संभव न हो, तो उसे दो अनुच्छेदों में प्रस्तुत करना चाहिए लेकिन जहाँ तक हो सके एकाधिक विचारों को एक ही अनुच्छेद में न रखें।
समाचार का संक्षेपण
समाचार लेखन के उपरांत समाचार का संक्षेपण भी अनिवार्य प्रक्रिया है हालांकि यह निपुण और अनुभवी संवाददाता के लिए अनिवार्य नहीं है। यह मूलतः समाचार लेखन करने वाले नए संवाददाता को लाभप्रद हो सकती है। एक प्रकार से यह समाचार का संपादन है। समाचारपत्र में स्थानाभाव की स्थिति में यह संक्षेपण बड़ा उपयोगी रहता है। इस दृष्टि से निम्न बातों को ध्यान में रखना अपेक्षित है -
1. मूल विषयवस्तु को बार-बार पढ़कर इसकी मुख्य बातों या तथ्यों को संग्रहीत किया जाए।
2. अनावश्यक शब्द हटा दिए जाएँ और विशेषणों का अत्यल्प प्रयोग हो ।
3. भाषणों या वक्तव्यों के संक्षेपण में पुनरुक्ति पर विशेष ध्यान दिया जाए।
4. कर्मवाच्य और नकारात्मक वाक्यों का प्रयोग न हो और न ही विचारों की क्रमबद्धता भंग हो।
5. संवाददाता का अभिमत हटा दिया जाए और संक्षेपण का अभिलेख यथासंभव अन्य पुरुष में ही तैयार किया जाए। (डॉ. अर्जुन तिवारी, पृ० 51 )
समापन या निष्कर्ष
- इसमें समाचार लेखक/संपादक पूर्ण घटनाचक्र के संबंध में आवश्यकतानुसार अपनी टिप्पणी अथवा राय प्रस्तुत कर सकता है जो आगामी प्रभावों अथवा संभावनाओं को दर्शाती हुई हो। इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि यह राय पूर्वग्रह से ग्रस्त न हो। यह टिप्पणी प्रत्येक प्रकार के समाचारों में देना आवश्यक नहीं है।
समाचार की भाषा
- समाचार लेखन में समाचार की भाषा का भी महत्त्व है। अतः समाचार की भाषा को सरल, सुबोध, सामासिक और संप्रेषणीय होना चाहिए। समाचार लेखन में प्रायः लघु वाक्यों तथा प्रचलित शब्द-समूहों का ही प्रयोग करना उचित रहता है। इसमें लंबे-लंबे मिश्रित वाक्यों, पांडित्य-प्रदर्शन की प्रवृत्ति और निरर्थक शब्द प्रयोग से बचना चाहिए। समाचार का अनुवाद भी इस प्रकार का हो जिससे वह दुरूह प्रतीत न हो। एक अच्छे संवाददाता को शब्द-पारखी और शब्द-शिल्पी होना चाहिए।
- ‘क्रिश्चियन साइंस मोनिटर' ने समाचारपत्रों के लिए समाचार प्रकाशन के 25 मार्गदर्शक मार्गों का उल्लेख किया है। समाचार की भाषा के संबंध में भी ये मार्ग विचारणीय हैं। इसके अनुसार समाचार लेखन में सामान्य, प्रचलित, एकाक्षर, मूर्त और पुरुषवाचक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। तकनीकी शब्दों, चालू मुहावरों के प्रयोग से बचना चाहिए। प्रत्येक शब्द को क्रियात्मक बनाना चाहिए। (एम० वी० कामथ, प्रोफेशनल जर्नलिज्म, पृ० 109)
- समाचार में वाक्य-संरचना सरल, संक्षिप्त क्रियाशील और तारतम्यपूर्ण होनी चाहिए। सुपरिचित वाक्यांशों का प्रयोग करना चाहिए। समाचार में यथासंभव पुनरुक्ति, विशेषणों के प्रयोग, निष्प्रयोजन विभक्तियों से बचना चाहिए। संख्याओं को भी शब्दों में लिखना चाहिए न कि अंकों में, यह बात और है कि यह सर्वमान्य नहीं है।
- नंदकिशोर त्रिखा के शब्दों में एक ही प्रकार के शब्दों या वाक्य-खंडों का बार-बार इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। कई बार देखा गया है कि संवाददाता 'कहा' या 'बताया' शब्द का लगातार प्रयोग करते हैं। इस प्रकार का प्रयोग पढ़ने में भी भद्दा लगता है और भाव-संचार की दृष्टि से भी अवांछनीय है। इसलिए 'कहा’, ‘बताया’, ‘मत व्यक्त किया’, ‘उनका विचार था, 'वे महसूस 'करते थे' आदि शब्दों और वाक्य-खंडों का भाव के अनुरूप बदल-बदलकर प्रयोग किया जाना चाहिए।' (समाचार संकलन और लेखन, पृ० 73 )
- उपर्युक्त तथ्यों के विवेचन से इतना स्पष्ट है कि 'समाचारों की भाषा एकदम सपाट नहीं होती बल्कि उसमें एक लय, एक संगीत, एक संगति विद्यमान रहती है । ' (डॉ. हरिमोहन, समाचार फीचर लेखन एवं संपादन कला, पृ०-72) यही नहीं समाचार लेखक को भाषा के व्याकरण, वाक्य-संरचना, विराम चिह्नों तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों की शब्दावली इत्यादि का भी यथोचित ज्ञान होना चाहिए।
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