सरकारी सेवाओं में निष्ठा सुधार हेतु सुझाव |Suggestions for improving integrity in government services
सरकारी सेवाओं में निष्ठा सुधार हेतु सुझाव
सरकारी सेवाओं में निष्ठा सुधार हेतु सुझाव
सरकारी सेवाओं में निष्ठा बढ़ाने या सुधारने के लिये कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:
1. विवेकशीलता को कम करना:
- जिस व्यवस्था में विवेकशीलता का आधिक्य हो वहाँ पर भ्रष्टाचार के अवसर सरकारी तंत्र के हाथों में अधिक हो जाते हैं, विशेषकर निचले स्तरों पर। विवेकशीलता को घटा कर और व्यवस्था में अधिकतम पारदर्शिता लाकर और किए गए कृत्यों के लिए कड़ी जवाबदेही को बनाकर ऐसे अवसरों को न्यूनतम किया जा सकता है। सबसे अधिक सफल भ्रष्टाचार निरोध के सुधार वे हैं जो ऐसे विवेकशीलता के लाभों को कम कर देते हैं जो लोक अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किए जाते हों। ऐसी बहुत बड़ी संख्या में सरकारी गतिविधियाँ हैं, जहाँ विवेक को बिल्कुल समाप्त किया जा सकता है। ऐसी सभी गतिविधियों को "सूचना प्राद्यौगिकी की सहायता से स्वचालित कर दिया जाता है। 'जन्म और मृत्यु' का पंजीकरण और अध्यापकों की योग्यता परीक्षाओं में प्राप्त किए गए अंकों पर आधारित भर्ती इसके उदाहरण हैं। जहाँ विवेक को समाप्त करना संभव नहीं होता है वहाँ विवेक को करने के लिए शक्तियों के प्रयोग को सुपरिभाषित मार्गदर्शी सिद्धांतों द्वारा सीमित होना चाहिए। विवेक के प्रयोग पर प्रभावी निरीक्षण और संतुलन रखे जाने चाहिए।
2. लेनदेनों को सरलीकृत करना :
- भ्रष्टाचार के शुरू होने और उसमें बढ़ोतरी होने के बीच औचक संबंध और कार्य के तौर-तरीकों की जटिल प्रकृति को विस्तार से बताने की आवश्यकता नहीं है। आम नागरिक जिसने सरकार को किसी बिल का भुगतान करना हो तो उसे सरकारी कार्यालयों के कई चक्कर लगाते हुए देखा जा सकता है। ऐसे नागरिक को उत्पीड़न से बचने के लिए कर्मचारियों को पैसे देकर अपना काम करवाने की बड़ी संभावना हो जाती है। इसी प्रकार से अधिकारियों का उच्च धर्म-तंत्र काम के तौर तरीकों में न केवल जटिलता लाता है बल्कि जिम्मेदारी का भी हनन करता है। समयबद्ध वृत्तियाँ जैसे कि काम का 'क्षेत्रीय' वितरण भी भीड़-भाड़ को जन्म देता है और फलस्वरूप गति धन को अदा करके या दलाल और मध्यस्थों के जरिए ‘पंक्तिबद्धता को तोड़कर' काम शीघ्र करनावे को बल मिलता है। नियम पुस्तिकाओं के माध्यम से कार्य-पद्धतियों का निर्धारण कुछ काम नहीं आया। ऐसे प्रलेखों का उचित तरीके से प्रयोग करके और नियमित रूप से उसका उन्नयन करके प्रशासनिक पद्धतियों के रहस्य खोलने और जवावदेही का विकास करने का एक बड़ा साधन हो सकता है। सूचना तकनीक और सूचना अधिकार के युग में, ऐसे प्रलेख 'लेनदेनों का सरलीकरण' करने के लिए एक सर्वश्रेष्ठ स्रोत हो सकते हैं जहाँ तक वे शिक्षित प्रयोगकर्ता को स्पष्टता के दर्जे का निवर्हन कर पाएँगे।
3. प्रतिस्पर्द्धा को विकसित करना:
- भारत में अधिकतर सार्वजनिक सेवाएँ सरकार द्वारा एकाधिकारिक वातावरण में प्रदान की जाती हैं। ऐसी स्थिति अपनी प्रकृति से ही भ्रष्टाचार के लिए 'विभागीय प्रधानता' का लाभ उठाते हुए पदाधिकारी वर्ग की उच्च संभाव्यता के साथ मनमाना ढंग अपनाने और आत्मसंतोष से प्रेरित होती है। अतः भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सार्वजनिक सेवाओं की व्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा के घटक का आरंभ कर देना एक बहुत ही लाभदायक हथियार है।
4. मीडिया की भूमिका :
- एक स्वतंत्र मीडिया की भ्रष्टाचार रोकने, अनुवीक्षण करने और नियंत्रण करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसा मीडिया जनता को भ्रष्टाचार पर सूचना और शिक्षा दे सकता है, सरकार में, निजी क्षेत्र में और सिविल सोसायटी संगठनों में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता है और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने को नीतिबद्ध करते हुए आचार संहिता पर निगरानी में सहायता करता है। मीडिया द्वारा जाँच की रिपोर्ट देना और भ्रष्टाचार की घटनाओं की वैसी ही सूचना देना जैसी हों तो वह भ्रष्टाचार पर सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती है। भ्रष्टाचार की घटनाओं की ठीक वैसी ही दैनिक सूचना देना दूसरा योगदान है। ऐसी रिपोर्टों का उत्तर देने के लिए प्राधिकारियों समय पर कार्रवाई कर लेनी चाहिए, सही तथ्यों से अवगत करा देना चाहिए, दोषियों को पकड़ने के लिए कदम उठाने चाहिए और प्रेस तथा जनता को समय-समय पर ऐसी कार्रवाई की प्रगति की सूचना देते रहना चाहिए। यह आम अनुभव रहा है कि अक्सर ऐसे आरोपों पर ध्यान देकर उनका अनुसरण करने के कोई व्यवस्थित प्रबंध नहीं किए जाते। मीडिया के विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली रिपोर्टों का मिलान करना और उनका अनुसरण करना सभी सार्वजनिक कार्यालयों में शिकायतों के अनुवीक्षण करने वाली व्यवस्थाओं का एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
5. सेवा शर्ते आकर्षक बनाकरः
- सरकारी कर्मचारी, विशेषकर निचले स्तर के कर्मचारी निर्धनता से विवश होकर अपने पद को आय का स्रोत मानते हुए अधिकतम आय प्राप्त करना चाहते हैं। यदि रिश्वत नहीं दी जाती है तो सार्वजनिक सेवाएँ सहज ही खराब और धीमी होती हैं और अतिरिक्त धन के बदले ही प्रस्तुत की जाती हैं। फलस्वरूप सरकारी नौकरियों में व्यापक रूप से फैली रिश्वतखोरी समाप्त करने के लिये एक बुनियादी साधन वेतनवृद्धि है। वैसे सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन में बड़े पैमाने पर वृद्धि की और हाल ही में सरकार ने सातवें वेतन आयोग के गठन को भी मंजूरी दे दी है।
6. सरकारी मशीनरी के कामकाज का सरलीकरण:
- प्रचुर मात्रा में भ्रष्टाचार का मूल कारण सरकारी कार्यालयों की जटिल कार्यप्रणाली प्रतीत होती है। इन जटिल प्रक्रियाओं के मूल्यांकन और सरलीकरण की आवश्यकता है। विलम्ब रोका जाना चाहिये तथा अधिकारियों को सभी लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिये।
7. भ्रष्टाचार के प्रभावों के विरुद्ध स्वस्थ जनमत बनाना:
- जब तक सामान्य जनसमूह निश्चय और दृढ़ता से भ्रष्टाचार का प्रतिरोध नहीं करता है भ्रष्टाचार फलता फूलता रहेगा। भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए व्यापक तथा दृढ़निश्चयी विरोध तथा साथ में इसके विरुद्ध कार्य करने के साहस की सबसे अधिक आवश्यकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारत के लोग भ्रष्टाचार से पिंड छुड़ा सकते हैं।
8. उच्च कार्मिकों में आचरण के उच्च मानदण्ड सुनिश्चित करना:
- उच्च अधिकारियों को काफी विवेकाधिकार होते हैं। उन्हें उपहार, आमंत्रण तथा अन्य अनुग्रह मना करने के लिए पूरी तरह अनुशासित होना चाहिये । इस संदर्भ में सरकार द्वारा संभागीय और जिला स्तरों पर निष्ठा की तलाश हेतु किए गए प्रयासों को अंकित करना प्रासंगिक होगा। संभागीय समितियों में आयुक्त, पुलिस उपमहानिरीक्षक तथा संभागीय आयुक्त सम्मिलित होते हैं। जिला स्तर पर, एक जिला सतर्कता अधिकारी है जिसे जिला कलेक्टर/ डिप्टी कमिश्नर संभागीय सतर्कता मंडल के परामर्श से अपने राजपत्रित सहायकों में से नियुक्त करता है।
- इस प्रकार, देश में सतर्कता एजेन्सियों का एक जाल बन पड़ा है। निष्ठा की इस इस तलाश को सरल और कारगर बनाने के लिए सभी राज्यों के सतर्कता आयुक्त एक वार्षिक सम्मेलन करते हैं जिसकी अध्यक्षता मुख्य सतर्कता आयुक्त करते हैं। वार्षिक सभा में पारस्परिक समस्याओं पर चर्चा तथा अनुभवों का आदान-प्रदान होता है। यह राज्य तथा केन्द्र दोनों स्तरों पर सरकार के सतर्कता प्रयासों का प्रचार भी करती और इस प्रकार इन प्रयोजनों हेतु सरकार की सच्चाई और ईमानदारी पर लोगों का विश्वास प्रेरित करती है। तथापि, इसका यह निहितार्थ नहीं है कि लोक प्रशासन में भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है अथवा नियंत्रण के अधीन है। इसके विपरीत भ्रष्टाचार भारत के सार्वजनिक जीवन के प्रत्येक कोने और दरार में घुस गया है और देश का लोक प्रशासन इससे व्यथित है। भ्रष्टाचार हटाने की राजनैतिक संकल्प शक्ति न होने के कारण ही ऐसा हुआ है।
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