अग्रलेख लेखन क्या है |सामयिक और विशिष्ट लेख| अध्यात्मपरक लेख |संपादक के नाम पत्र| What is forward writing in Hindi

अग्रलेख लेखन क्या है सामयिक और विशिष्ट लेख, अध्यात्मपरक लेख

(What is forward writing in Hindi)

 

अग्रलेख लेखन क्या है |सामयिक और विशिष्ट लेख| अध्यात्मपरक लेख |संपादक के नाम पत्र| What is forward writing in Hindi

अग्रलेख लेखन क्या है  (What is forward writing in Hindi)

  • अग्रलेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होता है लेकिन इसका लेखन संपादकीय विभाग द्वारा नहीं किया जाता। इसे वे लोग लिखते हैं जो विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ होते हैं। इन लोगों का एक पैनल संपादकीय विभाग द्वारा बना लिया जाता है। ये लोग राजनीतिधार्मिकआर्थिकविज्ञानरक्षाअंतराष्ट्रीय मामलों आदि से संबद्ध होते हैं। इनमें वे लोग भी शामिल किए जाते हैं जो या तो स्वतंत्र पत्रकार होते हैं या समाचारपत्र के सेवामुक्त पूर्व सहयोगी भी हो सकते हैं। ये लोग निश्चित अंतराल पर लिखित सामग्री समाचारपत्र कार्यालय को भेजते हैं और उसके बदले इन विशेषज्ञों को मानदेय दिया जाता है।

 

  • इन लेखों का मूल उद्देश्य विविध प्रकार के प्रश्नोंसमस्याओं आदि को पाठकों के सामने उठाना है ताकि उनमें जागृति का संचार हो सके। इसीलिए इनके लेखन के लिए लेखकीय कौशल के साथ-साथ अध्ययनशीलताबहुज्ञता और चिंतनशीलता अपेक्षित है।

 

  • एक अच्छा अग्रलेख वही है जिसमें किसी समसामयिक विषय या पक्ष को जनरुचि के अनुकूल समझकर लिया जाए। यद्यपि अग्रलेख में प्रस्तुत विचारचिंतनअनुभवअध्ययन आदि लेखक का अपना होता है तथापि उसमें जनसामान्य के साथ जुड़ने की क्षमता होनी चाहिए। अग्रलेख में न तो विषय को विवादग्रस्त बनाया जाए और न ही किसी तथ्य के प्रति पूर्वग्रह दिखाया जाए।

 

  • उसमें समस्या प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ समाधान या निवारण की ओर संकेत हो और उदाहरणों से उसे समझाया जाए। अग्रलेख आकर्षकतर्कसंगतप्रभावकारी और निष्कर्ष से युक्त हो और उसकी भाषा भी स्पष्टसरल और प्रभावी हो।

 

  • पहले समाचारपत्रों में कई अग्रलेख आते थे लेकिन अब उनकी संख्या एक तक ही सीमित होकर रह गई है। 20 फरवरी, 2013 को 'दैनिक भास्करमें प्रकाशित केविन रैफर्टी का लेख 'अगले पोप पर टिकी चर्च की उम्मीदें अग्रलेख ही है। कई समाचारपत्रों में अग्रलेख विस्तृत होता है जैसाकि 'दैनिक भास्करके 20 फरवरी, 2013 के अंक में है और कई समाचारपत्रों में ये छोटे होते हैं लेकिन संपादकीय से बड़े होते हैं।

 

सामयिक और विशिष्ट लेख

 

  • सामयिक और विशिष्ट लेख लिखने वाले अग्रलेख लेखकों से अलग होते हैं और इन लेखों में समसामयिक विभिन्न समस्याओं को उठाकर उनका प्रतिपादन किया जाता है। इसके विषयों की कोई सीमा नहीं है। विषय कुछ भी हो सकता है। डॉ. विजय कुलश्रेष्ठ के अनुसार 'सामयिक लेख में विषय-वस्तु का प्रतिपादन सीमित आकार के सुसंगठित विचारों के प्रस्तुतीकरण में निहित होता है। इस प्रकार के सामयिक लेख संपादकीय मत का प्रतिपादन नहीं करते हैं और न संपादक इस प्रकार के मत प्रतिपादन के लिए उत्तरदायी होता है।' (हिंदी पत्रकारिता और सर्जनात्मक लेखनपृ० 96 )

 

  • इसमें किसी एक विषय का चयन किया जाता है और उसमें क्रमवत् विचार प्रस्तुतीकरण होता है। लेखक की बहुजता और अध्यवसाय भी उसमें झलकना चाहिए विचार तारतम्यपूर्ण और संतुलित हों और भाषा भी संयतसरलसामासिक और संप्रेषणीय होनी चाहिए क्लिष्टता और पांडित्य से बचना चाहिए। उसका निष्कर्ष प्रभावी होना चाहिए।

 

अध्यात्मपरक लेख 

  • ऐसे लेख समाचारपत्रों में पहले विस्तार से प्रकाशित होते थेअब इनका स्थान भी सीमित हो गया है। 'दैनिक जागरण', 'पंजाब केसरीइस प्रकार के बड़े लेख प्रकाशित करते हैं। 'दैनिक भास्कर’ में यह काफी छोटे होते हैं। इनमें अध्यात्म और जीवन दर्शन की प्रस्तुति होती है। प्रायः किसी धर्मसंप्रदायपंथ की गतिविधियों को बढ़ावा देने की बजाय मानवीय भावों - दयाकरुणापरोपकारभक्तिश्रद्धा आदि को सहज-सरल और आत्मीय रूप में प्रस्तुत किया जाता में है। इनमें आत्माईश्वर आदि की चर्चा भी की जाती है। इसीलिए ये ऐसे लोगों से लिखवाए जाते हैं जो धर्म और अध्यात्म से जुड़े होते हैं। इनमें उदाहरणकथा- तत्त्व और संबंधोधन मिलता है और भाषा भी जनरुचि के अनुरूप अत्यंत सरल और प्रभावकारी होती है। इनमें व्याख्यात्मक शैली अपनाई जाती है और संदेश इनमें अवश्य निहित रहता है। 


संपादक के नाम पत्र

 

  • यह समाचारपत्र का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ होता है जिसे काफी कम पाठक पढ़ते हैं। जनसत्ता में यह 'चौपालके नाम से प्रकाशित होता है। नवभारत टाइम्स में इसका नाम है 'रीडर्स मेलऔर नेशनल दुनिया में यह 'आपके पत्रनाम से प्रकाशित होता है। ये पत्र पाठकों द्वारा लिखे जाते हैं लेकिन इनका कभी-कभी पुनर्लेखनसंशोधन आदि भी करना पड़ता है। इनके चयन में पठनीयतासमसामयिकता और प्रासंगिकता को ध्यान में रखा जाता है और उसके बाद समाचारपत्र में छापा जाता है। इन पत्रों में आलोचना और प्रशंसा दोनो स्वर होते हैं जिनसे एक ओर तो पाठकों को अभिव्यक्ति हेतु मंच मिलता है तो वहीं दूसरी ओर नीति निर्धारण में इनका महत्त्व होता है। इन पत्रों की भाषा और विचार सरल और संयमित होते हैं।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.