समाचार लेखन क्या है? |समाचार लेखन के प्रकार |What is News writing and Types

समाचार लेखन क्या है?, समाचार लेखन के प्रकार

समाचार लेखन क्या है? |समाचार लेखन के प्रकार |What is News writing and Types


समाचार लेखन क्या है? What is News writing

 

  • संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो समाचार का आकांक्षी न हो। समाचारों को पाने के लिए मनुष्य समाचारपत्ररेडियोटेलीविजनइंटरनेट की ओर उन्मुख होता है ताकि उसकी सूचनाओं को पाने की ललक पूरी हो सके और उसे समाचार मिल सके। इसीलिए समाचारपत्रों में समाचार लेखन एक विशेष महत्त्व रखता है। डॉ. संजीव भानावत के अनुसार समाचार लेखन एक विशिष्ट कला है। इस समाचार लेखन को संवाददाता अपनी विशेष पत्रकारीय तकनीक का प्रयोग कर अधिक रोचक तथा प्रभावी बना देता है। अतः समाचार लिखने के लिए संवेदनशीलताकल्पनाशीलताभावप्रवणतारचनात्मकता तथा अच्छी रुचियों और वाग्वैदग्ध्य या प्रत्युत्पन्नमति जैसे गुणों का होना आवश्यक है।

 

  • प्रायः विभिन्न आलोचकों ने समाचार लेखन के तीन ही भाग माने हैं आमुखसमाचार की - शेष रचना और शीर्षक समाचार लेखन की यह प्रकृति माध्यमों के आधार पर भी परिवर्तित होती हैं। यही नहीं एक ही माध्यम के विभिन्न प्रकार के समाचारों के लेखन में शीर्षकआमुखआकार और भाषा संबंधी परिवर्तन दिखाई देता है। इसे आप समाचारपत्र के विभिन्न पृष्ठों पर देख भी सकते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि ये परिवर्तन इतने क्षीण होते हैं कि आज भी समाचार लेखन के सिद्धांत विचारणीय हैं। श्री राजेंद्र समाचार लेखन में सत्यतास्पष्टतासंक्षिप्तता और सुरुचि पर विशेष बल देते हैं। (संवाद और संवाददातापृ० 22-23) नंदकिशोर त्रिखा का अभिमत है कि 'समाचार लेखन न तो निबंध लेखन हैन पुस्तक लेखन की कला के समान है और न ही सामान्य डाक पत्रों की तरह। इसकी अपनी कला है।उन्होंने समाचार लेखन के आवश्यक तत्त्वों में 'सरलतासुस्पष्टतातारतम्यक्याकहाँकबकैसेक्यों और कौन के उत्तर तथा आवश्यक पृष्ठभूमिको शामिल किया है। (समाचार संकलन और लेखनपृ० 65-74).

 

डॉ. अर्जुन तिवारी समाचार लेखन के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं को महत्त्व देते हैं -

 

  • समग्र तथ्यों को संकलित करना 
  • कथा की काया की योजना बनाना एवं लिखना 
  • आमुख लिखना 
  • परिच्छेदों का निर्धारण करना 
  • वक्ता के 'कथनको अविकल रूप में प्रस्तुत करना 
  • सूत्रों के संकेत को उद्धृत करना (आधुनिक पत्रकारितापृ० 48 )

 

यहाँ उल्लेखनीय है कि समाचार का संक्षेपणसमाचार की शीर्ष-पंक्ति और समाचार की भाषाभी इस प्रक्रिया के अभिन्न अंग ठहरते हैं। इन्हें सम्मिलित कर समाचार लेखन को संपूर्णता प्रदान की जा सकती है। एक नए व्यक्ति को समाचार लेखन के दौरान इन पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि निरंतर समाचार लिखने वालों को इसका अभ्यास हो जाता है जो कि एक नए व्यक्ति या पत्रकार को नहीं होता। अतः इन मतों के आलोक में समाचार लेखन के निम्नलिखित बिंदु द्रष्टव्य हैं -

 

1. तथ्यों का संकलन 

2. कथा की काया की योजना बनाना एवं लिखना 

3. समाचार का शीर्षक 

4. सूत्रोल्लेख 

5. आमुख लिखना 

6. समाचार की शेष रचना या व्याख्या 

7. समाचार का संक्षेपण 

8. समापन या निष्कर्ष 

9. समाचार की भाषा

 

समाचार लेखन के प्रकार Types of News Writing 

 

1 विलोमस्तूपी समाचार लेखन

 

  • समाचार प्रायः विलोमस्तूपी आधार पर लिखा जाता है। समाचार लेखन के इस प्रकार को उर्दू फारसी में 'गाब- दुमऔर संस्कृत में 'गो- पुच्छवतके नाम से जाना जाता है। इस पद्धति में सबसे पहले महत्त्वपूर्ण तथ्य लिखा जाता है और फिर अन्य तथ्यों के घटते महत्त्व के आधार पर उन्हें समाचार में लिखा जाता है। इसमें पहले ही परिणाम या रहस्य प्रस्तुत कर दिया जाता है और उसके बाद समाचार की शेष रचना की जाती है। एक-एक ककार की प्रस्तुति की जाती है। इस प्रकार के समाचार लेखन का पहला लाभ यह है कि पाठक समाचार के शुरुआती अंशों को पढ़कर ही समाचार से परिचित हो जाता है। इसका दूसरा लाभ यह है कि उपसंपादक को शीर्षक लगाने में आसानी होती है। इसका तीसरा लाभ यह है कि यदि समाचार अधिक बड़ा है और समाचारपत्र में स्थान कम है तो उसका संपादन किया जा सकता हैउसे काटा जा सकता है या उसके अंतिम अनुच्छेदों या पंक्तियों या अंश को हटाया जा सकता है। इससे पाठक समाचार से भली-भांति अवगत भी हो सकता है और समाचार का मूल तत्त्व भी प्रभावित नहीं होता। विलोमस्तूपी समाचार लेखन के लिए संवाददाता को घटना पर विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि वह घटना और विचार के मध्य भली प्रकार संबंध स्थापन कर सके।

 

  • विलोमस्तूपी समाचार लेखन में अनेक लाभ होते हुए भी कुछ कमियां हैं। पहला यह कि इसमें पुनरावृत्ति पाई जाती है। दूसरे इसमें कलात्मकता भी नष्ट होती है क्योंकि इस पद्धति में पाठक समाचार को शीर्षक में भी पढ़ता हैआमुख में भी और समाचार की शेष रचना के दौरान भी पढ़ता है। समाचार का चरमोत्कर्ष भी पहले ही आ जाता है। इसीलिए प्रसिद्ध पत्रकार रंगास्वामी पार्थसारथी का मत है कि इस पद्धति के बारे में यह भ्रांत धारणा है कि इसमें तथ्यों को घटती महत्ता के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में घटनाचक्र इस प्रकार अनुस्यूत रहता है कि उसे स्पष्ट करने के लिए हमें संपूर्ण घटना का विस्तृत अवलोकन करना पड़ता है। साथ ही सस्पेंस की अनुभूति समाप्त हो जाती है। (आर० पार्थसारथीबेसिक जर्नलिज्मपृ० 112-113) उपर्युक्त गुण-दोषों के होने के बावजूद समाचारपत्रों में समाचार - लेखन के लिए विलोमस्तूपी प्रकार ही अधिक प्रचलित है और प्रयोग किया जाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि व्याख्यात्मक समाचारों और फीचर के बढ़ते प्रचलन के कारण विलोमस्तूपी समाचार लेखन में कमी आई है। रेडियोटेलीविजन और निजी चैनलों के समाचार-प्रसारणों की निरंतरता और कलात्मकता ने भी विलोमस्तूपी समाचारों को प्रभावित किया है।

 

इसे आरेख द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है-

 

  • क्या हुआ 
  • कहाँ हुआ 
  • कब हुआ 
  • कैसे हुआ 
  • क्यों हुआ 
  • कौन से 
  • तत्त्व या कारक थे

 

2 स्तूपी समाचार लेखन 

  • समाचार लेखन का यह प्रकार कुछ विशेष समाचारों तक ही सीमित रह गया है। भाषणखेलकूदशोभायात्राओंप्रदर्शनोंसमारोहों आदि की चर्चा में अथवा अपराध तथा किसी जाँच या घटना की सरकारी रिपोर्ट के समाचारों में प्राय: स्तूपी समाचार लेखन का प्रयोग होता है। इस प्रकार के समाचार लेखन में सबसे पहले कम महत्त्वपूर्ण तथ्यों को रखा जाता है और उसके बाद अन्य तथ्यों को उनके महत्त्व के आधार पर क्रमशः स्थान दिया जाता है। इसीलिए इसमें चरमोत्कर्ष सबसे अंत में दिया जाता है। इस प्रकार के समाचार लेखन की सबसे बड़ी कमी यह है कि यदि समाचार बड़ा हो और समाचारपत्र में स्थान कम हो तो समाचार के अधूरे रहने की संभावना अधिक रहती है। ऐसा प्रायः समाचारपत्रों में देखने में भी आता है। समाचार लेखन के इस प्रकार को निम्न आरेख से समझा जा सकता है।

 

  • आमुख 
  • कम महत्त्वपूर्ण तथ्य 
  • अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य

 

बहुआयामी ( डायमंडकार) समाचार लेखन 

  • यह समाचार लेखन का वह प्रकार है जिसका प्रयोग रेडियो और टेलीविजन के समाचार लेखन और प्रस्तुति में किया जाता है। इसका प्रयोग समाचारपत्रों में नहीं होता क्योंकि उनके लिए लेखन का यह प्रकार उपयुक्त नहीं माना जाता । रेडियो और टेलीविजन का प्रसारण समयबद्ध होता है क्योंकि इन दोनों माध्यमों में समाचार को अत्यधिक विस्तार नहीं दिया जा सकता। वहां छोटे या गौण समाचारों का महत्त्व नहीं है बल्कि विशिष्ट समाचारों का महत्त्व है। यह बात और है कि एक समाचार को कई बार सुनाया या दिखाया जा सकता है और ऐसा होता भी है विशेषकर टेलीविजन में। इस प्रकार के समाचार लेखन में सबसे पहले प्रारंभ की घोषणा होती हैफिर समाचार के शीर्षक या सुर्खियां या मुख्य समाचार प्रस्तुत किए जाते हैं तत्पश्चात समाचारों का विवरण विस्तार से दिया जाता है। समाचार लेखन के अंतिम चरण में समाचार - शीर्षक या सुर्खियां या मुख्य समाचार की पुनरावृत्ति होती है। इसके बाद समापन आता है। समाचार लेखन के इस प्रकार को निम्न आरेख से समझा जा सकता है- 

  • प्रारंभ 
  • मुख्य सुर्खियाँ 
  • समाचारों का विस्तार से विवरण मुख्य सुर्खियाँ एक बार फिर 
  • समापन

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