परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या होती है । परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप प्रकार | Hypothesis Definition Types in Hindi

 परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या होती है  
What is Hypothesis Details in Hindi

परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या  होती  है  । परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप  प्रकार |  Hypothesis Definition Types in Hindi


परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या है ?


परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस- प्रस्तावना (Introduction)

 

शोध-समस्या का अन्तिम रूप से निर्णय हो जाने के पश्चात् उसके समाधान की प्रक्रिया का आरंभ अर्थात् शोध-सामग्री का संग्रह किया जाना आरंभ होता हैपरन्तु शोध-सामग्री का संग्रह आरंभ करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना आवश्यक होता है कि इसके लिए किन दिशाओं में जाना होगा। इन दिशाओं की ओर संकेत करने वाले सूत्र उन परिकल्पनाओं में निहित रहते हैंजिनका निर्माण अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययनजनित ज्ञानकल्पना एवं सृजनशीलता के आधार पर करता है। परिकल्पनाओं के अभाव में उसे शोध-सामग्री के संग्रह हेतु इधर-उधर भटकना पड़ेगाजिससे उसके समय एवं शक्ति का अपव्यय होगा। अतः प्रायः सभी शोधकर्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहाँ तक सम्भव होअनुसंधान का आरम्भ परिकल्पना से ही किया जाना चाहिएक्योंकि वान डालेन के शब्दों में,

 परिकल्पनाएँ अनुसंधान पथ में प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करती हैं"

 

परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Structure of Hypothesis)

 

जब किसी व्यक्ति के समक्ष कोई कठिनाई उत्पन्न हो जाती हैतो वह उसके निवारण के उपाय भी सोचने लगता है। फलस्वरूपजो उपाय उसके मस्तिष्क में आते हैंवे ही समस्या के सम्भावित समाधान होते हैं। यह दूसरी बात है कि वे बाद में सत्य सिद्ध न हों अथवा सत्य सिद्ध हों।

उदाहरण के लिएएक छात्र परीक्षा में बार-बार असफल घोषित होता है। इसका क्या कारण हैयह जानने के लिए अनुसंधान हेतु उसे मनोवैज्ञानिक को सौंप दिया जाता है। समस्या के समाधान हेतु मनोवैज्ञानिक उसके असफल होने के कारणों की कल्पना करता है। 

  • हो सकता है उसमें बुद्धि का अभाव हो।
  • हो सकता है वह पढ़ने-लिखने में पहले से ही कमजोर हो।
  • हो सकता है वह परीक्षा के समय अस्वस्थ हो गया होहो सकता है उसकी पढ़ने-लिखने में रुचि न हो। आदि 

कितनी ही परिकल्पनाएँ सम्भव हो सकती हैं। इनमें से कौन सत्य तथा कौन असत्य हैयह तो बाद में परीक्षण द्वारा ही पता लगेगा। इस प्रकार परिकल्पनाएँ एक प्रकार से समस्या के सम्भावित समाधान होती हैं।

यदि समस्या को प्रश्न के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। (जैसेछात्र बार-बार असफल क्यों होता है?) तो ये परिकल्पनाएँ इस प्रश्न के सम्भावित उत्तर समझे जा सकते हैंपरन्तु वैज्ञानिक अनुसंधान का आरंभ इसी बिन्दु से होता है।

परिकल्पना अंग्रेजी भाषा के शब्द 'हाइपोथिसिस' (hypothesis) का हिन्दी रूपांतर हैजिसका अर्थ है ऐसी मान्यता (Thesis ) जो अभी अपुष्ट (Hypo) है।

 

हौडनेट के शब्दों में परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस

परिकल्पनाएँ शोधकर्ता की आँखें होती हैं जिनके द्वारा वह समस्यागत अव्यवस्था (अव्यवस्थित तथ्यों) में झाँककर देखता है तथा उनमें समस्या का समाधान खोजता है।

 

वान डालेन के अनुसार परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस

परिकल्पना शोधकर्ता का समस्या के समाधान अथवा समस्यात्मक प्रश्न के उत्तर के विषय में एक बुद्धिमत्तापूर्ण अनुमान (intelligent guess) होती है। वह परिकल्पना को समस्या का ऐसा समाधान मानते हैंजो केवल एक सुझाव के रूप में होता है। 

 


 

परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच संबंध के विषय में एक प्रकार का कल्पनाजन्य कथन होती है। 

जैसे बुद्धि बालकों की शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करती है। यह एक परिकल्पना है। इसमें बुद्धि एवं शैक्षिक उपलब्धि के बीच एक विशिष्ट प्रकार के संबंध की कल्पना की गई है। जब कोई समस्या व्यक्ति के समक्ष उत्पन्न होती है और उसका समाधान खोजने का वह प्रयास करता हैतो पहले अपने ज्ञानअनुभवअध्ययन आदि के आधार पर कल्पना करता है कि उसका संभव समाधान क्या हो सकता है। इसी प्रकार जब किसी प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करता हैतो पहले कल्पना करता है कि उसका सम्भावित उत्तर क्या हो सकता है। इन सम्भावित समाधानोंसम्भावित उत्तरों को वह सामान्यानुमानों (generalizations) के रूप में प्रस्तुत करता है तथा बाद में यह परीक्षण करता है कि वे कहाँ तक सत्य हैं। ये सामान्यानुमान ही परिकल्पनाएँ कहलाती हैं। 

इस प्रकार बेस्ट (1977) के शब्दों में 

परिकल्पना एक ऐसा पूर्वानुमान (inference) होती हैजिसका निर्माण वस्तुस्थितिघटनाओं एवं परिस्थितियों की व्याख्या करने हेतु अस्थायी रूप से किया जाता है और जो अनुसंधान कार्य को आगे बढ़ाने में सहायता करती है अर्थात् बाद में परीक्षण के द्वारा यदि वह सत्यापित हो जाती है तो समस्या का समाधान हो जाता है तथा वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाती है।

 

प्रतिदिन ही हम अपने दैनिक जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान इसी प्रकार (अर्थात् परिकल्पना का निर्माण और फिर उसका परीक्षण) करते हैं। 

कमरे में जल रहा बल्ब अचानक बुझ जाता है,

तुरंत व्यक्ति स्वयं से पूछता है "क्या हुआ?

एक समस्या उत्पन्न हुई है। इस समस्या का समाधानउस प्रश्न का उत्तर पाने हेतु वह एक-एक परिकल्पना का निर्माण करता है और उसका परीक्षण करता है। अन्त में उसे वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाती है। 

पहले अनुमान लगाता है अर्थात् परिकल्पना का निर्माण करता है " सम्भवतः स्रोत से ही विद्युत गई है।वह बाहर निकल कर और घरों की ओर देखता है तथा पाता है कि और सबके घरों में तो बिजली आ रही है। अतः यह परिकल्पना असत्य सिद्ध हो जाती है 

तब दूसरी परिकल्पना करता है " अपने घर का ही फ्यूज तो नहीं उड़ गया"। वह कट आउट निकालकर फ्यूज का परीक्षण करता है तथा पाता है कि उसमें कोई खराबी नहीं है। यह परिकल्पना भी असत्य सिद्ध होती है। 

तब वह तीसरी परिकल्पना का निर्माण करता है "बल्ब तो फ्यूज नहीं हो गया "बल्ब  का परीक्षण करने पर पाता है कि वह फ्यूज हो गया है। यह परिकल्पना सत्य सिद्ध होती है। 

इससे बिन्दु पर पहुँचकर समस्या का समाधान भी हो सकता है तथा सम्पूर्ण स्थिति स्पष्ट हो जाती है। सभी समस्याओं के समाधान खोजने के पीछे यही प्रक्रिया रहती है तथा उसमें परिकल्पनाओं (पूर्वानुमानोंसम्भावित उत्तरों एवं समाधानों) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुसंधान भी समस्या समाधान की ही एक विशिष्ट एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। अत: अनुसंधान में भी परिकल्पनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।जो ज्ञातव्य हैउसके विषय में 'क्या है', 'क्यों है'. इस विषय में पूर्वानुमान लगाना ही परिकल्पना होती है।

 

परिकल्पना के प्रकार (Types of Hypothesis)

सामान्यतः परिकल्पना के छह रूप हैं और वे हैं-

1.    सरल परिकल्पना

2.    जटिल परिकल्पना

3.    दिशात्मक परिकल्पना

4.    गैर-दिशात्मक परिकल्पना

5.    शून्य परिकल्पना

6.    साहचर्य और आकस्मिक परिकल्पना



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