परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार |परिकल्पना के प्रकार का वर्णन| | Types of Hypothesis in Hindi
परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार,परिकल्पना के प्रकार का वर्णन
परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार Types of Hypothesis in Hindi
व्यवहार वैज्ञानिक अपने अनुसंधानों में
कई प्रकार की परिकल्पनाओं का प्रयोग करते हैं।
सामान्यतः परिकल्पना
के छह रूप हैं और वे हैं-
- सरल परिकल्पना
- जटिल परिकल्पना
- दिशात्मक परिकल्पना
- गैर-दिशात्मक परिकल्पना
- शून्य परिकल्पना
- साहचर्य और आकस्मिक परिकल्पना
विभिन्न लेखकों ने कई प्रकार से उनका
वर्गीकरण किया है।
1. गुड तथा हैट के अनुसार परिकल्पना या उपकल्पना का वर्गीकरण
गुड़ तथा हँट (1952) ने परिकल्पना के तीन प्रकारों का उल्लेख
किया है। यह वर्गीकरण उन्होंने इस आधार पर किया है कि परिकल्पना में अभिव्यक्त
अमूर्तता का स्तर (level of abstraction) क्या
है? यदि अनुसंधान का स्तर ऊँचा है, तो परिकल्पना का स्तर भी ऊँचा होगा। यह इस पर निर्भर
करता है कि अनुसंधान के निष्कर्ष अथवा सामान्यन (generalizations) कितने
अमूर्त (abstract) अथवा व्यापक है।
इस
दृष्टिकोण से परिकल्पनाएँ तीन प्रकार की होती हैं।
- साधारण
अथवा निम्नस्तरीय (lowest level)
- उच्चस्तरीय
अथवा जटिल स्तरीय (higher level)
- उच्चतम
स्तरीय अथवा जटिलतम स्तरीय (highest level)
(I) साधारण अथवा निम्नस्तरीय परिकल्पना
इस
स्तर की परिकल्पनाएँ केवल साधारण स्तर के अनुसंधानों में पाई जाती है तथा वे कुछ
अनुभवाधीन (empirical) समानताओं (uniformities) का ही वर्णन करती हैं। वे बहुत साधारण से
अनुमान एवं कथन के रूप में होती हैं। जैसे, ग्यारह
वर्षीय बालक अति संवेदनशील होते हैं, आठवीं
कक्षा के विद्यार्थियों को औसत बुद्धि 90-100 के बीच होतो है, भारत के पिछड़े वर्गों की आर्थिक सामाजिक स्थिति
संतोषजनक नहीं है आदि। ये सब साधारण स्तर के अनुसंधानों की परिकल्पनाएँ हैं।
(ii) उच्चस्तरीय परिकल्पनाएँ
उपरोक्त से उच्चस्तरीय परिकल्पनाएँ
संकल्पनाओं (concepts) के पारस्परिक संबंधों
पर आधारित होती है। इनमें समानताओं की अमूर्तता का स्तर उच्च स्तर का होता है। ये
समानताओं मेंसन्निहित किसी अमूर्त संकल्पना की अभिव्यक्ति करती है। इस प्रकार की
परिकल्पना पर आधारित अनुसंधान का उद्देश्य घटनाओं का गहन अध्ययन होता है।
उदाहरण जैसे, तीव्र शारीरिक परिवर्तनों के कारण साधारणतः बालक अधिक संवेदनशील होते हैं।
इस परिकल्पना में अनुसंधान का उद्देश्य
केवल यह जानना मात्र नहीं है कि ये बालक संवेदनशील होते हैं अथवा नहीं, बल्कि उसके आगे यह जानना है कि क्या उनकी संवेदनशीलता
का कारण उनके भीतर तेजी से हो रहे शारीरिक परिवर्तन है। अतः यह परिकल्पना साधारण
स्तर की न रहकर कुछ जटिल हो गई।
(iii) उच्चतम स्तरीय परिकल्पना
इस
स्तर की परिकल्पना में अमूर्त वैचारिकता (abstract
thinking) का सबसे अधिक ऊंचा स्तर निहित रहता है। अतः इस स्तर
के अनुसंधान सबसे अधिक जटिल होते हैं।
प्रथम एवं द्वितीय स्तर की परिकल्पनाओं
का संबंध " क्या है" से होता है, जबकि तृतीय (उच्चतम
स्तर की परिकल्पनाओं का संबंध "क्यों है" होता है।
इन्हीं
के आधार पर उच्च स्तर के सिद्धांतों (Theories) एवं
नियमों (Laws) का विकास होता है।
उदाहरण के लिए यह अनुमान लगाना कि
शारीरिक परिवर्तन संवेदनशीलता की वृद्धि के कारण क्यों और कैसे बनते हैं, उच्चतम स्तर की परिकल्पना को जन्म देगा। शारीरिक
परिवर्तन एवं संवेदनशीलता संबंधी अनुभवाधीन समानताओं को परस्पर जोड़ने वाली उस
कड़ी को खोजना होगा, जो किसी दूसरी शृंखला
की कड़ी है। इस स्थिति में चिंतन का स्तर सर्वाधिक अमूर्त होगा। अनुसंधान की जटिलता
भी बहुत अधिक होगी। इस प्रकार की परिकल्पना का निर्माण शोधकर्ता की उच्चस्तरीय
सृजनात्मक क्षमता एवं कल्पना शक्ति पर निर्भर करेगा।
परिकल्पना का कथन किस प्रकार किया गया है इस दृष्टिकोण से उसके दो प्रकार
पाए जाते हैं
ये हैं
- प्रश्नरूप
है तथा
- घोषणात्मक
रूप
(I) प्रश्नरूप परिकल्पना प्रश्न
के रूप में होती है, जैसे, "क्या गृह-परिवेश बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास को
प्रभावित करता है?" कुछ शोधकर्ता
परिकल्पनाओं को प्रश्नों के रूप में ही प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।
(II) घोषणात्मक परिकल्पना एक
निश्चय कथन (Gansertion) के रूप में होती है।
उसमें एक तथ्य को अनुमानित पापणा रहता है। यह तथ्य किसी घटना की वस्तुस्थिति अथवा चरों
के पारस्परिक संबंधों के विषय में एक पूर्वानुमान के रूप में होता है। यह
सीधा-सीधा एक कथन मात्र होता है, जैसे गृह-परिवेश
बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास को प्रभावित करता है। अधिकतर शोधकर्ता इसी रूप में
परिकल्पनाओं को प्रस्तुत करते हैं। उपरोक्त दोनों रूपों में कोई अन्तर नहीं होता।
केवल लिखने और कथन करने में हो अन्तर होता है।
एक अन्य दृष्टिकोण से परिकल्पनाओं को दो श्रेणियों में बाँटा गया है
- प्रयोगिक
परिकल्पना (experimental hypothesis) तथा
- सांख्यिकीय
परिकल्पना (statistical hypothesis)
प्रयोगिक परिकल्पना (experimental hypothesis)
(I) प्रायोगिक परिकल्पना को
मौलिक (substantive) परिकल्पना, वैज्ञानिक
परिकल्पना (scientific hypothesis), अनुसंधान परिकल्पना research
hypothesis). व्यावहारिक परिकल्पना (operational hypothesis). समान्य (general), परिकल्पना, अनुभवगम्य (Empirical) परिकल्पना
तथा विकल्प परिकल्पना (Alternative hypothesis Ha अथवा H1.) भी कहते हैं. इन्हें प्रश्नरूप तथा
घोषणात्मक रूप दोनों में व्यक्त किया जा सकता है। साथ ही ये साधारण उच्चतर तथा
उच्चतम तीनों में से किसी भी स्तर के हो सकते हैं।
सांख्यिकीय परिकल्पना
(II) सांख्यिकीय परिकल्पना को अप्रतिष्ठेय परिकल्पना
(Null hypothesis, Ho) अथवा निराकरणीय परिकल्पना अथवा शून्य
परिकल्पना भी कहते हैं। प्रायोगिक परिकल्पना का परीक्षण (testing) स्वयं के आधार पर ही सीधे नहीं किया जा
सकता। अतः उसे सांख्यिकीय परिकल्पना में बदलकर रूप से उसका परीक्षण किया जाता है।
सांख्यिकीय परिकल्पना का परीक्षण सांख्यिकी विधि द्वारा किया जाता है। इस परीक्षण
में उसे अस्वीकार करके
प्रायोगिक परिकल्पना को स्वीकार किया
जाता है। उदाहरण के लिए "गृह परिवेश बालकों के
आत्मबोध (self-concept) को प्रभावित करता है।" इस प्रायोगिक परिकल्पना को साख्यिकीय
परिकल्पना में बदलने पर यह “गृह परिवेश बालकों के
आत्मबोध पर कोई प्रभाव नहीं डालता" इस
प्रकार व्यक्त किया जायेगा।
प्रायोगिक परिकल्पना के प्रकार
एक अन्य दृष्टिकोण से सांख्यिकीय एवं प्रायोगिक परिकल्पनाएँ भी दो प्रकार
की होती हैं-
- दिशा सूचक (directional) तथा
- दिशाहीन (non-directional)
दिशा-सूचक परिकल्पना
(I)दिशा-सूचक
परिकल्पना को
एक छोरीय (one-tailed) परिकल्पना भी कहते
हैं। इसमें तुलनीय समूहों के अन्तरों की दिशा निर्धारित होती है, अर्थात् एक समूह के मध्यमान को दूसरे समूह के मध्यमान
के ऊपर या नीचे समसंभावना वक्र के किस और लेना है, यह
निर्दिष्ट रहता है। इसमें समसंभावना वक्र के एक ही छोर का प्रयोग करना होता है।
जैसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि बालिकाओं की शैक्षिक उपलब्धि से अच्छी होती है।
इसे सांख्यिकीय परिकल्पना (null hypothesis) में
बदलने पर यह होगी "बालकों की शैक्षिक
उपलब्धि बालिकाओं की शैक्षिक उपलब्धि से अच्छी नहीं होती।" इस परिकल्पना के परीक्षण हेतु बालिकाओं
की शैक्षिक उपलब्धि के मध्यमान को समसंभावना वक्र के मध्य में रखेंगे तथा बालकों
के मध्यमान को उसके दायें छोर पर ऊपर रखेंगे। अन्तर केवल वक्र के एक छोर पर ही
स्थित होगा।
दिशाहीन परिकल्पना को द्वि-छोरीय (two-tailed) परिकल्पना
(II)दिशाहीन परिकल्पना को द्वि-छोरीय (two-tailed) परिकल्पना भी कहते हैं। इसमें समूहों के मध्यमान का अन्तर वक्त के किसी एक छोर पर ही लिया जाएगा, ऐसा निर्दिष्ट नहीं होता। यह अन्तर दोनों छोर पर स्थित होता है, अर्थात् अन्तर की दिशा उसमें निर्दिष्ट नहीं होता। जैसे, “बालक एवं बालिकाओं की बुद्धि में अन्तर होता है" (साख्यिकीय रूप में " अन्तर नहीं होता ")। इस परिकल्पना में यह निर्दिष्ट नहीं है कि किसी बुद्धि का मध्यमान दूसरे समूह के मध्यमान से अधिक या कम है। केवल यह देखना है कि अन्तर है या नहीं। यदि बालकों की बुद्धि के मध्यमान को समसंभावना वक्र के केन्द्र में रखते हैं, तो बालिकाओं का मध्यमान वक्र के केन्द्र के बायों अथवा दायीं किसी भी और हो सकता है। यदि बालकों के मध्यमान से कम है, तो बायीं ओर तथा यदि अधिक है तो दायीं और होगा। चाहे जिस ओर हो, अन्तर तो होगा ही। इसी का परीक्षण करना होता है। इसीलिए इस प्रकार की परिकल्पना को द्वि-छोरीय अथवा दिशाहीन परिकल्पना कहते हैं। केवल परिकल्पना के कथन अथवा लिखने से पता चल जाता है कि वह दिशा सूचक है अथवा दिशाहीन दिशाहीन में " अन्तर है" अथवा " अन्तर नहीं है" इन शब्दों का प्रयोग रहता है, परन्तु दिशा-सूचक्र में “कम है", “अधिक है", "श्रेष्ठ है", “अच्छा है" "बुरा है" आदि ऐसे शब्दों का प्रयोग रहता है।
परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप प्रकार
परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य अनुसंधान में परिकल्पना भूमिका
परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार
उच्च शिक्षा प्रणाली-आधुनिक भारतीय विश्वविद्यालयों को संगठन और प्रशासन
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