बौद्ध धर्म और शिक्षा |Buddhism and Education in Hindi

 बौद्ध धर्म और शिक्षा (Buddhism and Education in Hindi)

बौद्ध धर्म और शिक्षा |Buddhism and Education in Hindi


 बौद्ध धर्म और शिक्षा

ईसा से पूर्व सातवीं शताब्दी मे वैदिक काल के हिन्दू धर्म कर्म मे कुछ दोष आने लगे। वास्तविक धर्म का लोप होने लगा। हिन्दू धर्म में दंभ प्रवेश कर गया। कर गया। कर्मकांड को ही लोग धर्म मानने लगेंगे। यज्ञ के नाम पर पशु बलि दी जाने लगी। तपस्या के नाम पर लोग गृह त्यागकर वनों में मारे मारे फिरने लगे। ऐसी अंधकारमयी स्थिति मे ज्योति दिखलाने वाला एक क्षत्रिय राजकुमार था जिसको गौतम बुद्ध के नाम से जाना जाता है।

 

महात्मा बुद्ध का कहना था कि बलि और यज्ञ से जीव हिंसा होती हैं। तथा व्यर्थ धन व्यय होता है। अतः इस प्रथा को समाप्त करो। अपना सम्पूर्ण यौवन वेदो को कंठस्थ करने में नष्ट कर देना मुर्खता हैं। तपस्या के द्वारा शरीर सुखाना व्यर्थ है। भगवान बुद्ध ने ऐसे धर्म सिंद्धातो का प्रतिपादन किया जो प्रत्यक्ष जीवन की वास्तविक समस्याओं का विश्लेषण करके धर्म का व्यवहारिक रूप प्रस्तुत करें। उन्होने सात्विक भिक्षुओं के समाज की रचना की जो शिक्षा और संयम द्वारा निर्वाण प्राप्त करने का प्रयास करते। इसका उपाय अंहिसा व पवित्र जीवन था। 


संस्कार : 

प्रव्रज्या संस्कार

जब बालक आठ वर्ष का हो जाता था तो उसका प्रव्रज्या बालक सिर के बाल मुड़ाकरपीले वस्त्र पहनकर नतमस्तक होकरउपाध्याय के निकट जाकर कहता था कि आप मेरे उपाध्याय है। प्रव्रज्या के उपरांत बालक 'श्रमणकहलाता था और उस पर मठ की अनुशासन प्रणाली लागू हो जाती थी और वह घर छोड़कर उपाध्याय के अनुशासन में रहने लगता था। हिंसाअसत्यमादक पदार्थमांसनृत्य तथा संगीतश्रंगार इत्यादि का श्रमण के लिये निषेध था।

 

उपसम्पदा संस्कार : 

अपनी शिक्षा के बारह वर्ष पूरे करने के बाद श्रमण का उपसम्पदा संस्कार होता था। संस्कार कम से कम बीस वर्ष की आयु हो जाने के बाद ही संभव था। उपसम्पदा संस्कार सम्पूर्ण जीवन के लिये था। उपसम्पदा संस्कार संघ के कम से कम दस भिक्षुओ की उपस्थिति में होता था।

 

पाठयक्रम : 

शिक्षा का मुख्य उद्देश्य जीवन मे 'निर्वाण प्राप्त करना था। अतः शिक्षा भी धर्म प्रधान थी। सुतन्तविनयसाहित्य तथा धर्म इत्यादि ही उनके शिक्षा के विषय थे। अधिकांश बौद्ध ग्रंथ पाली मे थे। बौद्ध काल मे शास्त्रीय शिक्षा के अतिरिक्त औद्योगिक तथा व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाती थी।

 

स्त्री शिक्षा : 

बौद्ध धर्म में स्त्री को त्याज्य समझा जाता था। वैदिक शिक्षा के अर्न्तगत स्त्रियों की जो उपनयन संस्कार की व्यवस्था थी वह लगभग समाप्त हो गई थीं। फिर भी महात्मा बुद्ध ने स्त्रियों और मठों और विहारों में रहने की आसा दे दी थी।

 

प्राचीन शिक्षा के केन्द्र : 

वैदिक काल में शिक्षा गुरू द्वारा व्यक्तिगत रूप से दी जाती थी। अतः उस काल में शिक्षा के सुसंगठित विशाल केन्द्र स्थापित न हो सके। शिक्षक अपनी सुविधा के अनुसार विभिन्न स्थानो पर एकत्रित हो जाते थे।

 

तक्षशिला : 

तक्षशिला प्राचीन काल में ब्राह्मणीय शिक्षा का केन्द्र था । बौद्ध काल मे भी उत्तरी भारत मे यह प्रमुख शिक्षा का केन्द्र था। यह गांधार की राजधानी तथा रावलपिण्डी से बीस मील पश्चिम में स्थित था इसको राजा भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर बसाया था

 

तक्षशिला प्रधानतः उच्च शिक्षा का केन्द्र था। छात्र यहाँ विशेषीकरण के लिए आते थे। लगभग सोलह वर्ष की अवस्था में विद्यार्थी तक्षशिला में प्रवेश हेतु पहुँचते थे। लगभग आठ वर्ष की तक विद्यार्थी यहाँ रहकर विद्या अध्ययन करते थे। यहाँ वेदवेदांतव्याकरणआयुर्वेदसैनिक शिक्षाज्योतिषकृषिव्यापारसर्पदशं चिकित्सा तथा तत्रं यहा के विशेष अध्ययन के विषय थे।

 

नालंदा :

 

बिहार प्रान्त मे नालंदा प्रसिद्ध बौद्ध शिक्षा केन्द्र था। यहाँ नागार्जुन के शिष्य आर्यदेव चौथी शताब्दी में रहे थे। यह मगध की राजधानी राजगृह से सात मील दूर और पालीपुत्र से 40 मील दक्षिण पश्चिम में स्थित था। महात्मा बुद्ध के प्रिय शिष्य सारीपुत्त की जन्म भूमि होने के कारण भी यह बौद्धों का महत्वपूर्ण स्थान था। सम्राट अशोक ने यहां एक बिहार बनवाया। जब सन् 410 मे फाह्यान यहाँ आया तो नालंदा शिक्षा की शिक्षा की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नही था। इसका शैक्षिक उत्थान लगभग सन् 450 से प्रारम्भ हुआ। विश्वविद्यालय का सम्पूर्ण क्षेत्र एक विशाल व दृढ़ दीवार से घिरा था। जिसमें एक प्रवेश द्वार था। जिस पर द्वार पण्डित का निवास था जो प्रवेश परीक्षा लेता था। विश्वविद्यालय के भवन मे आठ सभा मंडप थे और तीन सौ अध्ययन कक्ष थे जहाँ विभिन्न विषयों पर सौ व्याख्यान प्रतिदिन किये जाते थे। विद्यार्थियों के आवासभोजन और वस्त्र की व्यवस्था निःशुल्क थी। नालंदा को गुप्त वंशी राजाओं ने 100 गाँव दान मे दिये थे जिनकी आय से वहाँ का कार्य चलता था।

 

व्हेनसांग और इत्सिंग नामक चीनी यात्री इस देश मे क्रमशः सन् 629 से सन् 645 तथा सन् 673 से सन् 693 तक रहें। व्हेनसांग पांच वर्ष तथा इत्सिंग 10 वर्ष अध्ययन करते हेतु नालंदा मे रहे। उनका कहना है कि यहाँ लगभग 1500 शिक्षक और 8500 विद्यार्थी थे।

 

नांलदा बौद्ध शिक्षा का केन्द्र था। फिर भी यहा वैदिक शिक्षा तथा जैन धर्म की शिक्षा दी जाती थी। इसके अतिरिक्त वेदवेदांगव्याकरणज्योतिषयोगतर्कशास्त्र और चिकित्सा शास्त्र का भी अध्ययन किया जाता था।

 

यहाँ के छात्रों का देशभर मे सम्मान होता था। दूर-दूर से विद्यार्थी यहाँ प्रवेश लेने आते थे। यहाँ के विद्वानों की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति से प्रभावित होकर तिब्बतचीनकोरियासुमात्राजावा एवं लंका के असंख्य छात्र यहाँ अध्ययन करते थे।

 

इस प्रकार नालंदा लगभग 800 वर्ष तक इस देश में ज्ञान का प्रकाश विकीर्ण कर सन् 1200 के लगभग बख्तियार खिलजी की बर्बरता का शिकार हुआ।

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