पश्चिमी दर्शन शास्त्र की कुछ मुख्य अवधारणायें - प्रकृतिवाद दर्शन अर्थ परिभाषा विशेषताएँ |Concepts of Western Philosophy in Hindi
पश्चिमी दर्शन शास्त्र की कुछ मुख्य अवधारणायें
Concepts of Western Philosophy in Hindi
पश्चिमी दर्शन शास्त्र की कुछ मुख्य अवधारणायें
प्रकृतिवाद अर्थ (भौतिकवादी दर्शन ):
प्रकृतिवाद यह मानता है कि "वास्तविक संसार भौतिक संसार है" इसी कारण हम प्रकृतिवाद को भौतिकवादी दर्शन भी कहते है। प्रकृतिवाद इस सृष्टि की रचना के लिये प्रकृति को ही उत्तरदायी मानता है। रूसो हरबर्ट स्पेन्सर आदि प्रमुख प्रकृतिवादी विचारक है।
प्रकृतिवाद की परिभाषा :
थॉमस एण्ड लैग के अनुसार प्रकृतिवाद की परिभाषा:
प्रकृतिवाद आदर्शवाद के विपरीत मन को पदार्थ के अघीन मानता है और यह विश्वास करता
है कि अंतिम वास्तविकता भौतिक है आध्यात्मिक नही।
आर. बी पैरी के अनुसार प्रकृतिवाद की परिभाषा
प्रकृतिवाद
विज्ञान का दार्शनिक विचार है जिसमें दार्शनिक समस्याओं के निराकरण हेतु विज्ञान
के सिद्धांतो का प्रयोग किया जाता है। यह आदर्शवाद के विपरीत है जो मन को पदार्थ
के अधीन मानकर यह विश्वास करता है कि वास्तविक सत्ता, आध्यात्मिक न होकर पदार्थ
में निहित होती है।
जेन्स वार्ड के अनुसार प्रकृतिवाद की परिभाषा
प्रकृतिवाद
वह सिद्धांत है जो प्रकृति को ईश्वर से पृथक करता है, आत्मा को पदार्थ के अधीन
मानता है और अपरिवर्तशील नियमों को सर्वेच्च स्थान देता है इनके अनुसार प्रकृति ही
वास्तविकता है जो अपने नियमों द्वारा संचालित होती है व उसी के द्वारा निर्धारित
होती है।
ब्राइस के अनुसार प्रकृतिवाद की परिभाषा
प्रकृतिवाद एक प्रणाली है और जो कुछ आध्यात्मिक है, उसका बहिष्कार ही उसकी प्रमुख विशेषता है।
दार्शनिक प्रकृति की
व्याख्या सामान्यतया इस रूप में करते है कि प्रकृति सामान्य व स्वाभाविक रूप से
विकसित होने वाली प्रकिया हैं। इस ब्रम्हाण्ड की वह सभी वस्तुएँ जिनकी रचना या
निर्माण में मनुष्य का शून्य योगदान है, वहीं प्रकृति है। इसके साथ ही कुछ दार्शनिक विचारधारा मानती
है कि प्रकृति वह है जो सर्वत्र तथा सर्वदा विद्यमान है और इसकी गतिविधियाँ
निश्चित व प्राकृतिक नियमों द्वारा संचालित व नियंत्रित होती है।
प्रकृतिवाद की प्रमुख विशेषताएँ :
1. प्रकृति ही वास्तविकता है :
प्रकृतिवाद इस बात पर विश्वास करता है। कि वास्तविकता व प्रकृति में कोई अंतर
नही है अर्थात् जो वास्तविक है वह प्रकृति है या जो प्रकृति है, वह वास्तविक है प्रकृतिवाद
प्रकृति को अंतिम सत्ता मानता है और मानव प्रकृति पर अधिक बल देता है।
2. मन व शरीर में कोई अंतर नही है :
प्रकृतिवादी विचारधारा मन व शरीर में कोई अंतर नही करती। वह यह मानती है
कि मानव पदार्थ है, चाहे उसका मन हो
या शरीर, दोनो ही इस
पदार्थ का परिणाम है।
3. वैज्ञानिक ज्ञान पर बल :
प्रकृतिवाद यह भी मानता है कि वैज्ञानिक ज्ञान ही उचित ज्ञान होता है और हमारा
प्रयास यह होना चाहिए कि हम इस वैज्ञानिक ज्ञान को जीवन से जोड़ सकें।
4. वैज्ञानिक विधि द्वारा प्राप्ति पर बल :
प्रकृतिवाद के अतंगर्त आगमन विधि द्वारा ज्ञानार्जन की चर्चा की
गई है, साथ ही वह इस बात
की भी चर्चा करते है कि ज्ञान प्राप्ति का सर्वोचित तरीका निरीक्षण विधि है।
5. प्रकृति ही वास्तविक सत्ता
प्रकृतिवाद विचार यह भी मानता है कि इस संसार में सर्वोच्च शक्ति प्रकृति के
हाथों में ही निहित रहती है। और प्रकृति के नियम अपरिवर्तनशील है।
6. मानव प्रकृति का ही अंग है :
प्रकृतिवादी समाज के असतिव्व के प्रति कोई आस्था नही रखते। इस कारण मनुष्य को
समाज का अंग नहीं मानते। उनका विचार है कि मनुष्य प्रकृति का ही अभिन्न अंग होता
है।
7. मूल्य प्रकृति मे ही निहित है
मूल्य का निर्धारण आदर्शवादी के अनुसार समाज द्वारा होता है जबकि प्रकृतिवादी यह मानते है कि मूल्य प्रकृति मे ही विद्यमान रहते है और यदि मानव मूल्यों की प्राप्ति चाहता है तो उसे प्रकृति से घनिष्ठ संबंध स्थापित करना होगा ।
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