लोक सेवा के प्रति समर्पण |Dedication To Public Service Ethics Notes
लोक सेवा के प्रति समर्पण (Dedication To Public Service)
लोक सेवा के प्रति समर्पण (Dedication To Public Service Ethics Notes)
ब्रिटिश साम्राज्य ने जो सिविल सेवा बनाई थी वह अभिजात तथा रूढ़िवादी थी और ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा रखती थी। शासन के कल्याणकारी राज्य बनने के बाद ऐसे सिविल सेवकों की जरूरत थी जो राष्ट्रीय विभाग तथा जनकल्याण में सक्रिय एजेंट की भूमिका निभा सकें।
लोकसेवकों में समर्पण के लक्षण
- "वंचित वर्गों की सहायता,
- लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सतत प्रयास
- उत्साहपूर्ण कार्य
- पूर्वाग्रह एवं रुढ़िगत रहित
- लक्ष्यों की समयबद्ध प्राप्ति
- समय की पाबंदी न हो,
समर्पण का अर्थ
समर्पण अंग्रेजी शब्द Dedication का हिन्दी रूपान्तरण है। किसी व्यक्तिगत या सामाजिक उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता की ऊँची तीव्रता वाली मनःस्थिति है। यह मनः स्थिति उद्देश्य के प्रति तीव्र भावनाएँ पैदा करती है जो व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करती है।
किसी सिविल सेवक में लोक सेवा के प्रति समर्पण की भावना के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने चाहिए-
1. लोक सेवक को कार्यालयीन समय को न देखते हुए समय से पहले एवं बाद तक उत्साहपूर्वक कार्य करते रहना चाहिए।
2. वंचित वर्गों की लगातार सहायता करते रहना चाहिए जिससे अपने आप को संतोष महसूस हो।
3. अपने अधिकारों का प्रयोग इस तरह करना कि ज्यादा से ज्यादा संसाधन उन से वर्गों पर खर्च हो जिन्हें उनकी अधिकतम जरूरत है।
4. यदि कोई व्यक्तिगत सरकारी सेवाएँ लेने के लिए औपचारिकताएँ पूरी नहीं कर पा रहा है तो आगे बढ़कर उसकी सहायता करना ।
5. ज्यादा ध्यान नियमों पर नहीं सकारात्मक परिणामों पर देना।
- स्वतंत्रता के पूर्व ब्रिटिश शासन के भारतीय लोक सेवा का मुख्य लक्ष्य, कानून व्यवस्था, राजस्व एवं हुक्म चलाने तक था। भारतीय प्रशासकों का उत्तरदायित्व ब्रिटिश क्राउन के प्रति था। स्वतंत्रता के पश्चात लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को स्वीकार कर सामाजिक आर्थिक न्याय एवं सर्वांगीण विकास को तथ्य के रूप में स्थापित किया गया। वर्तमान में सुशासन की स्थापना राष्ट्र का आदर्श है। ये तभी संभव है जब नीतियों का क्रियान्वयन अच्छी तरह से हो जिसकी जिम्मेदारी लोक सेवकों की होती है और लोक सेवकों को भारत में संचित निधि से वेतन दिया जाता है ऐसी स्थिति में लोक सेवकों का यह कर्तव्य है कि वे सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण रखें। जाति, धर्म, लिंग, प्रजाति, जन्मस्थान, भाषा, प्रान्त, क्षेत्र आदि पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर लोकहित का संरक्षण एवं संवर्द्धन ही सार्वजनिक सेवा है। इसमें गाँधी द्वारा स्वीकृत सर्वोदय की अवधारणा निहित है जबकि लक्ष्य के प्रति संवेगात्मक लगाव रखते हुए उत्तरदायित्व और प्रतिबद्धता के साथ काम करना ही समर्पण है।
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने जिस भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया है। उसकी प्रस्तावना में स्वीकृत मूल्यों को आदर्श रूप में स्वीकार करते हुए सार्वजनिक में हित में सत्यनिष्ठापूर्वक आचरण करना ही लोक सेवक का लक्ष्य होना चाहिए। लोक सेवक को अपने कार्य को नौकरी मात्र न मानकर सेवा का कार्य करने के अवसर के रूप में देखना चाहिए जैसे आपदा के समय व्यक्तिगत कठिनाइयों और समस्याओं को दरकिनार करते हुए आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए दिन-रात कार्य करना लोक सेवा के प्रति उनके समर्पण भाव को इंगित करता है जैसे उत्तराखण्ड में भू-स्खलन के समय । यदि लोकसेवक में सिविल सेवा के प्रति समर्पण भाव है तो उसका प्रभाव आम जनता पर भी पड़ता है और उसमें भी जागरूकता और उन कार्यों में सहभागिता का भाव उत्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में नीतियों का क्रियान्वयन प्रभावपूर्ण ढंग से होने लगता है। लोक सेवकों को संवैधानिक मूल्यों, सार्वजनिक हितों एवं सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण भाव रखना चाहिए। यह तभी संभव है जब लोक सेवकों में समर्पण भाव हो ।
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