सांख्य दर्शन का शैक्षिक महत्व |Educational Importance of Sankhya Philosophy

 सांख्य दर्शन का शैक्षिक महत्व 

सांख्य दर्शन का शैक्षिक महत्व |Educational Importance of Sankhya Philosophy

सांख्य दर्शन का शैक्षिक महत्व


सांख्य दर्शन में दो सत्तायें विधमान हैं - 1. प्रकृति 2. पुरुष

 

सांख्य का यह सिद्धांत बाल विकास का सिद्धांत प्रस्तुत करता है। हम यह जानते है कि शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक का शारीरिकमानसिक व चारित्रिक विकास करना है। इसी रूप मे यदि हम देखो तो यह कह सकते है कि पुरुष के ससंर्ग मे जैसे प्रकृति का विकास होता है। वैसे ही शिक्षा के संसर्ग में बालक का।

 

सांख्य दर्शन बालक के विकास की दो अवस्थाओं की चर्चा भी करता हैं-

 

1. गर्भावस्था मे बालक का विकास 

2. जन्म पश्चात् बालक का विकास

 

शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि वह बालक की बुद्धि या महत का विकास करे चूँकि बाध्य जगत के अनुभवों का तथ्यात्मक संकलन बुद्धि द्वारा ही सभव हैं। सांख्य दर्शन द्वारा प्रतिपादित मनअहंकार व बुद्धि को हम चित्त केत विभिन्न पक्षो से अग्र प्रकार से सम्बंधित कर सकते है।

 

1. मन - ज्ञानात्मक 

2. अहंकारभावात्मक 

3. बुद्धिष्महत- सकंल्पनात्मक

 

सांख्य का यह भी मत है कि प्रकृति अचेतन तथा जड़ है। जो शिक्षक को इस बात का ज्ञान कराती है कि बुद्धिअहंकारमन आदि भी चेतन रहित होने के कारण स्वयं की शक्ति से न सात प्रादन कर सकते है न क्रियाशील हो सकते है। उन्हे पुरुष की चेतना का ज्ञान प्राप्त होता है। व उसी से वह ज्ञान प्राप्त करते हैं।

 

सांख्य दर्शन शिक्षा के उद्देश्यों को निम्न दो भागों मे विभन्न करता है-

 

1. पारमार्थिक उद्देश्य 

2. लौकिक उद्देश्य

 

पारमार्थिक उद्देश्य से आशय है मुक्ति और मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग हैं। अविद्या या अज्ञान का विनाश। अतः शिक्षा का यह उत्तरदायित्व है कि वह मनुष्य को अज्ञान व अविद्या से मुक्ति दिलाये। दूसरे शब्दों मे हम यह कह सकते हैं कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है अज्ञान रूपी अहंकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर मानव को उन्मुख करना 


लौकिक उद्देश्यों की चर्चा करते हुए सांख्य का विचार है कि मानव के अंदर निहित तीन गुण प्रमुख है-

 

1. सत्व 

2. रजन 

3. तमस

 

शिक्षा का यह दायित्व है कि वह मानव मे रज व तम का बाहुल्य स्थापित न होने दे चूँकि सत्व के बाहुल्य से ही मनुष्य सुख वादी होता है। शिक्षा के द्वारा रज व तम से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया जाना चाहिए और यह आवश्यक है कि बालक के अंदर विवेक ज्ञान उत्पन्न किया जाये।

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