समानुभूति क्या होती है लक्षण प्रकार | समानुभूति का विकास | Empathy types and Development
समानुभूति क्या होती है लक्षण प्रकार , समानुभूति का विकास
समानुभूति क्या होती है (Empathy)
- समानुभूति व्यक्ति की वह गहरी संवेगात्मक समझ एवं क्षमता है जिसमें वह स्वयं को दूसरे लोगों की स्थिति से जोड़कर उसकी महनता को महसूस करता है। समानुभूति प्रभावपूर्ण संवाद में बाधक अनेक कठिनाइयों को दूर कर सकता है। अर्थात किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति, अन्य प्राणी या किसी काल्पनिक चरित्र की मनःस्थितियों को सटीक रूप में समझने की क्षमता समानुभूति कहलाती है।
- कुछ मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि समानुभूति सिर्फ दूसरों की मनःस्थितियों को समझने तक सीमित नहीं है बल्कि उन्हीं भावनाओं को उस स्तर पर महसूस करने का नाम है जिस स्तर पर उन भावनाओं को मूल व्यक्ति ने अनुभव किया था। इसका चरम रूप वहाँ दिखता है, जहाँ व्यक्ति की चेतना में 'स्व' तथा 'पर' का अंतर मिटने लगता है।
समानुभूति के निम्न लक्षण हैं
1. दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं, स्थितियों एवं आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनकी सहायता करने का प्रयास करते हैं।
2. इस संघटक का संबंध दूसरों के भावों का तथा परिप्रेक्ष्य के प्रति संवेदनशीलता तथा दूसरे के कार्यों में सक्रिय रुचि से है।
3. इस क्षमता वाले व्यक्तियों में दूसरों के प्रति सांवेगिक संकेत पाये जाते हैं, वे दूसरों की बात को पूर्ण तन्मयता से सुनते हैं, दूसरों के प्रति संवेदनशीलता प्रकट करते है, उनको समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं।
4. समानुभूति के विकास हेतु इन लोगों की समस्याओं के अवगत होने स्थितियों, परम्परा, विश्वास आदि को तन्मयता से सुनने एवं समझने का अवसर मिलना चाहिए।
5. प्रशासनिक अधिकारी 'गांवों की ओर' संकल्पना है जिसमें जिलाधीश को महीने में दो रात गाँवों में बिताना एवं उनकी समस्याओं से अवगत होना शामिल है।
समानुभूति के प्रकार
संज्ञानात्मक समानुभूति
- परिप्रेक्ष्य ग्रहण-किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार को समझने की क्षमता
- कल्पना-किसी काल्पनिक चरित्र की परिस्थितियों को समझने की क्षमता है।
भावनात्मक 'समानुभूति
समानुभूतिक चिंता
- व्यक्ति की भावनाएँ उत्तेजित
- ह पीड़ित व्यक्ति की स्थिति में सुधार चाहता है
- सहयोग करने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को सहयोग
समानुभूतिक तनाव
- तनाव में तीव्रता का स्तर अधिक - तीव्रता इतनी अधिक कि व्यक्ति का सामान्य जीवन भी कटिन हो जाता है।
- इसमें लाभ कम, हानियाँ अधिक।
समानुभूति का विकास (Development of Empathy)
बच्चा जन्म के समय हड्डी-मांस का ढाँचा होता है, उसे जिस सांचे में ढाला जाये बच्चा वैसा हो जाता है इसलिए समाजीकरण के माध्यम से धीरे-धीरे समानुभूति का विकास निम्न प्रकार से होता है
1. पालन पोषण-
बच्चों की समानुभूति के विकास में माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि माता-पिता ही बच्चे की प्रथम पाठशाला होते हैं। बच्चे की भावनात्मक संवेदनशीलता का विकास बहुत हद तक पालन-पोषण पर निर्भर करता है। बच्चों को कहानियों के माध्यम से अभिभावक काल्पनिक चरित्र के दुःख-दर्द को व्यक्त करते हैं। जिससे बच्चे को वंचित एवं दुःखी व्यक्ति का दर्द अनुभव होता है।
2. पाठशाला एवं महाविद्यालय की भूमिका
- पाठशाला व महाविद्यालय में ऑडियो, विजुअल तकनीकों तथा फिल्मों आदि के माध्यम से विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों, समृहों की स्थिति को प्रदर्शित करके छात्रों में समानुभूति का विकास किया जा सकता है। कुछ ऐसे समूहों, व्यक्तियों से भी मिलवाया जाता है जो सामाजिक समस्या, पीड़ा के भुक्तभोगी हो ।
3. जिन व्यवसायों में दूसरों की अनुभूतियों या मनः स्थितियों को ध्यान रखने की आवश्यकता होती है यदि उन व्यवसायों की प्रतिष्ठा बढ़ाई जाए तो स्वाभाविक रूप से समानुभूति जैसे गुणों के विकास पर बल दिया जाएगा। जैसे चिकित्सक, नर्स मनोवैज्ञानिक सामाजिक कार्यकर्ता प्राइमरी टीचिंग। ऐसे साहित्य, उपन्यास, कलाओं, नाटक को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो समाज की सहानुभूति की सीख दे विशेष: वंचित वर्गो के प्रति सहानुभूति को।
समानुभूति विकास का क्रम
0-2 वर्ष, समानुभूति का विकास नहीं
2-7 वर्ष समानुभूति का थोड़ा विकास जिसमें पारिवारिक माहौल एवं सामाजिक अन्तः क्रिया के द्वारा तय होता है।
7-12- समानुभूति का सामान्यतः विकास होता है।
12 वर्ष से जीवन भर विकास की संभावना रहती है। प्रशिक्षण के माध्यम से और अधिक विकसित किया जा सकता है।
एक शोध में पाया गया कि सामान्यतः पुरुषों से अधिक समानुभूति महिलाओं में होती है ।
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