शैक्षिक अवसरों की समानता |शिक्षा में समानता के सूचक | Equality of educational opportunities
शैक्षिक अवसरों की समानता (Equality of educational opportunities)
शैक्षिक अवसरों की समानता :
शैक्षिक अवसरों की समानता की चर्चा आजकल शिक्षा शास्त्र में बहुत अधिक होती है। शिक्षा के अवसर व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार मिलने चाहिए ।
शैक्षिक अवसरों की समानता पृष्ठभूमि :
समानता की धारणा जनतंत्रीय धारणा है। जनतंत्र स्वतंत्रय, समानता और शांति के तरीकों में विश्वास करता है। युद्ध और राजनैतिक या अन्य प्रकार के तनावों के मध्य समाज की प्रगति नहीं हो सकती। जनतंत्र का यह विश्वास है कि पारस्परिक द्वेष, संघर्ष व तनाव की अवस्थाएँ शांति पूर्ण ढंग से सुलझाई जा सकती हैं। युद्ध की अपेक्षा शांति की विजय अधिक चिर स्थायी है। इसमें जनतंत्र का पूर्ण विश्वास है।
स्वतंत्रता और समानता के संबंध में भ्रमपूर्ण विचार होने के कारण लोग बहुधा उनका गलत मतलब निकालते हैं और उनका दुरुपयोग करते हैं। इन दोनों का अर्थ लोग अपने स्वार्थवश गलत लगा बैठते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हम स्वयं अपने देश में ही देख रहे है कि स्वतंत्रता का कितना गलत अर्थ लगाया जा रहा है। और उसका कितना दुरुपयोग हो रहा है। इसी प्रकार का भ्रम समानता के संबंध में भी है और लोग इसका आशय अधिकारों और अवसरों तथा सुविधाओं के बराबर बाँटने से लगाते हैं चाहे कोई उनका लाभ उठा सके या नहीं। सब मनुष्यों में एक भी शक्ति नहीं होती और सब लोग अवसरों व सुविधाओं से बराबर लाभ नहीं उठा सकतें। समानता का आशय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को उतनी सुविधा या अवसर दिये जाएँ जिनका वह लाभ उठा सकें और यदि वह उनसे लाभ न उठा सके तो उसे वे उतनी मात्रा में न दिये जायँ, समानता का अर्थ सबके लिए समान नीति से है, सबको समान बनाने से नहीं।
भारत सरकार ने असमानता का अस्तित्व समाप्त करने के लिए अनेक योजनाएँ संचालित की। इनमें से उल्लेखनीय थी। निम्न जातियों के व्यक्तियों के लिए कॉलेज स्तर तक निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था, उनके लिए व्यावसायिक शिक्षा संस्थाओं में अध्ययन की सुविधा और उनके लिए एक निश्चित प्रतिशत में सरकारी पदों की सुरक्षा । इस नीति के अन्तर्गत कम आय वाले वर्गों की दशा में सुधार किया जा रहा है। और भूमि सुधार अधिनियम के अन्तर्गत भूमिहीनों को भूमि प्रदान की जा रही है। इस कार्य में आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन ने अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस समय वास्तविक स्थित यह है कि भारतीय संविधान ने जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर स्वीकृत असमानता को समाप्त कर दिया है, सब शिक्षा संस्थाओं के द्वार सबके लिए किसी भेदभाव के बिना खोल दिये हैं और प्रत्येक व्यक्ति को अवसर की समानता प्रदान की है।
शिक्षा में समानता के सूचक :
1. अधिगम की समानता :
इसका सम्बंध प्रवेश के अवसर से सम्बंध है। योग्यता को छोड़कर कोई अन्य कसौटी प्रवेश के लिए नहीं होनी चाहिए । जाति, धर्म इसमें बाधक न हों। कुछ समय पहले भारतीय समाज में स्त्रियों एवं शुद्रों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था।
2. उत्तर जीवितग की समानता :
विद्यालय में प्रवेश में ही समानता न हो वरन् छात्र स्कूल में बना रहे, वह विद्यालय छोड़ न दे, इसके लिए भी समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति के बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं यह असमानता है।
3. स्तर की समानता :
एक निश्चित स्तर तक सभी बालक बालिकाओं का बिना किसी भेदभाव के अनिवार्य शिक्षा मिले। निर्धन बालकों को विशेष सुविधा दी जाय। एक स्तर तक अनिवार्य निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था हो।
4. परिणाम की समानता :
स्कूल छोड़ने के बाद प्रत्येक बच्चे को शिक्षा के आधार पर जीवन बिताने के समान अवसर सुलभ हों। यदि किसी वर्ग विशेष को अवसर की विषमता नजर आयें तो उसे विशेष सुविधा देकर उसके लिए समान अवसर की सुलभता निश्चित की जाया इसी सूचक के अंतर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लिए नौकरियों में आरक्षता की व्यवस्था की संकलना की जाती है।
उपर्युक्त चारों सूचकों में से किसी समाज में चारो, किसी में कुछ कम तो किसी में कुछ अधिक की उपस्थिति दिखाई पड़ती है।
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