आदर्शवाद एवं शिक्षा |आदर्शवाद व शिक्षा के उदेश्य शिक्षण विधियाँ मूल्यांकन |Idealism and education in Hindi
आदर्शवाद व शिक्षा के उदेश्य शिक्षण विधियाँ मूल्यांकन
आदर्शवाद एवं शिक्षा (Idealism and education)
आदर्शवाद मनुष्य को ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति के रूप मे स्वीकार करता हैं। रस्क के कथनानुसार “शिक्षा के द्वारा आध्यात्मिकता का क्षेत्र विशाल बन जाता है और उसके द्वारा जाति के विचारों एवं संस्कृति की सुरक्षा की जाती है और उसे नई परिस्थितियों के ढाँचे में ढालकर गतिशील बनाया जाता है।
मानव व पशु मे अतंर भी हम इसी आधार पर करते है कि पशु अपने वातावरण को ज्यों का त्यों स्वीकार करता है परंतु मनुष्य आदि काल से वातावरण को अपने अनुरूप ढालता हैं। आदर्शवादी यह मानते है कि मनुष्य अपने प्राकृतिक वातावरण से अनुकूलन शिक्षा के बिना भी कर सकता है परंतु सांस्कृतिक वातावरण से अनुकूलन हेतु शिक्षा की आवश्यक होती हैं और इस प्रकार हम समाजीकरण या संस्कृतिकरण की प्रक्रिया मानते है।
आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का अभिप्राय
आदर्शवाद के अनुसार शिक्षा का अभिप्राय है बालक को गुणो से परिपूर्ण करना साथ ही शिक्षा वह है जो सिर्फ बालक के विकास तक ही सीमित नही रहती वरन् बालक को विकसित करके समाज का विकास करना चाहती है और आवश्यकता पड़ने पर समाज सुधारने का भी प्रयास करती है।
आदर्शवाद व शिक्षा के उदेश्य :
1. आत्मानुभूति का विकास :
आदर्शवादी विचारधारा यह मानती है कि प्रकृति से परे यदि कोई चेतन सत्ता के अनुरूप है तो वह है मनुष्या इस कारण शिक्षा का सर्वोच्च कार्य यह है कि वह मनुष्य को इतना सक्षम बनायें कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को पहचाने व उसकी अनुभूति कर सके ।
2. आध्यात्मिक मूल्यो का विकास :
आदर्शवादी विचारधारा भौतिक जगत की अपेक्षाकृत आध्यात्मिक जगत को महत्वपूर्ण मानती है। अतः शिक्षा के उद्देश्यो मे भी बालक के आध्यात्मिक विकास को महत्व देते है। यह मनुष्य को एक नैतिक प्राणी के रूप मे अवलोकित करते है व शिक्षा का उदेश्य चरित्र निर्माण को मानते हैं। वह सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के मूल्यों का विकास करते हुए इस बात की भी चर्चा करते है कि शिक्षा का प्रमुख उदेश्य बालक मे आध्यात्मिक दृष्टि से विकास करना हैं ।
3. समाज हित का उदेश्य :
आदर्शवाद जब शिक्षा के उदेश्यों की चर्चा करता है तो व्यक्तित्व के विकास पर बल देता है और व्यक्तित्व विकास मे सामाजिक हित अर्न्तनिहित होता है। प्रसिद्ध आदर्शवादी दार्शनिक हॉकिगं जब शिक्षा के उद्देश्यों की चर्चा करता है। तो वह शिक्षा के दो उदेश्य बताता है।
1. सम्प्रेषण
2. विकास के लिये प्रावधान
4. बालक के व्यक्तित्व का उन्नयन:
बोगोस्लोवस्की के अनुसार “हमारा उद्देश्य छात्रों को इस योग्य बनाना है कि वे सम्पन्न तथा सारयुक्त जीवन बिता सकें सर्वागीण तथा रंगीन व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें, सुखी रहने के उल्लास का उपभोग कर सके यादि तकलीफ आये तो गरिमा एवं लाभ के साथ उनका सामना कर सके तथा इस उच्च जीवन को जीने मे दुसरे लोगों की सहायता कर सके।
5 जड़ प्रकृति की अपेक्षा मनुष्य का महत्व :
आदर्शवादी मनुष्य का स्थान ईश्वर से थोड़ा ही नीचा मानते है इनका विचार है कि मनुष्य इतना सक्षम होता है कि वह आध्यात्मिक जगत का अनुभव कर सकें व ईश्वर से अपना तादामय स्थापित कर सके उसकी अनुभूति कर सकें।
आदर्शवाद और शिक्षण विधियाँ:
आदर्शवाद ने शिक्षण के लिये वाद विवाद व्याख्यान विधि, आगमन-निगमन विधि, अनुदेशन प्रणाली के प्रयोग पर बल देते हैं।
आदर्शवाद और शिक्षक
आदर्शवादी शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के स्थान को सर्वोपरि मानते है एवम् विशेष महत्व देते है और अध्यापक विधार्थी के विकास पूर्ण सहयोग प्रदान करे। उसे आध्यात्मिक चेतना कर स्त्रोत माना गया .
आदर्शवाद का मूल्यांकन :
1. शिक्षा दर्शन के रूप मे शाश्वत् मूल्यों ( सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् ) से परिचित कराता हैं।
2. बालक के व्यतित्व के विकास पर बल देता है बालक के शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक, चारित्रिक एवं नैतिक, सामाजिक आदि के विकास करने पर बल देता है।
3. शिक्षण विधियों में पेस्टालाजी की अभ्यास एवं आवृति विधि और हरबर्ट की पचंपदीय प्रणाली महत्वपूर्ण है।
4. आदर्शवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन को महत्वपूर्ण माना है और स्वशासन पर बल दिया है।
इस प्रकार आदर्शवाद सामान्य शिक्षा सबके लिये का समर्थक है लेकिन शिक्षा के अन्य भागो पर अधिक ध्यान नही दिया ।
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