आदर्शवाद दार्शनिक विचारधारा अर्थ परिभाषा |Idealism Philosophical Meaning Definition in Hindi

आदर्शवाद दार्शनिक विचारधारा अर्थ परिभाषा

आदर्शवाद दार्शनिक विचारधारा अर्थ परिभाषा |Idealism Philosophical Meaning Definition in Hindi

आदर्शवाद दार्शनिक विचारधारा

 

आदर्शवाद दार्शनिक विचारधारा प्राचीनतम विचारधारा है। मानव संस्कृति का जब से विकास हुआ। उसकी इस बात में आस्था रही कि इस प्रकृति मे वास्तविक तत्व आध्यात्मिक है और जब हम प्रकृति की सत्ता को तिरस्कृत करते हुये मनस् या आत्मा की सत्ता को स्वीकार करने लगते है उसे ही आदर्शवादी दर्शन कहते है।

 

आदर्शवाद की परिभाषाये :

 

रोस के अनुसार आदर्शवाद की परिभाषा 

आदर्शवाद के अनेक रूप है किन्तु सबका सार यह है कि मन या आत्मा ही इस जगत का पदार्थ है और मानसिक स्वरूप सत्य हैं।

 

बूबेकर के अनुसार आदर्शवाद की परिभाषा : 

आदर्शवादियों के अनुसार इस जगत को समझने के लिये मन केन्द्रीय बिंदु हैं। इस जगत को समझने हेतु मन की क्रियाशीलता से बढ़कर उनके लिए अन्य कोई वास्तविकता नही है।

 

हैण्डरसन के अनुसार आदर्शवाद की परिभाषा : 

आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है क्योकि आदर्शवादियों के लिए आध्यात्मिक मूल्य जीवन के तथा मनुष्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलु है। एक तत्व ज्ञानी आदर्शवादी का विश्वास है कि मनुष्य का सीमित मन असीमित मन से पैदा होता है। व्यक्ति और जगत दोनों बुद्धि की अभिव्यक्ति है और भौतिक जगत की व्याख्या मन से ही की जा सकती है। 


आदर्शवाद की आधारभूत मान्यतायें :

 

1. भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत का महत्वपूर्ण स्थानः 

आदर्शवाद के अनुसार भौतिक वस्तुएँ व भौतिक जगत नाशवान होने के कारण अस्थाई है और आध्यात्मिक जगत सत्यस्थाई व वास्तविक है। इसका मूलभूत कारण यह है कि आध्यात्मिक जगत वैचारिक रूप में विद्यमान रहता है और विचार चिर स्थायी होते है और मानव का प्रमुख कार्य इस आध्यात्मिक जगत को समझते हुए उससे सम्बधं स्थापित करना हैं।

 

2. ब्रह्माण्ड मानव मस्तिष्क मे निहित : 

आदर्शवाद यह मानता है कि इस जगत की आधारभूत बाते मानव आत्मा व मस्तिष्क में निहित होती हैं। इस कारण यह भौतिक पदार्थों को महत्व नही देता। वह मानते है कि मस्तिष्क में विचार पहले आता है और वस्तु की कल्पना बाद में जन्म लेती है।

 

3. इस जगत मे मनुष्य सर्वश्रेष्ठ है : 

आदर्शवादी जड़ व प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं और इनके दर्शन का मुख्य आधार मानववाद है वह मानते है कि मनुष्य मे बुद्धितर्क व आध्यात्मिक गुण होते है और यह गुण उसे पाशविक प्रवृत्तियों से ऊँचा उठाते हुए उसके अंदर आत्मानुभूति की क्षमता उत्पन्न करते हैं।

 

4. विभिन्नता मे एकता : 

आदर्शवाद यह मानता है कि मानव जीवन तभी सफल व पूर्ण होता है जब वह जगत में विद्यमान एकता के मध्य ईश्वर का आभास कर सके।

 

5. व्यक्तित्व के विकास पर बल : 

आदर्शवाद व्यक्ति को एक आदर्श मानव या पूर्ण मानव के रूप में विकसित करने की बात करता है। व्यक्ति में उन गुणों को प्रतिरोपित किया जाना चाहिए जो उसे एक अच्छा व्यक्ति बनने मे सहयोग दे सके।

 

6. मनुष्य व प्रकृति मे संश्लेषण: 

यह मानव जीवन की व्याख्या हेतु शास्त्र के आधार पर करते है। इसका अभिप्राय है कि मानव जीवन तथा प्राकृतिक प्रक्रिया के कुछ सामान्य उद्देश्य होते है जिसमे वह एक साथ चलती है। 

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