निष्पक्षता (भेदभाव रहित) एवं असमर्थकवादी (गैर तरफदारी)| Impartiality and non partnership
निष्पक्षता (भेदभाव रहित) एवं असमर्थकवादी (गैर तरफदारी)
(Impartiality
and non-partnership )
निष्पक्षता (भेदभाव रहित) एवं असमर्थकवादी (गैर तरफदारी) का अर्थ
- निष्पक्षता, न्याय का एक प्रमुख सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि निर्णयकर्ता को कोई भी निर्णय सिर्फ वस्तुनिष्ठ कारणों को आधार बनाकर करना चाहिए किसी पूर्वाग्रह हित या मूल्य के कारण पहले से उसे किसी पक्ष के प्रति समर्थन या विरोध की मुद्रा में नहीं होना चाहिए। जन सेवाओं एवं सरकारी सेवकों में निष्पक्षता का आशय है कि जनता का विश्वास बढ़ाने एवं जनहितकारी कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के लिए उनमें पक्षपात रहित, न्यायपूर्ण व्यवहार का होना आवश्यक है। लोक सेवा की संकल्पना में समस्त नागरिकों के हित का भाव विद्यमान है। ऐसी परिस्थियों में नागरिकों व समुदाय के सदस्यों के साथ समान एवं सकारात्मक व्यवहार होना चाहिए। धर्म, लिंग, प्रजाति, भाषा, जाति, संपत्ति, वंश. मित्रता, प्रांत आदि के आधार पर उसके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। ऐसे निष्पक्ष व्यवहार से ही लोगों में सरकार एवं लोकसेवकों के प्रति विश्वास, भरोसा उत्पन्न होता है जो भारतीय संविधान में भी उल्लेख किया गया है।
- लोक सेवकों से अपेक्षा की जाती है कि वे सरकार की नीतियों का कार्यान्वयन, संविधान एवं कानून के दायरे में रहकर करेंगे। लेकिन कुछ प्रस्थिति में स्वविवेक का भी प्रयोग होता है। स्वविवेक के निर्णय एवं कार्य हमेशा निष्पक्षतापूर्वक करना चाहिए। जिसमें भाई-भतीजावाद, जाति, धर्म, लिंग इत्यादि को ध्यान में रखकर निर्णय एवं कार्य नहीं करना चाहिए। सरकारी नीतियों एवं योजनाओं को क्रियान्वित करते समय व्यक्तिगत हित की बजाय सार्वजनिक हित एवं राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखना चाहिए।
निष्पक्षता (भेदभाव रहित) एवं असमर्थकवादी (गैर तरफदारी) उदाहरण-
यदि एक परीक्षक उत्तर पुस्तिकाएँ जाँच रहा है व उत्तर पुस्तिकाओं में उसके बेटे की
भी उत्तर पुस्तिका है जो वास्तव में योग्यता के अनुसार तीसरे स्थान पर है। ऐसी
स्थिति में परीक्षक के सामने निम्न परिस्थितियाँ हो सकती हैं
1. वह बेटे के अंक बढ़ा दे ताकि बेटे का
पहला स्थान प्राप्त हो जाए,
जो एक पक्षपात होगा।
2. परीक्षक को लग रहा है कि बेटे का प्रथम
स्थान आने पर लोग उसे संदेह की दृष्टि से देखेंगे। इस स्थिति में बेटे के अंकों
में और कमी करके आठवाँ एवं नौवाँ स्थान पर रख दिया जाये। यह भी नकारात्मक कथनों
में पक्षपात है जिसमें परीक्षक खुद को निष्पक्ष दिखाने के लिए अपने बेटे का नुकसान
करता है।
3. उत्तर पुस्तिका जाँचते समय परीक्षक यह
ध्यान ही न दे की कौन-सी उत्तर पुस्तिका किसकी है और किसको कौनसा स्थान प्राप्त
हुआ है, जो वास्तविक रैंक मिली है उसके अनुसार
ही परिणाम दे और यही एक निष्पक्षता है।
वर्तमान
परिस्थितियों को देखते हुए निष्पक्षता हमेशा संभव नहीं है क्योंकि भारत में
कल्याणकारी कार्यक्रम संचालित किये जाते है जिसमें निम्न वर्गों को राज्य के विकास
की मुख्य धारा में लाना भी आवश्यक है परंतु यह पक्षपात थोड़ा बहुत सामाजिक हित में
वांछनीय हो सकता है। ये किसी व्यक्ति के में न होकर समाज के हित में होना चाहिए।
जैसे भारत में निम्न वर्गों की दशा में सुधार के लिए आरक्षण की व्याख्या की गई है।
असमर्थकवादी Non Partisanship का अर्थ
- असमर्थकवादी Non Partisanship का अर्थ है किसी दल विशेष से जुड़ाव न होना। संकीर्ण रूप में इसका अर्थ किसी दल विशेष की सदस्यता न लेना है। लोक सेवक किसी दल विशेष के प्रति निष्ठा जैसा भाव भी न रखे, व सभी दलों के प्रति सदस्य होकर राजकीय नीतियों को लागू करने के प्रयास करें। सिविल सेवा के लिए राजनैतिक, निष्पक्षता के मूल्य का विकास सबसे पहले ब्रिटेन में हुआ। चीन में राजनीतिक निपश्चता सिविल सेवा के लिए आवश्यक मूल्य है। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य ही नौकरशाही है और उनसे राजनीतिक निष्पक्षता की नहीं बल्कि पूर्ण राजनीतिक प्रतिबद्धता की आशा की जाती है जबकि अमेरिका में कोई भी अधिकारी राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं रख सकता था। भारत की स्थिति अमेरिका जैसी है।
- भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव के आधार पर नई सरकार का गठन होता है जिसमें सत्ता में दलों का परिवर्तन भी होता है। अतः व्यवस्था में परिवर्तन शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से हो इसकी जिम्मेदारी सिविल सेवकों की ही होती है। हो सकता है कि किसी सरकारी कर्मचारी की अपनी व्यक्तिगत अपेक्षाएँ हो, किसी दल के प्रति निष्ठा, प्राथमिकता, राजनीतिक भावनाएँ चुनाव संचालन एवं परिणाम को प्रभावित न करे। सरकार का गठन उसकी पसंद के अनुरूप न होने पर भी सरकार के प्रति उसे निष्ठापूर्ण एवं सहयोगपूर्ण आचरण करना चाहिए। उसे व्यक्त भावनाओं एवं पार्टी लाइन से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। क्योंकि नौकरशाही स्थायी कार्यपालिका होती है। राजनीतिक सत्ता के बदलने के बाद भी वे अपनी जगह पर कार्य करते रहते हैं। इसीलिए एक सिविल सेवक को समस्त गतिविधियों से बाहर रहना चाहिए जिससे यह प्रतीत नहीं हो रहा हो कि वह किसी खास दल, विचारधारा या हित समूह का पक्ष ले रहा है। नीतिगत मामलों में भी सिविल सेवक से यह अपेक्षा होती है कि वह उन्हें पूरी ईमानदारी से पालन करे भले ही वह सरकारी नीति उस सिविल सेवक के विश्वास एवं प्राथमिकताओं के खिलाफ हो। उनके द्वारा राजनीतिक कार्यपालिका को निष्पक्ष और सही सलाह देनी चाहिए। किंतु असमर्थकवादी सिविल सेवा की संकल्पना तभी पूरी हो सकती है जब उसे नकारात्मक राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षित किया जाए, जैसे उत्तरप्रदेश में दुर्गा नागपाल के विवाद में उन्हें नकारात्मक राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कठिनाइयां उठानी पड़ी जबकि उनका कर्त्तव्य, कार्य विधिसम्मत और सार्वजनिक हित के अनुकूल था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय लोकसेवा का बड़े पैमाने पर राजनीतिकरण हुआ है। सत्ताधारी राजनीतिज्ञों द्वारा प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है। राजनीतिज्ञों को अपने व्यक्तिगत लक्ष्य हासिल करने के लिए अधिकारियों के पूरे सहयोग की आवश्यकता होती है। नौकरशाही पर अपने आदेश मनवाने के लिए तबादले, निलंबन, पोस्टिंग जैसे हथियार हैं। इन्हीं के इस्तेमाल से वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि अधिकारी इस तरीके से कार्य करें कि राजनीतिक वर्ग को निजी हित साधने में कोई अड़चन न आए। जिससे शासन की गुणवता में गिरावट आई है। राजनेताओं और नौकरशाही के निहित स्वार्था ने परस्पर एक-दूसरे के प्रष्टाचार का ढकने का भी प्रयास किया है। इन सबके सामने प्राचार एवं घोटालों में तेजी आयी। भारत में प्रायः यह देखा जाता है कि सरकार में परिवर्तन होते ही व्यापक प्रशासनिक फेरबदल ही जाता हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप से नौकरशाही के संरक्षण हेतु कई सिफारियों मिलती है, जो इस प्रकार हैं-
1. कोई नेता किसी अधिकारी को मौखिक रूप से
आदेश नहीं देगा। उन्हें प्रत्येक आदेश लिखित में देना होगा।
2.
IAS, IPS के
खिलाफ कार्यवाही का फैसला केन्द्र राज्य संयुक्त स्तर पर करेगी। 3. अधिकारियों का कार्य फिक्स होगा, राज्य सरकार यदि स्थानान्तरण अचानक
करती है तो लिखित में कारण बताना होगा।
4.
IAS, IPS अधिकारियों
की ट्रांसफर और पोस्टिंग में राजनीतिक दखलंदाजी को रोकने के लिए केन्द्र सरकार कम
से कम दो साल की अवधि सुनिश्चित करती है।
5. सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि बार-बार तबादला सुशासन के लिए हानिकारक हैं।
6. यदि राज्य सरकार इस संवर्ग अधिकारियों
को दो वर्ष से पूर्व हटाना चाहती है तो इस पर सिविल सेवा वोर्ड फैसला करेगा।
7. निलंबन से पहले अधिकारी को कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए और तय सीमा के भीतर उनसे स्पष्टीकरण माँगा जाना चाहिए।
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