शिक्षा और दर्शन-शिक्षा का अर्थ ,परिभाषा, कार्य |Philosophy of education in Hindi
शिक्षा और दर्शन (Philosophy of education in Hindi)
शिक्षा का अर्थ : Meaning of Education
- शिक्षा की परिभाषा विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार से की गई है। ये परिभाषाएँ उनके प्रतिपादकों के व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर आधारित है। अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा शिक्षा के अलग-अलग अर्थ लगाये जाते है। ऐसी दशा में यह अत्यंत कठिन है कि हम शिक्षा की कोई एक विशिष्ट परिभाषा दे सके या, 'शिक्षा' शब्द को कोई निश्चित अर्थ दे सके।
- शिक्षा का अंग्रेजी प्रयोग एजूकेशन, लेटिन भाषा के एजूकेटम (Educatum) या एजुकेयर (Educare) से निकला है। शिक्षा शब्द संस्कृत की 'शिक्ष', धातु से बना है जिसका अर्थ सीखना है और सिखाना है।
- हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के अर्थों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास किया जाता है।
शिक्षा की परिभाषा (Definition of Education):
1. महात्मा गाधी के अनुसार शिक्षा की परिभाषा :
शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जो बालक एवं मनुष्य के शरीर, मन एवं आत्या के सर्वोत्कृष्ट रूपों को प्रस्फुटित कर दे।
2. काण्ट के अनुसार शिक्षा की परिभाषा :
व्यक्ति की उस पूर्णता का विकास, जिस पर वह पहुँचा
सकता है उसे शिक्षा कहते हैं।
3. स्वामी विवेकानंद के अनुसार शिक्षा की परिभाषा:
व्याक्ति के अंदर निहित पूर्णता का उद्घाटन ही शिक्षा है।
4. अरस्तु के अनुसार शिक्षा की परिभाषा
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क की रचना ही शिक्षा है।
उपयुक्त परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा एक प्रक्रिया हैं। इसमें बालक के सर्वागीण विकास का भाव निहित हैं।
शिक्षा के कार्य :
शिक्षा के निम्नलिखित कार्य महत्वपूर्ण माने गये हैं।
1. व्यक्तित्व का संतुलित विकास
2. अर्न्तनिहित शक्तियों का विकास
3. व्यस्क जीवन की तैयारी
4. अच्छे नागरिक का निर्माण
5. चरित्र निर्माण
6. राजनीतिक सुरक्षा
7. सामाजिक भावना का
विकास
शिक्षा के विभिन्न रूप :
1. औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा
बालक चार दिवारी की अपेक्षा उन्मुक्त वातावरण से अधिक अनुभव
अर्जित करता है। शाला मे छात्र सीमित समय तक ही रहता है और कम शिक्षण प्राप्त करता
है। वह विद्यालय से बाहर अधिक शिक्षण प्राप्त करता है। अनौपचारिक अभिकरणों द्वारा
प्राप्त की हुई शिक्षा प्रायः स्थायी होती है। इसका समय व स्थान निश्चित नही होता
है। इसके न तो कोई उद्देश्य होते है और न ही कोई व्यवस्था होती है। इसके अंर्तगत
परिवार समाज तथा समुदाय आता है।
शिक्षा के
औपचारिक साधन मे जानबूझकर एव सोच विचारकर निश्चित समय पर निश्चित पाठ्यक्रम व
उद्देश्य की शिक्षा प्रदान करना है।
2. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शिक्षा :
प्रत्यक्ष शिक्षा से तात्पर्य शिक्षक व छात्र के मध्य सीधे
सम्पर्क से है। किंतु अप्रत्यक्ष शिक्षा मे सीधा सम्पर्क नहीं होता है।
3. वैयक्तिक एवं सामूहिक शिक्षा :
एक अध्यापक द्वारा एक ही बालक को शिक्षा देना वैयक्तिक शिक्षा कहलाती
है। किन्तु एक अध्यापक द्वारा समूह को एक साथ शिक्षा देना सामूहिक शिक्षा है।
4. सामान्य और विशिष्ट शिक्षा
सामान्य जीवन के लिये दी जाने वाली शिक्षा सामान्य शिक्षा कहलाती है जबकि किसी निश्चित व्यवसाय को ध्यान में रखकर दी जाने वाली शिक्षा विशिष्ट शिक्षा कहलाती है।
शिक्षा के स्रोत : ( Sources of Education)
शिक्षा के अनेक
स्रोत है जिनमें से चार प्रमुख स्रोत है ये निम्नलिखित है।
1. परिवार :
बालक की प्रारंभिक पाठशाला उसका परिवार होता है। यही पर उसे संस्कार दिये जाते है। बालक के संतुलित व्यक्तित्व विकास के लिये घर का वातावरण संतुलित होना अति आवश्यक है।
2. पाठशाला
घर के पश्चात् बालक की दूसरी पाठशाला उसका विद्यालय है। बालक विद्यालय में अपने व्यक्तिव्व का विकास करता है .
3. समाज :
बालक के आसपास का वातावरण उसका तीसरा विद्यालय है। वह समाज में अन्य व्यक्तियों के सम्पक्र मे आकार अनेक गातिविधियाँ सीखता है।
4 राज्य
शिक्षा का अन्य महत्वपूर्ण साधन राज्य है जो अपने नागरिकों को शिक्षित करता है वह नागरिकों में राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदि भावना के विकास के लिये कार्यक्रम व योजनाएँ तैयार करता है।
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