शिक्षा और दर्शन का संबंध |Relationship between education and philosophy
शिक्षा और दर्शन का संबंध : (Education and philosophy)
शिक्षा और दर्शन का संबंध
- शिक्षा और दर्शन मे घनिष्ठ सम्बंध हैं। क्योकि शिक्षा के निश्चित उद्देश्य होते है। और उद्देश्य दर्शन की सहायता से विकसित किये जाते है। दर्शन का कार्य निहित सत्य पर प्रकाश डालना है। सत्य का ज्ञान हो जाने पर व्यक्ति समस्या को हल कर लेता है। लेकिन शिक्षा के अभाव में व्यक्ति दर्शन को नही समझ पाता है। दर्शन में ऐसी समस्याओं पर प्रकाश डाला जाता है जो जीवन का आधार है। जैसे संसार क्या है? व्यक्ति क्या है? ईश्वर क्या है? आदि। इसी प्रकार शिक्षा का दर्शन शिक्षा संबंधी अंतिम प्रश्नों का उत्तर ढूँढता है। शिक्षा का दर्शन ऐसे प्रश्नों से संबंधित है जैसे शिक्षा क्या है? इसके उद्देश्य क्या हैं? आदि। दर्शन मानव की, समाज की तथा संसार की प्रकृति के संबंध मे सिद्धान्तों को स्थापित करता है। शिक्षा दर्शन इस प्रकार के स्थापित सिद्धान्तो का प्रयोग शिक्षा संबंधी महत्वपूर्ण समास्याओं के हल में करता है जैसे मानव की प्रकृति संबंधी सिद्धान्तो का प्रयोग शिक्षा की रूप रेखा निर्धारित करने में किया जाता है। इस प्रकार हम देखते है कि दर्शन में विचारों की प्रधानता है और शिक्षा मे कार्य प्रणाली की। यदि दर्शन साध्य है तो शिक्षा साधन है।
1. शैक्षिक सिद्धान्त:
प्रत्येक जीवन दर्शन एक निश्चित विश्वास पर आधारित होता है। यदि विश्वास जीवन के लिये उपयोगी है तो उसका शैक्षिक महत्व अवश्य होना चाहिए। अतः दर्शन को शिक्षा से अलग नही किया जा सकता है।
2. दर्शन द्वारा जीवन में शिक्षा के महत्व की खोज
दर्शन हमारे शैक्षिक अनुभवों को उसी रूप में स्वीकार करता है, जिस रूप मे वे होते हैं। यह जीवन में शिक्षा के महत्व की खोज करता है। उसी प्रकार शिक्षा का भी दर्शन है। जिस प्रकार दर्शन के तथ्य है, उसी प्रकार शिक्षा के भी तथ्य हैं। इन सभी तथ्यों का हमारे जीवन से घनिष्ठ संबंध है।
3. दर्शन व शिक्षा :
शिक्षा और दर्शन का संबंध अत्यंत घनिष्ठ हैं। क्योंकि दर्शन और शिक्षा एक सिक्के के दो पहलुओं के समान है एक मे दुसरा समाहित है शिक्षा जीवन का क्रियात्मक पक्ष है एवं दर्शन इसका विचारात्मक पक्ष है।
4. दर्शन और शिक्षा की पारस्परिक निर्भरता :
दर्शन व शिक्षा मे घनिष्ट सम्बंध होने के साथ-साथ पारस्परिक निर्भरता भी पायी जाती है। दर्शन शिक्षा को प्रभावित करता है और शिक्षा दार्शनिक दृष्टिकोण पर नियंत्रण रखती है। इसी कारण से विश्व के सभी महान शिक्षा शास्त्री महान दार्शनिक हुए हैं।
फिक्टे ने कहा है कि दर्शन शास्त्र की सहायता के बिना शिक्षा पूर्णता और स्पष्टता को प्राप्त नहीं कर सकती ।
पोर्टरिज के अनुसार जिस प्रकार शिक्षा दर्शन पर आधारित है, उसी प्रकार दर्शन शिक्षा पर आधारित है।
अर्थात् शिक्षा के उद्देश्य, पठन विधियाँ, अनुशासन बालक का स्थान, अध्यापक का स्थान आदि का निर्धारिण उस समाज में विद्यमान दर्शन द्वारा होता हैं। उसी प्रकार शिक्षा भी विद्यमान दर्शन को परिवर्तित करने में अपनी भूमिका अदा करती है।
दर्शन शास्त्र व शिक्षा के संबंध की चर्चा जेण्टाइल ने दूसरे दृष्टिकोण से की है। उसके अनुसार “दर्शन की सहायता के बिना शिक्षा सही मार्ग का अनुगमन नही कर सकती है।
5. सभी दार्शनिक शिक्षक भी हुये :
प्राचीन काल से ही सुकरात, प्लेटो अरस्तू जैसे दार्शनिक एवम् शिक्षक थे। आधुनिक काल मे पाश्चात्य शिक्षा शास्त्री रूसो, स्पेन्सर, डीवी और भारत मे गाँधी, टेगोर, विवेकनन्द भी दार्शनिक थे।
6. दर्शन शिक्षा का मार्ग दर्शक है :
दर्शन ने शिक्षा के उदृश्यो, पाठ्यक्रम शिक्षण विधियो, आदि के अपनाने दर्शन का प्रमुख योगदान है।
7. दर्शन वह शिक्षा के उद्देश्य :
दर्शन काल परिस्थितियों के अनुकूल ही शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करता है जैसे स्वतन्त्र भारत मे शैक्षिक उद्देश्य लोकतन्त्रात्मक शासन के अनुकूल विकसित है।
8. दर्शन और अनुशासन :
अनुशासक के तीन रूप बताये गये है दमनात्मक अनुशासन, प्रभावात्मक अनुशासन, मुक्तात्मक अनुशासन अनुशासन के तीनो रूप प्रभाववादी दर्शन या भुक्तवादी दर्शन से प्रभावित हैं।
इस प्रकार हम देखते है कि शिक्षा और दर्शन मे घनिष्ठ सम्बन्ध है अर्थात् दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू है जो एक ही वस्तु के दो दृष्टिकोण व्यक्त करते हैं और दोनो एवं दूसरे पर निर्भर हैं।
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