महात्मा गाँधी के शिक्षा सम्बंधी विचार | महात्मा गाँधी का शिक्षा दर्शन |Thoughts on education of Mahatma Gandhi
महात्मा गाँधी के शिक्षा सम्बंधी विचार Thoughts on education of Mahatma Gandhi
महात्मा गाँधी जीवन परिचय :
महान् स्वतंत्रता सेनानी अहिंसा के पुजारी शिक्षा शास्त्री एवं दार्शनिक राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। उनके पति राज्य के दीवान थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। जो एक अत्यंत धार्मिक महिला थी। 13 वर्ष की आयु में मोहनदास का विवाह कस्तूरबा से हुआ।
गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुयी। जब गाँधी जी सात वर्ष के थे तब उनके पिता दीवान होकर राजकोट गये। उनको वहाँएक पाठशाला में दाखिल कराया गया। गाँधीजी का प्रारम्भ से ही माता-पिता की सेवा में मन लगता था। विद्यालय समय में उन्होंने 'श्रवण पितृ-भक्ति' नाटक पढ़ा एवं सत्यवादी हरिश्चन्द्र नाटक देखा जिसके फलस्वरूप उनके मन-मस्तिष्क पर सत्य का बीजारोपण सम्पूर्ण जीवन के लिये हो गया।
सन् 1885 ई. में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और श्यामलदास कॉलेज, भावनगर में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रवेश लिया। कॉलेज की शिक्षा में मन न लगने के कारण उन्होंने बैरिस्टरी की शिक्षा प्राप्त करने के लिये इंग्लैण्ड को प्रस्थान किया। 1891 ई. में बैरिस्टरी पास करके भारत आये एवं दक्षिण अफ्रीका वकालत करने गये सन् 1893 में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका गये। वहाँ पर उन्होंन भारतीयों की दशा सुधारने के लिये आन्दोलन चलाया। गाँधीजी ने यही सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया। गाँधीजी ने यहाँ टॉलस्टाय आश्रम की स्थापना की। गाँधीजी सन् 1914 ई. में पुनः भारत आये। यहाँ आकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े एवं स्वतंत्रता आन्दोलन को एक नया रूप दिया। उनके नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की।
महात्मा गाँधी का जीवन दर्शन :
गाँधी जी जीवन दर्शन जैसा उदाहरण मानव जाति के इतिहास में दूसरा नहीं मिलता है। इनके जीवन में हमें चार महत्वपूर्ण तत्व मिलते हैं।
1. सत्य :
गाँधी जी के सिद्धांतों में 'सत्य' सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत है। इसमें अनेक सिद्धांत निहित है। गाँधी जी का सम्पूर्ण जीवन सत्य के लिये एक प्रयोग है। गाँधीजी का सत्य पूर्ण सत्य है उनके अनुसार सत्य व ईश्वर एक ही बात है। विचार में सत्य, भाषण में सत्य और कार्य में सत्य होना चाहिए यदि उनका दर्शन था।
2. अहिंसा:
महात्मा गाँधी ने अहिंसा के साथ विभिन्न प्रयोग किये एवं अहिंसा के बल पर भारत को स्वतंत्रता दिलवायी उनका अहिंसा से सम्बन्धित एक ही सिद्धांत था कि “यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर चाँटा मारे तो उसके सामने अपना दूसरा गाल भी कर दो। "
3. निर्भयता :
निर्भयता को व्यापक अर्थ देते हुये गाँधीजी ने लिखा है- निर्भयता का अर्थ है समस्त बाध्य भय से मुक्ति, जैसे बीमारी का भय, प्रतिष्ठा खोने का भय, शारीरिक चोट का भय, मृत्यु का भय इत्यादि।
4. सत्याग्रह
सत्याग्रह से गाँधी जी का तात्पर्य सत्यबल का अवलंबन था। उन्होंने इसे आत्मबल से भी पुकारा था। वे अपने विरोधी पर बल प्रयोग की आज्ञा नहीं देते थे बल्कि धैर्य और सहानुभूति पूर्वक ढंग से उसे गलत मार्ग से हटाना चाहते थे।
महात्मा गाँधी का शिक्षा दर्शन :
गाँधीजी ने शिक्षा सम्बंधी विचारों ने भारतीय शिक्षा प्रणाली पर बहुत प्रभाव डाला है। उनका शिक्षा दर्शन भारतीय आदर्शवाद और पाश्चात्य प्रयोजनवाद तथा प्रकृतिवाद का सम्मिश्रण था। गाँधीजी राजनेता थे किंतु उनकी राजनीति में नैतिकता का प्रभुत्व था। वह सत्य व अहिंसा के पुजारी थे।
गाँधीजी बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल देते हैं। वह परम्परागत पाठ्य पुस्तकों, पठन विधि इत्यादि के विरुद्ध हैं। वह ऐसी शिक्षा के विरुद्ध है जो ग्रामीण युवकों को खींचकर शहरों की तरफ लायें। वह दस्तकारी पर बाल देते हैं। वह दस्तकारी केन्द्रित शिक्षा पर बल देते हैं किन्तु वह बाल केन्द्रित भी है। जिसका उद्देश्य बालक का विकास है।
गाँधी जी के विचारों से निम्नलिखित बातें स्पष्ट हैं-
1. परम्परागत शिक्षा का विरोध
2. केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा से छुटकारा।
3. प्राकृतिक सुन्दरताओं की अनुभूति शिक्षा में महत्वपूर्ण समझना।
4. बाल केन्द्रित शिक्षा
5. कार्य करके सीखने पर बल
6. दमनात्मक अनुशासन का विरोध
7. सादा जीवन उच्च विचार को महत्व
गाँधी जी के अनुसार शिक्षा का अर्थ:
शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुये लिखा “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उन सर्वश्रेष्ठ गुणों का प्रकटीकरण है जो बालक और मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में विद्यालय है। उनके अनुसार उनका कहना है "सच्ची शिक्षा वही है जो बालकों की आध्यात्मिक मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों को अभिव्यक्त एवं प्रोत्साहित करें।
गाँधी जी के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य :
गाँधी जी ने शिक्षा के उद्देश्यों को दो भागों में विकसित किया है- तात्कालिक और अंतिम
क. तात्कालिक उद्देश्य :
1. गाँधी जी के अनुसार बालक को बड़े होने पर जीविका उर्पाजन करने के योग्य बनाना।
2. बालक को पवित्रता प्रदान करके उसके चरित्र का निर्माण करना।
3. बालक को अपने व्यवहार में अपनी संस्कृति को व्यक्त करने का प्रशिक्षण देना।
4. बालक की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करके उसके व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास करना।
5. व्यक्ति को सब प्रकार की दासता से मुक्त करके उसकी आत्मा को उच्चतर जीवन की ओर ले जाना।
ख. अंतिम उद्देश्य :
गाँधी जी ने शिक्षा के अन्तिम उद्देश्य को इन शब्दों में व्यक्त किया है। “अन्तिम वास्तविकता का अनुभव, ईश्वर और आत्मानुभूति का ज्ञान है। "
गाँधी जी के अनुसार पाठ्यक्रम :
गाँधी जी ने अपने बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्नांकित विषयों का स्थान दिया है।
1. आधारभूत शिल्प: कृषि, कताई, बुनाई, धातु का काम, लकड़ी का काम आदि।
2. मातृ भाषा, राष्ट्रभाषा
3. गणित
4. सामान्य विज्ञान जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, शरीर विज्ञान आदि।
5. कला ड्राइंग और संगीत
6. सामाजिक अध्ययन इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र
7. हिन्दी : जहाँ यह मातृभाषा न हो।
8. शारीरिक शिक्षा : खेलकूद व व्यायाम
गाँधी जी के अनुसार शिक्षण विधियाँ :
गाँधी जी ने शिक्षण के लिये रचनात्मक विधि, संगीत विधि, मौखिक विधि, सह सम्बंध विधि, क्रिया विधि, अनुकरण विधि, स्वाध्याय विधि को अपनाने पर बल दिया। इनके अतिरिक्त श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन की आवश्यकता के प्रयोग पर बल दिया।
शिक्षक, शिक्षार्थी, विद्यालय :
उनके अनुसार शिक्षक को सत्य, अहिंसा, प्रेम न्याय, सहानुभूति एवं श्रम का पुजारी होना चाहिए। उसे चरित्रवान, कत्वर्यनिष्ठ धार्मिक, संयमी विषय का पूर्ण ज्ञाता जिज्ञासू होना चाहिए तभी वह छात्रों का आदर्श स्वयं अनुकरणीय हो सकता है।
गाँधी जी भी बाल केन्द्रित शिक्षा के समर्थक थे इसलिये उन्होंने शिक्षकों को बाल मनोविज्ञान के पूर्ण ज्ञाता होने की अपेक्षा की। वे छात्रों को विद्या अध्ययन के लिए तो कहते ही हैं साथ में चरित्रवान बनाने का सुझाव देते हैं।
उनके अनुसार विद्यालय शहरों एवं गाँवों दोनों ही स्थानों पर खोले जाये और उन्हें सामाजिक केन्द्र के रूप में स्वीकार किया। विद्यालय राज्य की ओर खोले जाय लेकिन उनमें समाज का योगदान होना चाहिए।
शिक्षा में गाँधी जी का योगदान :
गाँधी जी का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि उनके द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा आज भी भारत में प्रचलित है। उन्होंने हाथ, हृदय और मस्तिष्क को प्रशिक्षित करने की योजना विकसित थी। उन्होंने समाज को उन्नत बनाने के लिये सामाजिक वातावरण को शिक्षा का माध्यम बनाया।
शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये हस्त कौशलों पर आधारित पाठ्यचर्या का निर्माण किया। उन्होंने करके सीखने पर बल दिया। अध्यापक से यह अपेक्षा की बच्चों के साथ प्रेम एवं सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कर उनका मार्गदर्शन करें। इसके अतिरिक्त जन शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, स्त्री शिक्षा और धार्मिक शिक्षा के विषय में विचार व्यक्त किये। उनके शैक्षिक विचारों के सम्बंध में एम. एस. पटेल ने कहा कि “गाँधी जी का शिक्षा दर्शन योजना में प्रकृतिवादी, उद्देश्यों में आदर्शवाद और कार्य पद्धति में व्यावहारिकतावादी है। "
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