योग की उत्पत्ति, इतिहास व विकास | Yoga Origin History Development in Hindi

योग की उत्पत्तिइतिहास व विकास

योग की उत्पत्ति, इतिहास व विकास | Yoga Origin History Development in Hindi
 

योग की उत्पत्तिइतिहास व विकास

योग की उत्पत्ति के विषय में सही समय का अनुमान लगाना तो कठिन है लेकिन योग का प्रादुर्भाव हजारों वर्ष पहले हुआ है। योग विद्या में शिव को प्रथम योगी व आदि गुरू के रूप में और पार्वती को प्रथम शिष्या के रूप में माना जाता है। योग का उल्लेख सबसे प्राचीन वैदिक ग्रंथ ऋग्वेदयजुर्वेद और अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य दर्शनों में भी योग विस्तार से देखने को मिलता है। बौद्ध दर्शनजैनदर्शन आदि दर्शनों में भी योग के साक्ष्य मिलते हैं। प्रत्येक दर्शन की उपासना पद्धति में योग को एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। योग हमारे ऋषि-मुनियों की देन है। उन्होंने जो आत्म साक्षात्कार और अनुभव किया उसको उसी सुव्यवस्थित ढंग से प्रतिपादित किया है। यहआज के वैज्ञानिक युग में भीसर्वमान्य व लोकप्रिय है।

 

योग का इतिहास बहुत पुराना है। यह पुरातनकाल से ही चला आ रहा है। याज्ञवल्क्य स्मृति (12 / 5) में उल्लेख मिलता है कि-

 

'हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः" । 

अर्थात् - सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ही योग के प्रथम वक्ता हुए हैंऐसा महाभारत में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि -

 

"सांख्यस्य वक्ता कपिलः परमर्षि स उच्यते । 

हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्यः पुरातनः ।।" महाभारत 2/394/65


योग के संबंध में श्रीमद्भगवद्गीता में उल्लेख 

इस संदर्भ में यदिश्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय-4 को देखा जाय तो उसमें बड़ा ही सुन्दर उल्लेख मिलता है कि-

 

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । 

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।

 

श्रीभगवान् बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा थासूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा।

 

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । 

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ।।

 

हे परंतप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जानाकिन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्रायः हो गया

 

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः । 

भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं होतदुत्तमम् ।।

 

तू मेरा भक्त और प्रिय सखा हैइसलिए वही पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा हैक्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है अर्थात् गुप्त रखने योग्य विषय है। अर्जुन उवाच

 

अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः । 

कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।।

 

अर्जुन बोले- आपका जन्म तो अर्वाचीन अर्थात् अभी हाल का है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है अर्थात् कल्प के आदि में हो चुका थातब मैं इस बात को कैसे समझें कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था ।

 

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन। 

तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं तेत्थ परन्तप ।।

 

श्रीभगवान् बोले- हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत-से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानताकिन्तु मैं जानता हूँ।

 

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् । 

प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।

 

मैं अजन्मा और अविनाशीस्वरूप होते हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योग माया से प्रकट होता हूँ।

 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

 

हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती हैतब-तब ही मैं अपने रूपको रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ।

 

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । 

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।

 

साधु पुरुषों का उद्धार करने के लियेपापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं युग-युगमें प्रकट हुआ करता हूँ।

 

इससे यह स्पष्ट होता है कि योग पुरातन काल से ही चला आ रहा है। 


  • श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन के साथ ज्ञान योगभक्ति योगकर्म योग एवं राज योग पर वृहद् चर्चा की है । 


  • मार्शल (1931) ने अपनी पुस्तक 'Mohenjo-daro and the indus civilizations' में उल्लेख किया है कि मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा की खुदाई में जो अवशेष प्राप्त हुए हैं वे उस काल में प्रचलित योग साधना का संकेत करते हैं। आसन में बैठे पशुपति और ध्यानस्थ योगी की प्रतिमा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 

  • पॉल ब्रन्टन की पुस्तक 'गुप्त भारत की खोजमें उल्लेख है कि हिमालय के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले साधक आज भी योग साधनाओं में लीन है। स्वामी राम ने भी अपनी पुस्तक ‘Living with Himalayan Masters' में इस तरह योग पद्धतियों की विकासात्मक चर्चाएं की हैं।

 

  • इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि योग प्राचीनकाल से ही प्रचलित है।

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