आसन क्या होता है |सन एवं योग क्रियाओं में अंतर | Aasan Kya Hote Hain
आसन क्या होता है , योगासन
आसन क्या होता है
सबसे पहले हम यह जानते हैं कि आसन है क्या? महर्षि पतंजलि द्वारा योग दर्शन' में आसन की बहुत ही सरल व्याख्या की गई है।
स्थिर सुखमासनम् । (योग द०2/46)
अर्थात् निश्चल सुखपूर्वक
बैठने का नाम 'आसन' है ।
- कहने का तात्पर्य यह है
कि बिना हिले-डुले, स्थिरता के साथ, बिना किसी कष्ट के
सुखपूर्वक एक ही शारीरिक स्थिति में बने रहना ही 'आसन' है ।'
- यह स्थिति एकाग्रता के लिए नितांत आवश्यक है। यहां यह बात जानना आवश्यक है कि हमारी जितनी एकाग्रता बढ़ेगी, उतनी ही कार्यक्षमता और कार्य कुशलता बढ़ती जायेगी । अतः जितना शरीर दृढ़ एवं स्वस्थ होगा, आसन में उतनी ही स्थिरता अधिक होगी। योगमय स्थिति में आसन 'योगासन' कहलाता है।
- आज समाज में ऐसी भ्रान्तियाँ जन्म लेती जा रही हैं कि लोग कुछ आसन व प्राणायाम करके अपने आपको योगी मानने लगते हैं और उन्हें योगी समझ लिया जाता है। लेकिन जैसा कि पिछले यूनिट अष्टांग योग में भी आप जान चुके हैं कि योगासन तो योग का एक अंग है ।
- योगी बनने के लिए योग के प्रथम अंग - यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह) और द्वितीय अंग नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्राणिधान) का पालन करना अति आवश्यक है, इसके बाद ही अगले अंगों में जाना चाहिए।
आसन एवं योग क्रियाओं में अंतर
जैसा कि आपको स्पष्ट किया
जा चुका है कि यौगिक क्रियाएं आसन करने से पहले की प्रारंभिक क्रियाएं हैं ।
जिन्हें योग आसन करने से पूर्व किया जाता है। आइए, यहां समझते हैं कि आसन एवं योग क्रियाओं में
अंतर क्या है?
यौगिक क्रियाएं –
- ये स्थायी स्थिति न होकर लगातार करने की क्रियाएं हैं, जिन्हें अपनी रूचि, सामर्थ्य एवं क्षमता के अनुसार करना चाहिए। क्रियाओं में किसी एक अवस्था विशेष पर पहुंचने व रुकने का आग्रह नहीं होता अपितु अपनी क्षमतानुसार जितना हो सके, करना होता है।
- हठयोग की विचारधारा के अनुसार किसी भी विशेष मुद्रा व स्थिति एवं अवस्था में पहुंचना और निश्चित समय के लिए स्थिर होकर बिना कष्ट के रहना 'आसन' कहलाता है। इसमें अभ्यास करने वाले की स्थिति, रुचि, अवस्था, क्षमता को आधार ना बनाकर आसन तक पहुँचने एवं बने रहने पर बल दिया जाता है।
घेरण्ड ऋषि ने आसनों के बारे में लिखा है -
आसनानि समस्तानि यावन्तो जीव-जन्तवः ।
चतुरशीति लक्षानि शिवेनाभिहिलानि च ।।
तेषां मध्ये विशिष्टानि षोडशोनं शतं कृतम ।
तेषां मध्ये मर्त्यलोके द्वात्रिंशदासन शुभम ।।
अर्थात् संसार में जितने
जीवों की योनियां हैं उतने ही आसन हैं । जीवयोनियां 84 लाख मानी गई हैं अतः आसन
भी 84 लाख हैं । इनमें
84 आसन श्रेष्ठ माने गये
हैं। इनमें भी 32 आसन अति विशिष्ट
और अधिक शुभ समझने चाहिए।
योगासनों का महत्व एवं आवश्यकता
शारीरिक रूप से स्वस्थ
रहने के लिए शारीरिक क्रियाएं या व्यायाम आवश्यक है। जैसे टहलना, दौड़ना, तैरना, खेलना, साइकिल चलाना, आधुनिक समय में जिम जाना, आदि । लेकिन प्राचीनकाल
से ही योगासनों का अपना महत्व है, क्योंकि योगासनों का प्रभाव विशिष्ट रुप से शरीर के अंगों व
प्रत्यंगों पर सकारात्मक रुप से पड़ता है। जिससे अभ्यास करने वाला ना केवल शारीरिक
रूप से स्वस्थ रहता है बल्कि मानसिक व आध्यात्मिक रुप से भी स्वस्थ रहता है।
योगासन करने के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं-
- संपूर्ण शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।
- शरीर की अस्थिरता एवं आलस्य दूर होता है।
- शारीरिक थकावट कम होती है और मानसिक तनाव दूर होता है।
- योगासन शरीर को दिव्यता प्रदान करते हैं।
- योगासन शरीर में अंतःस्रावी ग्रंथियों को सुप्रभावित करते हैं, जिससे हारमोनल विकार दूर होते हैं।
- योगासन श्वास-प्रश्वास की क्रिया को नियमित करते हैं।
अतः आप जान गये होंगे कि
योगासनों से शारीरिक, मानसिक एवं
भावनात्मक संतुलन प्राप्त होता है और स्वस्थ रहने के लिए योगासन परम आवश्यक है।
गुरुपदिष्टमार्गेण योगमेव
समभ्यसेत् ।
अर्थात योग की सिद्धि गुरुकृपा और उपदिष्ट मार्ग से ही होती है। अतः योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि का अभ्यास योग गुरु के दिशानिर्देशन में ही किया जाना चाहिए।
Post a Comment