हठयोग अभ्यास के लाभ | अन्य यौगिक पथ एवं परम्पराएं| Benefits of Hat Yoga
हठयोग अभ्यास के लाभ (Benefits of Hat Yoga)
हठयोग अभ्यास के लाभ (Benefits of Hat Yoga)
हठयौगिक क्रियाओं के अभ्यास से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है। एक ओर जहां यह, उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य तथा मानसिक शांति देता है। वहीं दूसरी ओर बौद्धिक उन्नति तथा भावनात्मक संतुलन के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी देता है। शिक्षार्थियों इनका संक्षिप्त विवरण जानें
1. उत्तम शारीरिक स्वास्थ्य -
- यौगिक क्रियाओं के अभ्यास से शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
- प्रत्येक उम्र का व्यक्ति इसका अभ्यास कर सकता है।
- स्वस्थ्य लोगों को भविष्य में होने वोले रोगों से बचाता है तथा जो किसी कारणवश रोगी या कमजोर हैं, योग के अभ्यास से उन्हें रोग मुक्त करने में मदद करता है।
- षट्कर्म के अभ्यास से शरीर के विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में मदद मिलती है।
- अन्य यौगिक क्रियाओं के अभ्यास से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है।
2. मानसिक शांति –
- यौगिक क्रियाओं के नियमित अभ्यास से व्यक्ति सुख-दुख, राग-द्वेष, अच्छा-खराब के द्वन्द्वों से तो ऊपर उठ ही जाता है। साथ ही कामना, आसक्ति, भय लोभ, काम, क्रोध जैसे मानसिक विकारों पर विजय दिलाकर साधक को मुक्ति दिलाता है मन शांति तथा मन की एकाग्रता, भौतिक उन्नति के लिए भी उतने ही आवश्यक हैं जितना आध्यात्मिक उन्नति के लिए। योग के अभ्यास से साधक को ये सब सहज ही मिल जाते हैं।
3. भावनात्मक संतुलन -
- सामान्य मनुष्य ईर्ष्या, घृणा, शारीरिक प्रेम, वासना, अपमान तथा सम्मान की आग में निरन्तर जलता रहता है। योग के अभ्यास से साधक में, बुद्धि तथा विवेक जागृत होता है। वह संसार की असारता को समझने लगता है और आवश्यकता से अधिक वह संसार में उलझता नहीं है। इसलिए उसमें भावों का संतुलन बना रहता है।
4. आत्मिक उन्नति –
- इस संसार में योग ही एकमात्र ऐसा विज्ञान है। जो मनुष्य को बहुत कम समय में ही सर्वोच्च आध्यात्मिक उपलब्धि तक पहुंचा देता है। अन्य सारी विधाएं केवल सांसारिक ज्ञान कराती हैं, जबकि योग मनुष्य को संसार पर विजय प्राप्त कर सर्वोच्च सुख प्रदान करता है।
अन्य यौगिक पथ एवं परम्पराएं
योग साधना का एक ही लक्ष्य है कि मानव दिव्य जीवन जिये और आध्यात्मिक शिखर की सीढ़ियां चढ़ता चला जाए, जिससे जीवन के वास्तविक आनंद की प्राप्ति की जा सके। योग साधना के रहस्य को समझने के लिए निम्न प्रमुख परम्पराएं हैं-
1. हठयोग 2. अष्टांग योग 3. कर्मयोग 4. भक्ति योग 5. ज्ञान योग आदि । हठयोग के विषय में आप पढ़ चुके हैं। अब आप कुछ अन्य परम्पराओं के विषय में भी जानेंगे ।
1. अष्टांग योग
मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंगों का प्रतिपादन किया है, जो अष्टांग योग के नाम से लोकप्रिय है। इन्हीं आठ अंगों को राजयोग भी कहा जाता है।
महर्षि पतंजलि ने निम्न आठ अंग बताये हैं. -
1. यम (आत्म संयम )
2. नियम (आत्म शोधन)
3. आसन (शारीरिक मुद्राएं)
4. प्राणायाम ( श्वास-प्रश्वास का नियमन)
5. प्रत्याहार (इंद्रियों को उनके विषय से रोकना अर्थात अन्तर्मुख व आत्मोन्मुख करना)
6. धारणा (चित्त की एकाग्रता)
7. ध्यान (तल्लीनता)
8. समाधि (पूर्ण लक्ष्य मात्र में तन्मय हो जाना)
अष्टांग योग के विषय पर अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें ।
2. कर्म योग
- मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान जीवन है। कर्म के बिना जीवन शून्य अथवा निरर्थक कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में इस बात का बारम्बार उपदेश मिलता है कि हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। कर्म स्वभाव से ही सत्-असत् से मिश्रित होता हैं प्रत्येक कर्म अनिवार्य रूप से गुण-दोष से मिश्रित रहता है। परन्तु फिर भी शास्त्र हमें सतत सत् कर्म करते रहने का ही आदेश देते हैं।
- अच्छे और बुरे दोनों कर्मों का अपना अलग-अलग फल होता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा होगा और बुरे कर्मों का फल बुरा। परन्तु अच्छे और बुरे दोनों ही आत्मा के लिए बंधन रूप हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, यदि हम अपने कर्मों में आसक्त न हों, तो हमारी आत्मा किसी प्रकार के बंधन में नहीं फंसती इस प्रकार आसक्ति को त्याग कर, हानि-लाभ तथा यश-अपयश में समान भाव रखते हुए, ईश्वर को समर्पित होकर किए जाने वाले कर्म ही 'कर्मयोग' कहलाते हैं। कामना रहित कर्त्तव्य, कर्म के लिए कर्मयोग के स्थान पर, लोक में निष्काम कर्मयोग अधिक प्रचलित है। यह आत्म साक्षात्कार में विशेष सहायक माना गया है।
3. भक्ति योग
- भक्ति योग का अभिप्राय यह है कि सभी रूपों, सभी नामों और सभी अवस्थाओं में अपने प्रभु का या अपने परम् इष्ट का दर्शन करना । श्रद्धा और विश्वास भक्ति के दो प्रमुख तत्व हैं। ईश्वर में श्रद्धा, विश्वास होने के बाद ही उनका साक्षात्कार हो सकता है। ईश्वर से निष्काम भाव से ही प्रेम करने को 'विशुद्ध भक्ति' कहते हैं। मोह का अभाव हो जाने पर सांसारिक भोग अच्छे नहीं लगते, उस समय भगवान की स्मृति अधिक समय तक बनी रहती है जिससे भक्त ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है। यही भक्ति योग की पराकाष्ठा है। योग की समस्त धाराओं में भक्ति योग श्रेष्ठतम है।
4. ज्ञान योग
- मन, इन्द्रियों तथा शरीर से होने वाली समस्त क्रियाओं में कर्ता भाव के अभिमान से शून्य होकर, आत्मज्ञान से युक्त होकर सर्वव्यापी सच्चिदानन्दघन परमात्मा में एक ही भाव से स्थित होने का नाम ज्ञान योग हैं इसी को श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म संन्यास योग भी कहते हैं इस योग में योगी अपनी आत्मा का अवलोकन करते हुए परम सन्तुष्ट रहता है।
- ज्ञान योग तथा कर्मयोग साधन शैली में भिन्न होते हुए भी परमात्मा की प्राप्ति में एक ही हैं। दोनों ही परम कल्याण कारक हैं।
- ज्ञान के प्रकाश में अज्ञान रूपी अहंकार नष्ट हो जाता है। अज्ञान से 'कामना - इच्छा और कामना से कर्म उत्पन्न होते हैं । ज्ञान योग साधना के द्वारा अज्ञान के नष्ट हो जाने पर, कर्म स्वतः समाप्त हो जाते हैं। संपूर्ण कर्मों की समाप्ति ज्ञान में ही होती है।
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