ध्यान साधना की अभ्यास विधि | Dhyan Saadhna Ki Abhyaas Vidhi
ध्यान साधना की अभ्यास विधि
ध्यान साधना की अभ्यास विधि
प्रथम अभ्यास
इस अवस्था में अपनी एकाग्रता को बाहरी जगत से खींचकर मन के कार्यकलापों पर केन्द्रित किया जाता है। हम देखते हैं कि हमारा मन क्या सोचता है और अवचेतन में से उठने वाले विचारों तथा दृश्यों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया कैसी है? इसके अभ्यास से भय तथा तनाव दूर होते हैं। हम भूतकाल के अनुभवों से मुक्त हो जाते हैं तथा दमित इच्छाओं के विस्फोट को देखते हैं। इस अभ्यास को तब तक करना चाहिए जब तक आपका मन पर्याप्त रूप से शांत तथा परेशानियों से मुक्त नहीं हो जाता।
द्वितीय अभ्यास
इस अवस्था में मन में अपने आप उठने वाले विचारों को देखते हैं। जो विचार अधिक शक्तिशाली होते हैं, उनका विश्लेषण किया जाता है और फिर उन्हें हटा दिया जाता है। इस अभ्यास में व्यक्ति को स्वतः उठने वाली विचार तरंगों की प्रक्रिया के प्रति सजग रहना चाहिए। स्वेच्छा पूर्वक महत्वपूर्ण विचारों को सामने लाकर देखना तथा हटाना चाहिए । यदि आप इस अभ्यास को सफलतापूर्वक कर लेंगे तो आपका मन अवचेतन की अतल गहराइयों में उतरने में सक्षम होगा।
तृतीय अभ्यास
इस अभ्यास में मन पर्याप्त रूप से शांत होना चाहिए। विचार तो इस अवस्था में भी उठेंगे परन्तु वे इतने सशक्त नहीं होंगे कि आपके भीतर भावनात्मक उथल-पुथल उत्पन्न कर सकें। इस अवस्था में उठने वाले विचारों को दबाना उचित नहीं है। इस अभ्यास से आपका मन निर्विचार तथा प्रत्याहार की अवस्था में पहुँच सकता है।
चतुर्थ अभ्यास
अन्तर्मोन का अभ्यास पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन अथवा शवासन में किया जाता है। इसे आराम से कुर्सी पर बैठकर या लेटकर भी कर सकते हैं। अन्तर्मौन के प्रारंभिक अभ्यास कहीं भी और कभी भी किए जा सकते हैं। अरुचिकर वातावरण में तथा कोलाहल के बीच मन को शान्त तथा स्थिर रखने के लिए अन्तर्मोन का अभ्यास किया जा सकता है।
अन्तर्मोन साधना का आदर्श समय रात्रि में सोने से पूर्व अथवा प्रातःकाल है।
Post a Comment