ध्यान साधना क्या है? मंत्र, मंत्र शिक्षा | जप विधि , अजपा साधना क्या है | Dhyan Saadhna Kya Hai

ध्यान साधना क्या है? मंत्र, मंत्र शिक्षा ,जप विधि , अजपा साधना क्या है 

ध्यान साधना क्या है? मंत्र, मंत्र शिक्षा | जप विधि , अजपा साधना क्या है  | Dhyan Saadhna Kya Hai



ध्यान साधना

 

  • आज समाज में लोग योग की ओर विशेष रूप से आकर्षित हो रहे हैं। अधिकांशतः लोग आसन, प्राणायाम और ध्यान को ही योग समझ बैठते हैं । आप तो निश्चित रूप से समझ चुके होंगे कि ये तो योग के मात्र कुछ अंग हैं सम्पूर्ण योग नहीं ।

 

  • यहाँ यह जानना अति आवश्यक है कि जैसा लोग सीधे ध्यान साधना का अभ्यास करने की बात करते हैं या ध्यान साधना में जाना चाहते हैं, यह उचित नहीं है, क्योंकि महार्षि पतंजलि ने अष्टांग योग में स्पष्ट रूप से आठों अंगों की व्याख्या की है, जिसमें ध्यान को सातवें स्थान पर रखा गया है। ध्यान के पश्चात् समाधि की स्थिति आती है ।

 

ध्यान साधना क्या है?

 

आइए इस पर विचार करते हैं । ध्यान-साधना भारतीय आध्यात्म का विशेष वैज्ञानिक पहलू है जिससे साधक अपने अंदर विद्यमान सूक्ष्म रहस्यों को जान सकता है। यह सब कुछ मन की शक्तियों से सम्पन्न हो सकता है। मन की शक्तियों को अपने जीवन में उजागर करने के लिए जिस प्रक्रिया को अपनाते हैं, वही ध्यान-साधना है। 'ध्यान की निर्विकार अवस्था है।' ध्यान मन की शक्तियों को नष्ट होने से बचाता है। परेशान व अशान्त मन को शांत करता है। मन की एकाग्रता बढ़ाता है। ध्यान सबके लिए समान रूप से उपयोगी है।

 

आइए, ध्यान साधना के निम्न पहलुओं को समझते हैं:

 

1 मंत्र

 

मंत्र विज्ञान बहुत प्राचीन है। मंत्रों का उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों एवं वेदों में मिलता है। मंत्र का शाब्दिक अर्थ है - 'प्रकट ध्वनि' । प्राचीन ग्रंथों के अनुसार मंत्र का अर्थ ध्वनि अथवा अनेक ध्वनियों का मेल होता है। ये ध्वनियाँ हमारे मंत्रद्रष्टा ऋषियों को गहन ध्यान की अवस्था में सुनाई पड़ी थीं। मंत्र की शक्ति शब्दों में नहीं बल्कि उनकी ध्वनि तरंगों में छिपी रहती है। यह ध्वनि तरंगें मंत्रोच्चार के साथ अथवा जब मंत्र मन में आकार धारण करता है, उस समय उत्पन्न होती है।

 

व्यक्ति तथा उसकी आत्मा के बीच मंत्र एक प्रतिध्वनि उत्पन्न करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति में निहित ब्रह्माण्डीय शक्ति तथा ज्ञान के स्रोत जागृत होते हैं। मंत्र की ध्वनि साधक के मन तथा आत्मा पर एक निश्चित प्रभाव छोड़ती है। प्रत्येक मंत्र साधक के भीतर एक विशिष्ट प्रतीक का निर्माण करता है।

 

जिस प्रकार आपका व्यक्तित्व आपकी बाह्य अभिव्यक्ति होती है, उसी प्रकार मंत्र भी आपके आंतरिक व्यक्तित्व का परिचायक होता है। मंत्र के द्वारा ही हम अपने यथार्थ अतीन्द्रिय व्यक्तित्व को पा सकते हैं।

 

विभिन्न धर्मों में मंत्र विधान

 

विभिन्न धर्मों, भाषाओं तथा संस्कृतियों में हजारों मंत्रों का उल्लेख मिलता है। धर्मों की प्राचीनता तथा उपासना विधान के अनुकूल मंत्रों में शक्ति विद्यमान रहती है। इसी शक्ति को साधक, मंत्र जप साधना से प्राप्त करता है और स्वयं शक्ति संपन्न बन जाता है। हिंदू, बौद्ध, इस्लाम, सिख, ईसाई तथा पारसी आदि धर्मों में मंत्र पाए जाते हैं। कहीं-कहीं नाम सुमिरन से ही साधक शक्ति संपन्न बनता है। सभी धर्मों में मंत्र जप के अपने-अपने तौर-तरीके होते हैं; उन्हीं के अनुसार साधक को मंत्र साधना करनी चाहिए। मंत्र का अनुवाद नहीं हो सकता। यदि आप मंत्र के ध्वनि क्रम को अनुवाद द्वारा उलट-पलट दें तो मंत्र, मंत्र नहीं रह जाता। मंत्र के अनुवाद से भले ही आप सुंदर प्रार्थना बना लें परन्तु मंत्र का मौलिक स्वरूप समाप्त हो जाता है। जिस धर्म से मंत्र संबंधित है उसी धर्म की मान्यताओं के अनुसार ही मंत्र जप साधना करनी चाहिए इसी में साधक की भलाई है ।

 

मंत्र शिक्षा

 

परंपरानुसार मंत्र, गुरु, माता अथवा मंत्र की आंतरिक अभिव्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है। मंत्र कभी भी खरीदा या बेचा नहीं जाता। व्यक्तिगत मंत्र, गुरु या शिष्य के बीच दीक्षा के समय क्षणिक संपर्क द्वारा कभी भी प्रदान किया जा सकता है। शिष्यों के अनुसार दीक्षा प्रारूप गुरु अपनी योग्यतानुसार निश्चित करता है।

 

गुरु द्वारा दिया गया मंत्र निर्णायक होता है, अतः उसे असीम् श्रद्धा तथा विश्वासपूर्वक ग्रहण करना चाहिए। साधक का मन मंत्र द्वारा पूरी तरह प्रभावित होना चाहिए। चूंकि मंत्र पूर्णरूप

 

से व्यक्तिगत होता है अतएव उसे गुप्त रखना चाहिए। यदि आपका मंत्र गुप्त रहेगा तो वह बहुत शक्तिशाली होगा। यह बात जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी लागू होती है। धरती में कोई भी बीज बोने पर वह तभी अंकुरित होता है जब उसके ऊपर मिट्टी का एक आवरण होता है। यदि बीज को खुला छोड़ दिया जाए और उस पर सबकी दृष्टि पड़े तो वह कभी भी पौधा नहीं बन सकता।

 

जप विधि क्या होती है 

 

  • मंत्र का जप विभिन्न तरीकों से किया जाता है। 
  • श्वास की धारा के साथ मंत्र को जोड़कर - इसमें श्वास के आरोह-अवरोह की चेतना के साथ मंत्र को दोहराया जाता है। 
  • मंत्र माला के सहारे जपते हैं। 
  • विभिन्न सूक्ष्म पंथों में चेतना के साथ मंत्र को जपते हैं। कुछ लोग भूमध्य में चेतना को स्थिर कर मंत्र का जप करते हैं। 
  • मंत्र आरोग्य प्राप्ति का एक सशक्त साधन होता है।

 

शारीरिक व्याधियों के क्षेत्र में कई निश्चित प्रभावशाली मंत्र है । इस क्षेत्र में किसी विशेष बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उपयुक्त मंत्र किसी ऐसे विशिष्ट व्यक्ति से प्राप्त करने चाहिए जिसे मंत्र विद्या तथा रोगोपचार का अच्छा ज्ञान हो ।

 

मंत्र द्वारा शक्ति तथा नवजीवन की प्राप्ति का आधार उसकी ध्वनि, ध्वनि की आवृति, वेग तथा तापमान होता है। शिवजी का मंत्र वैराग्य की भावना को बढ़ाता है। आंतरिक आनंद तथा सांसारिक वस्तुओं के प्रति उदासीन की भावना में वृद्धि करता है।

 

'ऊँ' एक अत्यंत प्रचलित मंत्र है। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय अथवा स्थान पर बिना किसी रोक-टोक के इसका जप कर सकता है। ऊँ के जप से मनुष्य अंतर्मुखी होने लगता है। समत्व की भावना का विकास होता है।

 

2 अजपा साधना क्या है 

 

'अजपा जप' ध्यान का एक महत्वपूर्ण अभ्यास है जिसके द्वारा हम अपनी चेतना को विकसित तथा ग्रहणशील बना सकते हैं। अजपा जप (साधना) का दूसरा नाम 'स्वतः स्फूर्त चेतना' है, जिसका अर्थ अपने अंदर देखने से है।

 

जप में मंत्र का सतत स्मरण होता है, परन्तु जब बिना चेतन प्रयास के मंत्र का स्मरण मशीन की तरह चलता रहता है तो वह अजपा कहलाता है। ऐसा कहा जाता है कि अजपा जप हृदय से होता है जबकि जप मुख से होता है।

 

जो लोग बहुत अध्ययन तथा मानसिक कार्य करते हैं, वे ध्यान की इस विधि से बड़े लाभान्वित होते हैं, क्योंकि अजपा जप मानसिक श्रम तथा शारीरिक गतिविधियों के बीच स्वस्थ संतुलन स्थापित करता है। अध्ययन तथा मानसिक श्रम के कार्यों से मन अन्तर्मुखी होता है। अजपा साधना में व्यक्ति को अपनी मानसिकता के प्रति सचेत रहना पड़ता है।

 

अजपा साधना में अपनी सहज श्वास पर ध्यान देना चाहिए। आप प्रति मिनट 15 बार, प्रति घंटा 900 बार तथा चौबीस घंटों में 21600 बार श्वास लेते छोड़ते हैं, परन्तु इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के प्रति जो जीवन की कुंजी है, उससे आप सर्वथा बेखबर रहते हैं ।

 

अजपा जप के अभ्यास में साधक को श्वास के बदलते स्वरूपों को देखना होता है।

 

अजपा जप विधि

 

अजपा जप के अभ्यास की प्रारम्भिक अवस्था में श्वास को कंठ और नाभि के बीच देखते हैं। साधक प्राण शक्ति का प्रवाह मूल स्थान से भृकुटि (बिंदी का स्थान ) तथा भृकुटि से मूल स्थान के बीच अनुभव करता है। उच्च अभ्यास में श्वास सामान्य से कुछ अधिक लंबी तथा धीमी रहती है। अजपा जप में प्राण प्रवाह के साथ कोई मंत्र भी प्रयुक्त हो सकता है। कुछ 'सोहं' तथा कुछ 'ऊँ' नाद के रूप में सुनते हैं। किसी और मंत्र के रूप में भी इसे सुनते हैं । वास्तव में कोई भी मंत्र अजपा साधना में लिया जा सकता है । परन्तु 'सोहं' का व्यापक रूप से प्रयोग होता है, क्योंकि श्वास-प्रश्वास की ध्वनि का लय इससे मिलता-जुलता है। इसमें मंत्र को श्वास के साथ लयबद्ध किया जाता है। जब आप श्वास लेते हैं तो उसकी ध्वनि को ध्यानपूर्वक सुनें यह 'सो' जैसी होती है और श्वास छोड़ते समय जो ध्वनि होती है वह 'हं' जैसी लय में प्रतीत होती है। इस अभ्यास से शरीर की सभी नाड़ियाँ जिनसे प्राण शक्ति प्रवाहित होती है, वे शुद्ध होती हैं। इसमें थोड़ी कल्पना शक्ति लगाने की भी आवश्यकता है।

 

अजपा जप के लाभ

 

जब श्वास में मंत्र जागृत होता है तो उससे पूरा शरीर आवेशित हो जाता है। नाड़ियों में संचित विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं तथा मानसिक अवरोध दूर होते हैं।

 

जप की सघन अवस्था में जब 'सुषुम्ना' तरंगित होती है तो 'स्व' की चेतना गतिशील हो उठती है । जब इड़ा तरंगित होती है तो मन सक्रिय होता है और जब पिंगला तरंगित होती है तो प्राण शक्ति सक्रिय होती है तथा समूचे शरीर में ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है। यहां तक कि उसका प्रवाह भौतिक शरीर के बाहर भी होने लगता है. 

 

अजपा साधना में कुशलता प्राप्ति से प्रत्याहार, धारणा तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है। अजपा साधना में पूर्णता प्राप्त होने पर संस्कार क्षय हो जाते हैं तथा मन पूरी तरह एकाग्र हो जाता है। यहीं से ध्यान योग प्रारंभ होता है।

 

3 अन्तर्मोन

 

अन्तर्मोन का अर्थ 'अंदर की शांति' से है। अन्तर्मोन योग का ही बुनियादी अभ्यास है। यह बौद्ध धर्म की साधना का प्रमुख अंग है। बौद्ध धर्म में इसे विपश्यना कहते हैं । अन्तर्मोन के अभ्यास से व्यक्ति अपना मानसिक प्रक्षालन कर सकता है। इसके बाद एकाग्रता की प्राप्ति सहज ढंग से हो सकती है।

 

यदि हम स्वस्थ व्यक्तित्व की कामना करते हैं तो हमें अपने मन का आदर करना होगा। हमारे विचार भले ही शुभ अथवा अशुभ हों, हमें उन्हें स्वीकार करना होगा। हमेशा ध्यान रखिए, जब भी आप अन्तर्मोन का अभ्यास करते हैं, मन को एकाग्र करने की कोशिश मत कीजिए। उसकी हरकतों को निरपेक्ष भाव से देखिए । मन के सोचने वाले हिस्से को देखिए, उस हिस्से को भी देखिए जो आपके विचारों को नकारता है। इसे मन का अवलोकन कहते हैं । यदि अभ्यास के मध्य कोई व्यक्ति आता है, आसमान आपके सिर पर से हवाई जहाज गुजरता है अथवा अन्य कोई बाधा उपस्थित होती है तो उसे तथा उससे होने वाली मानसिक प्रक्रिया को भी देखिए । अन्तर्मोन के अभ्यास में हम एक साथ अपने विचारों, दृश्यों, आवाजों, अनुभूतियों, अपने आसपास के लोगों तथा वस्तुओं के प्रति सजग रहते हैं।

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