भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ की व्याख्या करें | Indian Economy Challenges in Hindi
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ की व्याख्या करें ?
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ की व्याख्या करें ?
(1) प्रति व्यक्ति निम्न आय
- अल्पविकसित / विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता वहां के नागरिकों की प्रति व्यक्ति निम्न आय का होना है। यहाँ के लोगों की औसत आय अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान आदि विकसित देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में बहुत कम है। इन देशों की प्रति व्यक्ति आय औसत आय से भी कम होती है। वर्ष 2004 में प्रति व्यक्ति आय भारत में 6000 डॉलर थी, जबकि अमेरिका में 41400 डॉलर, इंग्लैण्ड में 33940, पाकिस्तान में 600 डॉलर, कीनिया में 460 डॉलर थी। अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय में जो अन्तर है, वह निरन्तर बढ़ता जा रहा है जिसका मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि की तीव्र दर है जिसके कारण प्रति व्यक्ति आय की दर बढ़ नहीं पाती ।
(2) पूँजी का अभाव-
- आर्थिक दृष्टि से उन राष्ट्रों को पिछड़ा हुआ अथवा अल्पविकसित माना जाता है, जिनमें पूँजी का अभाव होता है। भारतवर्ष में भी पूँजी का अभाव पाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप विकास की अनेक योजनाओं को केवल कागजों पर तैयार करके बस्तों में बंद कर रख दिया जाता है। भारत में पूँजी के अभाव का प्रमुख कारण प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय का नीचा स्तर होना है।
(3) आय और सम्पत्ति का असमान वितरण
- भारतीय अर्थव्यवस्था की यह विशेषता है कि इसमें आय और सम्पत्ति का वितरण असमान रूप से हुआ है। देश की राष्ट्रीय आय तथा सम्पत्ति का बहुत बड़ा भाग जनसंख्या के छोटे-से भाग के हाथो में केन्द्रित है जबकि देश की अधिकांश जनसंख्या निर्धनता में जीवन व्यतीत कर रही है। आय और ने सम्पत्ति की यह विषमता भारत के शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
(4) कृषि पर निर्भरता-
- भारत की जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। भारत में कृषि अभी भी पुराने एवं अवैज्ञानिक तरीकों से की जाती है। यद्यपि 'हरित क्रांति' के दौरान भारत में कृषि के आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया तथा एक सीमा तक यह सफल भी रही, परन्तुं धीरे-धीरे इसका प्रभाव समाप्त हो जा रहा है।
(5) आधारभूत संरचना की अपर्याप्तता
- आधारभूत संरचना के अन्तर्गत विद्युत एवं अन्य शक्ति के स्रोत, आवागमन एवं संचार के साधन, जैसे- रेल, सड़क, टेलीफोन आदि की सुविधाओं तथा बैंकिंग, बीमा आदि सुविधाओं को शामिल किया जाता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास की इन आधारभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव है। आज भी देश में ऐसे अनेक गाँव हैं, जिनकी मुख्य सड़क से दूरी 20 किलोमीटर या इनसे भी अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में कई निवासियों ने आज तक 'रेलगाड़ी' ही नहीं देखी है । देश के अनेक प्रदेशों में विद्युत संकट और उसके कारण उत्पन्न होने वाला जन-आक्रोश चरम पर है। सोचने लायक बात यह है कि आजादी के 70 वर्षों बाद इन आधारभूत सुविधाओं के विकास की ओर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है ।
6. कमजोर औद्योगिक ढाँचा -
- यू तो कहने को यू भारत में अनेक बड़े-बड़े उद्योग स्थापित किये गये हैं, परन्तु इनमें कुछ को छोड़कर अन्य सभी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। बीमार उद्योगों की बढ़ती हुई संख्या ने देश के औद्योगिक ढाँचे को कमजोर बना दिया है। देश में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों की संख्या तो निरन्तर बढ़ती जा रही है, परन्तु पूँजीगत उद्योग जो कि मशीनों का उत्पादन करते हैं, उनका नितान्त अभाव है।
7. उत्पादन की निम्न तकनीक :-
- भारतीय अर्थव्यवस्था में तकनीकी विकास के प्रति उद्योगपतियों में रूचि कम दिखाई देती है। इसका मुख्य कारण पूंजी का अभाव है।हमारे देश में तकनीकी शिक्षा एवं अनुसंधान की योजनाओं पर बहुत थोड़ा धन खर्च किया जाता है।
8. आश्रितों की संख्या अधिक :-
- भारतकी जनसंख्या में कार्यशाली व्यक्तियों की संख्या कम और उन पर आश्रित व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है। यदि कार्यशील आयु 15 से 64 वर्ष मान लें तो भारत में जहाँ कार्यशील जनसंख्या सन् 2001 में 39.10 प्रतिशत थी, वहाँ अमेरिका में यह 65.6 प्रतिशत तथा जापान में 78.7 प्रतिशत थी। इस दृष्टि से भारत में श्रमिकों का अनुपात कम तथा आश्रितों का अनुपात अधिक है।
9. परम्परागत समाज :-
- परम्परागत समाज अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का सूचक है। यहाँ का समाज रूढ़िवादी, भाग्यवादी व परम्परावादी है। यही कारण है कि यहाँ बहुत-सी कुरीतियाँ, जैसे- बाल विवाह, मृत्युभोज ती प्रथा, छुआछूत, आदि आज भी जीवित हैं।
10. प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन-
- विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत का भुगतान संतुलन कुछ वर्षों को छोड़कर निरन्तर प्रतिकूल रहा है। भारत के पास बेचने लायक वस्तुओं की संख्या एवं मात्रा बहुत सीमित है। इस कारण इसके निर्यात कम होते हैं। दूसरी ओर, बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति एवं औद्योगिक विकास के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल, वस्तुओं तथा विशेषज्ञों की सेवाओं का आयात करना पड़ता है। इसके कारण आयात मे वृद्धि हो जाती है। परिणाम स्वरूप देश का भुगतान संतुलन प्रतिकूलता की स्थिति को प्रदर्शित करता है ।
11. जनसंख्या का आधिक्य-
- भारतवर्ष में जनाधिक्य की स्थिति पाई जाती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सन् 1947 में भारत की आबादी मात्र 36 करोड़ थी, जो बढ़कर सन् 2011 में 121.7 करोड़ हो गई। यही नहीं, भारतवर्ष • जनसंख्या वृद्धि की दर भी बहुत ऊंची है। 1991-2000 की अवधि में जहाँ भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 2 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही, वहीं यह अमेरिका में 1.1 प्रतिशत तथा जापान में 0.3 प्रतिशत रही। भारतवर्ष में जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक होने के कारण जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई।
12. बेरोजगारी-
- वर्तमान समय में 'बेरोजगारी' भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। देश में जिस गति से काम माँगने वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है, उस गति से रोजगार के अवसर उत्पन्न नहीं हो रहे हैं। परिणामस्वरूप बेरोजगार व्यक्तियों की फौज में प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति और जुड़ जाते हैं। रोजगार कार्यालयों से प्राप्त जानकारी के आधार पर वर्तमान में देश के लगभग 10 करोड व्यक्ति बेरोजगार हैं, जबकि बेरोजगारों का वास्तविक आँकड़ा इससे कहीं अधिक हैं।
निष्कर्ष :-
उपरोक्त सभी विशेषताएँ भारतीय अर्थव्यवस्था को अल्पविकसित राष्ट्रों की श्रेणी में रखने के लिये पर्याप्त है। भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्धनता व्यापक रूप में व्याप्त है। पूँजी का अभाव, अकुशल श्रम, जनता का पिछड़ापन आदि आर्थिक विकास को अवरुद्ध करते हैं। अतः इन सभी दोषों को दूर करना तथा अभावों की पूर्ति करना, भारत के आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है। यह कहना गलत होगा कि आजादी के इन 70 वर्षों में देश की सरकार ने आर्थिक विकास के लिये कुछ खास नहीं किया। वास्तविकता यह है कि देश की सरकार ने विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कृषि एवं उद्योगों के विकास के लिये अरबी खरबों रुपया खर्च किया है; जिसके परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों में आर्थिक विकास के चिन्ह दिखाई देने लगे हैं। इसी से प्रभावित होकर एच. वैंकटसुबैया ने कहा है- "भारत अल्पविकसित देशों में सबसे अधिक विकसित देश है।"
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