मध्यप्रदेश की बरहुल, बिरहोर जनजाति की जानकारी | MP Tribes Birhore Janjaati
मध्यप्रदेश की बरहुल, बिरहोर जनजाति की जानकारी
मध्यप्रदेश की बरहुल, बिरहोर जनजाति की जानकारी
जनसंख्या
- म.प्र. में इस जनजाति की कुल जनसंख्या केवल 52 मात्र आंकी गई हैं।
निवास क्षेत्र
- मध्यप्रदेश में बिरहोर जनजाति की जनसंख्या जिला ग्वालियर, देवास, इन्दौर, राजगढ़, भोपाल, सीहोर, रायसेन, जबलपुर में पायी गई है।
गोत्र
- इसमें प्रचलित प्रमुख गोत्र इस प्रकार से हैैंः- इंदुआर, सोनियल गातिया कछुआ, बराह, तोतीमार, सोनवानी, टोपवार, सुइया आदि मुख्य हैं। गोत्र बहिर्विवाही होते हैं।
रहन-सहन
- सामान्यतौर पर बिरहोर गांवो में अपना निवास स्थान नही बनाते। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं, कि इनके गांव नही होते हैं। ये दूसरी जनजातियों के गांवो के बाहर अपनी झोपड़ियां खुले स्थानों पर बनालेते हैं। इनकी झोपड़ी के समूह को कुम्भा या पड़ाव भी कहते हैं। बिरहोर इसे टंडा कहते हैं। इसका निर्माण सालवृक्ष या अन्य वृक्ष के पत्तों से होता है।
खान-पान
- बिरहोर का मुख्य खाद्य पदार्थ महुआ हैं। इसके अलावा मुख्य भोजन चावल, कोदो की पेज, उड़द की दाल, जंगली कंदमूल व मौसमी साग भाजी हैं। मांसाहार में मुर्गी, बकरा, मछली, केकड़ा, आदि खाते हैं।
वस्त्र-आभूषण
- बिरहोर पुरूष कोपनी पहिनते है, जिसे छोटी धोती की तरह पहना जाता हैं। स्त्रियाँ लुगड़ा पहनती हैं। इसके अलावा वे कांच की चूड़िया, कानों में बालिया, अंगूठी पहनती हैं।
गोदना
- स्त्रियाँ प्रियशौक गुदना हैं।
तीज-त्यौहार
- मुख्य त्यौहार, नवाखानी, दशहरा, सरहुल, करमा, सोहराई और फगुआ है।
नृत्य
- बिरहोर जनजाति के लोग करमा, फागुआ, बिहाव नृत्य नाचते हैं। इसके अलावा करमा और जीतियाँ त्यौहार के अवसर पर लुभरी नृत्य करते हैं। फगुआ और सरहुल के अवसर पर जरगा नृत्य सौहनतारी नृत्य अन्य त्यौहारों के समय भी किया जाता है। इनके लोकगीतों मंे करमागीत सुआगीत, विहावगीत आदि मुख्य हैं। मुख्य वाधयंत्र मादल, ढोल, ढफली, टिमकी आदि हैं।
कला व्यवसाय
- रस्सी बनाना, बिरहोर का मुख्य व्यवसाय हैं। बिरहोर जाल-झाडू, खप्पर, दोना, चटाई तथा टोकरी बनाने का कार्य करते हैं।
बरहुल, बिरहोर जनजाति जन्म-संस्कार
- बिरहोर जनजाति में बच्चे के जन्म देने की परम्परा कुछ अलग है। गर्भवती महिला जंगल में वृक्ष के नीचे प्रकृति की गोद मंे बच्चे को जन्म देती हैं। उनका विश्वास हैं कि प्रकृति बच्चे के जन्म की गवाह है। प्रसव दायी करवाती हैं। बच्चे की नाल को बांस की खपच्ची से काटती है। जन्म के बाद बच्चे व मां को नई झोपड़ी मंे लाया जाता हैं। छठे दिन छठी का कार्य होता हैं।
बरहुल, बिरहोर जनजाति विवाह-संस्कार
- बिरहोर जनजाति में लड़को की उम्र 17-18 वर्ष है तथा लड़कियो की 12-16 वर्ष की उम्र विवाह योग्य मानी जाती है। जांघी बिरहोर एवं उथलू बिरहोर मे ंपरस्पर विवाह नही होता। विवाह की प्रारंभिक बातचीत लड़के वालो की ओर सेे होती हैं। इनमें विवाह तीन तरह के पाये जाते हैं। बिहा, उदरिया, चुरहिया। जब विवाह के लिए वधु का चुनाव वर के माता पिता की ओर से कर लिया जाता हैं, तब वर को अंतिम फैसले के लिए भेजा जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों द्वारा बात आगे बढ़ाते हुए फलदान का कार्य होता है। उसमें 50 किलो चावल, लाइर्, मुर्रा कुछ कपड़े लड़की व उसकी मां को प्रदान किये जाते हैं। इसी समय विवाह की तिथि तय होती है। सामान्य तौर पर विवाह माघ व फाल्गुन माह में सम्पन्न होता है। फेरा कार्यक्रम बिरहोर में या तो प्रातः सम्पन्न होता है, या शाम को गोधुली बेला में। इस जनजाति में जब कोई औरत, विधवा हो जाती हैं, तो उसका देवर बिरादरी के सामने चुड़ी पहनाकर पत्नी मान लेता हैं।
बरहुल, बिरहोर जनजाति मृत्यु संस्कार
- मृत्यु क्रियाक्रर्म लिए बांस की अर्थी तैयार की जाती है। मृत व्यक्ति के शरीर (शव) को इस पर रखकर श्मशान घाट पर लाया जाता है। 5 फीट का गड्डा खोदा जाता हैं, उसमें मृत व्यक्ति के शरीर को इस तरह रखा जाता हैं, कि सिर उत्तर दिशा तथा पैर दक्षिण दिशा की ओर रहें। पहले उसका लड़का उस शव में मिट्टी डालता हैं, फिर अंतिम यात्रा में शामिल लोग उसमें मिट्टी डालते हैं। कब्र को पाट दिया जाता हैं। उसके ऊपर अनाज फेके जाते हैं। बच्चे की मृत्यु होने पर उसे महुआ वृक्ष के नीचे दफनाया जाता हैं। मृतक कर्म के पश्चात बिरहोर स्नान कर घर वापिस आते हैं। परम्परा अनुसार तीन दिन पश्चात मृतक के परिवार के सभी लोग इकट्ठे होकर दशगात्र कर्म करके मृत्यु के 11 वे दिन पूरे गांव को भोज देते हैं।
बरहुल, बिरहोर जनजाति देवी-देवता
- बिरहोर जनजाति के प्रमुख देवता सूरज हैं। इसके अतिरिक्त बूढ़ी माई, मरी माई, पूर्वज, पहाड़, वृक्ष आदि की पूजा करते हैं।
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