रेखाचित्र क्या है, परिभाषा उद्भव एवं विकास | हिंदी प्रथम रेखाचित्र | Rekha Chitra Ka Arth Paribhasha
रेखाचित्र क्या है परिभाषा उद्भव एवं विकास , हिंदी प्रथम रेखाचित्र
रेखाचित्र क्या है
- हिंदी गद्य साहित्य की नवीनतम विधा रेखा चित्र है। इसके लिए शब्दस्केच, शब्दचित्र, व्यक्तिचित्र, तूलिकाचित्र या चरित लेख आदि शब्द युग्मों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें अंतिम चरित लेख भिन्न है। लेख निबंध का लघु रूप है।
- अर्थात् संक्षेप में किसी का चरित्र चित्रण करना चाहिए लेख कहलाता है। रेखा चित्र शब्द युग्म का द्वितीय समस्त पद चित्र है। अन्य समासो में भी द्वितीय समस्त पद चित्र ही है चित्र को अलग कर देने से शब्द, शब्द, व्यक्ति, तूलिका ही बचते हैं।
- स्केच का अर्थ भी चित्र होता है। तूलिका चित्र बनाने का साधन है। शब्द अभिव्यक्ति का साधन है किंतु पेंसिल या पेन मात्र रेखाएं खींच कर चित्र उकेरते हैं। शब्दों के माध्यम से उकेरे गए चित्र को रेखाचित्र कहा जाता है। इसमें चित्र की पूर्णता न होकर अभिव्यक्ति की पूर्णता होती है। इन सबमें हिंदी में रेखाचित्र ही सर्वग्राह्य है।
- नवीनतम विधा होने पर भी इसके तत्व प्राचीन काव्यों में भी उपलब्ध हैं। वाल्मीकि रामायण से लेकर आधुनिक साहित्य में रेखाचित्र के तत्व निरंतर दष्टिगोचर होते हैं। पद्य एवं गद्य की सभी विधाओं में इसके तत्व विद्यमान हैं। मानव, मानवेतर, जड़ चेतन आदि के अंग प्रत्यंगों में दष्टिगोचर होने वाले बिंब ही इसके तत्व हैं। चाहे वे स्थूल हों या सूक्ष्म इन बिंबों का चित्रण ही रेखाचित्र कहलाता है। पाश्चात्य साहित्य के स्केच से अनुप्राणित है। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक में हिंदी साहित्य में रेखाचित्र का प्रादुर्भाव हुआ।
- रेखाचित्र, व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव, घटना या परिवेश से संबंधित होने के फलस्वरूप यथार्थ की भूमि पर प्रतिष्ठित होता है। रेखाचित्र का आधार फलक यथार्थ है। रेखाचित्र किसी व्यक्ति का शब्द चित्र, किसी विशिष्ट व्यक्ति का संक्षिप्त विवरण, किसी विशिष्ट प्रवत्ति या घटना का व्यंग्यात्मक चित्रण हो सकता है।
रेखाचित्र का परिभाषा
रेखाचित्र गद्य की वह विधा है जिसमें चरित्र, दश्य या घटना विशेष का मुख्य रूप से वर्णन किया गया हो। डॉ. शिवदान सिंह चौहान का रेखाचित्र विषयक कथन द्रष्टव्य है-
- "किसी व्यक्ति के रेखाचित्र में यह विशेषता होगी कि उसके व्यक्तित्व ने जो विशेष मुद्राएं शारीरिक या अवयवों की बनावट में जो विकृतियां ऊपर को उभार दी हैं उनके आभास को चित्र में ज्यों का त्यों पकड़ा जाए ताकि लेखक की अनुभूति के साथ उसके व्यक्तित्व की रेखाएं और भी सघन होकर दिखाई पड़ने लगें।"
डॉ. नगेन्द्र के अनुसार रेखाचित्र
- ऐसी किसी भी रचना को रेखाचित्र की संज्ञा देने के लिए उद्यत हैं जिसमें तथ्यों का उद्घाटन मात्र हो। उनके अनुसार तथ्यों का मात्र उद्घाटन रेखाचित्र है।
डॉ. विनय मोहन शर्मा के अनुसार
- "व्यक्ति घटना या दश्य के अंकन को रेखाचित्र की संज्ञा दी जा सकती है।" डॉ. भगीरथ मिश्र रेखाचित्र के लिए व्यक्ति का आलंबन ही स्वीकारते हैं, घटना या वातावरण का चित्रण उसकी सीमा के अंतर्गत नहीं आता।
उपर्युक्त परिभाषाओं के परिप्रेक्ष्य में कह सकते हैं कि रेखाचित्र वह शब्द चित्र है जिसमें व्यक्ति के आलंबन स्वरूप तथ्यों का अंकन किया जाता है।
डॉ. गोविंद त्रिगुणायत ने रेखाचित्र की विवेचना करते हुए लंबी परिभाषा दी है
- "रेखाचित्र, चित्रकला और साहित्य के सुंदर सुहाग से उद्भूत एक अभिनव कला रूप है। रेखा चित्रकार साहित्यकार के साथ-साथ चित्रकार भी होता है। जिस प्रकार चित्रकार अपनी तूलिका के कलारूप स्पर्श से चित्रपटल पर अंकित विश्रंखल रेखाओं में से कुछ अधिक उभरी हुई रेखाओं को संवार कर एक सजीव रूप प्रदान कर देता है, उसी प्रकार रेखाचित्रकार मनः पटल पर विश्रंखल रूप से बिखरी हुई शत-शत स्मति रेखाओं में से उभरी हुई रमणीय रेखाओं को अपनी कला की तूलिका से स्वानुभूति के रंग से रंजित करके जीते-जागते शब्द चित्र में परिणत कर देता है। यही शब्द चित्र रेखा चित्र कहलाता है।"
हिंदी रेखाचित्र: उद्भव एवं विकास
- रेखाचित्र की विषय वस्तु की संघटना देशानुरूप होती है। प्रवत्यानुसार रेखा चित्र को भावात्मक विचारात्मक विवरणात्मक, वर्णनात्मक प्रकृति सौंदर्यात्मक घटनात्मक, वैयक्तिक समस्यात्मक प्रतीकात्मक, हास्य व्यंग्यात्मक, संस्मरणात्मक, आत्मकथात्मक, तथ्यात्मक, मनोवैज्ञानिक तथा राजनीतिक आदि अनेक वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
- वास्तव में रेखाचित्र चरित्रात्मक ही होता है। यूनानी लेखक थियोफेस्टस ने कैरेक्टर्स' में विभिन्न वर्गों के व्यक्तियों के रेखाचित्र प्रस्तुत किए थे। हिंदी में रेखा चित्रों का आर्विभाव बीसवी सदी के तीसरे दशक में हुआ ऐखा बिन्दु की ओर जनमानस का ध्यान आकर्षित करने का श्रेय सन् 1938 ई. में प्रकाशित हंस के रेखाचित्र विशेषांक को है। जिसमें पच्चीस रेखा चित्र संकलित हैं। मधुकर ने भी रेखाचित्र विशेषांक निकाले। इन रेखाचित्रों की विषय वस्तु साहित्यकार, पत्रकार, कवि, अध्यापक, कथाकार तथा लेखिकाएं हैं। ये इन रेखाचित्रों ने अपने-अपने क्षेत्र के लब्ध प्रतिष्ठित व्यक्तियों को ही रेखाचित्र का विषय बनाया है। हिंदी के प्रारंभिक रेखाचित्रों पर अंग्रेजी तथा रूसी रेखा चित्रों का प्रभाव परिलक्षित होता है।
हिंदी प्रथम रेखाचित्र -
- हिंदी में रेखाचित्र सजन का श्रेय पद्मसिंह शर्मा कमलेश' को है। इन्हें रेखाचित्र का जन्मदाता माना जाता है। इनके रेखाचित्रों का संकलन पदम-पराग है जिसे हिंदी का प्रथम रेखाचित्र एवं पदम सिंह शर्मा कमलेश को प्रथम रेखाचित्रकार माना जाता है। इन्होंने व्यक्ति चरित्रांकन में दक्षता प्रदर्शित की है।
बनारसी दास चतुर्वेदी ने उनके अकबर पर लिखे गए रेखाचित्र को प्रथम रेखाचित्र माना है। भारतेंदु युग- गद्य की प्रायः प्रत्येक विधा का प्रारंभ भारतेंदु युग में हुआ। रेखा चित्र की स्वतन्त्र स्थापना इस युग में नहीं हो में पाई थी। किंतु भारतेंदु के चरित्र प्रधान निबंधों में रेखा चित्र दष्टिगोचर होते हैं। भारतेंदु हरिश्चन्द्र- स्वतंत्र रेखाचित्र नहीं लिखे।
प्रताप नारायण मिश्र आत्माभिव्यंजनात्मक लेखों में रेखाचित्र के तत्व विद्यमान हैं।
बाल मुकुंद गुप्त
- दोनों की रचनाओं में रेखाचित्र के तत्व उपलब्ध होते हैं। द्विवेदी युग द्विवेदी युग में भी रेखा चित्र का स्वतन्त्र विधा के रूप में विकास नहीं हुआ था। मात्र कुछ लेखकों के चरित्र लेखन में रेखाचित्र का आभास मिलता है।
पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश'
- पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश ने इस युग में चरित्रांकन कला में दक्षता प्रदर्शित की इनके रेखा चित्रों का संकलन 'पद्म पराग' है। कमलेश में कला का वह रूप नहीं पाया जाता है जो आज के रेखाचित्रों में उपलब्ध है फिर भी कमलेश के अनुगामी आधुनिक रेखाचित्रकार हैं।
- भाषा सर्वसाधारण की है जिसमें अरबी, फारसी, तत्सम तथा तद्भव शब्दों का मिश्रण पाठक को भावविभोर कर देता है। भाषा आडंबर विहीन आलंकारिक है। डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त का कथन द्रष्टव्य है आपके रेखा चित्रों की शैली में भी कुछ अपनी विशेषताएं दष्टिगोचर होती हैं। उनमें एक और उर्दू का चुलबुलापन भाषा और प्रवाह मिलता है तो दूसरी ओर हिंदी के अनुरूप विषय की गंभीरता विचारों की मौलिकता और प्रतिपादन शैली की प्रौढ़ता दष्टिगोचर होती है।"
श्रीराम शर्मा –
- सन् 1936 ई. तक हिंदी रेखाचित्रों का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में ही होता था क्योंकि रेखाचित्र की स्वतन्त्र विधा का विकास द्विवेदी युग एवं छायावाद युग के संधि काल में हुआ। श्रीराम शर्मा का सर्वप्रथम रेखा चित्र संग्रह बोलती प्रतिमा सन् 1927 ई. में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह पर रूसी लेखक तुर्गनेव के संग्रह जीवित समाधि का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है। बोलती प्रतिमा हिंदी का बहुचर्चित रेखाचित्र संकलन है। इन रेखाचित्रों में शर्मा ने ग्रामीण अंचल की समस्याओं, परिवेशों एवं श्रेष्ठताओं का सजीव चित्रण किया है। इसके अतिरिक्त श्रीराम शर्मा ने जंगल के जीव प्राणों का सौदा तथा वो जीते कैसे आदि संकलन प्रकाशित किए।
बनारसी दास चतुर्वेदी -
- हिंदी रेखा चित्र विधा को समद्ध बनाने में बनारसी दास का विशेष योगदान रहा है। सन् 1919 ई. में बनारसी दास का प्रथम रेखा चित्र औरंगजेब मर्यादा में प्रकाशित हुआ। उनके प्रारंभिक रेखाचित्र हमारे साथी तथा प्रकृति के प्रांगण में नामक पुस्तकों में संग्रहीत हैं। अपने जीवन में अनेक अनूठे रेखाचित्र हिंदी साहित्य को प्रदान किए। अधिकांश पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। इनके प्रसिद्ध संग्रह प्रिंस क्रोपाटकिज, रेखाचित्र, सेतुबंध तथा रंगों की बोलती रेखाएं आदि हैं। चतुर्वेदी के अनेक रेखाचित्र पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे पड़े हैं। जिन्हें संकलित करने की आवश्यकता है। रेखाचित्र इनका सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्र संग्रह है। चतुर्वेदी की कला का पूर्ण परिचय उनके रेखाचित्रों से मिलता है जिनमें उन्होंने सामान्य व्यक्तियों को आधार स्वरूप ग्रहण करके जीवन व्यापिनी करुणा को मूर्तिमान किया है।
- इनमें एक सिपाही, संपादक की समाधि तथा अंधी चमारिन आदि आत्म चरित्रात्मक घटना प्रधान चित्र कहे जा सकते हैं। मूलतः इनके रेखाचित्र व्यक्ति प्रधान हैं। सरलता, रोचकता, तथा मनोरंजकता इनकी भाषा शैली की विशेषता है। उनके रेखाचित्र राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी -
- हिंदी रेखाचित्र के साहित्य भंडार को समद्ध करने वाले रामवृक्ष बेनीपुरी का अपूर्व योगदान है। बेनीपुरी का प्रतीकात्मक एवं रूपात्मक रेखाचित्र लिखने में विशेष महत्व है। इनकी भाषा में सारल्य, सरसता, अभिव्यक्ति कौशल, सहजता आदि गुण विद्यमान हैं जिसने इनके रेखाचित्रों को महत्वपूर्ण बना दिया। इनके रेखाचित्रों के संग्रह में लालतारा, माटी की मूरतें, गेहूँ और गुलाब, तथा मील का पत्थर आदि उल्लेखनीय हैं। गेहूँ और गुलाब की भूमिका में उन्होंने लिखा है - "ये शब्द चित्र पहले शब्द चित्रों से भिन्न हैं छोटे चलते, जीवंत। मैंने कहा- हैंड कैमरा के स्नैप-शॉट, आलोचना ने उस दिन डांटा- हांथी दांत पर की तस्वीरें।" बेनी पुरी ने कला पर उतना ध्यान नहीं दिया है जितना ध्यान विषय विविधता पर केंन्द्रित किया है। जिसके परिणामस्वरूप उनके रेखाचित्र मुखर होकर भी प्रभावोत्पादक नहीं हैं। समाज की कुरूपता को छांट-छांट कर अपने रेखाचित्रों का विषय बनाया है। तत्कालीन मानव समाज की सम्पूर्ण स्थितियां एवं विवशताएं उनके रेखाचित्रों में मूर्ति हो उठी हैं।" शोषण, वर्ग संघर्ष, सामाजिक अन्याय, असमानता, कृषकों की दयनीय अवस्था, जमींदारी प्रथा के दुष्परिणाम, भ्रष्टाचार, नवीन संस्कृति की आकांक्षा, क्रांतिकारी भावनाएं, ईश्वर धर्म पर व्यंग्य, छुआछूत, जाति पाँति के उत्पन्न विषमताएँ आदि उनके रेखाचित्रों के विषय हैं।
- डॉ. प्रभाकर माचवे ने बेनी पुरी के विषय में विचार करते हुए लिखा है "बेनीपुरी जी की भाषा शैली में भावोद्रेक के साथ ही शब्दों और व्यंग्य खंडों का संयत गठत हुआ प्रयोग एक अनूठी व्यंजना का निर्माण करता है। वे कहीं कहीं अति भावुकता से शब्दों और विराम चिन्हों का अतिरंजित प्रयोग करते हैं।"
छायावाद युग के रेखाचित्रकार
श्रीराम शर्मा –
- श्रीराम शर्मा के रेखाचित्रों का प्रकाशन छायावाद युग में हुआ। चित्रकार साहित्य के रचयिता के रूप में इनको ख्याति मिली किंतु व्यक्तियों के चित्रांतन की विशिष्टता के फलस्वरूप वे सफल रेखाचित्रकार के रूप में हिंदी जगत में प्रसिद्धि मिली। इनके रेखाचित्रों में मानव के साथ-साथ जंगली प्राणियों के जीवन का भी चित्रण किया गया है। इनके रेखा चित्र दीप स्तंभ के समान रेखा चित्रकारों का मार्गदर्शन करने में सक्षम एवं समर्थ हैं।
पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- महाकवि निराला के रेखाचित्र उच्चकोटि के हैं। उनके रेखाचित्रों में कला एवं भावना की प्रधानता है। उनके रेखाचित्रों में चतुरी चमारी, कुल्ली भाट तथा बिल्लेसुर बकरिहा आदि रेखाचित्र आदि प्रसिद्ध हैं। ।
महादेवी वर्मा -
- हिंदी रेखाचित्र लेखकों में महादेवी वर्मा सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्र लेखिका हैं। उनके रेखाचित्रों को देखकर ऐसी प्रतीत होता है मानों साक्षात छाया चित्र का अवलोकन कर रहे हों। क्योंकि उनमें फोटो ग्राफी का सौंदर्य समाविष्ट है। महादेवी वर्मा के अतीत के चल चित्र, स्मति की रेखाएं, पथ के साथी तथा मेरा परिवार आदि महत्वपूर्ण रेखाचित्र संग्रह हैं। स्मति की रेखाएं पथ के साथी तथा मेरा परिवार में विशेष रूप से उन्होंने अपने जीवन की उन अनेक कटु-मधुर, करुणा-विगलित स्मतियों को संजो-संवार कर रखा है जिन्होंने उनके जीवन में एक स्थायी स्थान बना लिया है। महादेवी ने स्वयं स्वीकारा है कि इनमें उनका जीवन चित्रित है। अतीत के चलचित्र में निम्न वर्गीय पात्रों की वेदनाओं, अभावों, समस्याओं, संघर्षों, संकटों, शोषण की विविध स्थितियों तथा विशेषताओं का चित्रण किया है। अतीत के चलचित्र के संबंध में डॉ. राजमणि शर्मा का कथन अवलोकनीय है।
- "अतीत के चलचित्र हिंदी की वह धाती है जो सन् 1930-1940 ई. के निम्न मध्यवर्गीय समाज की सच्ची झांकी सदैव संजोए रहेगी। इसमें मानव की आशा आकांक्षा, निराशा है, कल्पना का ऐसा सजीव जगत है जो अपने वैविध्य में जगमगाकर हमारे समक्ष अपनी निधि खोल देता है।"
डॉ. ब्रजमोहन गुप्त ने उनके विषय में लिखा है
- "लेखिका का निरीक्षण इतना सूक्ष्म है और संवेदना का रंग इतना गहरा और उज्जवल है कि स्मृति में जो रेखाएं मात्र थीं कागज पर उतरकर उनसे करुणा और हास्य व्यंग्य के छाया- प्रकाश में हंसते खेलते उच्चतम मानवीय तत्वों से अनुप्राणित स्पंदन शील चित्र बन गए हैं।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि महादेवी के रेखाचित्र संस्मरण प्रधान है।
- वास्तविकता यह है कि यह निर्णय करना कठिन है कि वे संस्मरण है या रेखाचित्र क्योंकि उनका नामकरण भी ऐसा है अतीत के चलचित्र तथा स्मति की रेखाएं। अतीत एवं स्मति एक भाव के बोधक हैं तो चलचित्र संस्मरण तथा रेखाएं रेखाचित्र द्योतन करती हैं। वास्तव में दोनों का सुंदर समन्वय है।
छायावादोत्तर युग रेखाचित्रकार
- यह युग रेखाचित्र का उत्कर्ष युग है। इस युग में सर्वाधिक रेखाचित्रकार हुए एवं रेखाचित्र लिखे गए। विषय की व्यापकता तथा रेखाचित्र की उत्कर्षता इसी युग में आई। लेखकों ने रेखाचित्र के सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
प्रकाशचन्द्र गुप्त
- आधुनिक रेखाचित्र लेखकों में प्रकाशचन्द्र गुप्त का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने अनेक रेखाचित्र लिखे हैं। इनके रेखाचित्र संग्रह में पुरानी स्मतियां और नए स्केच तथा रेखाचित्र प्रमुख हैं। इनके रेखाचित्रों में मानवता की प्रेरणा को प्रमुखता दी गई है। वास्तव में गुप्त का यह प्रयत्न हिंदी रेखाचित्र साहित्य में सर्वप्रथम, मौलिक एवं सर्वथा नवीन है।
देवेन्द्र सत्यार्थी
- भावात्मक रेखा चित्रकारों में देवेन्द्र सत्यार्थी का नाम महत्वपूर्ण है। उन्होंने अति सजीव तथा भाव प्रवण रेखाचित्रों की रचना की है। रेखाएं बोल उठीं तथा अन्य संग्रहों में संग्रहीत रेखा चित्रों में उनका ध्यान विशेष रूप से भावों तथा तथ्यों पर केन्द्रित होता गया है। उनके रेखाएं बोल उठी संग्रह में संग्रहीत दादा-दादी के चित्र चिर नूतन चित्र तथा अच्छे भले आदमी की बात आदि रेखाचित्रों में जहां तथ्य निरूपण का प्राचुर्य है वहीं रेखाएं बोल उठी, सौंदर्य बोध तथा आज मेरा जन्म दिन है में भावात्मकता की अधिकता विद्यमान है। रेखाचित्र प्रायः भावात्मक शैली में लिखे जाने के परिणामस्वरूप गद्य काव्य जैसा सौंदर्य प्रस्तुत करते हैं तथ्य निरूपक रेखाचित्रों में मार्मिकता का अभाव है।
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर
- वर्तमान हिंदी रेखा चित्रकारों में कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर उत्कृष्ट रेखाचित्रकार हैं। इनके रेखाचित्र संग्रहों में नई पीढ़ी के विचार, भूले हुए चेहरे, जिंदगी मुस्कुराई, माटी हो गई सोना, दीप जले शंख बजे, मंहके आंगन चहके द्वार तथा क्षण बोले कण मुस्काए आदि प्रमुख हैं। सभी संग्रहों में विशेषकर जिंदगी मुस्कुराई में प्रभाकर ने जिस प्रकार अपने पात्रों के अंतस्तल का सूक्ष्म चित्रांकन कर उनके जीवन के प्रति सहृदय की भावना को अत्यधिक गहनता प्रदान कर दी है वह सराहनीय है। इनका एक रेखाचित्र मंजर अली सोख्ता पर लिखा गया है जिसकी प्रशंसा बनारसीदास चतुर्वेदी ने खुले दिल से की है।
राहुल सांकृत्यायन –
- समस्याजनक रेखाचित्र लिखने वालों में राहुल का नाम अग्रणी है। राहुल किसी भी समस्या को लेकर उसका शब्द चित्र प्रस्तुत करने में सिद्धस्त हैं। उनका रेखाचित्र रूपी विशेष उल्लेखनीय है जिसमें वेश्यावति की समस्या को उभारा गया है। उन्होंने अनेक रेखाचित्र लिखे हैं जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते थे।
हर्षदेव मालवीय
- हिंदी में व्यंग्यात्मक रेखाचित्र लेखकों में हर्षदेव मालवीय को प्रसिद्धि मिली है। इनके पुराने तथा पोंगल गुरु रेखा-चित्रों को विशेष ख्याति प्राप्त हुई है।
विनय मोहन शर्मा
- इनके रेखाचित्रों का संग्रह 'रेखा और रंग है' है जिसमें चौदह रेखाचित्र संगहीत हैं। इसमें पूसी बिल्ली से लेकर वक्ष, चिड़िया, थर्ड क्लास तक के विषय हैं। व्यक्तियों में डबली बाबू घर के नौकर, वकील साहब, जग्गू काका, कन्हैया, बदलू धोबी, बसी, इला, मास्टर साहब तक उनका प्रसार है। विनय मोहन शर्मा पात्रों के बहिरंग पर ऐसी दष्टि डालते हैं कि वे मूर्तिमान होकर पाठकों के समक्ष सजीव एवं साकार हो जाते हैं।
विष्णु प्रभाकर
- आधुनिक रेखा चित्रकारों में विष्णु प्रभाकर की रचना प्रक्रिया द्वंद्वमयी होने के कारण व्यक्ति और वस्तु - के बहिरंग तक ही सीमित नहीं रहती वरन भीतर और बाहर के द्वंद्व को उजागर करने का प्रयास करती है। वास्तव में प्रभाकर वातावरण और वस्तुओं के माध्यम से व्यक्तित्व की विशेषताओं को उद्घाटित करने में पारंगत हैं।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'-
- अज्ञेय ने अनेक रेखाचित्रों की सजना की है। उनका रेखाचित्र संग्रह एक बूंद सहसा उछली है जिसमें अनेक सुंदर रेखाचित्रों को संगहीत किया गया है। अज्ञेय की दष्टि इतनी पैनी और तीखी है कि वह दश्य तथा अंतस्तल पर एक ही साथ जा पड़ती है। वे देश तथा दश्य को एक नहीं मानते हैं उनकी विभिन्न अवस्थाएं मानकर अग्रसर होते रहते हैं। वे तो किसी भी स्थिति को प्रवाहमान धारा के रूप में देखने के अभ्यस्त हैं अतः दश्य या व्यक्ति के माध्यम से वे हमें कुछ दे जाते हैं जो अन्यों के लिए अजूबा बना रहता है।
अन्य रेखाचित्रकार
- कुछ अन्य रेखा चित्रकारों ने भी इस विधा के विकास में पर्याप्त योगदान किया है जिनमें उदयशंकर भट्ट, उपेंद्र नाथ अश्क, सुरेंद्र नाथ दीक्षित, महावीर अधिकारी, फणीश्वर नाथ रेणु, वंदा लाल शर्मा, प्रो. कपिल, पदुम लाल पुन्ना लाल बख्शी, हरिशंकर शर्मा, गुलाब राय, डॉ. नगेंद्र, अमत लाल नागर, ओंकरा शरद, डॉ. राम विलास शर्मा, डॉ. राम शंकर त्रिपाठी तथा डॉ. प्रेम नारायण टंडन आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
- आधुनिक काल में रेखाचित्र विधा का विकास ज्योति तुल्य है। विभिन्न परिवेशों को विषय रूप में ग्रहणकर रेखचित्र लिखे जा रहे हैं। इनके विकास में पत्र-पत्रिकाओं का भी विशेष योगदान है। अभिनंनदन ग्रंथों के रूप में भी रेखाचित्र विधा का व्यापक उत्कर्ष- उन्नयन, प्रचार-प्रसार हो रहा है।
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