शंख प्रक्षालन का अर्थ | शंख प्रक्षालन के आसन | Sanksh Prakshalan Ka Arth evam Aasan

शंख प्रक्षालन  का अर्थ , शंख प्रक्षालन के आसन

शंख प्रक्षालन  का अर्थ | शंख प्रक्षालन के आसन | Sanksh Prakshalan Ka Arth evam Aasan

 

शंख प्रक्षालन का क्या अर्थ है? 
शंख प्रक्षालन के आसनों का नाम लिखें।


शंख प्रक्षालन  का अर्थ

  • शंख का अर्थ है - पेट प्रक्षालन का अर्थ है साफ करनापेट की सफाई की क्रिया को - शंख प्रक्षालन कहा जाता है। हमारी आंत की बनावटशंखाकार होती हैउस शंखाकार आन्त्र का प्रक्षालन होना (शुद्ध होना) ही शंखप्रक्षालन या वारिसार क्रिया कहलाता है। आंत की लंबाई लगभग 32 फीट होती है। आंत की दीवार पर मल जमने से विभिन्न प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं। मल की परत बनने के कारण निष्कासन की क्रिया सही नहीं होती है। जिससे रोग को बढ़ावा मिलता है। मल सड़ने के बाद पेट में दुर्गन्ध पैदा होती है जिसके परिणामस्वरूप अपचन एवं खट्टी डकारें आती हैं। यह गैस्ट्रिक को भी बढ़ावा देता है। शंख प्रक्षालन से समस्त रोगों में लाभ मिलता है जैसे- सभी उदर रोगमोटापाबवासीरउच्च रक्तचापमधुमेहअस्थमासर्दीसाइनस आदि ।

 

शंख प्रक्षालन अनुशासन एवं सामग्री

 

  • शंख प्रक्षालन क्रिया करने से पांच-सात दिन पहले इसके आसनों का अभ्यास शुरु कर दें । 
  • शंख प्रक्षालन जिस दिन करना हो उसके पूर्व शाम को सुपाच्य एवं हल्का भोजन लें। 
  • शंख प्रक्षालन की क्रिया के बाद खिचड़ी एवं घी का सेवन पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए।  
  • शंख प्रक्षालन की क्रिया प्रातःकाल शौच इत्यादि क्रियाओं से निवृत होने के बाद करेंयदि शौच नहीं हो तो कोई बात नहीं। 
  • शंख प्रक्षालन करते समय कपड़े ढीले-ढीले होने चाहिए।
  •  गुन-गुने पानी की समुचित व्यवस्था कर लेनी चाहिए जिसे सरलता से पीया जा सके। उसमें आवश्यकतानुसार नमक मिला लें। 
  • पानी ज्यादा गर्म हो तो उसमें ठंडा पानी मिला लें 
  • उच्च रक्तचाप एवं चर्म रोगियों को गर्म पानी में नमक के स्थान पर नींबू का रस मिलाकर लेना चाहिए।

 

शंख प्रक्षालन की विधि

 

तैयार किया हुआ पानी दो या इससे अधिक गिलास उकडू बैठकर पी जाएं। फिर शंख प्रक्षालन के निर्धारित पांच आसन क्रम से करें। इन निर्धारित आसनों में से एक आसन को पांच बार करने के बाद अगला आसन करें। आसन का क्रम समाप्त हो जाने पर पुनः दो गिलास पानी पीएं और फिर पांच आसनों का क्रम शुरु कर दें। इन पांच आसनों का क्रम इस प्रकार है

 

शंख प्रक्षालन के आसन

1. ताड़ासन 

2. तिर्यक ताड़ासन 

3. कटि चक्रासन

4. तिर्यक भुजंगासन 

5. उदराकर्षण आसन

 

  • निर्धारित पांच आसनों की आवृति को दो या तीन बार पूरा करने के बाद शौच जाना शुरु हो जाएगा। पांच आसन का क्रम जब भी समाप्त हो फिर दो या तीन गिलास पानी पी कर आसन का क्रम शुरु करें। आसन के क्रम में विश्राम नहीं करें। शौचालय में ज्यादा देर तक न बैठें और न शौच के लिए दबाव डालें। यदि आरंभ में शौच नहीं भी आए तो कोई बात नहीं। पानी पी-पीकर निरंतर आसनों का अभ्यास करें। यदि आसन करते-करते शौच की आवश्यकता महसूस हो तो शौच जाएं। पुनः पानी पीकर आसनों का क्रम फिर एक से शुरु कर देंन कि जिस आसन को छोड़कर गए थे वहां से शुरु करें।

 

  • इस तरह लगभग 15-20 गिलास पानी पीकर आसन करने के बाद पांच-छह बार शौचालय जाएं। शुरु में शौच के साथ मल निकलेगा उसके बाद जल मिश्रित मल निकलेगा । फिर शौच में पानी निकलेगा। जब शौच में साफ पानी निकलने लगे तो अभ्यास छोड़ देना चाहिए। इसके बाद कुंजल की क्रिया करें। इस अभ्यास के बाद शवासन में जाकर पूर्ण विश्राम करें। लगभग 30 से 45 मिनट तक विश्राम करें। इस अवस्था में पूर्ण मौन का पालन करें तो अच्छी बात होगी। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शवासन में विश्राम करने के बाद घी के साथ

 

  • खिचड़ी भरपूर मात्रा में खाना चाहिए । खिचड़ी में मूंग की दाल ही डालें एवं किसी प्रकार के मसाले का प्रयोग न करेंहल्दी का प्रयोग बहुत कम करना चाहिए ।

 

शंख प्रक्षालन में सावधानियाँ -

 

  • शंख प्रक्षालन के तीन घंटे बाद तक पानी नहीं पीएं। 
  • तीन घंटे तक सोना नहीं चाहिए। 
  • शंख प्रक्षालन के दिन तीन घंटे के बाद गर्म पानी पीएं तो अच्छा होगा। 
  • ठंडा पानी पीने से जुकाम- सर्दी हो सकती है। 
  • इस दिन की शाम एवं अगले दो दिनों तक खाने में घी खिचड़ी का सेवन करें। 
  • क्रिया के बाद विश्राम करें, (किंतु पंखाकूलरएसी में नहीं) हवा में भ्रमण नहीं करें। 
  • प्रक्षालन करने के बाद सर्दी के मौसम में धूप में एवं गर्मी में पंखे की हवा में नहीं बैठना चाहिए। 
  • जिस दिन आकाश साफ नहीं हो या वर्षा हो रही होउस दिन इस क्रिया को नहीं करें। 
  • प्रक्षालन के बाद ठंडे पानी से हाथ पैर ज्यादा नहीं धोएं। 
  • बालककमजोर व्यक्तिमासिक धर्म के समय और गर्भवती स्त्री को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए । 
  • क्रिया के पश्चात् तीन दिनों तक मिर्च-मसालाअचार एवं अन्य प्रकार के मसालेदार वस्तुओं का सेवन न करें। 
  • अगले पांच दिनों तक मिठाईदही या दूध से बनी कोई चीज़ न खाएं। 
  • फल या जूस तीन दिनों तक बिल्कुल नहीं लें। 
  • मांसाहारमदिरा सेवन एवं तामसिक भोजन से बचें। यह स्वस्थ सुखी जीवन के लिए लाभदायक नहीं है। 
  • बाजार में उपलब्ध पेयकोल्ड ड्रिंक एवं सॉफ्ट ड्रिंक से परहेज करें।

 

शंख प्रक्षालन के लाभ

 

  • पूरी आहार नाल (मुँह से लेकर गुदा द्वार तक) की सफाई हो जाती है। 
  • शरीर का शुद्धिकरण होता हैगंदे एवं विषैले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैंशरीर हल्का एवं कान्तिवान होता है। 
  • सभी प्रकार के रोग दूर होते हैं कब्जगैसबवासीरखट्टी डकारेंमन्दाग्नि इत्यादि ।
  •  मोटापामधुमेहश्वास संबंधी रोगहृदय रोगसिर दर्दअपेन्डिसाईटिस एवं अन्य रोगों में लाभदायक है। 
  • स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी विकृतियाँ दूर होती है। 
  • नाड़ी के अवरोध को तोड़ता एवं चक्रों का शुद्धिकरण करता है।

 

नोट- शंख प्रक्षालन की क्रिया साल में दो बार करनी चाहिए। यह समय सितम्बर-अक्तूबर एवं मार्च-अप्रैल का है जो ऋतु परिवर्तन का समय होता है। शंख प्रक्षालन का अभ्यास योग शिक्षक की देखरेख में ही सम्पन्न करना चाहिए।

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