बुद्धि तथा धृति-शक्ति विकासक योग |स्मरण शक्ति विकासक | Shakti Vikask Yog

बुद्धि तथा धृति-शक्ति विकासक योग 

 

बुद्धि तथा धृति-शक्ति विकासक- स्थिति

 

बुद्धि तथा धृति-शक्ति विकासक- स्थिति

  • दोनों पैर मिलाकरशरीर को कंधों तक बिल्कुल सीधा रखें। 
  • मुँह बंद रखें। 
  • सिर को बिल्कुल पीछे मोड़ते हुए ले जाएं। 
  • आँखें खुली रखें और ऊपर आकाश की तरफ देखें 
  • सिर को पीछे रखते हुएअपना ध्यान सिर के ऊपरमध्य में लगाने की चेष्टा करें। 
  • नाक से सांस अंदर-बाहर करें। 
  • प्रारंभ में श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया 15-20 बार करें। 
  • इस क्रिया से मानसिक विकारजैसे- मंदबुद्धिमूढ़ताभूलनाउदासीनतासन्देह आदि दूर होते हैं। 
  • इच्छा शक्ति बढ़ती है।

 

स्मरण शक्ति विकासक विधि

स्थिति 

 

  • दोनों पैर मिलाकर सीधे खड़े हो जाएं। 
  • अपनी आँखों को पैरों से 5 फीट दूरी पर किसी बिन्दु पर केन्द्रीभूत करें। 
  • गर्दन की स्थिति सामान्य रखें।

 

विधि -

 

  • ब्रह्म रन्ध्र (मस्तिष्क के बीच का भाग) पर ध्यान लगाएं। 
  • स्वाभाविक रूप से सांस अंदर-बाहर निकालें । 
  • इसी क्रिया को 15-20 बार दोहराएं।

 

लाभ

 

  • इस क्रिया से मानसिक थकावट दूर होती है। स्मरण-शक्ति का विकास होता है। 
  • कार्य क्षमता बढ़ती है। 
  • हाइपोथैलेमस (Hypothallamus) में प्राण-शक्ति का संचार होता है।

 

कपोल - शक्ति विकासक

 

स्थिति

 

  • दोनों पैर मिलाकरसीधे खड़े हो जाएं। 
  • दोनों हाथों की आठ अंगुलियों का अग्र भाग मिला लें। 
  • नासिका को दोनों अंगूठों से बंद कर लें। 


विधि

 

  • होठों कोचोंच की भांति बनाकरमुँह से ज़ोर से साँस भरें। 
  • सांस भरते समय आँखें खुली रखें। 
  • गाल फुलाकरआँखें बंद कर लें। 
  • ठुड्डी को गले कीहड्डी पर रखकरजब तक संभव हो साँस रोक कर रखें । 
  • तत्पश्चात्गर्दन को सामान्य स्थिति में वापस ले आएं। 
  • आँखें खोल कर सामने देखें । 
  • धीरे-धीरे साँस को नासिका द्वारा बाहर निकालें । 
  • प्रारंभ में यह क्रिया तीन बार दोहराएँ ।

 

लाभ - 

  • इस क्रिया से गालों को शक्ति मिलती हैझूर्रियां दूर होती है और चेहरा दमकने लगता है। दाँत मजबूत होते हैं और दंत-रोग जैसे पायरियामुँह से बदबू आना आदि ठीक होते हैं । 
  • आँख के रोग ठीक होते हैं। 
  • पेट की गर्मी दूर होती है। 
  • सिरदर्द में आराम मिलता है। 
  • मुँह का सूखापन ठीक हो जाता है।

 

नेत्र - शक्ति विकासक क्रियाएं

 

स्थिति: 

  • दोनों पैर मिलाकरसीधे खड़े हो जाएं।

 

विधि - क. 

 

  • गर्दन को सीधा रखकर आंख की पुतलियों को पहले ऊपर की ओर फिर नीचे की ओर चलायें । 
  • इस क्रिया को 8 से 10 बार दोहरायें । 
  • फिर आंखों को सामान्य स्थिति में लाते हुए विश्राम दें ।

 

ख.

 

  • गर्दन को सीधा रखकर आंख की पुतलियों को पहले दायें फिर बायें घुमाएं । 
  • इस क्रिया को 8 से 10 बार दोहरायें । 
  • फिर आंखों को सामान्य स्थिति में लाते हुए विश्राम दें ।

 

ग.

 

  • गर्दन को सीधा रखकर आंख की पुतलियों को दायीं से बायीं तथा बायीं से दायीं ओर गोलाई में घुमाएं। 
  • इस क्रिया को 8 से 10 बार दोहरायें । 
  • फिर आंखों को सामान्य स्थिति में लाते हुए विश्राम दें ।

 

लाभ

 

  • आंख की सभी विकृतियां दूर होती हैं। 
  • दृष्टितीव्र होती है । 
  • यदि यह क्रिया लगातार की जाए तोआंखें सदैव स्वस्थ रहती हैं। 
  • आंखों के अन्य विकार जैसे- आंखों से पानी आनाजलन होनाखुजली तथा आंखों की थकावट दूर होती है। 
  • लैंस की पावर भी कम होती है।

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