आत्मा के संयोग से मन काम करता है और मन के संयोग से इंद्रियाँ कर्म करती हैं। मन बड़ा चंचल और अधम है। आत्मा के बंधन का कारण है मन मनुष्य के सुख और दुःख का कारण है मन। परन्तु, मनुष्य को ऊपर उठाने वाला भी मन ही है। मुक्ति का साधन भी मन है।
मन तक पहुँचने और उसकी अज्ञात शक्तियों को सक्रिय बनाने के लिए त्राटक साधना की जाती है। त्राटक की साधना एक स्वतंत्र साधना भी है, जो उच्च साधकों के लिए होती है। त्राटक अत्यंत शक्तिशाली साधना है।
त्राटक क्रिया विधि
पद्मासन या सुखासन में पीठ सीधा रखकर सुखपूर्वक बैठ जाइए। घी का दीपक जलाकर उसे 4 फीट की दूरी पर आँखों के सामने रखिये। घी के अभाव में मोमबत्ती भी ले सकते हैं।
अब बिना पलक झपकाए दीपक की लौ को देखें। दीपक को निर्वात स्थान पर रखना चाहिए। अनवरत, देखते-देखते जब आँखों में आंसू आने लगें या आँखों में जलन होने लगे तब कोमलता से आँखें बंद कर लें और बंद आँखों से अपने अंतर में वैसा ही प्रकाश देखने की कोशिश करें पुनः आँखें खोलकर दीपक की स्थिर लौ को एक-टक देखते जायें। आँखों में आंसू व जलन आये तो आँखें बंद कर लें। धीरे-धीरे इस अभ्यास को बढ़ाएं। इसकी अवधि 20 मिनिट से अधिक न बढ़ायें। अपने निर्धारित समय के अनुसार इस क्रिया को
नियमित रूप से करते रहना चाहिए। ज्योति पर ध्यान करते समय अपने इष्ट देवता का, परमपिता परमेश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए। इससे धारणा सिद्ध हो जाती है, फलस्वरूप साधक ध्यान की भूमि में प्रवेश करता है।
यह क्रिया कागज़ पर काला बिंदु लगाकर या 'ऊँ' पर भी कर सकते हैं। चन्द्रमा व उगते हुए सूरज का भी त्राटक किया जाता है।
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