योग निद्रा क्या होती है |योग निद्रा क्रिया विधि What is Yog Nindra
योग निद्रा क्या होती है (What is Yog Nindra )
योग निद्रा क्या होती है
योग निद्रा योगियों की निद्रा है। इसमें मन की एकाग्रता द्वारा विश्राम की प्राप्ति होती है। योग निद्रा में साधक सोता नहीं है। जीवात्मा निरन्तर जागृत रहती है। योग निद्रा के अभ्यास से साधक अपने शरीर के एक-एक अंग का शिथिलीकरण करता है । शिथिलीकरण की इस क्रिया को योग निद्रा कहते हैं ।
वास्तव में देखा जाए तो योगनिद्रा प्रत्याहार साधना का एक अंग है। इसमें समस्त इंद्रियों को उनके विषयों से खींचकर भीतर की ओर मोड़ा जाता है। एक घंटे की योगनिद्रा अभ्यास से मिलने वाला शारीरिक और मानसिक विश्राम चार घंटे की सामान्य निद्रा से कहीं अधिक लाभप्रद है ।
योग निद्रा में शारीरिक स्थिति
- योग निद्रा का अभ्यास समतल और शांत स्थान पर शवासन में करना चाहिए। फर्श पर कंबल या दरी बिछाकर योगनिद्रा का अभ्यास किया जाता है। ठंड तथा मच्छरों से बचने के लिए चादर से शरीर को अच्छी तरह ढक लेना चाहिए। योगनिद्रा की पूरी अवधि में नेत्र बंद रखने चाहिए। शरीर पूरी तरह शिथिल रखना तथा किसी भी परिस्थिति में कोई भी शारीरिक हलचल नहीं होनी चाहिए। पूर्ण आराम के साथ, शवासन में लेटकर योगनिद्रा के लिए स्वयं को तैयार कीजिए ।
शिथिलीकरण
एक व्यवस्थित क्रम से शरीर के प्रत्येक अंग, शरीर के प्रत्येक जोड़, मांस पेशी, रक्त- संस्थान तथा श्वसन- संस्थान, मस्तिष्क, चेहरा, आँखें आदि सभी को बारी-बारी से शिथिल करते जाइए। अपने भाव को अपने ही अंदर इस प्रकार प्रकट कीजिए - मेरे दाहिने पैर की एड़ी तथा आस-पास के हिस्से शिथिल हो रहे हैं, शिथिल हो रहे हैं, शिथिल हो चुके हैं। इसी प्रकार क्रम से एक-एक कर शरीर के सभी अंगों को शिथिल कीजिए।
मानस दर्शन
- शरीर के शिथिल होने के साथ-साथ मन भी पूरी तरह शिथिल और शांत हो जाता है। शांत होने के उपरांत भी मन को व्यस्त रखना है। उसे एक क्रम से शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाइए। उसे श्वास-प्रश्वास का साक्षी बनाइए भिन्न-भिन्न संवेदनाओं का अनुभव कराइये । तरह-तरह की वस्तुओं तथा काल्पनिक प्रतिमूर्तियों का मानस दर्शन कराइए।
- आपको अभ्यास की पूरी अवधि में सोना नहीं है। सदा चैतन्य रहना है।
संकल्प क्या होता है ?
योगनिद्रा के प्रारंभ में एक संकल्प लिया जाता है जो आपके जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास के साथ इस संकल्प को तीन बार दोहराइए। आपका संकल्प परम कल्याणकारी हो, सुख-शान्ति प्रदान करने वाला हो और धरती माता की प्रतिष्ठा के लिए हो.
योग निद्रा में लिया गया संकल्प हमारे अवचेतन मन की गहराइयों में चला जाता है और समय आने पर निश्चित रूप से वास्तविकता में परिणत होने लगता है।
क्रिया विधि
1. शवासन में गहरी श्वास लीजिए व उसके साथ-साथ पूरे शरीर में शान्ति का अनुभव कीजिए श्वास छोड़ते समय शरीर में शिथिलता का अनुभव कीजिए ।
2. जैसे-जैसे शरीर के अलग-अलग अंगों का नाम लिया जाए, अपनी चेतना को शरीर के विभिन्न अंगों पर घुमाइए। ध्यान रहे कि शरीर में किसी प्रकार की कोई अस्थिरता या तनाव ना हो।
3. अपने ध्यान को दाहिने पैर के अंगूठे पर ले जाइए, दूसरी अंगुली, तीसरी, चौथी, पांचवी, पंजा, तलुआ, एढ़ी, टखना, पिंडली, घुटना, जांघ आदि अंगों पर क्रम से चेतना को घुमाइए ।
4. इसी प्रकार बायें पैर के साथ कीजिए। इसके बाद दाहिना हाथ तथा बायां हाथ के भी हिस्सों पर अपनी चेतना को ले जाइए।
5. हाथ-पैर के बाद अपनी चेतना को धड़ के हिस्सों पर ले जाइए तथा इसके बाद संपूर्ण मुख मंडल पर चेतना को घुमाइए। इसे देह दर्शन अथवा न्यास की क्रिया भी कहते हैं।
6. शरीर दर्शन के उपरांत अपने प्राण प्रवाह को रग-रग में अनुभव कीजिए तथा शरीर के कमजोर व रोग ग्रस्त हिस्से पर प्राण प्रवाह के स्पन्दन को अनुभव कीजिए तथा मन को सुझाव दीजिए कि रूग्ण अंग स्वस्थ हो रहा है।
7. इस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों पर एक से अधिक बार चेतना को घुमाइए, साथ ही शरीर को अधिक से अधिक विश्राम तथा शिथिलता मिलेगी।
8. मानसिक रुप से श्वास के प्रति सचेत रहिए। उसे उल्टी गिनती में 54 से 0 (शून्य) तक गणना कीजिए। मैं जानता हूँ कि मैं श्वास ले रहा हूँ। 54 मैं जानता हूँ कि मैं श्वास छोड़ रहा हूँ 53 इस प्रकार 54 से 0 तक गणना कीजिए। यदि बीच में श्वास गिनने में जाए तो पुनः 54 से ही गिनती प्रारंभ कीजिए। सोइए नहीं गणना जारी रखिए। भूल हो
9. अपनी मन की आँखों से प्रकृति के मनोरम दृश्यों को देखिए। जैसे आप ऊँचे पर्वत, गिरते हुए झरने को देखते हैं। समुद्र में उठने वाली लहरों को देखते हैं। प्रातःकाल में उगते हुए सूरज को देखें। किसी दिव्य मंदिर के दर्शन कीजिए। आप जिस पूजा विधान को मानते हैं उसके रमणीय स्थल तथा होने वाली प्रार्थना में मानसिक रुप से सम्मिलित हो जाइए। आप मुस्लिम हैं तो मस्जिद में नमाज के दृश्य को देखिए। आप सिख हैं तो गुरुद्वारे में अपनी अरदास कीजिए। ईसाई हैं तो चर्च में प्रार्थना कीजिए। आप जो दृश्य स्वीकार करते हैं उसमें भावनात्मक रुप से सम्मिलित रहिए।
10. इन सब दृश्यों में से गुजरते हुए आप पुनः शवासन में पड़े हुए अपने शरीर को देखिए तीव्रता से शरीर के अंगों में पुनः क्रम से अपनी चेतना को घुमाइए। अब फिर से अपने शरीर में प्राण प्रवाह का अनुभव कीजिए और संपूर्ण शरीर को चैतन्य कर लीजिए।
11. अब आप अनुभव कीजिए कि आपका शरीर फूल के समान हल्का हो चुका है। मेरे चारों ओर सुगन्धि फैली हुई है। मैं अब दिव्य तरंगों से अभिभूत हो चुका हूँ। मैं पूर्ण शान्त हूँ मैं आनन्दित हूँ।
अब अंत में दाहिने करवट जाइए और उठकर बैठ जाइए। अभी आँखें नहीं खोलेंगे। पीठ सीधा रखते हुए हाथ जोड़कर अपने ईष्ट की प्रार्थना कीजिए और अपने को नई चेतना के साथ शुभ कर्मों के लिए तैयार रखिए।
1. योग निद्रा के अभ्यास को किसी सक्षम योग शिक्षक के निर्देशन में ही करना चाहिए।
2. योग निद्रा का अभ्यास करते समय लगातार सजग रहना चाहिए।
3. सोना नहीं चाहिए।
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