योग में मुद्रा का अर्थ एवं प्रकारों का वर्ण | हस्त मुद्रा क्या होती है इसके प्रकार | Yog Mudra ka arth evam Prakar
योग में मुद्रा का अर्थ एवं प्रकारों का वर्ण, हस्त मुद्रा क्या होती है इसके प्रकार
मुद्रा और बंध
अष्टांग योग का चौथा चरण है 'प्राणायाम' । प्राणायाम करते समय कुछ
मुद्राओं एवं बंध का प्रयोग किया जाता है। यदि आप आसन एवं प्राणायाम नहीं करते हैं
या फिर करने असमर्थ हैं तो ऐसे समय भी में इन मुद्राओं का लाभ लिया जा सकता है ।
आश्चर्यजनक बात यह है कि मुद्राएं विशेष चमत्कारी हैं, जिनका शरीर पर अद्भुत
प्रभाव पड़ता है। इस अध्याय में हम मुद्रा एवं बंध के स्वरूप पर चर्चा करेंगे, और यह भी समझने का प्रयास
करेंगे कि मुद्रा एवं बंध किस प्रकार स्वस्थ रहने के लिए उपयोगी है और किन विभिन्न
प्रतिकूल परिस्थितियों में मनुष्य इनका तत्काल लाभ ले सकता है।
मुद्रा एवं बंध क्या होते हैं ?
आसन प्राणायाम से भी ज्यादा प्रभावी अभ्यास मुद्रा एवं बंध को माना गया । क्या आप जानते हैं कि मुद्रा क्या है? आपको सर्वप्रथम मुद्रा के विषय में समझाते हैं । मुद्रा शब्द 'मुद्' धातु से निर्मित है जिसका अर्थ है प्रसन्नता ।
मुद्रा = मुद्, धातु = प्रसन्नता
मुद्रा शरीर व मन के भावों के प्रकटीकरण का माध्यम है। योग
में मुद्रा और बंध का प्रयोग प्राण ऊर्जा के नियमन के लिए किया जाता है।
मुद्रा-बंध का वर्णन नीचे किया गया है जिनके अभ्यास से
शारीरिक स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमताओं का विकास किया जा सकता है। आइए, अब मुद्रा के विषय में
चर्चा करते हैं।
मुद्रा का अर्थ एवं प्रकारों का वर्णन
जैसा कि आपको ऊपर बताया गया है कि मुद्रा शब्द मुद् धातु से
बना है जिसका अर्थ प्रसन्नता से है । मुद्रा शरीर व मन के भावों के प्रकटीकरण का
माध्यम है। सरल शब्दों में कहा जाय तो चित्त को प्रकट करने वाले विशेष भाव को
मुद्रा कहते हैं। आइए यहाँ पर हम संक्षिप्त में कुछ हस्त एवं हठ योग की प्रमुख
मुद्राओं के विषय में जानते हैं।
क) हस्त मुद्रा क्या होती है इसके प्रकार
स्वास्थ्य नियन्त्रण कक्ष आपके हाथ की अंगुलियों में है और यहीं से सम्पूर्ण शरीर का संचालन होता है। जिस तत्व के कारण आप अस्वस्थ हैं उस तत्व की कमी नियन्त्रण कक्ष के अनुकूल स्विच को दबाकर अभाव की पूर्ति कर पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं।
हाथ की अंगुलियों को परस्पर विभिन्न विधि द्वारा स्पर्श
करना हस्त मुद्रा कहलाता है।
अनामिका हमारे हाथ की पाँच अंगुलियों से पाँच तत्वों का ( Ring Finger ) बोध निम्न प्रकार होता है।
1) अंगूठा (Thumb) अग्नि तत्व
2) तर्जनी ( Index Finger) - वायु तत्व
3) मध्यमा ( Middle Finger) – आकाश तत्व
4) अनामिका ( Ring Finger) पृथ्वी तत्व
5) कनिष्ठा (छोटी (Small Finger) - जल
हस्त मुद्रा द्वारा शरीर की पाँच भौतिक स्थित को संतुलित रखकर स्वास्थ्य कायम रखा और खोए हुए स्वास्थ्य को प्राप्त किया जा सकता है।
1) ज्ञान मुद्रा :
- अंगूठा और तर्जनी को मिलाने से बनती है।
लाभ :
- स्मरण शक्ति उन्नत होती है, मानसिक रोग, चिड़चिड़ापन एवं अनिद्रा दूर होती है। इससे होने वाली स्मरण शक्ति विद्यार्थियों एवं बुद्धिजीवियों के लिए वरदान एवं मानसिक रोगों के लिए रामबाण है।
2) वायु मुद्रा
- तर्जनी अंगूली को अंगूठे की जड़ में लगाकर उसे अंगूठे से दबाने पर यह मुद्रा बनती है।
लाभ :
- इस मुद्रा से सभी प्रकार के वायु रोग, गठिया, कम्पन, लकवा, वायु मुद्रा वायुशूल एवं रेंगने वाला दर्द निश्चय ही ठीक होते हैं।
3) सूर्य मुद्राः
- अनामिका को अंगूठे की जड़ में लगाकर अंगूठे से दबाने से बनती है।
लाभ : मोटापा, भारीपन दूर करता है।
नोट : अनामिका और अंगुष्ठ दोनों ही तेज का विशेष विद्युत प्रवाह करते हैं। यौगिक दृष्टि से ललाट पर द्विदल कमल का आज्ञाचक्र स्थित है। उस पर अनामिका और अंगुष्ठ से एक विशेष विधि और भावना द्वारा तिलक करके कोई भी स्त्री अथवा पुरुष अपनी अदृश्य शक्ति को दूसरे में पहुँचाकर उसकी शक्ति द्विगुणित कर सकता है।
4) लिंग मुद्रा:
- दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर फंसाकर बायें हाथ के अंगूठे को सीधा रखें।
लाभ: सर्दी के रोग नजला जुकाम आदि दूर होते हैं।
5) पृथ्वी मुद्रा :
- अनामिका और अंगुष्ठ के अग्र भाग को मिलाएं।
लाभ : दुबले पतले व्यक्ति के लिए एवं कान्ति और तेज की कमी
में लाभ देता है। संकुचित विचारों में परिवर्तन होता है।
6) प्राण मुद्रा :
- कनिष्ठ एवं अनामिका दोनों को मोड़कर अंगूठा से स्पर्श करें।
लाभ : शरीर शारीरिक-मानसिक दृष्टि से इतना शक्तिशाली हो
जाता है कि कोई भी बीमारी आक्रमण नहीं कर सकती। रक्त संचार उन्नत होकर रक्त
नलिकाओं की रुकावट को दूर करता है। तन-मन में स्फूर्ति, आशा एवं उत्साह प्रदान
करता है। नेत्र दोष दूर होते हैं।
7) अपान मुद्राः
- मध्यमा एवं अनामिका को एक साथ मिला कर एवं मोड़कर अंगूठा से स्पर्श करें।
लाभ : उदर की वायु को कम कर वहां के दर्द एवं अन्य उपद्रव को दूर करता है।
8) शून्य मुद्रा :
- मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठा से दबाएं।
लाभ :
- कान के दर्द में लाभ मिलता है। निरन्तर अभ्यास से कान के रोग से बचाव, बहरा है तो सुनाई देगा। (जन्म से गूंगा-बहरा है तो असर नहीं होगा)।
9) हृदय मुद्रा
- तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगुठे की गद्दी पर लगा दे और तब छोटी अंगुली को छोड़कर बाकी दोनों अंगुलियों को अंगूठा से स्पर्श करें।
लाभ :
- यह मुद्रा दिल का दौरा रोकने में इन्जेक्शन की भांति काम करती है। नियमित अभ्यास से हृदय रोग ठीक हो सकता है।
10) वरुण मुद्रा :
- सबसे छोटी अंगुली को अंगुष्ठ के अग्र भाग से मिलाने पर वरुण मुद्रा बनती है।
लाभ : इसके अभ्यास से शरीर में जल तत्व की कमी से उत्पन्न होने वाले सभी रोग दूर हो जाते हैं। त्वचा एवं रक्त विकार दूर होते हैं।
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