प्रथमतः मुगल साम्राज्य के प्रतिष्ठित सामन्त
आसफजहाँ निजामुलमुल्क दक्षिण पर अधिपत्य हेतु निश्चय कर चुका था इसलिए शाहू के
पेशवा बाजीराव प्रथम तथा निजामुलमुल्क की सेनाओं के मध्य पालखेड़ नामक स्थान पर
युद्ध हुआ। बाजीराव प्रथम विजयी हुआ। दोनों पक्षों के मध्य मूँगी शेगाँव की संधि
हुई।" उल्लेखनीय है कि यहाँ मल्हार राव होल्कर तुकोजी पवार व राणींजी शिंदे
की सेवाओं के आधार पर उन्हें पुरस्कृत किया गया व मालवांचल के जमींदार व
जागीरदारों को आदेश दिया गया कि मराठा अधिकारियों को कर दिया जाए। तीसरे, मराठा प्रभाव इतना पूर्णत्व प्राप्त कर चुका था
कि मालवा में उदाजी पवार को 13
महाल व पूना दरबार के द्वारा मल्हारजी होल्कर को गुजरात में 4 जिलों तथा मालवा में छ जिलों के वित्त वसूली
का अधिकार खानदेश में भी होल्कर को 1
जिले की वसूली की अनुमति दी गई । " पेशवा द्वारा जारी पत्र व निजाम की
पालखेड़ में पराजय से मुगल दरबार चौकन्ना हो गया। सवाई जयसिंह को मालवा व गुजरात
में मराठों को दबाने हेतु जाने का आदेश दिया गया।
प्रथमतः पालखेड़ में मुगल साम्राज्य के सबसे
शक्तिशाली सामन्त व योद्धा निजाम की पराजय से जयसिंह को मराठों की ताकत का पता चल
चुका था । अतः वह दरबार में उपस्थित नहीं हुआ। दूसरे, निजाम की पराजय से बाजीराव प्रथम को उसके
अधिकारी मानाजी और निलोकृष्ण के माध्यम से ज्ञात हुआ कि मालवांचल पर पूर्ण अधिकार
करने का यह उचित समय था। अंतः संताजी से सुलह कर एक विशाल शक्तिशाली सेना चिमणाजी
अप्पा के नेतृत्व में उत्तर में भेजी गई जिसमें मल्हारजी होल्कर, उदाजी पवार, राणेजी
शिंदे जैसे सहयोगी साथ में रखे गये थे। उसके अन्य साथी बाजी शिवराव (रेटरेकर )
गणपतराव मेहंदाले, नारो शंकर, अंताजी माणकेश्वर व गोविंदपंत खेर आदि थे।
तीसरे बाजीराव को धन की अत्यधिक आवश्यकता थी क्योंकि राजा शाहू का कर्जा चुकवाना व
सेना के वेतन की व्यवस्था करना आवश्यक था। चौथे, राणेजी शिंदे व मल्हारजी होल्कर द्वारा अपने स्वामी को सूचना दी गई
थी कि मालवा से अच्छी वसूली की जा सकती थी। पाँचवे गुजरात में सेनापति दामाड़े
द्वारा बड़ी चालाकी से वसूली हो रही थी व उसने डुगरपुर, रतलाम व बाँसवाड़ा में उत्पात मचा रखा था व
मालवा क्षेत्र से पाँच लाख की वसूली की थी। छठे, बाजीराव प्रथम उत्तर में दिल्ली व आगरा क्षेत्र तक बढ़ना चाहता था
तथा अलाहाबाद (प्रयाग) व काशी (बनारस) के तीर्थ क्षेत्रों पर भी अधिकार चाहता था । इसलिए एकबार मालवा ( पश्चिमी
मध्यप्रदेश) पर नियंत्रण का कार्य पूर्ण करना चाहता था । "
अमझेरा युद्ध कब और कहाँ हुवा
चिमणाजी अप्पा के सहयोगियों को पहले भेजा गया
जिन्होंने उसके कर्य को सरल बनाने का कार्य किया ।24 अक्टूबर 1728 ई. को सेना नर्मदा के दक्षिणी किनारे
पर पहुँच गई व दूसरे दिन उसे पार कर लिया । धरमपुरी में छावनी रखकर (26 अक्टूबर) वे माण्डू के दर्रे से होकर नालछा
पहुँच गये। नंदलाल मंडलोई मराठों को सहायता दे रहा था। माण्डू के किलेदार
मोहम्मद उमरखान व गिरधर बहादुर एक दूसरे से संपर्क न कर सके इसलिए चिमणाजी ने एक
सेना गिरधर बहादुर के विरुद्ध भिजवाई। यहाँ अमझेरा में युद्ध हुआ जिसमें 29 नवम्बर 1728 ई.
को गिरधर बहादुर व दया बहादुर युद्ध में मारे गये । इस युद्ध के समय बाजीराव शाहू
के साथ तुलजापुर की यात्रा पर गया था। वहाँ से लौटने पर उसने 9 दिसम्बर 1728 ई.
को चिमणाजी को पत्र भेजा कि उस युद्ध का समाचार प्राप्त हुआ और गिरधर बहादुर व
उसके कई सरदार व साथी युद्ध में खेत रहे हैं। इस युद्ध में उदाजी पवार तथा
मल्हारराव होल्कर का विशेष योगदान भी रहा । मल्हारराव, उदाजी को सम्मानित करने हेतु बाजीराव
ने चिमणाजी को लिखा ।
अमझेरा युद्ध का परिणाम
इस विजय से मराठों की प्रतिष्ठा में वृद्धि
हुई। दूसरे, गिरधर बहादुर की मृत्यु के कारण मुगल
से दरबार के स्वामिभक्त सेवक की हानि हुई। तीसरे, अब मालवा सूबा की राजधानी उज्जैन को घेरा डाला गया व व्यवहारिक तौर
पर यह मुगलों के हाथों से निकल गया। चौथे, अब
गिरधर और दया बहादुर के युद्ध में खेत रहने पर गिरधर बहादुर का पुत्र भवानीराम को
चिमणा बहादुर की उपाधि देकर मालवा भेजा गया । उसकी जागीर के साथ उसे दो लाख रूपये
अतिरिक्त दिये गये व राजपुताना के शासकों सें उसे सहयोग देने को कहा गया। ये शासक
थे सैयद निजामुद्दीन, कोटा का दुर्जन साल हाड़ा, उमरखान व उदयपुर का राणा । तीसरे, इस
युद्ध में निजी तौर पर चिमणाजी अप्पा, पवार
व होल्कर की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। उदाजी को डुंगरपुर, विष्णुसिंह को रावल से व होल्कर को बाँसवाडा से
धन वसूलने का अधिकार मिला। दूसरे शब्दों में पश्चिमी मध्यप्रदेश के बाद मराठे
राजस्थान की तरफ बढ़े । चौथे, अब
राजपूत भी मराठों की शक्ति से प्रभावित होकर समय-समय पर उनका सहयोग लेने लगे।
पाँचवे अगले कदम के रूप में उज्जैन व माण्डू पर हमला मराठों के एक निश्चित व
दृढ़नीति की ओर इंगित करता है।
बुंदेलखण्ड की ओर बढ़ने हेतु धन की आवश्यकता
बाजीराव को थी। अतः कायथा,
सुंदरसी, शाहजहाँपुर (शाजापुर), सारंगपुर
में लूटपाट की गई। नौलाई ( बड़नगर ) व रतलाम से कर वसूला गया। उज्जैन के कोतवाल
द्वारा 5000 रुपये दिये गये। यहाँ से मराठा नारा
सिरोज, अहिरवाड़ा, राजगढ़ होते. हुये कोटा, बूँदी होकर रामपूरा, भानपूरा व जावरा गये। मेवाड़ के राणा संग्राम
सिंह द्वितीय द्वारा बूढ़ा नारायण गढ़ नारायण राव बारगल को सौंपा गया। मल्हारराव
होल्कर द्वारा सरदेशमुखी,
चौथाई सायस व कारकूनी के नाम पर धन
जगोटी परगना से वसूला गया। नारोशंकर जो मल्हारजी व उदाजी दोनों की सेवा में था ने
इंदौर के नंदलाल मंडलोई से 1100
रुपये प्राप्त किये।
सितम्बर 1729 ई.
में कंठाजी कदम से खरगोन का घेरा डालकर 50,000 रुपयों की वसूली की। मुगल प्रशासन ने भवानीराम को चौकन्ना रहने की
हिदायत दी। उदाजी पवार व मल्हारराव होल्कर बरसात के मौसम में मालवा में डेरा डाले
रहे। सयाजी गुजर ने सोलह हजार रुपये महेश्वर, धरमपुरी, बागड़या तलाटी व काटकुट से वसूल किये जिसके
संबंध में कमाविसदार बाजी अनंत ने चिमाणाजी अप्पा को पत्र में लिखा था |
इस विजय ने मुगल साम्राज्य की शक्ति के खोखलेपन
को उजागर कर दिया और उसका विघटन सुनिश्चित कर दिया। इन छोटी-मोटी झड़पों से दक्षिण
मालव क्षेत्र (निमाड़) भी मराठों के प्रभाव में आ गया। दूसरे, मालवांचल व दक्षिण मध्यप्रदेश की आर्थिक स्थिति
कमज़ोर हो गई। तीसरे, स्थानीय राजपूत सामन्तों ने इस विजय का
विरोध नहीं स्वागत ही किया और तटस्थ बने रहें। चौथे, शाहू द्वारा बाजीराव पेशवा को मालवा (पश्चिम मध्यप्रदेश) से 17 अक्टूबर 1729 ई.
को चौथ वसूली का विधिवत् अधिकार प्रदान किया। उल्लेखनीय है कि 16 सितम्बर 1729 ई.
अर्थात् एक माह पूर्व ही पेशवा द्वारा अपने भाग में से मल्हारराव होल्कर व उदाजी
पवार को हिस्सा देने हेतु सनदें अता कर दी गई थीं। अर्थात् शाहू की सनद मात्र
औपचारिकता थी ।
अब नवम्बर 1729 ई.
में सवाई जयसिंह को मुगल सम्राट ने मालवा में सूबेदार नियुक्त किया और सितम्बर 1730 तक इस पद पर रहा। भवानीराम को उसे सहयोग देने
का आदेश हुआ, जिसे अस्वीकार कर वह मालवा से लौट गया।
इसके पूर्व कि जयसिंह उज्जैन पहुँचता मल्हारराव होल्कर व उदाजी पवार ने नवम्बर 1729 ई. में माण्डू दुर्ग पर अधिकार कर लिया किन्तु
सवाई जयसिंह के आग्रह पर दिसम्बर में उसे शाहू ने जयसिंह का मान रखते हुए उसे खाली
करने का आदेश दिया तथा पिलाजी जाधव व उदाजी पवार को रामपुरा के मामले में भी
हस्तक्षेप न करने को कहा ।
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