कमेनियस का शिक्षा सिद्धान्त |कमेनियस का शिक्षा मनोविज्ञान पाठ्यक्रम | Comenius's educational theory in Hindi
कमेनियस का शिक्षा सिद्धान्त (Comenius's educational theory in Hindi)
कमेनियस का शिक्षा सिद्धान्त (Comenius's educational theory in Hindi)
कमेनियस ने शिक्षा के सभी आयामों- उद्देश्य, संरचना, पाठ्यक्रम, शिक्षण–विधि, अनुशासन और दंड पर महत्वपूर्ण विचार प्रकट किये और उन्हें व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया । वस्तुतः कमेनियस के शिक्षा - सिद्धान्तों में आधुनिक शिक्षा के बीज निहित है।
कमेनियस के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य
- अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'दि ग्रेट डाइडेक्टिक' में कमेनियस ने मानव जीवन के मूल उद्देश्य की चर्चा करते हुए कहा "मानव का सर्वप्रमुख उद्देश्य है ईश्वर के साथ शाश्वत खुशी या प्रसन्नता "शिक्षा का उद्देश्य है इस महान कार्य में सहायता प्रदान करना । यहाँ तक उस समय के सभी दार्शनिक सहमत थे। लेकिन साधन के रूप में शिक्षा के संप्रत्यय के संदर्भ में भिन्नता थी । कमेनियस के पूर्व के दार्शनिक नैसर्गिक इच्छा, मूल प्रवृत्ति और संवेगो को नियन्त्रित या समाप्त कर मानसिक एवं नैतिक अनुशासन लाना चाहते थे । कमेनियस ने बिल्कुल दूसरी धारा पर कार्य किया- जो आधुनिक शैक्षिक प्रयत्नों का मार्ग बन गया। कमेनियस के अनुसार अंतिम या सर्वप्रमुख धार्मिक उद्देश्य की प्राप्ति अपने ऊपर नैतिक नियन्त्रण रखकर किया जा सकता 1 इसे स्वयं के बारे में ज्ञान तथा दूसरे पदार्थों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर हासिल किया जा सकता है। कमेनियस के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य है क्रमशः ज्ञान, सद्गुण तथा धर्मपरायणता को प्राप्त करना । कमेनियस ने संगत रूप में इन उद्देश्यों को तर्क एवं मनोविज्ञान के आधार पर एक सूत्र में पिरो दिया। ज्ञान, सदाचार एवं धर्मपरायणता यही आत्मोन्नयन का क्रम है और यही शिक्षा का उद्देश्य .
- कमेनियस ने अपने प्रथम पानसोफिक कार्य (विश्वज्ञान) में कहा कि ज्ञान प्राप्ति के तीन माध्यम हैं: (अ) इन्द्रियाँ (ब) बुद्धि तथा दैविक दृष्टि या दिव्य ज्ञान । मानव से गलतियां नहीं होंगी अगर इन तीनों में समन्वय बनाया जाय । अतः शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है ज्ञान के इन तीनों माध्यमों में समन्वय स्थापित कर मानव-जीवन को बेहतर बनाना ।
- कमेनियस सबों को शिक्षा देना चाहते थे क्योंकि उन्हें हर आदमी में अनन्त संभावनायें दिखती थी। साथ ही भाग्य की अनिश्चितता से मानव को बचाने हेतु कमेनियस सबों को हर चीज की शिक्षा देने का उद्देश्य रखते हैं। इस तरह से शिक्षा के सार्वजनीकरण का उद्देश्य का आधार धार्मिक था ।
कमेनियस का शिक्षा मनोविज्ञान
- कमेनियस पौधों एवं जन्तुओं के विकास, प्राकृतिक घटनाओं, बच्चों की रूचि, शिल्पों एवं मानवीय कलाओं के गम्भीर अवलोकनकर्ता थे। उनका मानना था कि बच्चे का प्राकृतिक विकास ही शिक्षा का सही आधार होना चाहिए। वे मानव के पाँच इन्द्रियों को आत्मा क द्वार मानते थे । वे इस पुराने कहावत को सही मानते थे "बुद्धि में ऐसा कुछ भी नहीं होता है जो पहले इन्द्रियों में न हो।” शिशु एवं वर्नाक्यूलर विद्यालयों की शिक्षा को कमेनियस ने इसी सिद्धान्त पर आधारित किया ।
- कमेनियस ने कल्पना शक्ति को छठी इन्द्रिय कहा। कमेनियस ने बच्चे के ज्ञान तथा अध्यात्मिक पक्ष के विकास के लिए कल्पना शक्ति को आवश्यक माना। उसने यह माना कि याद करने की शक्ति को अभ्यास के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। लेकिन याद करने के पूर्व विषय वस्तु की विवेचना एवं समझ आवश्यक है। अतः उसने श्यामपट्ट, चित्र, रेखाचित्र आदि के उपयोग को आवश्यक बताया। केवल महत्वपूर्ण चीजों को ही याद किया जाना चाहिए।
- कमेनियस ने तर्क एवं विवेक को महत्वपूर्ण माना। इसके द्वारा मानव को किसी भी चीज को कहाँ और कैसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए या उसकी उपेक्षा करनी चाहिए, को तय कर पाता है।
- शिक्षा में संवेगो की भूमिका को कमेनियस ने महत्वपूर्ण माना । इसके पूर्व किसी भी शिक्षाशास्त्री ने संवेग को महत्व नहीं दिया था। उसने बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा को जगाना शिक्षा के लिए लाभदायक माना। उसने संकल्प तथा नैतिक प्रकृति को मानव अनुभव में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना ।
- कमेनियस ने बच्चों के मध्य की भिन्नता को भी स्वीकार किया तथा अध्यापकों को सुझाव दिया कि कक्षा में समूह में शिक्षा देते समय भिन्नता पर भी ध्यान रखा जाय। कमेनियस ने पाठ्यक्रम एवं शिक्षण कार्य के निर्धारण में बच्चे के विकास के स्तर को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना । यह शिक्षा को उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। वह विकास के भिन्न-भिन्न स्तरों पर बच्चे की आवश्यकताओं, रूचियों तथा समझ की शक्ति को महसूस करता था उसी के आधार पर उसने पाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया । यह कमेनियस की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी ।
- कमेनियस यह नहीं चाहते थे कि छोटे बच्चे लगातार छह से आठ घंटे तक लगातार अध्ययन करें। उन्होंने छोटे बच्चों को एक दिन में चार घंटे और बड़े बच्चों को छह घंटे कार्य करने को कहा। गृह-कार्य न देने की संस्तुति की। बीच में तीस मिटन का अवकाश देने की आवश्यकता बताया। जिन कार्यों में मस्तिष्क को अधिक लगाने की आवश्यकता होती है उसे पहले करने को कहा तथा शेष कार्यों जैसे हस्तकला, संगीत आदि का अभ्यास अपराह्न में करने का सुझाव दिया। यह सब सुझाव दिखाता है कि कमेनियस का आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है।
- कमेनियस के पूर्व बच्चों को व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दी जाती थी । कक्षा का स्वरूप स्थापित नहीं हुआ था। कमेनियस ने एक कक्षा में एक साथ
- अनेक विद्यार्थियों को शिक्षा देने की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया। विद्यालयों में हर कक्षा और विषय के लिए अलग-अलग निश्चित पाठ्यपुस्तक की आवश्यकता पर कमेनियस ने जोर दिया और आगनात्मक पद्धति के अनुसार उसने स्वयं पाठ्यपुस्तकों की रचना की ।
कमेनियस द्तवारा तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की आलोचना
तत्कालीन प्रचलित शिक्षा व्यवस्था और विद्यालयों की कमेनियस ने कटु आलोचना की। "विद्यालय लड़को के लिए आतंक है और मस्तिष्क के लिए बूचड़खाना । यहाँ दस वर्ष व्यतीत करने के उपरांत बच्चे उतना ही सीख पाते है जो एक वर्ष में सिखाया जा सकता है। जिस ज्ञान को स्नेहसिक्त कोमलता के साथ दिया जाना चाहिए उसे हिंसक ढंग से शारीरिक दंड के द्वारा दिया जाता है।" कमेनियस ने ज्ञान को सरल और स्पष्ट रूप से देने की आवश्यकता बताई जबकि अत्यंत ही जटिल और भ्रमित करने वाले शब्दों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।
लड़के एवं लड़कियों- दोनों के लिए शिक्षा
- कमेनियस ने अपनी पुस्तक 'दि ग्रेट डाइडैक्टिक' लिखा में अमीर-गरीब, सम्मानित – सामान्य, शक्तिशाली - शक्तिहीन, सभी वर्ग के लड़के-लड़कियों को शिक्षा देनी चाहिए चाहे वह गाँव में रहता हो या कस्बा में या शहर में । हर जगह विद्यालय की व्यवस्था होनी चाहिए। सभी बच्चे को स्कूल जाना चाहिए- अगर भगवान ने स्वयं उसे बुद्धि या बोध न देकर शिक्षा से वंचित न किया हो। लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में कमेनियस ने स्पष्ट शब्दों में कहा- "उनमें लड़के समान ही तेज मस्तिष्क और ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता होती है। साथ ही वे सर्वोच्च पदों को प्राप्त कर सकती हैं क्योंकि स्वयं ईश्वर ने उसे राष्ट्रों पर शासन करने को कहा है। तो क्यों हमलोग उसे अक्षरों के लिए प्रवेश देते हैं पर बाद में पुस्तक से बाहर कर देते है ।"
विद्यालयी शिक्षा का महत्व
- कमेनियस के अनुसार गृह - शिक्षा से बेहतर विद्यालय द्वारा दी जाने वाली शिक्षा है। विद्यालय अनिवार्य है क्योंकि अभिभावकों में प्रायः शिक्षा देने की योग्यता नहीं होती और न ही उनके पास इसके लिए समय होता है। कमेनियस के अनुसार अगर माता-पिता के पास बच्चों को शिक्षा देने हेतु योग्यता एवं अवकाश भी हो तो भी बच्चों को कक्षाओं में, समूह में शिक्षा देना अधिक लाभदायक है जब किसी बच्चे को उदाहरण और अभिप्रेरणा के रूप में सामने रखकर सिखाया जाता है तो अच्छा परिणाम आता है और सीखना भी आनन्दप्रद हो जाता है। जो दूसरे को करते देखते हैं वही हमलोग करते हैं, वहाँ जाना चाहते हैं जहाँ दूसरे लोग जाते है, उनलोगों के साथ चलने का प्रयास करना जो हमसे आगे हैं और उनके आगे रहने का जो हमसे पीछे हैं ऐसा करना हमारा प्राकृतिक गुण है। उपदेश की तुलना में छोटे बच्चे उदाहरण के द्वारा अधिक प्रभावित होते हैं। अगर अध्यापक उन्हें उपदेश देता है तो यह बच्चों पर अत्यल्प प्रभाव डालता है पर जब अध्यापक उन्हें दिखाता है कि दूसरे ऐसा कर रहे हैं तो वह भी ऐसा करने लगता है। कमेनियस सबों के लिए समान विद्यालय चाहता है। वह कहता है मैं चाहता हूँ सभी मानव को सभी गुणों की शिक्षा दी जाय, विशेषतः सरलता, समाजिकता तथा विनम्रता की। इस छोटी आयु में वर्ग विभेद को बढ़ावा देकर कुछ विद्यार्थियों को अपने को श्रेष्ठता की दृष्टि से देखना और दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखने का अवसर देना अवांछित है।"
कमेनियस के अनुसार विद्यालय का संगठन
- विद्यालय के संगठन के संदर्भ में भी कमेनियस अपने समकालीनों से दो शताब्दी आगे था । कमेनियस ने अपनी पुस्तक 'दि स्कूल ऑफ दि मर्दस नी' में माताओं को बच्चों की प्रारभिक शिक्षा पर ध्यान देने को कहा है। साथ ही शिशुओं की शारीरिक देखभाल, व्यवहार का प्रशिक्षण, स्थान तथा समय का सामान्य अनुभव तथा विभिन्न घटनाओं के मध्य कार्य-कारण सम्बन्ध का ज्ञान देना चाहिए। इस तरह से नर्सरी विद्यालय की आधारशिला कमेनियस ने तैयार की।
कमेनियस विद्यालयों का गठन निम्नलिखित योजना के आधार पर करना चाहते थे
i. मातृ या नर्सरी विद्यालय- जन्म से छह वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए ।
ii. वर्नाक्यूलर ( जनभाषा ) या प्राथमिक विद्यालय - यह छह से बारह वर्ष तक के विद्यार्थियों के लिए प्रत्येक गाँव में होना चाहिए।
iii. लैटिन या माध्यमिक विद्यालय- यह बारह से अठारह वर्ष तक के विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए प्रत्येक नगर में होना चाहिए।
V. विश्वविद्यालय – यह सामान्यतः अठारह से चौबीस वर्ष के विद्यार्थियों के लिए प्रत्येक प्रांत में होना चाहिए।
vi. विश्वविद्यालय से ऊपर 'कॉलेज ऑफ लाइट' था जहाँ सभी विषयों में अन्वेषण किया जाता था ।
कमेनियस के अनुसार एक स्तर से दूसरे स्तर में केवल योग्यता के आधार पर जाने की अनुमति मिलनी चाहिए।
जब बच्चा केवल छह वर्ष का होता है तो यह कहना कठिन होता है कि वह भविष्य में क्या बनेगा, वह बौद्धिक कार्य के लिए उपयुक्त है या शारीरिक परिश्रम के लिए। अतः उनकी रूचि का स्पष्ट ज्ञान इस स्तर पर नहीं हो सकता है। कमेनियस ने लैटिन स्कूल को केवल धनी, प्रभावशाली और प्रशासक वर्ग के बच्चों के लिए सुरक्षित रखने का विरोध करते हुए सभी वर्ग के योग्य बच्चों के लिए इसके द्वार खोलने की वकालत की। विश्वविद्यालय में प्रवेश के नियम कड़े होने चाहिए। केवल योग्यतम विद्यार्थियों को ही विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलना चाहिए। चुने विद्यार्थी जो कि मानवों में श्रेष्ठ है, बेहतर प्रगति करेंगे। शेष को अपना ध्यान किसी उद्योग, व्यापार या कृषि में लगाना चाहिए ।
कमेनियस के अनुसार पाठ्यक्रम
कमेनियस ने पाठ्यक्रम निर्माण में भी विश्व ज्ञान या पानसोफिया के सिद्धान्त का अनुसरण किया। जिसका उदाहरण शिशु या मातृ विद्यालय के लिए सुझाये गये पाठ्यक्रम से स्पष्ट है। वे कहते हैं कि शारीरिक देखभाल, व्यवहार प्रशिक्षण के साथ-साथ शिशुओं को इतिहास, भूगोल और यहाँ तक कि धर्म की शिक्षा दी जाये।
वर्नाक्यूलर स्कूल में मातृभाषा की शिक्षा पर जोर देते हुए कमेनियस ने इसे ही शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया। मातृभाषा का अध्ययन प्राचीन भाषाओं- लैटिन, ग्रीक, हिब्रू से अधिक आवश्यक बताया। पाठ्यक्रम में सामान्य गणित, गीत, धर्म, नैतिकता, अर्थशास्त्र, राजनीति, सामान्य इतिहास एवं कला को स्थान दिया ।
लैटिन स्कूलों का उद्देश्य तर्कशक्ति का विकास करना था अतः कमेनियस ने इन विद्यालयों के पाठ्यक्रम में तर्कशास्त्र, व्याकरण, अलंकार शास्त्र, विज्ञान एवं कला को रखा। इस स्तर पर विद्यार्थियों को चार भाषाओंको सीखने की संस्तुति की। ये भाषायें हैं- मातृभाषा, लैटिन, ग्रीक और हिब्रू । कमेनियस ने लैटिन विद्यालयों का पाठ्यक्रम छह वर्षों को रखा। प्रत्येक वर्ष में शिक्षा देने का एक मुख्य विषय निर्धारित कर कक्षाओं का नामाकरण भी उसी आधार पर किया, यथा-
प्रथम वर्ष -व्याकरण- कक्षा
द्वितीय वर्ष प्राकृतिक दर्शन - कक्षा
तृतीय वर्ष- गणित - कक्षा
चतुर्थ वर्ष -नीतिशास्त्र – कक्षा
पंचम वर्ष -डाइलेक्टिक - कक्षा
अंतिम वर्ष- अलंकार शास्त्र - कक्षा
इस नामाकरण से यह नहीं समझना चाहिए कि उस वर्ष मात्र उसी विषय की पढ़ाई होनी थी। पढ़ाई सभी विषयों की होनी थी- केवल जोर उस विषय पर होना था जिस पर नाम रखा गया ।
विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में धर्मशास्त्र की शिक्षा का प्रावधान किया गया- जिससे युवक आत्मा के सम्पर्क में आ सकें। मस्तिष्क के विकास के लिए दर्शन पढ़ाने की व्यवस्था की गई। स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए चिकित्साशास्त्र एवं सामाजिक सम्बन्धों को बेहतर बनाने हेतु न्यायशास्त्र को भी पाठ्यक्रम में रखने का सुझाव कमेनियस ने दिया। परम्परागत रूप से तीनों प्रोफेशन- वकील, पादरी एवं चिकित्सा की भी शिक्षा एवं प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई। शासन के संचालन हेतु नेताओं एवं प्रशासकों को भी तैयार करने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालयों की ही थी । कमेनियस के अनुसार विश्वविद्यालयों को शोध केन्द्र को रूप में कार्य करना चाहिए। ज्ञान के विकास हेतु कमेनियस ने भ्रमण को महत्वपूर्ण माना। उसके अनुसार विश्वविद्यालयी शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत व्यक्ति को भ्रमण करना चाहिए, विद्वानों से विचार-विनिमय करना चाहिए ताकि ज्ञान का प्रसार और सृजन हो सके।
कमेनियस ने विश्वज्ञान के संप्रत्यय पर काफी जोर दिया । विश्वज्ञान के प्रमुख विषय हैं: व्याकरण, अलंकार शास्त्र, अंकगणित, खगोल विद्या, भौतिकी, भूगोल, इतिहास, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र | इतिहास के अध्ययन को कमेनियस अत्यन्त महत्वपूर्ण मानता था । उनका कहना थाः मानव की शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है उसका इतिहास से परिचय और यह परिचय उसके सम्पूर्ण जीवन में तीसरे नेत्र के समान है। अतः यह विषय छह कक्षाओं में से प्रत्येक में पढ़ना चाहिए, ताकि हमारे विद्यार्थी अतीत से आज तक की घटनाओं से अनभिज्ञ न रह जाएँ ।"
कमेनियस ने पाठ्यक्रम में उपयोगी विषयों के अध्यापन पर भी जोर दिया। इस संदर्भ में उन्होंने कहा "जो कुछ भी पढ़ाया जाय वह दैनिक जीवन की व्यावहारिक एवं निश्चित उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही पढ़ाया जाय । कहने का तात्पर्य है कि बालक को यह समझना चाहिए कि जो कुछ सीख रहा है; वह प्लेटो के प्रत्ययों की दुनिया की चीज अथवा काल्पनिक वस्तु ही नहीं है वरन् वह हमारे वातावरण का तथ्य है और उस तथ्य से उसका परिचय जीवन के लिए बड़ा उपयोगी होगा। इस प्रकार उसकी शक्ति एवं शुद्धता में वृद्धि की जा सकती है ।"
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कमेनियस द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम काफी विस्तृत था जिसमें ज्ञान एवं जीवन के हर पक्ष को समाहित किया गया है।
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