राजर्षि टण्डन की नीतियों एवं कार्यों की आलोचना |Criticism of Rajarshi Tandon's policies and actions

राजर्षि टण्डन की नीतियों एवं कार्यों की आलोचना

राजर्षि टण्डन की नीतियों एवं कार्यों की आलोचना |Criticism of Rajarshi Tandon's policies and actions

राजर्षि टण्डन की नीतियों एवं कार्यों की आलोचना

  • अनेक राजनीतिज्ञों एवं बुद्धिजीवियों ने राजर्षि टण्डन की नीतियों की आलोचना की है। हिन्दू संस्कृति का कट्टर समर्थक बताकर उन्हें सम्प्रदायिकता के विकास में एक कारक माना है। पर शायद पं0 जवाहर लाल नेहरू एवं उनके समर्थक टण्डन के विचारों को सही ढंग से समझ नहीं पाये । श्री वियोगी हरि इस संदर्भ में राजर्षि टण्डन के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं "हिन्दू धर्म की चन्द घिसी पिटी मान्यताओं या परम्पराओं पर विश्वास करनाइसी को बहुतेरे लोग संस्कृति मानते हैं। टण्डन जी ऐसे विश्वासों से बहुत दूर थे। 'कल्चरशब्द को भी वह संस्कृति के रूप में नहीं लेते थे। जो कृति सम्यक होसच्ची होदूसरों का उद्वेग करने वाली न हो और सब प्रकार से समीचीन होसुन्दर होउसी को वह भारतीय संस्कृति मानते थे। वह आक्रमणात्मक नहींकिन्तु समन्वयात्मक थे। मगर समन्वय वह जिसमें न तो तुष्टीकरण होता है और न स्वार्थ की गंध पाई जाती है। इसी संस्कृति के टण्डन उपासक थे और इसी के पुनरूद्धार के लिए वह व्याकुल रहते थे। "

 

  • राजर्षि टण्डन की दूसरी आलोचना हिन्दी के प्रति उनके अत्यधिक लगाव के कारण की गई है। उन्होंने संविधान सभा में जिस दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष रखा उसकी अनेक लोग सराहना नहीं करते हैं। पर इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि स्वतंत्र राष्ट्र की एक राष्ट्रभाषा होनी ही चाहिए और हिन्दी इसके लिए सबसे उपयुक्त है । राजर्षि टण्डन अंग्रेजी के प्रभुत्व के विरूद्ध थे। उनकी मान्यता हिन्दी को लोकग्राह्य बनाने और उसे साकार रूप देने में है। राजर्षि टण्डन उर्दू के विरोधी नहीं थे। उसे तो वह हिन्दी की ही एक विशिष्ट शैली मानते थे। उन्होंने कहा था "हिन्दी वाले अनगिनत अरबी-फारसी शब्दों को पचाये हुए हैंपर उर्दू वाले अपरिचित और दुरूह शब्दों से अपनी भाषा को क्लिष्ट और बोझिल बना कर हिन्दी से इसे अलग करते जा रहे हैं।"

 

  • इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि राजर्षि टण्डन भारत की उन महान विभूतियों में गिने जाते हैं जिन्होंने देश और समाज की निःस्वार्थ सेवा करना ही अपने जीवन का चरम लक्ष्य माना। उन्होंने देश की सेवा विभिन्न रूपों में किया- राजनेता के रूप मेंसमाज सेवक के रूप मेंसाहित्यकार के रूप मेंपत्रकार के रूप में और अध्यापक के रूप में। उनका सम्पूर्ण जीवन भारतीयों को प्रेरणा देता रहेगा ।

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