डीवी के शिक्षा दर्शन की समालोचना | Critique of DV's Education Philosophy in Hindi
डीवी के शिक्षा दर्शन की समालोचना(Critique of DV's Education Philosophy in Hindi)
डीवी के शिक्षा दर्शन की समालोचना
यद्यपि डीवी के विचारों को शिक्षा जगत में उत्साह के साथ स्वीकार किया गया परन्तु साथ ही साथ उसकी आलोचना भी की गई। आलोचना के निम्नलिखित आधार थे-
1. सत्य को स्थायी न मानने में कठिनाई -
- डीवी सत्य को समय एवं स्थान के सापेक्ष परिवर्तनशील मानते हैं। डीवी के अनुसार कोई भी दर्शन सर्वदा सही या सत्य नहीं हो सकता। कुछ विशेष स्थितियों में ही इसकी उपयोगिता होती है। उपयोगिता ही सत्य की अंतिम कसौटी है । अतः आदर्शवादियों ने डीवी की आलोचना की।
2. भौतिकवादी आग्रह-
- आदर्शवादी दर्शन के विरोध में विकसित होने के कारण आदर्शवदियों आध्यात्मिक आग्रह के विपरीत इनमें भौतिकता के प्रति आग्रह है ।
3. शिक्षा के किसी भी उद्देश्य की कमी-
- शिक्षा के द्वारा प्रजातांत्रिक आदर्श की प्राप्ति का उद्देश्य डीवी के शिक्षा सिद्धान्त में अन्तर्निहित है पर वह शिक्षा का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं बताता है। उसके लिए शिक्षा स्वयं जीवन है तथा इसके लिए कोई उद्देश्य निर्धारित करना संभव नहीं है। अधिकांश विद्वान इससे असहमत है। उनके मत में शिक्षा का विकास तभी हो सकता है जब उसका कुछ निश्चित लक्ष्य एवं उद्देश्य हो। बच्चे को विद्यालय भेजने का कुछ निश्चित उद्देश्य होता है। यद्यपि विद्यालय कई अर्थों में समाज के मध्य इसका एक अलग अस्तित्व है।
4. व्यक्तिगत भिन्नता पर अत्यधिक जोर-
- आधुनिक दृष्टिकोण बच्चे की भिन्नता को शिक्षा देने में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानता है। बच्चे को उसकी रूचि एवं झुकाव के अनुसार शिक्षा देनी चाहिए । पाठ्यक्रम तथा विधियाँ इसे ध्यान में रखकर तय की जाये। सिद्धान्ततः यह बात बिल्कुल सही प्रतीत होती है पर वास्तविक स्थिति में इसे लागू करने पर कई कठिनाईयाँ सामने आती है । यह लगभग असंभव है कि हर बच्चे के लिए अलग-अगल शिक्षा योजना बनाई जाये। किसी विषय में किसी बच्चे की रूचि बिल्कुल नहीं हो सकती है, फिर भी अध्यापक को पढ़ाना पड़ता है।
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