प्लेटो के अनुसार शिक्षण विधि सार्वजनिक शिक्षा| प्लेटो के शिक्षा दर्शन की सीमायें| Education Method According Plato
प्लेटो के अनुसार शिक्षण विधि (Education Method According Plato)
प्लेटो के अनुसार शिक्षण विधि
प्लेटो के गुरू, सुकरात, संवाद (डायलॉग) द्वारा शिक्षा देते थे- प्लेटो भी इसी पद्धति को पसन्द करते थे। प्लेटो ने संवाद के द्वारा मानव जीवन के हर आयाम पर प्रकाश डाला है। एपालोजी एक अत्यधिक चर्चित संवाद है जिसमें सुकरात अपने ऊपर लगाए गए समस्त आरोपों को निराधार सिद्ध करते है । 'क्राइटो' एक ऐसा संवाद है जिसमें वे कीड़ो के साथ आत्मा के स्वरूप का विवेचन करते हैं। प्लेटो अपने गुरू सुकरात के संवाद को स्वीकार कर उसका विस्तार करता है। उसने संवाद को अपने साथ निरन्तर चलने वाला संवाद' कहा ( मुनरो, 1947: 64 ) । सुकरात ने इसकी क्षमता सभी लोगों में पाई पर प्लेटो के अनुसार सर्वोच्च सत्य या ज्ञान प्राप्त करने की यह शक्ति सीमित लोगों में ही पायी जाती है। शाश्वत सत्य का ज्ञान छठी इन्द्रिय यानि विचारों का इन्द्रिय का कार्य होता है। इस प्रकार सुकरात अपने समय की प्रजातांत्रिक धारा के अनुकूल विचार रखता था जबकि इस दृष्टि से प्लेटो का विचार प्रतिगामी कहा जा सकता है।
प्लेटो के अनुसार सार्वजनिक शिक्षा
- 'दि रिपब्लिक' में शिक्षा के वर्गीय चरित्र को प्लेटो ने अपने अंतिम कार्य 'दि लॉज' में प्रजातांत्रिक बनाने का प्रयास किया । वे 'दि लॉज' में लिखते हैं "बच्चे विद्यालय आयेंगे चाहे उनके माता-पिता इसे चाहे या नहीं चाहे । अगर माता-पिता शिक्षा नहीं देना चाहेंगे तो राज्य अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगी और बच्चे माता-पिता के बजाय राज्य के होंगे। मेरा नियम लड़के एवं लड़कियों दोनों पर लागू होगा। लड़कियों का बौद्धिक एवं शारीरिक प्रशिक्षण उसी तरह से होगा जैसा लड़कों का ।" लड़कियों की शिक्षा पर प्लेटो ने जोर देते हुए कहा कि वे नृत्य के साथ शस्त्र - संचालन भी सीखें ताकि युद्ध काल में जब पुरूष सीमा पर लड़ रहे हों तो वे नगर की रक्षा कर सकें। इस प्रकार मानव जाति के इतिहास में प्लेटो पहला व्यक्ति था जिसने लड़के एवं लड़कियों को समान शिक्षा देने की वकालत की। इस दृष्टि से वह अपने समय से काफी आगे था ।
प्लेटो के शिक्षा दर्शन की सीमायें
- प्लेटो के आदर्श राज्य में शासक बनने वाले दार्शनिकों की शिक्षा केवल एकांगी ही नहीं है अपितु उसकी उच्च शिक्षा की योजना समुदाय के इसी वर्ग तक सीमित भी है । रक्षकगण केवल संगीत तथा व्यायाम की सामान्य शिक्षा ही प्राप्त करते हैं, और शिल्पकारों को, जिन्हें राज्य शासन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई थी, या तो अपरिपक्व व्यावसायिक प्रशिक्षण अथवा 'कोई शिक्षा नहीं से संतुष्ट होना पड़ता है। शासक वर्ग तक ही शिक्षा के लाभों को सीमित रखना आधुनिक प्रजातान्त्रीय शिक्षा के विरूद्ध है।
- शिक्षा एवं राज्य की सरकार में शिल्पकारों को भाग लेने से वंचित रखने के कारण प्लेटो के राज्य को 'आदर्श' की संज्ञा नहीं देनी चाहिए ।
न्यूमन (1887: 428) ने ठीक कहा है
"सबसे अच्छा राज्य वह है जो पूर्ण स्वर्ण है, वह नहीं है जो स्वर्ण जटित है... दस न्यायप्रिय मनुष्यों से अच्छा राज्य नहीं हो जाता, राज्य की श्रेष्ठता का रहस्य इस तथ्य में निहित रहता है कि उसमें उचित रीति से व्यवस्थित श्रेष्ठ नागरिकों का समुदाय हो । प्लेटो ने अपने राज्य के तीन भागों में से किसी एक में भी वांछनीयतम जीवन को अनुभव किए बिना उस सब की बलि दे दी है जो जीवन को प्राप्य बनाता है ।" इस प्रकार आदर्शवादी प्लेटो पर्याप्तरूपेण आदर्शवादी नहीं था.
- प्राचीन यूनान में दास प्रथा काफी प्रचलित थी और बड़ी संख्या में दास थे पर प्लेटो उनको सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) का हिस्सा नहीं मानते थे, न ही उन्हें नागरिक का अधिकार देना चाहते थे। अतः उनकी शिक्षा के संदर्भ में प्लेटो कुछ नहीं कहते । वस्तुतः वे उन्हें शिक्षा का अधिकारी नहीं मानते थे और उनके लिए यह व्यवस्था की कि उन्हें पारिवारिक पेशे को ही अपनाकर घरेलू कार्यों में लगे रहना चाहिए।
- प्लेटो ने व्यावसायिक शिक्षा को महत्वहीन माना। उनका कहना था कि शिक्षा तो केवल चिन्तन प्रधान- विषय की ही हो सकती है। वे शारीरिक श्रम को निम्न स्तरीय कार्य मानते थे । दि लॉज में तो उन्होंने यहाँ तक प्रावधान कर डाला कि अगर नागरिक अध्ययन की जगह किसी कला या शिल्प को अपनाता है तो वह दण्ड का भागी होगा ।
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