रूसो के अनुसार महिलाओं की शिक्षा |Education of women according to Rousseau
रूसो के अनुसार महिलाओं की शिक्षा
रूसो के अनुसार महिलाओं की शिक्षा
- एमिल की शिक्षा प्राकृतिक है, सोफी की परम्परागत । रूसो लड़के एवं लड़की की शिक्षा में लगातार अंतर करता है, लेकिन यह अंतर प्राकृतिक कारणों से नहीं है- महिलायें मानव हैं, भिन्नता केवल लिंग की है। अंतर जीवन के उद्देश्य की भिन्नता के कारण आता है. "पुरूष कार्य करना चाहता है, औरतें प्रसन्न करना चाहती हैं, एक को ज्ञान की आवश्यकता है तो दूसरे को रूचि की।" लड़के को आवश्यकता को ध्यान में रखना होता है लड़की को उचित - अनुचित का। लड़के की शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य है स्वतंत्रता, लड़कियों का नियंत्रण । तर्क के आधार पर लड़के का धर्म तय हुआ, लड़की का दूसरों के नियंत्रण के आधार पर । मिल्टन की ही तरह रूसो का विचार है "लडके विद्रोह के लिए तथा लड़कियाँ आज्ञापालन के लिए ।"
- लड़कियों की शिक्षा लड़कों की शिक्षा का पूरक होनी चाहिए। रूसो कहते हैं महिलाओं को पुरूषों के आनन्द के लिए बनाया गया है अतः उसकी शिक्षा की योजना पुरूषों के संदर्भ में बननी चाहिए तथा पुरूषों की शिक्षा की अनुगामिनी होनी चाहिए। पुरूषों को महिलायें देखने में सुखदायी लगनी चाहिए, पुरूष के सम्मान एवं प्यार को जीतने में सक्षम होनी चाहिए।
- नारी सुलभ कमजोरियों को रूसो ने प्राकृतिक एवं सही माना । शिक्षा में अध्यापकों को इसका लाभ उठाना चाहिए।
- लड़कियाँ लिखना पढ़ना पसन्द नहीं करती हैं अतः उसे तब तक उन विषयों को नहीं पढ़ाना चाहिए जब तक वह उसको उपयोगी नहीं पाती तथा उसे सीखने की इच्छा नहीं दिखाती। सिलाई की उसकी इच्छा को प्रोत्साहित करना चाहिए तथा कढ़ाई-बुनाई को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षक को पसन्द की पोशाक एवं कला के सम्बन्ध को देखना चाहिए तथा इस कला में रूचि बढ़ाना चाहिए। चित्रांकन को लिखने-पढ़ने के पहले सीखना चाहिए।
- रूसो के अनुसार लड़कियाँ धर्म के बारे में सही विचार बनाने में असमर्थ है। लड़कों की धार्मिक शिक्षा किशोरावस्था के पूर्व रोकने की बात कही गई पर लड़की के बारे में यह नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि अगर हम उनको भी धार्मिक शिक्षा देने के लिए तब तक रोकते है जब तक वे इसके बारे में गंभीर विचार-विमर्श के लिए तैयार न हो जाये तो हम इस खतरे में होंगे कि उन्हें धर्म की शिक्षा कभी न दे पायें ।
- सामान्यतः रूसो की शिक्षा-व्यवस्था एमिल के पक्ष में है पर बुक पाँच में धार्मिक शिक्षा सामान्यतः लड़कियों के पक्ष में दिखती है। "जब तुम छोटी लड़कियों को धर्म की शिक्षा दे रहे हो तो इसे कभी भी निराशाजनक या थकानेवाला न बनाओ, इसे कभी भी कार्य या दायित्व न बनाओ, इसलिए उसे कुछ मैं भी हृदय से याद करने मत दो- प्रार्थनाओं को भी नहीं... यह महत्वपूर्ण नहीं है कि एक लड़की कम आयु में धर्म सीखे पर यह महत्वपूर्ण है कि उसे इसे समग्रता में सीखना चाहिए, इससे भी अधिक उसे इसे प्रेम करना सीखना चाहिए ।"
- रूसो के अनुसार महिलायें सोचने की कला से वंचित नहीं होती है। लेकिन उन्हें तर्कशास्त्र तथा अध्यात्म का ऊपरी जानकारी ही मिलनी चाहिए। सोफी चीजों को आसानी से समझती है लेकिन जल्द ही भूल जाती है। उसे नीतिशास्त्र और सौन्दर्यशास्त्र तथा भौतिक विज्ञानों में इस संसार के सामान्य नियमों एवं व्यवस्था की हल्की जानकारी रखनी चाहिए।
- रस्क के अनुसार रूसो दो भिन्न एवं परस्पर विरोधाभासी शिक्षा योजना प्रस्तुत करता है पर उन व्यक्तियों में जिनके प्राकृतिक गुण समान हो, यद्यपि उनके जीवन - उद्देश्य भिन्न हों, फिर भी साथ रहते हैं, सही शिक्षा व्यवस्था दोनों के मध्य समन्वय का होगा। एमिल के तर्क परक प्रशिक्षण व्यवस्था सोफी की अतार्किक शिक्षा योजना से समन्वित एवं संतुलित होनी चाहिए - विशेषतः अगर दोनो का एक दूसरे के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। यद्यपि व्यावहारिक उद्देश्य की दृष्टि से यह परिवर्तन आवश्यक हो सकता है पर जिस दृढ़ता के साथ रूसो ने इन दोनों को एक दूसरे से भिन्न दिखलाया है वह एमिल को शिक्षा-साहित्य में स्थायी स्थान दिलाता है।
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