रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थायें |Educational Institutions Founded by Rabindranath Tagore

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थायें

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थायें |Educational Institutions Founded by Rabindranath Tagore
 

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थायें

रवीन्द्रनाथ टैगोर उन महान शिक्षाशास्त्रियों में से एक है जिन्होंने शिक्षा से सम्बन्धित केवल सिद्धान्त ही प्रतिपादित नही किए वरन् उन्हें व्यवहारिक रूप भी देने का प्रयास किया। इस क्रम में गुरूदेव ने अनेक शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना कीजो निम्नलिखित है-

 

1 शान्तिनिकेतन 

1901 मे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना बोलपुर के पास की। बाद में इसका नाम उन्होंने शान्तिनिकेतन रखा। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि जिस समय ब्रह्मचर्य विद्यालय की स्थापना की गई उस समय टैगोर नेवैद्य नामक कविताएं लिख रहे थे। जिस पर उपनिषद् के आर्दशों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। उसी समय ब्रह्मबांधव उपाध्याय ने टैगोर को 'गुरुदेवकहा और वे अंत तक गुरूदेव बने रहे। टैगोर विद्यालयों के नियमों को संहिता पर आधारित करना चाहते थे ताकि भारतीय परम्परा के अनुसार विद्यालय का संचालन किया जा सके।

 

  • प्रारंभ में शान्तिनिकेतन को रवीन्द्रनाथ टैगोर के दो पुत्रों रतिन्द्रनाथ तथा समिन्द्रनाथ के साथ प्रारंभ किया गया। बाद में छात्रों तथा अध्यापकों की संख्या बढ़ती गई। 1913 तक गुरूदेव ने स्वंय ही इस संस्था का व्यय वहन किया। 1913 में नोबेल पुरस्कार मिलने के उपरांत आर्थिक संकट कम हुआ । अमेरिकायूरोपचीनजापान आदि देशों के भ्रमण करने से गुरूदेव के शैक्षिक विचारों में परिपक्वता आई शान्तिनिकेतन विश्वभर की संस्कृतियों का मिलन स्थल बन गया जहाँ कोई भी बिना धर्मदेश या संस्कृति के भेदभाव के सम्मानपूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सकता था ।

 

  • टैगोर शान्तिनिकेतन से कुछ हद तक निराश हुए। उन्हें लगा कि उसमें उनके विचारो पर अमल नहीं किया जा रहा है। वे कहते हैं "अभिभावकों की अवसरवादिता परीक्षा प्रणाली लागू करने के लिए जिम्मेवार है। इसने एक प्रकार से आजादी और स्वतः स्फूर्तता का वातावरण कमजोर किया ।"

 

2 शिक्षा सत्र

 

  • अपना प्रयोग जारी रखने के लिए टैगोर ने 1924 में 'शिक्षा सत्र के नाम से एक और स्कूल प्रारम्भ किया। इसमें ऐसे बच्चे शामिल किए गये जो अनाथ थे या जिनके माता-पिता इतने गरीब थे कि वे उन्हें किसी भी स्कूल में नही भेज सकते थे। उन्हें इस स्कूल से बड़ी आशाएं थी। वस्तुतः उन्हें उम्मीद थी कि शान्तिनिकेतन की कमियां इस विद्यालय में नही आयेंगी और यह विद्यालय उनके विचारों का सही अर्थों में मूर्तरूप होगा। लेकिन शिक्षा सत्र के महत्वपूर्ण शैक्षिक प्रयोगों को टैगोर के उपरांत विस्मृत कर दिया गया और वह एक सामान्य विद्यालय बन गया।

 

3 श्रीनिकेतन 

  • गुरूदेव भारतीय ग्राम्य जीवन को पुनः उसकी गौरवशाली परम्पराओं के आधार पर पुनर्जीवित करना चाहते थे। 1905 में उन्होंने स्वदेश समाजनामक निबन्ध में कृषिशिल्पग्रामोद्योग को पुनः विकसित करने पर जोर दिया । इन्हीं सपनों को वास्तविक रूप देने के लिए शान्तिनिकेतन के एक मील की दूरी पर, 'सुरूलनामक स्थान में ग्रामीण पुनर्रचना के लिए उन्होंने श्रीनिकेतन की स्थापना की ।

 

  • यह एक दिलचस्प तथ्य है कि 1920 के दशक के मध्य उन्होंने दो प्रसिद्ध नाटक उस समय लिखे जब श्रीनिकेतन का प्रयोग चल रहा था। ये थे 1922 में लिखी गई मुक्तोधारा और 1924 में लिखी गई रक्तकरबी। दोनों में ही मशीनी सभ्यता के प्रति विरोध का भाव है। वे प्रकृति पर मशीनी टेक्नोलॉजी के प्रभुत्व से चितिंत थे। तकनीकी प्रभुत्व वाले समाज के शोषण के चरित्र के प्रति तिरस्कार की भावना स्पष्ट है। श्रीनिकेतन का प्रयोग आरम्भ करने के लिए उन्हें विदेश से एमहर्स्ट द्वारा लाई गई वित्तीय सहायता पर निर्भर होना पड़ा था। श्रीनिकेतन प्रयोग के दौरान ग्रामीण समाज की विशेष जरूरत के आधार पर विकसित आत्म सहायता और सहयोग के जरिए सामुदायिक विकास पर ध्यान दिया गया।

 

4 विश्वभारती

 

  • 1921 के अंत में शान्तिनिकेतन का विस्तार विश्वभारती विश्वविद्यालय के रूप में किया गया। यह विश्वविद्यालय अपने आदर्श वाक्य 'यत्र विश्वम् भवेत्य नीड़म्को साकार करता है। सच ही यहाँ सम्पूर्ण वसुधा विश्वभारतीनामक घोसले में समा जाती है। यह एक ऐसी संस्था है जहाँ पूर्व की सभी संस्कृतियों का मिलन होता हैजहाँ दर्शन और कला की हर परम्परा एक दूसरे से सम्बन्ध बनाती हैजहाँ पूर्व और पश्चिम के दार्शनिकसाहित्यकार एवं कलाकार अपनत्व महसूस करते है। 

  • विश्वभारती एक आवासीय विश्वविद्यालय है जहाँ सह-शिक्षा की व्यवस्था है। राष्ट्रीयताधर्मजातिभाषा के आधार पर विद्यार्थियों एवं अध्यापकों में कोई भेदभाव नहीं है। सभी ईश्वर की उत्कृष्ट रचना मानव के रूप में सम्मान के साथ अध्ययन करते हैं। सन् 1951 में भारतीय संसद में 'विश्वभारतीको केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी। इससे आर्थिक सुदृढ़ता तो आयी पर अन्य सरकार पर आधारित अन्य विश्वविद्यालयों की तरह इसमें भी नवीनता एवं सृजनात्मकता पर जोर क्रमशः कम होने लगा ।

 

विश्वभारती में अनेक विभाग हैजिन्हें 'भवनकहा जाता है। ये भवन निम्नलिखित है-

 

(i) पाठ भवन- यह उच्च विद्यालय स्तर तक की शिक्षा बंगला भाषा में प्रदान करता है। 

(ii) शिक्षा भवन- इसमें इण्टर तक की शिक्षा दी जाती है। बंगलाअंग्रेजीहिन्दीसंस्कृततर्कशास्त्रराजनीतिशास्त्रइतिहासअर्थशास्त्रगणितभूगोलविज्ञान आदि विषयों की शिक्षा की व्यवस्था है.  

(iii) विद्या भवन- इसमें स्नातक स्तर का तीन वर्षीय पाठ्यक्रमदो वर्षों का एम०ए० तथा एम०एससी० का पाठ्यक्रम और पी-एच०डी० की व्यवस्था है। 

(iv) विनय भवन - यह अध्यापक शिक्षा विभाग है। जिसमें बी०ए०एम0एड0 एवं शिक्षाशास्त्र में पी-एच०डी० की व्यवस्था है । 

(v) कला भवन- 

कला तथा शिल्प में दो वर्ष का पाठ्यक्रम हाईस्कूल के उपरांत चार वर्षीय डिप्लोमा तथा स्त्रियों के लिए दो वर्ष का सर्टिफिकेट कोर्स कला भवन में उपलब्ध है। इस भवन में अपना पुस्तकालय एवं संग्रहालय है । 

(vi) संगीत विभाग - 

इसमें संगीत और नृत्य से सम्बन्धित विभिन्न तरह के पाठ्यक्रम संचालित किए जाते है ।

(vi) चीन भवन - 

इसमें चीनी भाषा और संस्कृतिइतिहास के बारे में शिक्षा दी जाती है । 

(vii) हिन्दी भवन - 

इस भवन में हिन्दी भाषा एवं साहित्य की उच्च स्तरीय शिक्षा की व्यवस्था है। 

(ix) इस्लाम अनुसंधान विभाग- 

इसमें इस्लाम धर्म और अनुसंधान का प्रबन्ध किया गया है। अध्ययन इस प्रकार विश्वभारती में विद्यालय स्तर से लेकर उच्च स्तर के शिक्षा की समुचित व्यवस्था है।

 

महात्मा गाँधी ने गुरूदेव द्वारा स्थापित संस्थाओं के बारे में कहा "गुरुदेव की शक्ति नई चीजों के निर्माण में थी । उन्होंने शान्तिनिकेतनश्रीनिकेतनविश्वभारती जैसी संस्थाओं की स्थापना की। इन संस्थाओं में गुरूदेव की आत्मा निवास करती है। ये संस्थायें केवल बंगाल की ही नहीं वरन् पूरे भारत की धरोहर हैं।"

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