राजर्षि टण्डन द्वारा स्थापित शैक्षिक-सामाजिक संस्थायें |Educational-Social Institutions Founded by Rajarshi Tandon
राजर्षि टण्डन द्वारा स्थापित शैक्षिक-सामाजिक संस्थायें
राजर्षि टण्डन द्वारा स्थापित शैक्षिक-सामाजिक संस्थायें
राजर्षि टण्डन ने अनेक शैक्षिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की स्थापना की। इनमें से प्रमुख संस्थायें निम्नलिखित हैं-
1 गौरी पाठशाला
राजर्षि टण्डन लड़कियों की शिक्षा को समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक मानते थे। वे उनको चरित्रवान एवं सुसंस्कृत बनाना चाहते थे ताकि वे भविष्य में पतिव्रता पत्नी एवं योग्य माता सिद्ध हो सकें। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने मुहल्ले में महामना मालवीय एवं बालकृष्ण भट्ट के सहयोग से गौरी पाठशाला की स्थापना की। राजर्षि टण्डन इस संस्था के अध्यक्ष थे | इस कन्या विद्यालय के विकास में उनकी पुत्रवधू श्रीमती रानी टण्डन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह विद्यालय वर्तमान में उच्चतर माध् यमिक विद्यालय हो गया है जिसमें एक हजार से भी अधिक लड़कियाँ अध् ययन करती हैं।
2 हिन्दी विद्यापीठ
हिन्दी भाषा एवं साहित्य में उच्चस्तरीय शिक्षा की व्यवस्था हो सके इसके लिए महेवा, प्रयाग में राजर्षि टण्डन ने हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की। इस संदर्भ में प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय 'बच्चन' अपने लेख 'बाबू पुरूषोत्तम दास टण्डन एक संस्मरण में कहते हैं "हिन्दी के उच्चकोटि के साहित्य का पठन-पाठन विधिवत् हो सके, उसके लिए उन्होंने प्रयाग में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की थी। हमें यह नहीं भूलना नहीं चाहिए कि यह वह समय था जब हिन्दी को विश्वविद्यालयों में प्रवेश की बात तो दूर उसे झरोखों से झाँकने की भी आज्ञा नहीं थी । इण्टरमीडिएट में भी नहीं पढ़ाई जाती थी, उसका साहित्य केवल हाईस्कूल तक पढ़ाने योग्य समझा जाता था।" अहिन्दी भाषी भी हिन्दी को सीख सके इसके लिए राजर्षि टण्डन ने डॉ0 काटजू के सहयोग से नैनी में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना की। दक्षिण भारत के हिन्दी सीखने वाले बहुत सारे विद्यार्थियों के खर्च का वहन वे स्वयं करते थे या किसी सहयोगी को इस कार्य के लिए प्रेरित करते थे ।
3 हिन्दी साहित्य सम्मेलन
जैसा कि हमलोग देख चुके हैं हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना 10 अक्टूबर, 1910 को हुई। महामना मालवीय इसके प्रथम अध्यक्ष एवं राजर्षि टण्डन मंत्री बने पर सम्मेलन का सारा कार्य टण्डन ही सम्पादित करते थे । इस संदर्भ में राजर्षि टण्डन के योगदान का उल्लेख करते हुए श्री प्रकाश लिखते हैं "हिन्दी साहित्य सम्मेलन के रूप में उन्होंने अपनी अमर कीर्ति छोड़ी है। इसके द्वारा सारे देश में सहस्त्रों नर-नारियों ने हिन्दी को प्रेम से पढ़ा और उसकी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर भाषा पर काफी अधिकार भी प्राप्त किया। वह हिन्दी भाषा और नागरी लिपि का आग्रह करते रहे। अंको के लिए भी उसका अन्तर्राष्ट्रीय रूप लेना उन्होंने अस्वीकार कर दिया।”
4 पंजाब में हिन्दी पाठशालाओं को सहयोग
1925 से 1939 तक वे पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजर के रूप में लाहौर एवं आगरा में कार्यरत थे। पंजाब में निवास के दौरान उन्होंने हिन्दी पाठशालाओं की स्थापना और संचालन में गहरी रूचि दिखाई। इस दौरान वे अपने वेतन का एक भाग पंजाब में चलाई जा रही हिन्दी पाठशालाओं के लिए खर्च करते थे 1
5 तिलक स्कूल ऑफ पालिटिक्स (लोक सेवा मण्डल)
1921 में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की स्मृति में लाला लाजपत राय ने 'तिलक स्कूल ऑफ पालिटिक्स' की स्थापना की। इसका कार्य जनसामान्य की सेवा करना तथा भारतीयों के मध्य राजनीतिक जागरूकता को बढ़ाना था। इस संस्था के संचालन में राजर्षि टण्डन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। बाद में इसका नाम बदलकर 'लोक सेवा मंडल' कर दिया गया। 17 नवम्बर, 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। महात्मा गाँधी के आग्रह पर जनवरी, 1929 में राजर्षि टण्डन लोक सेवक मण्डल के अध्यक्ष बने । राजर्षि टण्डन के नेतृत्व में लाला लाजपत राय स्मारक निधि के लिए पाँच लाख रूपये का संग्रह किया गया।
इन संस्थाओं के अतिरिक्त राजर्षि टण्डन ने विभिन्न नगरों में अनेक संस्थाओं की स्थापना की, जैसे कानपुर में व्यायामशाला, फैजाबाद में राजनीतिक कान्फ्रेन्स आदि । इलाहाबाद में प्रौढ़ शिक्षा की व्यापक व्यवस्था इन्हीं के प्रयासों का परिणाम था। राजर्षि टण्डन द्वारा स्थापित एवं संचालित इन संस्थाओं से कहीं महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वे स्वयं एक संस्था थे जिनसे राजनेता, शिक्षक, साहित्कार सभी प्रेरणा ग्रहण करते थे । प्रसिद्ध साहित्यकार माखन लाल चतुर्वेदी ने उनके बारे में यथार्थ टिप्पणी की "ज्ञान जब काला पड़ने लगता है और उद्योग जब शिथिल होने लगता है, तब टण्डन जी को देखकर बल मिलता है।"
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