शिक्षाशास्त्री फ्रेडरिक फ्रोबेल का जीवन परिचय (फ्रोबेल का जीवन-वृत्त) |Friedrich Fröbel Short Biography in Hindi

शिक्षाशास्त्री फ्रेडरिक फ्रोबेल का जीवन परिचय  (फ्रोबेल का जीवन-वृत्त) 

शिक्षाशास्त्री फ्रेडरिक फ्रोबेल का जीवन परिचय  (फ्रोबेल का जीवन-वृत्त) |Friedrich Fröbel Short Biography in Hindi

फ्रेडरिक फ्रोबेल सामान्य परिचय  


पूरे विश्व में शिशु शिक्षा को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जर्मनी के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री फ्रेडरिक फ्रोबेल को जाता है। शिशु शिक्षा में किण्डरगार्टन (बालोद्यान) का अत्यधिक महत्व है- इस संप्रत्यय के प्रतिपादक फ्रोबेल हैं। उन्होंने शिक्षा में खेल के महत्व को रेखांकित करते हुए शिक्षण-अधिगम में उत्पादक क्रिया पर जोर दिया। उनके द्वारा शिशु एवं बालक को दिये जाने वाले उपहारों का आधार मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त है- जहाँ वस्तुओं के माध्यम से सरलता से सीखने पर जोर है । यद्यपि फ्रोबेल के सिद्धान्त कई बार जटिल और आत्मनिष्ठ लगते हैं पर यह तथ्य संदेह से परे है कि शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करने में फ्रोबेल की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ उन्होंने शिक्षा के सामाजिक आधार पर जोर दिया।


फ्रेडरिक फ्रोबेल का जीवन परिचय  (फ्रोबेल का जीवन-वृत्त) 

फ्रेडरिक फ्रोबेल का जन्म 21 अप्रैल, 1782 को दक्षिणी जर्मनी के एक गाँव में हुआ था। जब वह नौ महीने का ही था उसकी माता का देहान्त हो गया। पिता से बालक फ्रोबेल को उपेक्षा मिली । विमाता उससे घृणा करती थी। इससे फ्रोबेल प्रारम्भ से ही नितान्त एकाकी हो गया। फ्रोबेल पर इस एकाकीपन का प्रभाव पड़ा और वह आत्मनिष्ठ हो गया । वह प्रकृति के सान्निध्य में अपना समय व्यतीत करने लगा। इसके दो परिणाम हुए: पहला, उसमें अन्तदर्शन की क्षमता विकसित हो गई। दूसरा, जड़ और प्रकृति में भी उसे अपना स्वरूप दिखने लगा। इसी के आधार पर उसने 'अनेकता में एकता' के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया ।

 

कुछ समय फ्रोबेल ने अपने मामा के साथ बिताये। इस दौरान उसे विद्यालय जाने का अवसर मिला पर शिक्षा में उसकी प्रगति असन्तोषजनक रही। पन्द्रह वर्ष की अवस्था में एक फोरेस्टर के अधीन कार्य सीखने का अवसर मिला पर प्रकृति-प्रेम के अतिरिक्त वह कोई प्रशिक्षण नहीं ले सका । सत्रह वर्ष की अवस्था में फ्रोबेल ने जेना विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया पर अपनी निर्धनता के कारण वह शिक्षा पूरी नहीं कर पाया। घर वापस आकर कृषि - कार्य में हाथ बटाने लगा। 1802 में पिता की मृत्यु के बाद फ्रोबेल ने इधर-उधर भटकते हुए विभिन्न तरह की नौकरियाँ की पर वह सफल नहीं हुआ। अंततः फ्रेंकफर्ट में हेर ग्रूनर के निमन्त्रण पर एक नार्मल स्कूल में ड्राइंग का अध्यापक बन गया। सन् 1808 में फ्रोबेल पेस्टोलॉजी की शिक्षा व्यवस्था के अवलोकन हेतु वरडेन पहुँचा। उसने वहाँ बच्चों के संदर्भ में दो बातों को गहराई से महसूस किया। पहला, बच्चों के आत्मभाव प्रकाशन हेतु संगीत आवश्यक है, तथा, दूसरा, बच्चों की ड्राइंग में विशेष रूचि होती है।

 

फ्रोबेल की रूचि वैज्ञानिक सिद्धान्तों में बढ़ती जा रही थी। उसने गणित और खनिज विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु पहले गोरिन्जन विश्वविद्यालय और बाद में बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया । बर्लिन में उन्होंने प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर वीज के संरक्षण में गहन अध्ययन किया । नेपोलियन ने जब जर्मनी पर आक्रमण किया तो फ्रोबेल उसके विरूद्ध जर्मनी की सेना में भर्ती हुआ। 18140 में फ्रोबेल बर्लिन म्यूजियम का सहायक क्यूरेटर नियुक्त हुआ। वह खनिज - विज्ञान का अध्यापक नियुक्त हुआ ।

 

फ्रोबेल के जीवन का सर्वाधिक रचनात्मक काल की शुरूआत 18170 में होती है जब उसने अपने दो भतीजों एवं कुछ अन्य लड़को को लेकर कीलहाऊ में एक विद्यालय की स्थापना की। यहीं पर 1826 ई० में फ्रोबेल ने विल्हेमिन होफमिस्टर नामक सम्पन्न महिला से विवाह किया। इससे फ्रोबेल के सारे आर्थिक संकट समाप्त हो गए। कीलहाऊ में ही उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'एडुकेशन ऑफ मैन' की रचना की। इसके उपरान्त स्विटजरलैंड में फ्रोबेल ने कई संस्थाओं का संचालन किया। अब फ्रोबेल पूर्व विद्यालय शिक्षा में सुधार हेतु व्यावहारिक कार्य करना चाहता था। इस उद्देश्य से 18370 में जर्मनी के पहाड़ी क्षेत्र के ब्लैकनवर्ग नामक गाँव में प्रथम 'किण्डरगार्टेन की स्थापना की। इसके उपरान्त फ्रोबेल जीवन पर्यन्त 'किण्डरगार्टेन' के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में लगा रहा। अन्ततः 1852 में इस महान शिक्षाशास्त्री की मृत्यु हो गई।

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