गाँधी जी की छात्र संकल्पना| गाँधी जी की दृष्टि अध्यापक |बुनियादी शिक्षा की असफलता के कारण | Gandhi Student Concepts and Basic Education
गाँधी जी की छात्र संकल्पना, अध्यापक ,बुनियादी शिक्षा की असफलता के कारण
गाँधी जी की छात्र संकल्पना
- गाँधी जी हर बालक-बालिका में परमात्मा का निवास मानते थे। सभी बालकों की आत्मा समान है पर व्यक्तित्व में भिन्नता हो सकती है। गाँधी जी चौदह वर्ष तक के उम्र के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने के पक्ष में थे। वे शिक्षा को बच्चों का मूलभूत अधिकार मानते थे ।
- गाँधी जी की दृष्टि में सुचारू रूप से अध्ययन करने के लिए पवित्र जीवन आवश्यक है। वे छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं "तुम्हारी शिक्षा सर्वथा बेकार है, यदि उसका निर्माण सत्य और पवित्रता की नींव पर नहीं हुआ है। यदि तुम अपने जीवन की पवित्रता के बारे में सतर्क नही हुए तो सब व्यर्थ है, चाहे तुम महान विद्वान ही क्यों न हो जाओ।"
गाँधी जी की दृष्टि अध्यापक-
- महात्मा गाँधी विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आत्मिक विकास में शिक्षा की भूमिका को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते थे। वे शिक्षकों के आचरण को शिष्यों के लिए अनुकरण योग्य होने पर हमेशा जोर देते थे। वे अध्यापकों के कर्त्तव्य के संदर्भ में कहते है "आत्मिक शिक्षा अध्यापक किताबों के द्वारा नहीं, बल्कि अपने आचरण के द्वारा ही दे सकता है। मैं स्वंय झूठ बोलूँ और अपने शिष्यों को सच्चा बनाने का प्रयत्न करूँ, तो वह व्यर्थ ही होगा। डरपोक शिक्षक शिष्यों को वीरता नहीं सीखा सकता। व्यभिचारी शिक्षक शिष्यों को संयम किस प्रकार सिखायेगा? अध्यापकों को अपने लिए नहीं तो कम से कम शिष्यों के लिए अच्छा बना रहना चाहिए।"
- गाँधी जी विद्यार्थी के दोषों के लिए बहुत हद तक शिक्षक को जिम्मेदार मानते हैं। टाल्स्टॉय आश्रम में दो विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता पर स्वंय उन्होंने उपवास कर आश्रम के सम्पूर्ण वातावरण को शुद्ध कर दिया। साथ ही महात्मा गाँधी अध्यापक एवं छात्र में अन्तर नहीं मानते थे। टाल्स्टॉय आश्रम के संदर्भ में उनका कहना है "टाल्स्टॉय आश्रम में शुरू से ही यह रिवाज डाला गया था कि जिस काम को हम शिक्षक न करें, वह बालकों से न कराया जाय, और बालक जिस काम मे लगे हों, उसमें उनके साथ काम करने वाला एक शिक्षक हमेशा रहें ।" इसलिए बालकों ने जो कुछ सीखा, उमंग के साथ सीखा।
- गाँधी जी 'वेतन' तथा 'अध्यापन कार्य को एक दूसरे के साथ मिलाना अनुचित मानते थे। शिक्षक केवल वेतन के लिए काम नहीं करता है। अगर वह अध्यापन को वेतन के साथ जोड़ दे तो वह अपने कर्त्तव्य को पूरा नही कर सकता है। गाँधी जी के अनुसार अध्यापन कार्य में सबसे अधिक आवश्यक है समर्पण की भावना ।
महात्मा गाँधी ने अनुशासन सम्बन्धी विचार
महात्मा गाँधी ने अनुशासन सम्बन्धी अपने विचारों का विकास निम्नलिखित धारणाओं के आधार पर किया
1. बच्चे जन्मजात बुरे नही होते, वातावरण उन्हें अच्छा या बुरा बनाता है।
2. प्राकृतिक एवं सामाजिक परिवेश को स्वच्छ एवं सहयोग पर आधारित कर अनुशासन को बनाये रखा जा सकता है।
3. विद्यार्थियों के आचरण को सर्वाधिक प्रभावित अध्यापक का आचरण करता है।
4. अनैतिक कार्य भी शारीरिक रोग के समान व्याधि है, इसे दूर करने के लिए शिक्षक की सहानुभूति आवश्यक है, दण्ड नहीं ।
गाँधी जी आत्म अनुशासन पर जोर देते थे। वे छात्रों को शारीरिक दण्ड देने के प्रबल विरोधी थे। अध्यापकों का उच्च चरित्र और पवित्र आचरण छात्रों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने मे सर्वाधिक प्रभावशाली है।
बुनियादी शिक्षा की असफलता के कारण
बुनियादी शिक्षा का कार्यक्रम सामान्य असफल रहा। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री जे0 पी0 नायक (1998) ने बुनियादी शिक्षा की असंतोषजनक प्रगति के निम्नलिखित कारण बताए-
1. इसका सर्वप्रमुख कारण सत्ताधारी वर्ग द्वारा बुनियादी शिक्षा को अस्वीकार किया जाना है। इन वर्गों मे शारीरिक श्रम के प्रति उदासीनता की परम्परा रही है। उनका आकर्षण पुस्तक आधारित शिक्षा पर रहा है। इस वर्ग ने स्कूल के पाठ्यक्रम में शारीरिक श्रम और उत्पादक कार्य आरम्भ करने के विरोध मे सामाजिक और मानसिक दबाव डाला ।
2. जनसाधारण द्वारा भी बेसिक शिक्षा प्रणाली की आलोचना की गई। आम जनता साधारणतः उच्च एवं मध्य वर्ग का अनुकरण करना चाहती है। वे इस बात से असहमत थे कि शहरी मध्य वर्ग को पुस्तक केन्द्रित अंग्रेजी शिक्षा दी जाये और ग्रामीण बच्चों को शिल्प आधारित शिक्षा । वे इसे दोयम दर्जे की शिक्षा मानते थे। उन्होंने ने भी बुनियादी शिक्षा को अस्वीकार कर दिया।
3. इसके साथ अन्य तकनीकी समस्याएं भी थी बुनियादी विद्यालयों मे शिल्प की शिक्षा दी जाती थी। इसके लिए कच्चे माल की आपूर्ति में कठिनाई होती थी । कृषि के लिए भूमि चाहिए थी। साथ ही शिल्प सिखाने के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों की सर्वथा कमी थी। साथ ही तैयार उत्पादों को बेचने की सन्तोषजनक व्यवस्था नहीं की जा सकी।
4. छात्रों की संख्या मे द्रुतगति से विस्तार की एक अन्य प्रमुख समस्या थी । यदि यह प्रयोग प्रारम्भ में सीमित पैमाने पर होता तो शायद सफल हो सकता था। अनेक स्कूलों मे जहाँ सही प्रकार के अध्यापक उपलब्ध हुए और आवश्यक सुविधाएं प्रदान की गयी, यह कार्यक्रम सफल भी हुआ, परन्तु कार्यक्रम के बड़े स्तर पर विस्तार के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं थे ।
5. वित्त की दृष्टि से बुनियादी विद्यालयों का अनुभव मिश्रित रहा। इसके कारण प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी निवेश में किसी प्रकार की कमी नहीं हुई। अतः स्वतंत्र भारत में भी सरकारों ने इस कार्यक्रम मे विशेष रूचि नहीं दिखलाई।
इस प्रकार अभिजात वर्ग के विरोध के कारण बुनियादी शिक्षा का क्रांतिकारी प्रयोग असफल रहा।
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