ऐतिहासिक स्थल: सांची की जानकारी | Historic Place Saanchi Details in Hindi
ऐतिहासिक स्थल: सांची की जानकारी (Historic Place Saanchi Details in Hindi)
ऐतिहासिक स्थल: सांची की जानकारी (Historic Place Saanchi Details in Hindi)
सांची, जिसे काकानाया, काकानावा, काकानाडाबोटा तथा बोटा श्री पर्वत के नाम से प्राचीन समय में जाना जाता था और अब यह मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है. यह ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक महत्व वाला एक धार्मिक स्थान है. सांची अपने स्तूपों, एक चट्टान से बने अशोक स्तंभ, मंदिरों, मठों तथा तीसरी शताब्दी बी. सी. से 12वीं शताब्दी ए. बी. के बीच लिखे गए शिलालेखों की सम्पदा के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है.
सांची के बारे में महत्प्रवपूर्मुण जानकारी
- सांची के स्तूप अपने प्रवेश द्वार के लिए उल्लेखनीय है, इनमें बुद्ध के जीवन से ली गई घटनाओं और उनके पिछले जन्म की बातों का सजावटी चित्रण है. जातक कथाओं में इन्हें बोधिसत्व के नाम से वर्णित किया गया है.
- यहाँ गौतम बुद्ध को संकेतों द्वारा निरुपित किया गया है जैसेकि पहिया, जो उनकी शिक्षाओं को दर्शाता है.
- सांची को 13वीं शताब्दी के बाद 1818 तक लगभग भुला ही दिया गया था, जब जनरल टेलर, एक ब्रिटिश अधिकारी ने इन्हें दोबारा खोजा, जो आधी दबी हुई और अच्छी तरह संरक्षित अवस्था में था. बाद में 1912 में सर जॉन मार्शल, पुरातत्व विभाग के महानिदेशक में इस स्थल पर खुदाई के कार्य का आदेश दिया.
- शुंग काल के समय में सांची में और इसकी पहाड़ियों के आस-पास अनेक मुख द्वार तैयार किए गए थे.
- यहाँ अशोक स्तूप पत्थरों से बड़ा बनाया गया और इसे बालू स्ट्रेड, सीढियों और ऊपर हर्मिका से सजाया गया.
- 40 मंदिरों का पुनः निर्माण और 2 स्तूपों को खड़ा करने का कार्य भी इसी अवधि में किया गया.
- पहली शताब्दी ई. पू. में आंधवाहन शासकों पूर्वी मालवा तक अपना राज्य विस्तारित किया था, ने स्तूप के नक्काशीदार मार्ग को नुकसान पहुँचाया.
- दूसरी से चौथी शताब्दी ए डी तक सांची तथा विदिशा कुषाणु और क्षत्रपों का राज्य था और इसके बाद यह गुप्त राजवंश के पास चला गया.
- गुप्त काल के दौरान कुछ मंदिर निर्मित किए गए और इसमें कुछ शिल्पकारी जोड़ी गई.
- सबसे बड़ा स्तूप, जिसे महान स्तूप कहते हैं. चार नक्काशीदार प्रवेश द्वारों से घिरा हुआ है जिसकी चारों दिशाएं कुतुबनुमे की दिशाओं में हैं. इसके प्रवेश द्वार संभवतया 1.000 एडी के आस पास बनाए गए.
- ये स्तूप विशाल अर्ध गोलाकार गुम्बद हैं जिनमें एक केन्द्रीय कक्ष है और इस कक्ष में महात्मा बुद्ध के अवशेष रखे गए थे.
- सांची के स्तूप के अवशेष बौद्ध वास्तुकला के विकास और तीसरी शताब्दी बीसी 12वीं शताब्दी एडी के बीच उसी स्थान की शिल्पकला को दर्शाते हैं.
- इन सभी शिल्पकलाओं की एक सबसे अधिक रोचक विशेषता यह है कि यहाँ बुद्ध की छवि मानव रूप में कहीं नहीं है.
- इन शिल्पकारियों में आश्चर्यजनक जीवंतता है और ये एक ऐसी दुनिया दिखाती हैं जहाँ मानव और जन्तु एक साथ मिलकर प्रसन्नता, सौहार्द और बहुलता के साथ रहते हैं.
- प्रकृति का सुन्दर चित्रण अद्भुत है. महात्मा बुद्ध को यहाँ मानव से परे आकृतियों में सांकेतिक रूप से दर्शाया गया है.
- वर्तमान में यूनेस्को की एक परियोजना के तहत् सांची तथा एक अन्य बौद्ध स्थल सतधारा की आगे खुदाई, संरक्षण तथा पर्यावरण का विकास किया जा रहा है.
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