मान्टेसरी विधि का क्रियान्वयन |Implementation of Montessori Method in HIndi
मान्टेसरी विधि का क्रियान्वयन (Implementation of Montessori Method)
मान्टेसरी विधि का क्रियान्वयन (Implementation of Montessori Method)
मान्टेसरी ने तीन तरह से बच्चों को प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया-
1. व्यावहारिक जीवन के अभ्यास या कार्य,
2. इन्द्रिय या संवेदी प्रशिक्षण के कार्य,
3. शिक्षा से सम्बन्धित कार्य ।
1 व्यावहारिक जीवन के कार्यों का अभ्यास
कमजोर दिमाग के बच्चों को अपने को संभालने का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह स्वतंत्रता में प्रशिक्षण है- स्वतंत्रता के लिए सामान्य कार्य करे दूसरे के कहने की आवश्यकता न हो। 'हाउस ऑफ चाइल्डहुड' में बच्चे अपना हाथ धोना सीखते हैं, नाखूनों को साफ करना, दाँत को ब्रश करना, वस्त्र पहनना और बदलना सीखता है। चाइल्डहुड हाउस के सारे फर्नीचर ऐसे होते हैं जिसे बच्चे स्वयं एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकें। इससे मोटर ट्रेनिंग भी हो जाती है ।
कुछ जिमनास्टिक अभ्यास भी मान्टेसरी ने विकसित किए- ताकि समन्वित गति आ सके। लेकिन उन्होंने बच्चों के लिए व्यस्कों के व्यायाम का विरोध किया । व्यायाम आयु के अनुरूप ही होना चाहिए। जैसे कि एक उदाहरण उपकरण का है- लिटिल राउन्ड स्टेयर इससे बच्चा सही ढंग से सीढ़ी चढ़ना और उतरना सीखता है जबकि सामान्य घरों में सीढ़ियाँ बड़ों को ध्यान में रखकर बनायी जाती हैं।
2 इन्द्रिय या संवेदी प्रशिक्षण कार्य
इन्द्रिय या संवेदी प्रशिक्षण के लिए मान्टेसरी प्रयोगात्मक मनोवैज्ञानिकों के परीक्षणों और उपकरणों पर निर्भर करती है। लेकिन दोनों में अन्तर है । प्रयोगात्मक मनोविज्ञान तथा इन्द्रिय प्रशिक्षण में आधारभूत भिन्नता है प्रयोगात्मक मनोविज्ञान प्रयोगों के द्वारा इन्द्रिय या संवेदी शक्ति का मापन करना चाहता है जबकि मान्टेसरी शक्ति का मापन करने की बजाय संवेदी शक्ति के विकास को चाहती है।
सामान्य बच्चे उन अभ्यासों को दोहराने में आनन्द की अनुभूति करते हैं जिन्हें उन्होंने सफलता पूर्वक पूरा कर लिया है। कमजोर मस्तिष्क के बच्चे जिस कार्य को एक बार पूरा कर लेते है उसे दुबारा करने की इच्छा नहीं दिखाते हैं। अल्प बुद्धि वाले बच्चों की गलती को सुधरवाना पड़ता है जबकि सामान्य बच्चे अपनी गलतियों को स्वयं सुधारना चाहते हैं । वे शैक्षिक वस्तु जो अल्पबुद्धि बच्चे के संदर्भ में शिक्षा को संभव बनाता है- सामान्य बच्चों के संदर्भ में स्व- शिक्षा को बढ़ावा देता है।
इन्द्रिय या संवेदी प्रशिक्षण में मान्टेसरी रूसो की ही तरह इन्द्रियों को अलग-अलग करने पर बल देती है। यह शारीरिक विकलांग बच्चों की शिक्षा पर आधारित है - दृष्टिहीन व्यक्तियों की स्पर्श शक्ति काफी संवेदनशील हो जाती है। स्पर्श की शक्ति के विकास के लिए बच्चों को मान्टेसरी विद्यालयों में आँख बाँधकर प्रशिक्षण दिया जाता है। श्रवण शक्ति का अभ्यास न केवल शांत वातावरण वरन् अंधेरे में भी किया जाता है।
इन्द्रिय या संवेदी प्रशिक्षण में आकार के अनुभव / ज्ञान के लिए बेलनाकार लकड़ी के टुकड़े- केवल ऊचाँई में अंतर, चौड़ाई में अंतर- या दोनों अंतर के साथ रखे जाते हैं। इसी तरह से ब्लॉक या कुन्दा जिसके आकार में लगातार अंतर हो तथा छड़ या रॉड अलग-अलग लम्बाई के रेखागणित या आकार की समझ के लिए लोहे या लकड़ी के बने हुए और बाद में कागज पर बनाए गए रेखागणितीय आकृति दिए जा सकते है । वजन की समझ के लिए लकड़ी के समान आकार पर भिन्न वजन की पट्टी दी जा सकती है। स्पर्श की समझ के लिए एक अत्यन्त ही चिकना धरातल और दूसरा खुरदरा धरातल, ताप की समझ के लिए छोटे-छोटे धातु के कटोरे ढक्कन सहित दिए जा सकते हैं, श्रवण शक्ति के लिए भिन्न-भिन्न बेलनाकार ध्वनि बॉक्स भिन्न-भिन्न वस्तुओं वाले हो सकते है, रंग के ज्ञान के लिए विभिन्न रंगों में रंगे ऊन दिए जाने चाहिए।
शिक्षण विधि को रंगों की भिन्नता के संदर्भ में समझा जा सकता है जो मान्टेसरी ने सेग्विन से ग्रहण किया था। इसके तीन पद हैं-
1. रंग के नाम के साथ संवेदी समझ को जोड़ना । जैसे अध्यापिका दो रंग को दिखाती है लाल एवं नीला । लाल को दिखाते समय कहेगी "यह लाल रंग है" नीला दिखाते समय कहेगी "यह नीला रंग है" ।
2. द्वितीय सोपान में बच्चा रंग पहचानने लगेगा। मुझे 'लाल रंग दो, मुझे 'नीला' रंग दो ।
3. वस्तु से जुड़े रंग को याद रखना। अध्यापिका कहेगी 'यह क्या है?"
बच्चा कहेगा 'लाल' या 'नीला' ।
इसी तरह का प्रशिक्षण स्पर्श, श्रवण, वजन तथा तापक्रम में अन्तर करने की क्षमता के विकास के लिए दिया जा सकता है। इनमें बच्चों का आँख बन्द किया जाता है या उन्हें बन्द रखने को कहा जाता है। उन्हें यह समझाया जाता है कि इससे वे अंतर को बेहतर समझ पायेंगे।
ठोस आकृति जिसमें बच्चे का पूर्ण नियंत्रण था, के उपरांत अब दृष्टि पर आधारित आकार की समझ पर आता है । वह अब लकड़ी की आकृति को नीले कागज पर बने आउटलाइन में सजाता है। बाद में चित्र भी नीले कागज का आउटलाइन होता है। अंततः वह लकड़ी के टुकड़ों को केवल रेखा द्वारा खीचे चित्रों पर डालता है। इस प्रकार वह वास्तविक से सूक्ष्म, ठोस वस्तु से चित्रों, जो केवल रेखाओं द्वारा बना होता है और जिसे केवल देखकर समझा जाता है तक पहुँचता है।
इस तरह से कई चित्रों जैसे वृत्त, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि का ज्ञान होता है। और जब बच्चों द्वारा आवश्यकता महसूस की जाती है, इनका नाम बताया जाता है। आकार का कोई स्पष्टीकरण नहीं किया जाता है अतः कहा जा सकता है कि रेखागणित की पढ़ाई नहीं की जा रही है।
मान्टेसरी द्वारा प्रयोग किये जाने वाले मुख्य उपकरण निम्नलिखित हैं-
1. छिद्रों वाला तख्ता:
एक बक्से के भीतर के तल में अलग-अलग आकार के छिद्र बने होते हैं। बक्से में ही विभिन्न आकार के गुटके भी होते हैं। बालक गुटकों को छिद्रों में बैठाने की कोशिश करता है।
2 सिलेण्डर (बेलनाकार वस्तु) :
कई छोटे-बड़े सिलेण्डर होते हैं। शिशु इन्हें क्रम से सजाता है।
3. घन:
विभिन्न आकारों के अनेक घन होते हैं। बच्चे खेल-खेल में इन्हें सजाते हैं और कई आकार बनाते हैं।
4. भिन्न-भिन्न रंगों की टिकियाँ :
शिशु इनसे रंगों की पहचान करता है
3 शिक्षा से सम्बन्धित कार्य
मान्टेसरी विधि में लिखना पहले और पढ़ना बाद में सिखाया जाता । उनके अनुसार पढ़ना मानसिक विकास से सम्बन्धित है जबकि लिखने में केवल अनुकरण की जरूरत होती है जो बच्चों के लिए आसान है। लिखना सीखने में तीन क्रियायें कराई जाती हैं
(अ) लेखनी पकड़ने का अभ्यास ।
(ब) अक्षर का स्वरूप समझना ।
(स) अक्षरों में भेद कर सकने में सक्षम होना ।
लिखना सीखने के बाद पढ़ना सिखाया जाता है। इसमें लिखी हुई परिचित वस्तुओं का वाचन कराया जाता है। जब बालक शब्द की ध्वनि का सही उच्चारण करने लगता है तब उसे पूरे शब्द की कई बार आवृत्ति करायी जाती है । मान्टेसरी के अनुसार मांसपेशीय समझ शैशवावस्था में बड़ी आसानी से विकसित होती है और यह बच्चों में लेखन की क्षमता के विकास को अत्यधिक आसान कर देता है। पढ़ने में और अधिक भिन्न-भिन्न बौद्धिक विकास चाहिए, क्योंकि इसमें संकेतों की व्याख्या होती है। भिन्न-भिन्न स्वरों एवं वर्गों के उच्चारण में आवाज में परिवर्तन- ताकि शब्द समझा जा सके। पढ़ना अधिक उच्चस्तरीय मानसिक कार्य है- लिखने में बच्चे आवाज को कुछ चिन्हों में बदलता है तथा कुछ गति करता है- यह कार्य आसान होता है तथा बच्चे को आनन्द भी आता है। लिखने की विधि का विकास मान्टेसरी ने एक कमजोर बालिका द्वारा सीना सीखाने के अनुभव से किया । इसकी तैयारी के लिए शुरूआती गतिविधि या तैयारी आवश्यक है। वास्तविक कार्य बाद में होता है।
मान्टेसरी के अनुसार प्रारम्भिक तैयारी के अभ्यास और प्रथम लिखित शब्द के मध्य 4 वर्ष के बच्चे के लिए एक से डेढ़ महीने तथा 5 वर्ष के बच्चे के लिए और कम - एक महीना लगता है। तीन महीनों में बच्चे कुशल हो जाते हैं। लिखने की प्रक्रिया की शुरूआत में पन्द्रह दिन लगते हैं। मान्टेसरी विधि के अनुसार सामान्य बच्चा चार वर्ष की उम्र में लिखना और पाँच वर्ष में पढ़ना शुरू कर देता है।
मान्टेसरी के अनुसार डाइरेक्ट्रस (अध्यापिका) की योग्यता
मान्टेसरी विधि में शिक्षण कार्य करने के लिए बाल मनोविज्ञान का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए तथा जिसे प्रयोगशाला पद्धति, वैज्ञानिक संस्कृति तथा प्रयोगवादी मनोविज्ञान का ज्ञान हो वही सफल अध्यापिका हो सकती है। अध्यापक प्रशिक्षण का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह जाने कि कब बच्चे की गतिविधि में हस्तक्षेप करें तथा अधिक महत्वपूर्ण कि कब हस्तक्षेप करने से रूकें । मान्टेसरी ने टीचर की जगह डाइरेक्ट्रस उपाधि का प्रयोग किया।
रस्क के अनुसार मान्टेसरी की प्रसिद्धि शिक्षा के क्षेत्र में संवेदी (इन्द्रिय) प्रशिक्षण के कारण है। संभवतः उन्होंने इसको कुछ अधिक ही महत्व दिया । संवेदी प्रशिक्षण में स्थायी महत्व का वस्तु है व्यावहारिक व्यायाम तथा शैक्षिक प्रक्रिया से सम्बन्धित सहयोगी 'हाउस ऑफ चाइल्डहुड' जैसी सामाजिक संस्था का विकास हुआ। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पक्ष था इंडिविड्यूलिज्म (बच्चा विशेष पर व्यक्तिगत ध्यान देना) जो कि मनोवैज्ञानिक विधि के प्रयोग के कारण हुआ। बच्चा विशेष पर व्यक्तिगत ध्यान देने की मान्टेसरी की यह पद्धति आधुनिक शिक्षा प्रक्रिया को प्रभावित करती है - यह भविष्य के विद्यालय का एक महत्वपूर्ण पक्ष होगा।
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