जगनिक के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए?| Jagnik Literature Ka yogdan
जगनिक के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए?
जगनिक के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए।?
MPPSC 2018 PAPER -01
उत्तर-
लोक गाथाओं में निवास करने वाला ही लोक - साहित्य है, जो चौपालों से लोक गीतों द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होता है। इसी साहित्य के प्रखर प्रेषक हैं- 'जगनिक' .
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, जगनिक का जन्म संवत् 1230 है। कलिंजर नरेश परिमल देव के दरबारी जगनिक न केवल कवि थे बल्कि योद्धा भी थे। उन्होंने अनेक युद्धों में भाग लिया था। जिसका वर्णन चंदरवरदाई ने अपनी पुस्तक “पृथ्वीराज रासो' में किया है और उनके शौर्य की प्रशंसा की है।
जगनिक की ख्याति हुई उनकी कलम से। उन्होंने 'परिमल रासो' एवं 'आल्हा खण्ड' नामक काव्य लिखे हैं । इनमें आल्हाखंड का कोई जीवित रूप नहीं है, लेकिन गीतों के रूप में इसकी उपलब्धता पहले से बनी हुई है।
आल्हा और ऊदल महोबा के थे और उनकी वीरता की कहानियाँ प्रसिद्ध हुई। इसका श्रेय कवि जगनिक को ही है, जिन्होंने 'आल्हा' नामक गीत रचकर गाँव-गाँव प्रसिद्ध कर दिया .
52 युद्धों का वर्णन आल्हा खंड में किया गया है। इस दृष्टि से यह विश्व की सबसे लम्बी लोक गाथा है। इस ग्रंथ में शौर्य व शृंगार के अनेक प्रसंग मिलते हैं।
जैसे-
" बारह बरीस लै कूकर जीए और तेरह लै जाए सियार ।
बारिस अठारह छत्री जिए, आगे जीवन को धिक्कार।"
जब वर्षा ऋतु आती है तब उ.प्र. के ब्रज क्षेत्र, मालवा, बुंदेलखंड व राजस्थान के गाँव-गाँव में आल्हा गायन की धूम होती है। इसे गाने वाले अल्हैत कहलाते हैं। ढोल-मजीरों की ताल पर रात-रात भर यह वीर काव्य गाया जाता है।
जगनिक का वीर रस का परिचायक आल्हा खंड अब अनेक रूपों में मिलता है एवं गाया जाता है। इतना समय बीत जाने के बाद लोगों ने उनमें देशकाल के अनुसार परिवर्तन कर लिए हैं।
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