जॉन एमोस कमेनियस का जीवन परिचय (जीवन-वृत्त) John Amos Comenius Biography in Hindi
जॉन एमोस कमेनियस सामान्य परिचय
जॉन एमोस कमेनियस शिक्षा
में यथार्थवादी आन्दोलन के एक अग्रगण्य प्रतिनिधि थे। कर्मनियस के पूर्व के
शिक्षाशास्त्री एवं दार्शनिक समाज के अभिजात्य वर्ग को ही शिक्षित करना शिक्षा का
कार्य मानते थे। इसके विपरीत कमेनियस ने सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया
कि सबों को हर ज्ञान की शिक्षा दी
जाय। साथ ही उन्होंने व्यावहारिक रूप में सार्वजनिक शिक्षा के प्रबन्ध का प्रयास
किया। उन्होंने शिक्षा के सन्दर्भ में सैद्धान्तिक पक्ष के साथ-साथ कक्षा की
समस्याओं की भी स्पष्ट विवेचना की। कमेनियस ने भाषा, विशेषतः लैटिन की शिक्षा हेतु वैज्ञानिक
सिद्धान्त विकसित किये। साथ ही स्कूल पुस्तकों की भी रचना की जिसमें नई शिक्षण
विधि के प्रयोग पर जोर है। इस प्रकार कमेनियस ने शिक्षा में नवीन प्रयोग किए और
आधुनिक प्रगतिशील शिक्षा की आधारशिला रखी।
जॉन एमोस कमेनियस का जीवन परिचय (जीवन-वृत्त)
जॉन एमस कमेनियस का जन्म 1592 ई० में मोरेविया के
निवनिज नामक ग्राम में एक अत्यन्त ही विद्यानुरागी एवं प्रगतिशील समुदाय में हुआ
था। इस सम्प्रदाय ने धार्मिक सुधार हेतु प्रगतिशील कदम उठाये। साथ ही साथ शिक्षा
हेतु विभिन्न स्तर के शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की। इस तरह के वातावरण में
पलने-बढ़ने से शिक्षा के प्रति कमेनियस का अनुराग स्वभाविक था।
कमेनियस के माता-पिता की
मृत्यु उसकी बाल्यावस्था में ही हो गई थी। पिता के द्वारा छोड़ी गई सम्पति पर उसके
संरक्षकों का अधिकार हो गया। अतः कमेनियस को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
उसकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में हुई, जहाँ उसने लिखना पढ़ना और प्रारम्भिक गणित
सीखा। उस काल में लैटिन का ज्ञान शिक्षित व्यक्ति के लिए आवश्यक माना जाता था।
कमेनियस ने सोलह वर्ष की अवस्था में लैटिन सीखना प्रारम्भ किया जबकि उसके सहपाठी
छह-सात वर्ष के ही थे । परिपक्व होने के कारण कमेनियस ने लैटिन के शिक्षण-अधिगम
विधि की कमियों को महसूस किया और उसमें सुधार को जरूरी मानने लगा।
कमेनियस ने नासाऊ में
कॉलेज ऑफ हरवार्न में उच्च शिक्षा ली। मोरेविया वापस आकर उसने पादरी एवं अध्यापक
के रूप में कार्य करते हुए कई पुस्तकों की रचना की। प्रोटेस्टेण्ट धर्म के अनुयायी
होने के कारण कमेनियस को 1628 ई० में देश
निकाला मिला। इसके उपरांत पोलैण्ड में लिस्सा नामक स्थान पर एक जिमनैजियम का
निदेशक नियुक्त हुआ लिस्सा में रहते हुए कमेनियस ने शिक्षा से सम्बन्धित महत्वपूर्ण
पुस्तकें 'दि ग्रेट
डाइडेक्टिक', 'गेट ऑफ टंग्स
अनलॉक्ड' आदि की रचना की ।
कमेनियस शिक्षा सम्बन्धी
विचारों के कारण पूरे यूरोप में लोकप्रिय हो चला था। ब्रिटिश संसद उसे एक शोध
संस्थान हेतु इंग्लैंड बुलाना चाहती थी पर यह योजना कार्यान्वित नहीं हो सकी। कमेनियस
शिक्षा सम्बन्धी कार्यों के सम्पादन हेतु स्वीडन गया जहाँ उसने छह वर्ष के कठिन
परिश्रम से लैटिन की स्कूली पुस्तकों को तैयार किया। इस क्रम बद्ध पाठ्यपुस्तकों
की श्रृंखला को यूरोप में ख्याति मिली।
स्वीडन के उपरांत कमेनियस
1650 ई0 में हंगरी गया जहाँ उसे
एक विद्यालय स्थापित करने हेतु आमंत्रित किया गया था। कमेनियस इस विद्यालय को अपने
सिद्धान्तों के अनुरूप बनाना चाहता था पर इस कार्य में उसे असफलता ही मिली। जीवन
के अन्तिम वर्षों को कमेनियस ने एम्सटर्डम में बिताया जहाँ 1670 ई0 में उसकी मृत्यु हो गई।
जॉन एमोस कमेनियस की प्रमुख
कृतियाँ
कमेनियस ने अनेक पुस्तकों
की रचना की। इनमें सर्वप्रमुख दि ग्रेट डाइडेक्टिक'है जो उनकी प्रारम्भिक रचना है। इस काल में
कमेनियस के कार्यों पर धर्म का अधिक प्रभाव था । इस पुस्तक में कमेनियस ने
"प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक विषय पढ़ाने' सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया तथा इसे
पढ़ाने की विधि बतलायी। इस पुस्तक का उपशीर्षक कमेनियस की प्रजातांत्रिक विचारधारा
को स्पष्ट करता है "ईसाई साम्राज्य के उपनगर, नगरएवं गाँव में बिना किसी
अपवाद के सभी लड़के एवं लड़कियों के लिए ऐसे विद्यालयों की स्थापना करना जहाँ वे
शीघ्रता एवं आनन्द से व्यापक रूप में विज्ञान, नैतिकता एवं धार्मिकता में प्रशिक्षित होंगे तथा उन सभी
चीजों में शिक्षित होंगे जिसकी आवश्यकता वर्तमान एवं भविष्य में पड़ेगी।"
कमेनियस की दूसरी
प्रसिद्ध पुस्तक है 'गेट ऑफ टंगस
अनलॉक्ड | इस पुस्तक की
रचना लैटिन सीखने वालों के लिए की गई। इसमें इस शास्त्रीय भाषा के संदर्भ में
महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए इसे सीखने की विधि बनाई गई है। स्वेडन प्रवास के
दौरान उन्होंने स्कूली बच्चों द्वारा लैटिन सीखने के लिए क्रमिक पाठ्यपुस्तकों की
रचना की। इनमें से जनुआ लिंग्वारम' पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और अनेक भाषाओं में प्रकाशन
किया गया। इसमें 100 अध्याय है।
शीर्षक क्रमबद्ध ढंग से दिया गया है, जैसे- संसार की उत्पत्ति, आग, पानी, पत्थर, धातु, वृक्ष तथा फल, जड़ी-बूटी, पशु,
मानव, उसका शरीर, बाह्य सदस्य, आन्तरिक सदस्य, शरीर का गुण, रोग, अल्सर एवं घाव, बाह्य इन्द्रियां, आन्तरिक इन्द्रियां, मस्तिष्क, इच्छा, स्नेह, यांत्रिक कला, घर एवं उसके भाग, विवाह, परिवार, राज्य एवं नागरिक
अर्थव्यवस्था, व्याकरण, भाषण कला, द्वन्दवाद तथा ज्ञान की
अन्य शाखायें आदि। इस बात का ध्यान रखा गया कि प्रत्येक में व्याकरण की संरचना दी
जाये ताकि एक कुशल अध्यापक आगमन पद्धति से व्याकरण का भी संपूर्ण ज्ञान छात्रों
में विकसित कर सके ।
'दि लेबरिन्थ ऑफ दि वर्ल्ड' तथा 'दि पैराडाइज ऑफ दि अर्थ' में उसने अपने धार्मिक
सुधार के सिद्धान्तों का वर्णन किया है । दि लेबरिन्थ में उसने विद्यार्थियों को
दिए जा रहे अमानवीय दंड का उल्लेख किया है। 'दि पैराडाइज ऑफ दि अर्थ' में उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य ईसामसीह के बताये मार्ग का
अवलम्बन करना बताया है।
1633 में कमेनियस ने
वेस्टिबुलम (द्वार) प्रकाशित किया- जो कि पहले की व्याकरण की पुस्तकों से बहुत सरल
था। बाद में दूसरे ग्रंथों की भी रचना की । दि एटरियम दि जनुआ का विस्तार था - उसी
योजना को स्वीकार किया गया- उन्हीं विषयों का विस्तृत वर्णन किया गया तथा व्याकरण
पर भी अधिक ध्यान दिया गया। साथ में लैटिन में लिखे व्याकरण का भी उपयोग किया जाना
था। इस सीरीज की अंतिम पुस्तक दि पैलेस या थेजारस में संक्षेप में लैटिन भाषा में
उपलब्ध साहित्य को संकलित किया गया।
दि ओरबिस पिक्चस
सेन्सुअलियम 1657 में प्रकाशित
हुई। इस पुस्तक में परिचय,
प्रतीकों या
शब्दों की जगह वस्तुओं के चित्रों द्वारा दिया गया है। दि ओरबिस पिक्चस बच्चों
हेतु चित्र सहित पहली पाठ्य पुस्तक होने के कारण प्रसिद्ध है। लेकिन वस्तुओं को
प्रस्तुत करने की विधि तथा आगमन विधि से सामान्य ज्ञान की ओर बढ़ना और अधिक
महत्वपूर्ण है। पाठ्य वस्तु तो जनुआ की ही है पर प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ में
अनेक नम्बर सहित चित्र दिए गए है। नम्बर पंक्ति का बोध करता है.
यद्यपि कमेनियस ने 100 से भी अधिक पुस्तकों एवं
पाठ्य पुस्तकों की रचना की पर यह सब उसके एक सैद्धान्तिक कार्य दि डाइडेक्टिक
मैग्ना में समाहित है जो 1632 में पूरी हुई -
पर इसका लैटिन अनुवाद 1657 तक प्रकाशित
नहीं हुआ पाल मुनरो ( 246
) के अनुसार यह अब तक शिक्षा से सम्बन्धित लिखे गए सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में एक
है। यह वर्तमान समय में भी अध यापकों के लिए बेहद उपयोगी है। इसने भावी शैक्षिक
विकास की विस्तृत आधारशिला रखी।
कमेनियस का शिक्षा - सुधार का प्रयास - विश्वज्ञान (पॉनसोफिक)
कमेनियस का शिक्षा -
सुधार का प्रयास धार्मिक उद्देश्यों से प्रेरित था। धर्म के अलावा उसकी रूचि विश्व
- ज्ञान या सार्वभौमिक ज्ञान में था । यह विश्व - कोष ( इनसाइक्लोपेडिया) के ज्ञान
से भिन्न था, जो कि मध्यकाल
में एक सामान्य प्रक्रिया थी। इसका उद्देश्य था "ब्रह्माण्ड की संरचना का
उपयुक्त विश्लेषण, सभी अंगो एवं
शिराओं का विच्छेदन इस तरह से करना कि ऐसा कुछ भी शेष नहीं हो जो दिखे नहीं। बिना
किसी भ्रम के, सभी अंग अपने
उपयुक्त स्थल पर दिखेंगे।" पहले विश्वकोष तथ्यों का संकलन मात्र था, लेकिन कमेनियस ने तथ्यों
को सार्वभौमिक सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में व्यवस्थित किया। प्रत्येक कला एवं
विज्ञान विषय में सार्वभौमिक नियम को आधार बनाया। अर्थात् जो सर्वाधिक ज्ञात ज्ञान
है से प्रारम्भ कर क्रमशः कम ज्ञान या अज्ञात की ओर बढ़ना - तब तक जब तक सारा
ज्ञान समाहित न हो जाये । अतः कमेनियस की हर पाठ्यपुस्तक में प्रत्येक अध्याय एवं
पैराग्राफ एक बिन्दु से दूसरे की ओर क्रमबद्ध ढंग से बढ़ता है और इस तरह से उसने
सार्वभौमिक सिद्धान्त के आधार पर पाठ्यपुस्तकों की रचना की.
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