कमेनियस शिक्षण विधि अनुशासन और दण्ड| John Amos Comenius Education Method in Hindi

कमेनियस शिक्षण विधि
John Amos Comenius Education Method in Hindi


कमेनियस शिक्षण विधि अनुशासन और दण्ड| John Amos Comenius Education Method in Hindi

कमेनियस शिक्षण विधि

 

कमेनियस ने पिछली गलतियों को समाप्त करने एवं अपने सिद्धान्तों को कार्यरूप देने हेतु क्रम के सिद्धान्तको अपनाने पर दिया। उसके अनुसार क्रम का सिद्धान्त (प्रिन्सिपुल ऑफ आर्डर) ईश्वर एवं शिक्षा दोनो का प्रथम नियम है। अतः कमेनियस के अनुसार शिक्षण कला में समयपढ़ाये जाने वाले विषयों एवं विधि का उपयुक्त समन्वय होना चाहिए।

 

कमेनियस के अनुसार सही या उपयुक्त शिक्षण - विधि वही है जो प्रकृति के नियमों का पालन करे। सबों को सभी विषय पढ़ाने हेतु प्राकृतिक क्रियाओं से सही विधि को सीखा जा सकता है। और अगर एक बार यह विधि विकसित हो जाती है तो शिक्षण उतना ही स्वभाविक हो जाता है जितना प्राकृतिक घटनायें । उदाहरण देते हुए कमेनियस कहते है कि चिड़ियाँ अपनी प्रजाति बढ़ाने हेतु प्रजनन क्रिया कष्टकारी शीत ऋतु या दुखदायी ग्रीष्म ऋतु में नहीं करती वरन् जीवनदायी बसन्त ऋतु में करती हैजब सूरज सबमें जीवन और शक्ति वापस लाता है। इसी तरह से माली उपयुक्त ऋतु में ही पौधों को लगाता है। लेकिन विद्यालयों में बौद्धिक कार्य हेतु उपयुक्त समय का चुनाव नहीं किया जाता है। कार्यों को विभिन्न सोपानों में विभाजित कर क्रमबद्ध ढंग से नहीं पढ़ाया जाता है। अतः बच्चों की शिक्षा जीवन के बसन्त यानि लड़कपन में प्रारम्भ होनी चाहिए। प्रभात बेला (जीवन के संदर्भ में) शिक्षा हेतु सर्वाधिक उपयुक्त है। पढ़ाये जाने वाले विषयों को इस तरह से क्रमबद्ध कर पढ़ाना चाहिए कि वह बच्चे की उम्र और विकास की अवस्था के अनुरूप हो। ऐसी कोई भी चीज नहीं पढ़ाई जानी चाहिए जिसे समझने की अवस्था विद्यार्थियों की नहीं हो ।

 

कमेनियस को शिक्षण के कई सूत्रों के विकास का श्रेय जाता हैजैसे: 

(i) सरल से कठिनः 

कमेनियस ने अध्यापकों को सुझाव दिया कि जो आसान है उससे प्रारम्भ कर कठिन की ओर बढ़ो ।

 

(ii) विषयों का समन्वयः 

जो विषय एक दूसरे से सम्बन्धित हैं उन्हें पढ़ाते समय एक-दूसरे के सम्बन्धों के बारे में स्पष्ट ज्ञान देना चाहिए।

 

(iiiशिक्षण की आगमन - विधिः 

कमेनियस ने कहा "नियमों के पूर्व उदाहरण आना चाहिए ।"

 

(iv) रूचि का सिद्धान्तः 

कमेनियस ने कहा कि रूचि के बिना सीखना संभव नहीं है अतः अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों में रूचि जगाने का हर संभव प्रयास करे ।

 

(v) विकास का सिद्धान्तः 

कमेनियस के कार्यों में पेस्टालॉजी के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के बीज देखे जा सकते है। जिसके अनुसार बच्चे को वैसा कुछ भी नहीं पढ़ाया जाना चाहिए जिसके लिए बच्चे की उम्र और मानसिक बौद्धिक शक्ति की माँग न हो।

 

कमेनियस के अनुसार अनुशासन और दण्ड

 

कमेनियस अध्यापकों से यह उम्मीद करता है कि वे छात्रों को पुत्रवत मानेंगे। साथ ही वे विद्यालय में कड़ा अनुशासन चाहते हैं। छात्रों में सुधार हेतु कमेनियस शारीरिक दंड देने की भी अनुशंसा करते हैं। वे कहते हैं "विद्यार्थियों और अध्यापकों को ध्यान और सावधानी की आवश्यकता है। सावधानी के बावजूद छात्रों में बुराई आ सकती है। अतः अनुशासन हीनता एवं बुरी प्रवृतियों को रोकने हेतु विद्यार्थियों को शारीरिक दंड भी दिया जाना चाहिए। विद्यार्थी को गलती करते ही दंड देना चाहिए ताकि बुराई को समूल समाप्त किया जा सके।"

 

यहाँ पर यह तथ्य उल्लेखनीय है कि कमेनियस ने गलती करने वाले छात्रों को ही दण्डित करने को कहा। साथ ही दण्ड का उद्देश्य बच्चों को गलत प्रवृतियों एवं बुराइयों के शिकार होने से रोकना था। सामान्य स्थिति में तो कमेनियस अध्यापकों से छात्र के लिए स्नेहशील होने की उम्मीद रखता था। कमेनियस ने कहा "अध्यापकों को चाहिए कि वे अपने बेरूखे व्यवहार से विद्यार्थियों को विलग न करे वरन् पिता की तरह भावनाओं एवं शब्दो के प्रयोग से उन्हें आकृष्ट करें ।"

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