जॉन डीवी का दर्शन | विमर्शात्मक चिन्तन के सोपान |John DV Philosophy in Hindi
जॉन डीवी का शिक्षा दर्शन,विमर्शात्मक चिन्तन के सोपान
डीवी ने दर्शन के विभिन्न पक्षों पर दूरगामी प्रभाव वाले कार्य किए हैं। अतः कुछ ही बिन्दुओं की चर्चा डीवी के कार्यों के साथा न्याय नहीं है । फिर भी सुविधा की दृष्टि से हम निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दुओं की चर्चा कर सकते हैं-
1 विमर्शात्मक या विवेचनात्मक जाँच
जॉन डीवी ने समस्याओं को समझने एवं उनके समाधान हेतु विमर्शात्मक या विवेचनात्मक जाँच पर सर्वाधिक जोर दिया। समस्या का समाधान कैसे किया जाय या किसी समस्या में क्या निहित है? या आलोचनात्मक अन्वेषण क्या है? मानव-संर्दभों में बुद्धि का प्रयोग कैसे किया जाये ? अपने इन प्रश्नों का उत्तर डीवी ने अपनी पुस्तकों 'हाउ टू थिंक' और 'लॉजिक: दि थ्योरी ऑफ इन्क्वायरी' में दिया। उन्होंने विमर्शात्मक चिन्तन के निम्नलिखित सोपान बताये:
(i) समस्या का आभासः इस चरण में कुछ गलत होने की अनुभूति होती है। हमारे किसी विचार पर प्रश्न चिन्ह लगता अनुभव होता है या इस पर कार्य करने से द्वन्द्व या भ्रम की स्थिति का आभास होता है।
(ii) द्वितीय सोपान में समस्या का स्पष्टीकरण होता है। विश्लेषण और निरीक्षण के द्वारा हम पर्याप्त तथ्य संग्रहित करते हैं जिससे समस्या को समझा जा सकता है और परिभाषित किया जा सकता है।
(iii) समस्या को स्पष्ट करने के बाद समाधान हेतु परिकल्पनाओं का निर्माण किया जाता है।
(iv) चतुर्थ चरण में निगनात्मक विवेचना द्वारा विभिन्न परिकल्पनाओं के निहितार्थ को समझने का प्रयास करते हैं और उस परिकल्पना तक पहुँचते हैं जो सबसे उपयुक्त हो तथा जिसका वास्तव में परीक्षण किया जाये ।
(v) पाँचवा पद जाँच का है जब परिकल्पना के स्वीकार किए जाने की संभावना का निरीक्षण या प्रयोग द्वारा निर्धारण होता है। अब परिस्थिति या असमंजस की जगह- समाधान या स्पष्टता मिल जाती है।
2 अनुभव
डीवी के विचारों के केन्द्र में अनुभव है जो कि बार-बार उसके लेखन में दिखता है। उसने अपने कार्यों इक्सपिअरेन्स एण्ड नेचर, आर्ट इज इक्सपिअरेन्स या इक्सपिअरेन्स एण्ड एडुकेशन जैसे अपने कार्यों में अनुभव पर अत्यधिक जोर दिया। उनके लिए मानव का ब्रह्माण्ड से सम्बन्ध या व्यवहार का हर पक्ष अनुभव है। प्रकृति एवं वस्तुओं की अन्तर्क्रिया को महसूस करना अनुभव है।
रूढ़िवादी दृष्टिकोण अनुभव को ज्ञान से सम्बन्धित मानता है पर डीवी इसे जीवित प्राणी एवं उसके सामाजिक एवं प्राकृतिक वातावरण के मध्य की अन्तर्क्रिया मानते हैं। रूढ़िवादी इसे आत्मनिष्ठ, आन्तरिक तत्व मानते हैं जो वस्तुनिष्ठ वास्तविकता से भिन्न है। पर डीवी ने वस्तुनिष्ठ विश्व को महत्व दिया है जो मानव की क्रिया एवं पीड़ा में प्रवेश करता है और मानव के द्वारा वह परिवर्तित भी किया जा सकता है। डीवी दिए हुए तथ्य या परिस्थिति में परिवर्तन का पक्षधर है ताकि मानव के उद्देश्य पूरे हो सकें। डीवी अनुभव को भविष्य से जोड़ता है। अगर हम परिवर्तन चाहते हैं तो हमें भविष्य की ओर उन्मुख होना होगा अतः अनुस्मरण की जगह प्राज्ञान या पूर्वाभास पर जोर देना चाहिए । अतः डीवी ने अनुमान पर जोर दिया है।
3 ज्ञान
डीवी की दृष्टि में ज्ञान को समस्यागत या अनिश्चित परिस्थितियों तथा चिन्तनशील अन्वेषण के संदर्भ में रखा जाना चाहिए। तथ्यों का संकलन से ज्ञान अधिक है। ज्ञान हमेशा अनुमान सिद्ध होता है तथा समस्या यह होती है कि किसी तरह अनुमान की प्रक्रिया को विश्वसनीय या सही निष्कर्ष प्राप्त करने हेतु निर्देशित किया जाये। इसमें नियंत्रित निरीक्षण, परीक्षण तथा प्रयोग किये जाते हैं। यह अन्वेषण की उपज है। डीवी ने बेकन के विचार ज्ञान शक्ति है' को माना और उसके अनुसार इसकी जाँच सामाजिक प्रगति का मूल्यांकन कर किया जा सकता है।
4 दर्शन
'दि नीड फॉर ए रिकवरी ऑफ फिलासफी' में डीवी दर्शन को दर्शन की समस्याओं के अध्ययन का शास्त्र के रूप में उपयोग करने की जगह मानव की समस्याओं के अध्ययन की विधि बनाने पर जोर देता है। डीवी के अनुसार मानव की समस्यायें लगभग सभी परम्परागत समस्याओं एवं अनेक उभरती समस्याओं को समाहित करता है।
'रिकंसट्रक्सन ऑफ फिलासफी' में डीवी दर्शन के सामाजिक कार्यों पर बल देता है। दर्शन का कार्य सामाजिक एवं नैतिक प्रश्नो पर मानव की समझ बढ़ाना है, नैतिक शक्तियों का विकास करना है तथा मानव की आकांक्षाओं को पूरा करने में योगदान कर अधिक व्यवस्थित मानसिक प्रसन्नता प्राप्त करना है।
डीवी की दृष्टि में दर्शन मानव संस्कृति की उपज है। साथ ही वह एक साधन है मानव संस्कृति की आलोचना और विश्लेषण कर उसे एक दिशा और रूप देने का। 'इक्सपीरियन्स एण्ड नेचर' में वह दर्शन को आलोचना की आलोचना' कहता है- यह आलोचना के एक सिद्धान्त का रूप ले लेती है मूल्यों एवं विश्वासों के मूल्यांकन का अनेक माध्यम प्रदान करती है। हम आलोचना करते हैं कि ताकि बेहतर मूल्यों का विकास कर सकें। दर्शन की सभी शाखायें इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती हैं।
जीव विज्ञानी दृष्टिकोण –
- डीवी ने आनुवंशिक (जेनेटिक) दृष्टिकोण पर बल दिया। दूसरा, उनका मानना था कि जाँच का एक जीव विज्ञानी साँचा या मैट्रिक्स होता है। डार्विन और जेम्स के अध्ययन से डीवी को यह स्पष्ट हुआ कि जीवित प्राणियों का पर्यावरण से अनुकूलन या समायोजन अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा बुद्धि व्यवहार का विशेष प्रकार है। यह भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु उपयुक्त साधन से सम्बन्धित है। मस्तिष्क पर्यावरण (वातावरण) को नियन्त्रित करने का साधन जीवन प्रक्रिया के उद्देश्यों के संदर्भ में है। डार्विन का दर्शन पर प्रभाव को दर्शाते हुए डीवी कहते है कि दर्शन वस्तुतः समाधान के लिए उपायों को प्रक्षेपित (प्रोजेक्ट) करना है।
5 प्रयोगवाद
6 उपकरणवाद ( इन्स्ट्रुमेन्टलिज्म)
विचार बाह्य वस्तु की प्रतिकृति नहीं है वरन् उपकरण या साधन है। यह किसी जीव के व्यवहार को सुगम बनाने का साधन है। तात्विक या अन्तरस्थ एवं कारक (इन्स्ट्रुमेन्टलिज्म) का अन्तर करना नैतिक या तात्विक अच्छाइयों को दिन प्रतिदिन के जीवन से और दूर करना है।
7 सापेक्षवाद
डीवी का सापेक्षवाद निरपेक्षवाद के विपरीत है तथा यह एक संदर्भ, परिस्थिति एवं सम्बंध के महत्व पर जोर देता है किसी वस्तु या तथ्य को संदर्भ से हटाकर देखना उसे उसके मूल्य या अर्थ से अलग कर देना है। निरपेक्ष या असीम को उन्होंने कोर्द स्थान नहीं दिया है तथा अबाधित सामान्यीकरण गलत दिशा में ले जा सकता है। एक विशेष परिस्थिति में एक आर्थिक नीति या योजना अच्छी हो सकती है- जो इसे वांछनीय बनाता है पर दूसरी परिस्थिति में हो सकता है वह अवांछनीय हो जाय । एक चाकू पेन्सिल को छीलने हेतु अच्छा हो सकता है पर रस्सी काटने के लिए बुरा हो सकता है। लेकिन उसे बिना प्रतिबन्ध अच्छा या बुरा कहना अनुचित होगा।
8 सुधारवाद
डीवी रिकंसट्रक्सन इन फिलासफी' में कहते हैं कि पूर्ण अच्छा या बुरा की जगह जोर वर्तमान परिस्थिति में सुधार या प्रगति पर होना चाहिए।
9 मानवतावाद
डीवी के दर्शन में अलौकिकता एवं धार्मिक रूढ़िवादिता का कोई स्थान नहीं है। ए कॉमन फेथ में डीवी कहते है कि सभ्यता में सर्वाधिक मूल्यवान चीजें निरन्तर चला आ रहा मानव समुदाय है जिसकी हम एक कड़ी हैं तथा हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपने मूल्यों की परम्परा को सुरक्षित रखें, हस्तान्तरित करें, सुधार करें और इसको विस्तृत भी करें ताकि हमारे उपरांत जो पीढ़ी आती है वह इसे अधिक उदारता तथा विश्वास भाव से अपना सके। हमारा सामूहिक विश्वास इसी उत्तरदायित्व पर आधारित है।
डीवी का मानवतावाद उसके प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण से भी स्पष्ट होता है । जीवन जीने के तरीके के रूप में प्रजातंत्र मानव स्वभाव की सम्भावनाओं पर आधारित है। डीवी ने विमर्श, आग्रह, परामर्श सम्मेलन एवं शिक्षा को मतभेद समाप्त करने का साधन माना जो कि प्रजातंत्र और मानवतावाद दोनों के लिए समाचीन है। उसने शक्ति और दंड के आधार पर किसी मत को थोपने का हर संभव विरोध किया ।
10 राजनीतिक दर्शन
डीवी के अनुसार 'सर्वाधिक 'विकास' महत्वपूर्ण है। सर्वांग उत्तम उद्देश्य नहीं है। "संपूर्णता अंतिम लक्ष्य नहीं है, बल्कि संपूर्णता की ओर अग्रसर समझदारी और बेहतरी जीवन का लक्ष्य है ।" अच्छा होने का यह अर्थ नहीं है कि आज्ञाकारी और हानि न पँहुचाने वाला हो; बिना योग्यता के अच्छाई विकलांग है। बुद्धि नहीं हो तो संसार की कोई शक्ति हमें नहीं बचा सकती है। अज्ञानता सुखद नहीं है, यह मूढ़ता तथा दासता है; केवल बुद्धि ही हमें अपने भाग्य के निर्माण में कर्ता बना सकता है। हमारा जोर विचारों पर होना चाहिए न कि भावनाओं पर.
डीवी ने प्रजातांत्रिक पद्धति को स्वीकार किया, यद्यपि वह इसकी कमियों से अवगत थे। राजनीतिक व्यवस्था का उद्देश्य व्यक्ति को अधिकतम विकास में सहायता पँहुचाना है। यह तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार, अपने समूह * की नीति को निश्चित करने तथा भविष्य को निर्धारित करने में भूमिका निभाये। अभिजात तंत्र तथा राजतंत्र अधिक कार्यकुशल है पर साथ ही अधिक खतरनाक भी है। डीवी को राज्य पर संदेह था । वह एक सामूहिक व्यवस्था पर विश्वास करता था जिसमें जितना अधिक संभव हो कार्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने संस्थाओं, दलों, श्रम संगठनों आदि की बहुलता में व्यक्तिवाद का समन्वय किया ।
डीवी की दृष्टि में राजनीतिक पुनर्संरचना तभी संभव है जब हम सामाजिक समस्याओं के समाधान में भी प्रयोगवादी विधि तथा मनोवृत्ति का प्रयोग करे जो कि प्राकृतिक विज्ञानों में बहुत हद तक सफल रहा है।
हमलोग अभी भी राजनीतिक दर्शन के आध्यात्मिक स्तर पर ही हैं । हमलोग सामाजिक बीमारियों को बड़े- बड़े विचारों, शानदार सामान्यीकरणों जैसे व्यक्तिवाद या समाजवाद, प्रजातंत्र या अधिनायकवाद या सामन्तवाद आदि से समाप्त नहीं कर सकते । हमलोग को प्रत्येक समस्या को विशिष्ट परिकल्पना से समाधान करने का प्रयास करना चाहिए न कि शाश्वत सिद्धान्तों से। सिद्धान्त जाल है जबकि उपयोगी प्रगतिशील जीवन को त्रुटि एवं सुधार पर निर्भर करना चाहिए ।
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